समावेशी बालक – अधिकांश बाधित बालक विद्यालय तथा समाज में बिना पहचाने रह जाते हैं। चाहे वह स्कूल जाते हैं अथवा नहीं इसके परिणाम स्वरूप में अपनी कार्यक्षमता हों तथा प्रतिभाओं का पूर्ण रूप से विकास नहीं कर पाते हैं। अतः ऐसे बालकों के लिए ऐसे अध्यापकों की आवश्यकता होती है कि वह बाधित बालकों की पहचान कर सकें या बालकों के व्यवहार द्वारा उन्हें आसानी से पहचान लेते हैं।
इस प्रकार के बालकों को चिकित्सीय तथा मनोवैज्ञानिक सहायता दिलाने का प्रयास करना चाहिए। पिछड़े हुए क्षेत्र तथा गांव में मनोवैज्ञानिक उपलब्ध नहीं होते हैं। ऐसी स्थिति में शिक्षा अधिकारियों को समावेशी बालकों के लिए चिकित्सीय तथा मनोवैज्ञानिक निर्धारण करने में कठिनाइयों का सामना करना पड़ता है। ऐसी स्थिति में अध्यापक क्रियात्मक से रचनात्मक निर्धारण कर सकता है और इस आधार पर इस निष्कर्ष पर पहुंच सकता है कि बालक क्या कर सकता है।
यदि अवरोधित कार्यक्रमों को प्रभावशाली तथा सफल बनाना है तो प्रत्येक स्थिति में चिकित्सीय तथा मनोवैज्ञानिक निर्धारण का विषय समावेशी बालक होने चाहिए। बालकों में कुछ विशिष्ट प्रवृत्तियों को पाया जाता है। जैसे अंतर्मुखी, निराशावादी, संबोधित, स्थिर, शर्मीले, निष्क्रिय, आत्मकेंद्रित, चिंता-ग्रस्त, कभी-कभी उग्र, एकाकी भावना वाले होते हैं। अध्यापक सर्वप्रथम इनकी पहचान करता है। तत्पश्चात इनकी पहचान के बाद इनकी शिक्षा की व्यवस्था की जाती है।

समावेशी बालक के प्रकार
सभी बालक शारीरिक रूप से एक-दूसरे से भिन्न होते हैं। कुछ छोटे, कुछ बड़े, कुछ कमजोर तथा कुछ बलवान होते हैं। कुछ बालकों में सीखने की क्षमता अधिक होती है और वह जल्दी सीख जाते हैं। जबकि कुछ ऐसे होते हैं जिन्हें बार बार अभ्यास कराकर सिखाया जाता है तथा इन्हें जो भी पढ़ाया जाता है उस में कठिनाई महसूस करते हैं। उनका सामाजिक व्यवहार भी सामाजिक व्यवस्थाओं तथा मान्यताओं की ही परिधि में होता है। इनमें संप्रेषण करने की क्षमता भी सामान्य मात्रा में होती है।
वे सामान्य शिक्षा कार्यक्रम के अंतर्गत शिक्षा ग्रहण करने की स्थिति में हो तो ऐसे बालकों को सामान्य बालकों की श्रेणी में रखा जाता है। उन्हें समावेशी बालकों की श्रेणी में रखा जाता है। इन बालकों की आवश्यकताओं की पूर्ति के लिए अलग-अलग प्रकार की विशिष्ट शिक्षा कार्यक्रमों की व्यवस्था की जाती है। इस श्रेणी में व्यवहार समस्या वाले सीखने वाली सीखने वाले विभिन्न प्रकार की शारीरिक विकृति वाले प्रकार के बच्चे आते हैं।

समावेशी बालकों की विशेषताएं
समावेशी बालकों की विशेषताएं निम्न है-
- ये शारीरिक, मानसिक, सामाजिक तथा भावात्मक रूप से पूर्णतः एक दूसरे से भिन्न होते हैं।
- समावेशी बालकों के गुण तथा स्वरूप सामान्य बालकों से भिन्न होते हैं।
- इनका विकास सामान्य बालकों की अपेक्षा तीव्र गति से होता है।
- समावेशी बालकों की समझने की शक्ति अन्य बालकों से भिन्न होती है।
- एक समावेशी बालक की अधिकतम सामर्थ्य के विकास के लिए उसे विद्यालय की कार्यप्रणाली तथा उसके साथ किए जाने वाले व्यवहार में परिवर्तन की आवश्यकता होती है।
समावेशी बालकों के लिए योजनाएं
समावेशी बालकों की शिक्षा हेतु वर्तमान समय में संपूर्ण विश्व में विभिन्न कार्यक्रम लागू किए गए हैं इन कार्य योजनाओं एवं नीतियों का विवरण निम्न है
- समावेशी बालकों की योग्यताओं को और अधिक जागृत करने के लिए निशुल्क व उपयुक्त शिक्षा की व्यवस्था की जाए।
- बाधित बालकों तथा सामान्य बालकों की शिक्षा का स्वरूप एक समान रखा जाए।
- अपंग बालकों को भी सामान्य बालकों के साथ ही शिक्षा प्रदान की जाए।
- दृष्टिबाधित, वाणी बाधित तथा श्रवण बाधित बालकों को जहां तक संभव हो सामान्य बालकों के साथ ही शिक्षा दी जाए।
- भावनात्मक रूप से विकृत तथा प्रतिभाशाली सृजनात्मक बालकों को भी सामान्य बालकों की शिक्षा संस्था में प्रवेश दिया जाए।

यदि इन बालकों को थोड़ा सा संवेगात्मक प्रभाव प्राप्त होगा तो यह बालक भी सामान्य बालकों की भांति ही अपना जीवन यापन कर सकते हैं सन 1978 ईस्वी में राष्ट्रीय अनुसंधान परिषद ने समावेशी बालकों के लिए कुछ प्रावधान प्रस्तुत किए हैं, जो निम्न है-
- समावेशी तथा सामान्य बालकों के एक ही कक्षा में प्रवेश।
- आवश्यकता के अनुसार विकृत बालकों का विशिष्ट कक्षा में प्रवेश।
- शिक्षा कार्यों के लिए संसाधन उपलब्ध कराना।
- विकृत बालकों के लिए पुनर्वास सुविधा देना।
- समान पाठ्यक्रम लेना तथा आवश्यकतानुसार विकृत बालकों के पाठ्यक्रम में परिवर्तन करना।
- पाठ्यक्रम में प्रवेश निर्धारण के लिए शिक्षण विधियों एवं सामग्री का प्रयोग तथा समायोजन करना।
- शिक्षण में आवश्यकतानुसार सहायक उपकरण तथा सामग्री का उपयोग करना।
- प्रशिक्षित अध्यापकों द्वारा शिक्षण कार्य प्रदान करना बाधित बालकों की शिक्षा हेतु शैक्षिक प्रशासन का दृष्टिकोण।
समावेशी शिक्षा
शिक्षा का वह प्रारूप जिसमे सामान्य बालक एवं विशिष्ट बालक एक साथ अध्ययन करते है, उसे समावेशी शिक्षा कहते है। इस पद्धति मे दोनों बालकों के लिए एक ही अध्यापक, एक ही समय सारणी और एक ही पाठ्यक्रम सुनिश्चित किए जाते है। विशिष्ट बालक वे बालक होते है जिन्हे अपने सामान्य कार्य को करने के लिए किसी के सहायता की आवश्यकता होती है।