समुदाय तथा समिति में अन्तर

समुदाय तथा समिति में अन्तर – समिति तथा समुदाय एक-दूसरे के पूरक हैं। मैकाइवर का कथन है कि “समिति एक समुदाय नहीं है बल्कि समुदाय के अन्तर्गत ही एक संगठन है।” यह कथन जहां एक ओर समिति और समुदाय के अन्तर को स्पष्ट करता है, वहीं इनकी पारस्परिक निर्भरता पर भी प्रकार डालता है। इसका तात्पर्य यह है कि एक समुदाय विद्यमान अनेक समितियों के द्वारा ही उन लक्ष्यों को प्राप्त किया जाता है जिन्हें समुदाय के लोग अपने लिए महत्वपूर्ण समझते हैं। दूसरी ओर, विभिन्न समितियों की कार्यकुशलता के आधार पर ही उनसे सम्बन्धित का एक विशेष ध्यान बन जाता है। इस दृष्टिकोण से समितियां समुदाय के विकास का एक प्रभावपूर्ण माध्यम हैं।

‘समुदाय’ शब्द का प्रयोग हम किसी बस्ती, गांव, शहर या जनजाति के लिए करते हैं। इसका तात्पर्य यह है कि जब एक विशेष क्षेत्र में रहने वाले व्यक्ति एक-दूसरे से किसी विशेष स्वार्थ के कारण सम्बन्धित नहीं होते बल्कि उसी क्षेत्र में अपना सामान्य जीवन व्यतीत करते हैं, तब व्यक्तियों के ऐसे छोटे या बड़े समूह को ही ‘समुदाय’ कहा जाता है।

समिति की अवधारणा आवश्यकता पूर्ति के इस तीसरे ढंग से ही सम्बन्धित है। दूसरे शब्दों में यह कहा जा सकता है कि जब समान हित वाले कुछ व्यक्ति अपने उद्देश्यों को प्राप्त करने के लिए सहयोग के द्वारा किसी संगठन का निर्माण करते हैं, के इसी संगठन को हम समिति कहते हैं।

समुदाय तथा समिति में अन्तर

समिति की अवधारणा से यह स्पष्ट हो जाता है कि समिति की प्रकृति समुदाय से बहुत भिन्न है। यह सच है कि समिति और समुदाय दोनों ही व्यक्तियों के समूह हैं लेकिन इनके ढांचे तथा प्रकृति में बहुत भिन्नता देखने को मिलती है। समुदाय तथा समिति में अन्तर की भिन्नताओं को निम्नांकित रूप से समझा जा सकता है-

क्र. सं.समुदायसमिति
1.समुदाय एक बड़ा मानव समूह है जो एक निश्चित क्षेत्र के अन्दर निवास करता है।समिति का कोई निश्चित क्षेत्र नहीं होता। एक समिति के सदस्य एक-दूसरे से कितने ही दूर के निवासी हो सकते हैं।
2.स्पष्ट है कि समुदाय का आकार तुलनात्मक रूप से बहुत बड़ा होता है।समिति तुलनात्मक रूप से एक छोटा संगठन है। क्योंकि इसके सदस्यों की संख्या अधिक होने से संगठन को प्रभावपूर्ण बनाना कठिन हो जाता है।
3.समुदाय का विकास स्वतः होता है।समिति की विचारपूर्वक स्थापना की जाती है।
4.समुदाय का स्वरूप ‘सामान्य’ होता है क्योंकि इसके अन्दर व्यक्ति की सभी आवश्यकताओं की पूर्ति होती है।समिति एक विशेषीकृत संगठन है जिसकी स्थापना कुछ विशेष उद्देश्यों को पूरा करने के लिए ही की जाती है।
5.समुदाय की सदस्यता अनिवार्य है। हम में से प्रत्येक व्यक्ति किसी-न-किसी समुदाय का सदस्य अवश्य होता है।समिति की सदस्यता ऐच्छिक तथा परिवर्तनशील है। व्यक्ति कभी भी अपनी इच्छा से किसी समिति का सदस्य बन सकता है या सदस्यता छोड़ सकता है।
6.व्यक्ति एक समय में एक ही समुदाय का सदस्य हो सकता है।समिति की सदस्यता इस अर्थ में बहुमुखी है कि व्यक्ति एक साथ अनेक समितियों का सदस्य बन सकता है।
7.समुदाय तुलनात्मक रूप से एक स्थायी समूह है। क्योंकि इसकी विशेषताओं में होने वाला परिवर्तन बहुत कम और धीरे-धीरे होता है।समिति की प्रकृति तुलनात्मक रूप से अस्थायी होती है क्योंकि हितों या उद्देश्यों के बदलने के साथ ही समिति का रूप बदल जाता है।
8.समुदाय की कोई औपचारिक संरचना नहीं होती। इसका जीवन प्रथाओं के द्वारा संचालित होता है।समिति की संरचना औपचारिक है क्योंकि प्रत्येक सदस्य को कुछ नियमों के अन्तर्गत अपनी स्थिति के अनुसार कार्य करना आवश्यक होता है।
9.समुदाय स्वयं में एक पूर्ण और आत्मनिर्भर इकाई है। एक समुदाय में अनेक समितियां विद्यमान होती हैं।समिति किसी समुदाय का एक छोटा-सा अंग मात्र होती है। यह समुदाय के विभिन्न उद्देश्यों को पूरा करने का साधन है।
10.समुदाय का एक प्रमुख तत्व इसके सभी सदस्यों में सामुदायिक भावना अथवा दृढ़ ‘हम की भावना’ का होना है।समिति एक हित प्रधान संगठन है जिसमें प्रत्येक सदस्य दूसरे से दिखावटी सम्बन्ध रखता है।
समुदाय तथा समिति में अन्तर
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