समावेशी विकास के तत्व आवश्यकता महत्व चुनौतियां

समावेशी विकास एक ऐसी अवधारणा है, जिसमें समाज के सभी लोगों को समान अवसरों के साथ विकास का लाभ भी समान रूप से प्राप्त हो, अर्थात सभी वर्ग, क्षेत्र, प्रान्त के व्यक्तियों का बिना भेदभाव, एक समान विकास के अवसरों के साथ-साथ होने वाले देश के विकास को समावेशी विकास कहा जाता है या हम दूसरे शब्दों में कहें कि यह विकास की वह प्रक्रिया है जिसमें सभी लोग, सभी क्षेत्र और अर्थव्यवस्था के सभी क्षेत्र (कृषि, उद्योग एवं सेवा) देश के आर्थिक विकास में बराबर योगदान देते हैं। अत: समावेशी विकास में देश के सभी वर्गों का बराबर योगदान रहता है तथा सभी वर्ग इस विकास से लाभान्वित होते हैं।

समावेशी विकास का मतलब मूल रूप से व्यापक-आधारित विकास साझा विकास और गरीब-समर्थक विकास से है। आर्थिक नीति में एक दृष्टिकोण के रूप में यह माना जाता है कि किसी देश में गरीबी की तीव्र विकास दर में जब कमी आती है तो उस देश की विकास प्रक्रिया में लोगों की भागीदारी बढ़ जाती है। 11वीं पंचवर्षीय योजना में समावेशी विकास को परिभाषित करते हुए कहा गया है कि “एक विकास प्रक्रिया जो व्यापक-आधारित लाभ देती है और सभी के लिए – अवसर की समानता सुनिश्चित करती है। समावेशी विकास का उद्देश्य गरीबी में कमी, मानव विकास, स्वास्थ्य और काम करने और रचनात्मक होने का अवसर प्रदान करना है।

समावेशी विकास

समावेशी विकास में चार विशेषताएँ शामिल हैं अवसर, क्षमता, पहुँच और सुरक्षा। अवसर विशेषता लोगो को अधिक से अधिक अवसर पैदा करने पर केन्द्रित है और उनकी आय बढ़ाने पर केन्द्रित है। क्षमता उपलब्ध अवसरों का फायदा उठाने के लिए लोगों को अपनी क्षमताओं को बनाने या बढ़ाने के लिए साधन प्रदान करने पर ध्यान केन्द्रित करती है। पहुँच विशेषताएँ अवसरों और क्षमताओं को एक साथ लाने के लिए साधन प्रदान करने पर केन्द्रित है।

सुरक्षा विशेषता लोगों को आजीविका के अस्थायी या स्थायी नुकसान से बचाने के लिए साधन प्रदान करती है। इस प्रकार कहा जा सकता है कि यह विकास की ऐसी प्रक्रिया है, जिसमें जीडीपी में निरन्तर विस्तार से मापा गया आर्थिक विकास सभी चार आयामों के पैमाने और दायरे के विस्तार में योगदान देती है।

  • समावेशी विकास का अर्थ ऐसे विकास से लिया जाता है, जिसमें रोजगार के अवसर पैदा हो जो गरीबी को कम करने में मददगार साबित हो।
  • इसमें अवसर की समानता प्रदान करना तथा शिक्षा व कौशल के लिए लोगों को सशक्त करना शामिल है, अर्थात अवसरों की समानता के साथ विकास को बढ़ावा देना।
  • दूसरे शब्दों में ऐसा विकास जो न केवल नये आर्थिक अवसरों को पैदा करे, बल्कि समाज के सभी वर्गों के लिए सृजित ऐसे अवसरो तक समान पहुँच को भी सुनिश्चित करे।
  • वस्तुनिष्ठ दृष्टि से यह उस स्थिति को दर्शाता है जहाँ सकल घरेलू उत्पाद (GDP) उच्च संवृद्धि दर के साथ प्रति व्यक्ति सकल घरेलू उत्पाद की उच्च संवृद्धि दर परिलक्षित होती है, जिसमें आय एवं धन के वितरण के बीच असमानता में कमी आती है।
  • यह जनसंख्या के सभी वर्गों के लिए बुनियादी सुविधाएँ उपलब्ध करने पर होता है, अर्थात आवास, भोजन, पेयजल, शिक्षा, स्वास्थ्य के साथ-साथ एक गरिमापूर्ण जीवन जीने के लिए आजीविका के साधनों को उत्पन्न करना।

समावेशी विकास के तत्व

समावेशी विकास के प्रमुख घटकों पर जोर देते हुए कहा गया है कि ग्रामीण क्षेत्रों में निवेश में तेज वृद्धि, किसानों के लिए ग्रामीण बुनियादी ढाँचे और कृषि क्षेत्र में अद्वितीय सामाजिक सुरक्षा, नेटवक के माध्यम से रोजगार और शिक्षा और स्वास्थ्य देखभाल पर सार्वजनिक खर्च में तेज वृद्धि अत्यावश्यक है। समावेशी विकास के विभिन्न अंतः सम्बन्धित तत्व निम्नानुसार गणना किये जा सकते हैं –

  1. गरीबी में कमी
  2. गुणवत्ता और रोजगार की मात्रा में वृद्धि
  3. कृषि क्षेत्र का विकास
  4. सामाजिक क्षेत्र का विकास
  5. अच्छी गुणवत्तापूर्ण सेवा वितरण प्रणाली
  6. मानव विकास सूचकांक (HDI) संकेतक और रैंकिंग में सुधार
  7. सामाजिक और क्षेत्रीय असमानताओं के प्रभाव को कम करना।

समावेशी विकास आवश्यकता महत्व

समावेशी विकास सतत् विकास और धन और समृद्धि के समान वितरण के लिए आवश्यक है। समावेशी विकास हासिल करना भारत जैसे देश में सबसे बड़ी चुनौती है। भारत क्षेत्रफल की दृष्टि से सातवाँ और जनसंख्या की दृष्टि से दूसरा सबसे बड़ा देश है। यह दुनिया की प्रमुख अर्थव्यवस्थाओं में से एक है। देश की GDP वृद्धि की उपलब्धि एक प्रमुख कारक है जो भारत में समावेशी विकास को महत्व देता है।

इस तरह कम कृषि विकास, कम गुणवत्ता वाले रोजगार विकास, कम मानव विकास, ग्रामीण शहरी विभाजन, लिंग और सामाजिक असमानता, क्षेत्रीय असमानता आदि मामले देश के लिए समस्यायें हैं। आज भी भारत में शिक्षा का स्तर निम्न है। इसके साथ देश में आर्थिक सुधार पुरानी दार्शनिकता तथा राजनेताओं और विपक्षी दलों के आरोप-प्रत्यारोपों से अभिभूत है। साथ ही आय, गरीबी, शिक्षा, स्वास्थ्य, महिला और बाल विकास, बुनियादी ढाँचे और पर्यावरण से सम्बन्धित निगरानी योग्य लक्ष्यों की उपलब्धि के खिलाफ समावेशी दृष्टिकोण अपनाना आवश्यक है।

भारत में भ्रष्टाचार उन बीमारियों में से एक है जो समावेशी विकास को बाधित करता है। भारत जैसे लोकतांत्रिक देश में ग्रामीण भारत में रहने वाले एक चौथाई लोगो को मुख्यधारा में लाना सबसे बड़ी चिता है। समावेशी विकास प्राप्त करने का सबसे अच्छा तरीका लोगों को कौशल के माध्यम से प्रशिक्षित करना है। भारत की आर्थिक विकास की वृद्धि के लिए समावेशी दृष्टिकोण अपनाने की आवश्यकता है।

समावेशी विकास की चुनौतियां

समावेशी विकास की चुनौतियां निम्न हैं –

  1. गाँव में बुनियादी सुविधाएँ न होने के कारण गाँव से लोग शहरों की तरफ पलायन करते है। इसके चलते शहरों में जनसंख्या का दबाव बढ़ता है।
  2. शहरी क्षेत्रों की तरफ पलायन से कृषि अर्थव्यवस्था पर नकारात्मक प्रभाव पड़ रहा है, जिससे कृषि उत्पादकता में कमी दर्ज की जा रही है।
  3. भ्रष्टाचार भी देश की अर्थव्यवस्था पर नकारात्मक प्रभाव डालता है, जो समावेशी विकास की गति में बाधा उत्पन्न करता है।
  4. ग्रामीण क्षेत्रों में अभी भी स्थायी एवं दीर्घकालीन रोजगार साधनों की जरूरत है, क्योंकि मनरेगा एवं अन्य कई रोजगारपरक योजनाओं का क्रियान्वयन ग्रामीण क्षेत्रों में किया तो जा रहा है, परन्तु इन्हें रोजगार के स्थायी साधनों में शामिल नहीं किया जा सकता है।

समावेशी विकास के लिए सरकार द्वारा उठाये गये कदम

भारत सरकार द्वारा समावेशी विकास को महत्व प्रदान करते हुए 11वीं पंचवर्षीय योजना में इसका उपयोग किया गया। विकास को और अधिक धारणीय और समावेशी बनाने के उद्देश्य से इसे 12वीं पंचवर्षीय योजना के केन्द्र में “तीव्र, धारणीय और अधिक समावेशी विकास को रखा गया। योजना बनाते समय यह सुनिश्चित किया गया कि जनसंख्या के बड़े हिस्से मुख्यतः कृषक. SC / ST एवं अन्य पिछड़े वर्गों को सामाजिक एवं आर्थिक समानता दिलाई जाये।

विश्व आर्थिक मंच द्वारा जारी किये गये “समावेशी विकास सूचकांक में भारत का स्थान 68वी है तथा भारत से आर्थिक रूप से पिछड़े नेपाल का 22वाँ व पाकिस्तान का 47वों स्थान है। पिछले कुछ वर्षों से भारत ने आर्थिक विकास तो किया है, परन्तु समावेशी विकास उस गति से नहीं पाया जिस गति से उसे होना चाहिए था।

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