धर्म तथा समाज सुधार आंदोलन – 19वी शताब्दी को विश्व के इतिहास में अत्यंत महत्वपूर्ण माना जाता है। यह शताब्दी बस भारत के लिए धार्मिक तथा सामाजिक पुनर्जागरण का संदेश लेकर आई थी। इस शताब्दी में भारत पराधीन था और उसका सामाजिक, धार्मिक जीवन तीव्र गति से नीचे गिरा रहा था। भारत में धर्म तथा समाज सुधार आंदोलन की आवश्यकता थी। उसी समय राजा राममोहन राय दयानंद सरस्वती तथा विवेकानंद आदि ने भारतीय समाज सता हिंदू धर्म की करीतियो तथा अंधविश्वासों के विरोध में आंदोलन किए।

समाज सुधार आंदोलन
भारत में धर्म तथा समाज सुधार आंदोलन निम्न प्रकार हैं-
- ब्रह्म समाज
- आर्य समाज
- थियोसॉफिकल सोसायटी
ब्रह्म समाज
ब्रह्म समाज की स्थापना 1828 ईस्वी में राजा राम मोहन राय ने की थी इनका जन्म 1772 ईस्वी में बंगाल के एक प्रतिष्ठित परिवार में हुआ था। इनकी प्रारंभिक शिक्षा पटना में हुई थी। ये संस्कृत, फारसी तथा अंग्रेजी भाषा के विद्वान थे, तथा अरबी लैटिन और ग्रीक भाषा में पारंगत थे। उन्होंने हिंदू धर्म के प्राचीन ग्रंथ से वेद उपनिषद तथा अन्य धर्म ग्रंथों का अध्ययन किया था।

1805 ईसवी में राजा राममोहन राय ने ईस्ट इंडिया कंपनी की नौकरी आरंभ की तथा शीघ्र ही इसमें उच्च पद पर प्राप्त कर लिया। इस समय देश के लोगों पर ईसाई धर्म तथा पाश्चात्य संस्कृति का इतना गहरा रंग चढ़ गया कि वह अपनी प्राचीन गौरव पूर्व संस्कृति तथा सभ्यता को भूलने लगे थे। ऐसे वातावरण में राय जी ने लोगों में भारतीय धर्म तथा राष्ट्र की स्वतंत्रता के प्रति चेतना उत्पन्न की इसके साथ ही उन्होंने अनेक धार्मिक सुधार आंदोलन भी किए।
ब्रह्म समाज के सिद्धांत-
ब्रह्म समाज के प्रमुख सिद्धांत निम्नलिखित हैं-
- ईश्वर एक है और केवल एक ही है तथा उसी ने सृष्टि की रचना की है।
- ईश्वर की पूजा आत्मा की शुद्धता के साथ करनी चाहिए।
- समस्त धर्मों की शिक्षाओं से सत्य को ग्रहण कर लेना चाहिए।
- ईश्वर की उपासना तथा प्रार्थना से ही मोक्ष प्राप्त हो सकता है।
- ईश्वर के प्रति पित्र भावना मनुष्य जाति के प्रति भ्राता भावना तथा प्राणी मात्र के प्रति दया की भावना रखना है परम धर्म है।
- ईश्वर की आराधना का समस्त वर्णो एवं जातियों को समान अधिकार है। पूजा के लिए किसी आडंबर की आवश्यकता नहीं है।
- ईश्वर सभी को की प्रार्थना सुनता है तथा पाप एवं पुण्य के अनुसार ही दंड एवं पुरस्कार देता है।

आर्य समाज
आर्य समाज की स्थापना स्वामी दयानंद सरस्वती ने सन 1875 ईस्वी में की थी। स्वामी दयानंद सरस्वती का जन्म 1824 ईसवी में काठियावाड़ की एक समृद्ध ब्राह्मण परिवार में हुआ। उनके बचपन का नाम मुलसंकर था। यह बचपन से ही धर्म प्रेमी तथा बड़ी विचारशील प्रकृति के थे। उन्होंने विवाह नहीं किया और 22 वर्ष की आयु में घर छोड़कर सन्यास ले लिया। उन्होंने स्वामी विरजानंद सरस्वती को गुरु मानकर उनसे इस दीक्षा ग्रहण की।
सरस्वती ने पंजाब उत्तर प्रदेश महाराष्ट्र दैनिक दूरस्थ स्थानों का भ्रमण किया। स्वामी दयानंद के सर्वाधिक महत्वपूर्ण की रचना सत्यार्थ प्रकाश की। जिसमें उन्होंने वेदों और वैदिक धर्म की सर्वोच्चता सिद्दी की है। धार्मिक सुधार के क्षेत्र में मूर्ति पूजा तथा कर्मकांड के विरुद्ध प्रचार किए। आपने हिंदू धर्म को छोड़कर गए हिंदुओं को हिंदू धर्म में वापस लौटाने के लिए प्रेरित किया। स्वामी जी छुआछूत को धर्म मानते थे। समाज सुधार के क्षेत्र में आर्य समाज कार्य किया और जातिगत भेदभाव को दूर करने के लिए संस्थाओं की स्थापना की। स्वामी दयानंद सरस्वती की मृत्यु 1882 हो गई।

आर्य समाज के सिद्धांत-
आज समाज के निम्नलिखित सिद्धांत हैं-
- ईश्वर एक है वह निराकार, सर्वशक्तिमान, अजन्मा, निर्विकार, सर्वव्यापक, अजर-अमर तथा सृष्टि की रचना करने वाला है।
- वेद ईश्वर की वाणी है। वेद की शिक्षाएं सत्य है उनका पढ़ना तथा सुनना प्रत्येक आर्य का कर्तव्य है।
- कर्म तथा पुनर्जन्म का सिद्धांत वेदों के अनुकूल है।
- विद्या की वृद्धि तथा अविद्या के नाश का सदैव प्रयत्न करना चाहिए।
- प्रत्येक मानव को जनसाधारण की कल्याण कोई अपना कल्याण समझना चाहिए।
थियोसोफिकल सोसायटी
थियोसोफिकल सोसायटी की स्थापना 1875 ईसवी में अमेरिका की प्रसिद्ध नगर निवारक में हुई थी। इसके संस्थापक मैडम ब्लॉवत्स्की एक रूसी महिला और कर्नल ऑलकर्ट थे। सोसायटी का विश्वास है कि संसार के समस्त धर्मों में मौलिक एकता है। क्योंकि उन सबका गंतव्य स्थान एक ही है यह सोसायटी संसार में रंग तथा जातिगत भेदभाव को दूर कर सभी में मात्र भाव उत्पन्न करना चाहती है। इसके अनुयाई हिंदू तथा बौद्ध धर्म को श्रेष्ठ मानते थे।

में इस संस्था का कार्यक्रम एक आयरिश महिला श्रीमती एनी बेसेंट धारा 1893 ईस्वी में प्रारंभ किया गया था। श्रीमती एनी बेसेंट का जन्म 1847 में आयरलैंड में हुआ था। इस सोसाइटी के प्रचारकों ने हिंदू धर्म की प्रशंसा की तथा इस धर्म के उत्तम विचारों को चारों ओर फैलाया।
थियोसोफिकल सोसायटी के सिद्धांत-
इस सोसाइटी के प्रमुख सिद्धांत इस प्रकार थे-
- यह सोसाइटी धर्म परिवर्तन में विश्वास नहीं रहती थी तथा समस्त धर्मों को आदर की दृष्टि से देखती थी।
- मनुष्य को कर्म तथा पुनर्जन्म में विश्वास करना चाहिए।
- जाति पाति का भेदभाव नहीं मानना चाहिए।
- इस की दृष्टि से समस्त धर्मों की शिक्षा तथा उसका भार एक ही है।
- संसार के समस्त वर्गों में विश्व बंधुत्व की भावना उत्पन्न करके लोक कल्याण की भावना विकसित करना।
- मानव जाति को धार्मिक सिद्धांतों के अध्ययन के लिए प्रोत्साहित करना है।
अतः समाज सुधार आंदोलन भारत की प्रगति के लिए अति आवश्यक थे।