जब कुछ व्यक्ति अपनी एक या अधिक आवश्यकताओं को पूरा करने के लिए सहयोग के आधार पर किसी संगठन का निर्माण करते हैं, तब इसी संगठन को हम समिति कहते हैं। इसका तात्पर्य यह है कि समितियां हमारी आवश्यकताओं को पूरा करने का महत्वूर्ण साधन हैं। मैकाइवर ने लिखा है कि व्यक्ति अपनी आवश्यकताओं की पूर्ति तीन तरह से कर सकता है—
- पहला तरीका यह है कि व्यक्ति सभी दूसरे लोगों की चिन्ता किये बिना स्वतन्त्र और मनमाने रूप से अपनी आवश्यकताओं को पूरा कर ले। आवश्यकताओं को पूरा करने का यह तरीका निश्चय ही अनुचित और असामाजिक है।
- दूसरा तरीका यह हो सकता है कि विभिन्न व्यक्ति अपनी आवश्यकताओं को पूरा करने के लिए एक-दूसरे से संघर्ष करें और इच्छित उद्देश्यों को प्राप्त कर लें। यह तरीका समाज के अस्तित्व के लिए और अधिक खतरनाक हो सकता है।
- तीसरा तरीका सर्वोत्तम है जिसमें व्यक्ति अपने उद्देश्यों की पूर्ति के लिए मिल-जुलकर कार्य करे और सहयोग के द्वारा समाज को संगठित बनाएं। समिति की अवधारणा आवश्यकता पूर्ति के इस तीसरे ढंग से ही सम्बन्धित है। दूसरे शब्दों में यह कहा जा सकता है कि जब समान हित वाले कुछ व्यक्ति अपने उद्देश्यों को प्राप्त करने के लिए सहयोग के द्वारा किसी संगठन का निर्माण करते हैं, के इसी संगठन को हम समिति कहते हैं।
समिति की परिभाषाएं
समाजशास्त्रीय अर्थ में अनेक विद्वानों ने समिति की अवधारणा को विभिन्न परिभाषाओं द्वारा स्पष्ट किया है। इनमें से कुछ प्रमुख परिभाषाओं के द्वारा समिति के अर्थ को निम्नांकित रूप से समझा जा सकता है-
समिति व्यक्तियों का कोई भी वह समूह है जो किसी विशेष उद्देश्य अथवा उद्देश्यों को प्राप्त करने के लिए संगठित होते हैं।
मैकाइवर और पेज
किसी विशेष उद्देश्य को प्राप्त करने के लिए मिल-जुलकर कार्य करने बाले व्यक्तियों के समूह को समिति कहा जाता है।
बोगार्डस
किन्हीं निश्चित उद्देश्यों को पूरा करने के लिए जब कुछ व्यक्ति सहयोग के आधार पर एक संगठन की स्थापना करते हैं, तब इसी संगठन को हम एक समिति कहते हैं।
गिन्सबर्ग
समिति व्यक्तियों का वह समूह है जो कुछ निश्चित उद्देश्यों को पूरा करने के लिए संगठित होता है तथा अनेक मान्यता प्राप्त कार्य-प्रणालियों और नियमों के अनुसार कार्य करता है।” इस परिभाषा में गिलिन ने समिति के अन्दर समाज द्वारा प्राप्त नियमों के महत्व पर विशेष बल दिया है।
गिलिन और गिलिन
समिति एक ऐसा संगठित समूह है जिसका निर्माण कुछ उद्देश्यों को पूरा करने के लिए किया जाता है तथा जिसका एक आत्मनिर्भर प्रशासनिक ढांचा होता है।
फेयरचाइल्ड
इन सभी परिभाषाओं से स्पष्ट होता है कि समिति उन व्यक्तियों का एक संगठन है जो कुछ निश्चित उद्देश्यों को पूरा करने के लिए योजनाबद्ध रूप से बनाया जाता है तथा जिसके अन्तर्गत सभी सदस्य कुछ नियमों का पालन करते हुए एक-दूसरे को सहयोग प्रदान करते हैं। इससे यह भी स्पष्ट होता है कि व्यक्तियों के केवल उसी संगठन को समिति कहा जा सकता है जो समाज द्वारा मान्यता प्राप्त नियमों के द्वारा कार्य करता है।
जिसके उद्देश्य समाज-विरोधी नहीं होते। यदि कुछ व्यक्ति किसी समाज-विरोधी उद्देश्य को लेकर एक संगठन का निर्माण कर लें तो इसे समिति नहीं कहा जा सकता। समिति की इस अवधारणा को इसकी अनेक विशेषताओं के द्वारा स्पष्ट किया जा सकता है।


समिति की विशेषताएं
- समिति व्यक्तियों का संगठन है— एक समिति का निर्माण व्यक्तियों द्वारा होने के कारण इसे एक सामाजिक समूह कहा जा सकता है। इस दृष्टिकोण से समिति एक मूर्त इकाई है जिसके स्वरूप को स्पष्ट रूप से देखा जा सकता है।
- निश्चित उद्देश्य – कोई भी समिति ऐसी नहीं मिलेगी जिसकी स्थापना किसी उद्देश्य अथवा उद्देश्यों को लेकर न की गयी हो। वास्तव में, समिति के उद्देश्यों का निर्धारण पहले कर लिया जाता है तथा इसके बाद ही उनको अपना लक्ष्य मानने वाले लोग परस्पर संगठित होते हैं।
- विचारपूर्वक स्थापना — मैकाइवर का कथन है कि समिति ‘एक विचारपूर्वक स्थापित किया गया संगठन है। इसका तात्पर्य यह है कि समुदाय की तरह समिति का विकास स्वतः नहीं होता बल्कि बहुत-से लोग एक-दूसरे से विचार-विमर्श करके योजनाबद्ध रूप से समिति की स्थापना करते हैं। यह विचार मुख्य रूप से उन उद्देश्यों से सम्बन्धित होते हैं जिन्हें समिति के सदस्यों द्वारा अपने लिए व्यावहारिक और उपयोगी समझा जाता है।
- ऐच्छिक सदस्यता – किसी विशेष समिति का सदस्या बनना अथवा न बनना पूर्णतया व्यक्ति की अपनी इच्छा पर निर्भर होता है। साधारणतया हमें जिस समिति का सदस्य बनने से अपने हितों अथवा आवश्यकताओं के सर्वोत्तम ढंग से पूरा हो जाने की आशा होती है, हम उस समिति के सदस्य बन जाते हैं। व्यक्ति एक ही समय पर एक साथ अनेक समितियों का सदस्य हो सकता है। आवश्यकताओं तथा हितों में परिवर्तन हो जाने की स्थिति में व्यक्ति एक समिति की सदस्यता को छोड़कर किसी भी दूसरी समिति की सदस्यता ग्रहण करने के लिए स्वतन्त्र होता है। इस प्रकार किसी विशेष समिति की सदस्यता बाध्यतामूलक नहीं होती।
- एक औपचारिक संगठन — समिति इस दृष्टिकोण से एक औपचारिक संगठन है कि न केवल इसका ढांचा औपचारिक होता है बल्कि समिति के अन्दर सदस्यों के पारस्परिक सम्बन्धों में भी अधिक औपचारिकता देखने को मिलती है। औपचारिक ढांचे का तात्पर्य है कि समिति के अन्दर प्रत्येक सदस्य की एक सुनिश्चित स्थिति होती है जैसे— अध्यक्ष, उपाध्यक्ष, मंत्री, उप मंत्री, कोषाध्यक्ष तथा सामान्य सदस्य आदि प्रत्येक सदस्य को अपनी इसी प्रस्थिति के अनुसार विभिन्न अधिकार प्राप्त होते हैं। समिति में सम्बन्ध इस दृष्टिकोण से औपचारिक होते हैं कि प्रत्येक सदस्य दूसरे से केवल उतना ही सम्बन्ध रखता है जितने से वह एक विशेष उद्देश्य को पूरा कर सके। यह सम्बन्ध त्याग पर आधारित न होकर हितों को पूरा करने से सम्बन्धित होते हैं।
- सुनिश्चित नियम — समिति का निर्माण जिन उद्देश्यों के लिए किया जाता है, उन्हें प्राप्त करने के लिए समिति के अपने निश्चित और स्पष्ट नियम होते हैं। प्रत्येक सदस्य को इन्हीं नियमों के अनुसार कार्य करना आवश्यक होता है। साधारणतया समिति के अधिकांश नियम लिखित होते हैं तथा इनकी अवहेलना करने पर व्यक्ति को समिति की सदस्यता से अलग भी किया जा सकता है। इस दृष्टिकोण से समिति के नियमों को भी औपचारिक नियम’ कहना उचित है।
- समिति एक साधन है— समिति स्वयं में एक लक्ष्य न होकर केवल उद्देश्यों की पूर्ति का साधन है। इसका तात्पर्य यह है कि यदि हम विकलांग व्यक्तियों की सहायता के लिए एक संगठन की स्थापना करें तो यह समिति उस लक्ष्य को पाने का केवल एक साधन होगी।
- सहयोग की प्रधानता यह सच है कि किसी भी संगठन में सहयोग और संघर्ष के सम्बन्धों का साथ-साथ विद्यमान होना बहुत स्वाभाविक है, लेकिन समिति एक ऐसा संगठन है जिनकी सफलता सदस्यों के सहयोगी सम्बन्धों पर ही अधिक निर्भर होती है। जब कभी भी किसी समिति में संघर्ष बढ़ जाते हैं, तब या तो वह समिति भंग हो जाती हैं अथवा उसके ढांचे में परिवर्तन हो जाता है।
- अस्थायी स्वभाव — समिति को एक ऐसा संगठन कहा जा सकता है जिसकी प्रकृति तुलनात्मक रूप से अधिक स्थायी नहीं होती व्यक्तियों की आवश्यकताओं और हितों में परिवर्तन होने के साथ ही पुरानी समितियां भंग हो जाती हैं और उनके स्थान पर नयी समितियों की स्थापना कर ली जाती है। समिति की स्थापना जिस उद्देश्य को लेकर की जाती है, उसकी पूर्ति हो जाने की दशा में भी समिति का स्वरूप पहले जैसा नहीं रह जाता।


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समिति के उदाहरण
सामाजिक जीवन में विभिन्न हितों और उद्देश्यों से सम्बन्धित समितियों की संख्या इतनी अधिक होती है कि उनकी कोई निश्चित सूची नहीं बनायी जा सकती। इसके बाद भी मैकाइवर ने विभिन्न प्रकार के स्वार्थों पर आधारित कुछ विशेष समितियों के उदाहरण देकर समिति की अवधारणा को स्पष्ट किया है। इसे निम्नांकित तालिका के द्वारा समझा जा सकता है :
क्रम सं. | हितों की प्रकृति | समितियों के उदाहरण |
---|---|---|
1. | सामान्य हितों पर आधारित | जातिगत संगठन, युवाओं अथवा वृद्धों के संगठन, नागरिक कल्याण समितियां, युवा-गृह आदि। |
2. | प्राथमिक सम्बन्धों पर आधारित | परिवार, क्लब, व्यायाम संघ खेलकूद समितियां तथा मनोरंजन समितियां आदि। |
3. | शैक्षणिक हितों पर आधारित | विद्यालय, सुधार गृह, प्रशिक्षण समितियां, प्रदर्शन देने वाली समितियां आदि। |
4. | आर्थिक हितों पर आधारित | मजदूर संघ, व्यावसायिक समितियां, कृषि समितियां, सहकारी समितियां तथा बीमा समिति आदि। |
5. | राजनीतिक हितों पर आधारित | राजनीतिक दल, गांव पंचायत, नगरपालिका तथा प्रचार समितियां। |
इसके अतिरिक्त, विभिन्न प्रकार के महिला संगठनों, सुधार संघों तथा कला और संगीत को प्रोत्साहन देने वाले संगठनों को भी समितियों का उदाहरण कहा जा सकता है। यह सभी संगठन इस कारण समिति हैं क्योंकि यह व्यक्तियों के संगठन हैं इनकी स्थापना किसी विशेष उद्देश्य अथवा उद्देश्यों को लेकर की जाती है इनकी सम्पूर्ण कार्यवाही कुछ विशेष नियमों पर आधारित होती है तथा इनकी सदस्यता पूर्णतया ऐच्छिक है। व्यक्ति अपने हित अथवा इच्छा का ध्यान रखते हुए इनमें से किसी भी समिति का सदस्य बन सकता है या किसी भी समिति की सदस्यता को छोड़ सकता है।
समिति का समाजशास्त्रीय महत्व
हमारे सामाजिक जीवन के लिए समितियां अत्यधिक महत्वपूर्ण हैं। विभिन्न समितियां युक्ति और सामाजिक व्यवस्था के लिए इतने महत्वपूर्ण कार्य करती हैं कि उन्हें सामाजिक जीवन की एक आवश्यकता के रूप में देखा जाता है। इनके कार्यों अथवा महत्व को निम्नांकित क्षेत्र में देखा जा सकता है-
- सर्वप्रथम समितियां आवश्यकताओं की पूर्ति का महत्वपूर्ण साधन हैं। कोई भी व्यक्ति अपनी सभी आवश्यकताओं को अकेले ही पूरा नहीं कर सकता। एक समिति के रूप में जब बहुत-से लोग किसी सामान्य उद्देश्य को पूरा करने के लिए संगठित होते हैं तो ऐसे संगठन की सहायता से विभिन्न आवश्यकताओं को पूरा करना सरल हो जाता है।
- समितियां व्यक्तित्व के विकास का आधार हैं। सभी समितियां अनुशासन और व्यवहार के कुछ नियमों पर आधारित होती हैं। इनकी सहायता से व्यक्ति नियमबद्ध रूप से व्यवहार करना सीखता है। यही सीख व्यक्तित्व को विकसित करती है।
- पारस्परिक सहयोग को बढ़ाने में भी समितियों की भूमिका महत्वपूर्ण होती है। सभी समितियां एक-दूसरे से भिन्न विचारों, संस्कृतियों तथा धर्मों के लोगों को एक दूसरे के निकट सम्पर्क में खाती है। इसके फलस्वरूप समाज में संघर्ष की सहयोग की प्रक्रिया अधिक प्रभावपूर्ण बन जाती है।
- जनमत का निर्माण करना समितियों का एक प्रमुख कार्य है। समाज में जिन विषयों को महत्वपूर्ण समझा जाता है, समितियां अपने सदस्यों को उन विषयों के प्रति जागरूक बनाती हैं। इसी जागरूकता से जनमत का निर्माण होता है। वर्तमान लोकतान्त्रिक समाजों में यही जनमत सरकार और अधिकारियों के निर्णयों को भी प्रभावित करता है।
- समितियों का महत्व इस बात से भी स्पष्ट हो जाता है कि समितियां व्यक्ति के अधिकारों की रक्षा करने का एक महत्वपूर्ण साधन हैं। विभिन्न समितियां अपने सदस्यों को इस तरह संगठित करती हैं जिससे वे शोषण के विरुद्ध आवाज उठा सकें तथा अपने अधिकारों की रक्षा कर सकें।
- समितियां लक्ष्यों को लेकर संगठित होती हैं जिन्हें में समझा जाता है। इससे सामाजिक मूल्यों और सामाजिक प्रतिमानों की निरन्तरता बनी रहती है। इसी कारण समितियों को समाजीकरण का भी एक प्रमुख साधन कहा जाता है।