समाजीकृत अभिव्यक्ति विधि शिक्षण की एक नवीन विधि है जिसमें शिक्षक के निर्देशन में परस्पर विचार-विमर्श कर सहयोग एवं सद्भाव के वातावरण में समूह के साथ कार्य करते हुए के छात्र विविध ज्ञान प्राप्त करते हैं। समाजीकृत अभिव्यक्ति विधि द्वारा कक्षा के वातावरण की कृत्रिमता को समाप्त कर उसके स्थान पर स्वाभाविकता उत्पन्न की जाती है। जिसमें बालक अपने स्वभाव के अनुसार स्वतन्त्रतापूर्वक सहयोगी ढंग से ज्ञानार्जन करता है।
समाजीकृत अभिव्यक्ति विधि
समाजीकृत अभिव्यक्ति एक विद्यालयी शैक्षिक कार्यक्रम है जो विद्यार्थियों के सामाजिक निर्वाहनों के परिशोधन के निमित्त संचालित होता है। पूर्व में परम्परागत शिक्षण विधियों में सामाजिक पक्ष पर बल नहीं दिया जाता था परन्तु अब बालक के सर्वांगीण विकास हेतु शिक्षा के माध्यम से बालक को सामाजिक भागीदारी के लिए तैयार करने पर बल दिया जाता है। जिसके फलस्वरूप शिक्षणशास्त्र में एक नवीन आयाम और गत्यात्मक विधि (Dynamic Method) को स्थान मिला जो समाजीकृत अभिव्यक्ति विधि के नाम से प्रचलित है।
विद्यार्थी को सामाजिक इकाई के रूप में उपयोगी सदस्य की भाँति उसमें सामाजिक कौशलों एवं योग्यताओं का विकास करना आवश्यक है। इस हेतु बालकों में सामाजिक बोध उत्पन्न करने के लिए समाजीकृत अभिव्यक्ति विधि उत्तम है।
समाजीकृत अभिव्यक्ति विधि में शिक्षक समूह का एक भाग बन जाता है, जो अपने शिक्षार्थियों के साथ रहता है परन्तु उसकी भूमिका छात्रों को विषय से भटकने से रोकना और उन्हें उससे प्रासंगिक रखना है। इसमें छात्र वाद-विवाद करते हैं आपस में प्रश्न पूछते हैं और पूछे गये प्रश्नों के जवाब देते हैं। वे समूह चेतना तथा समूह के प्रति अपने उत्तरदायित्वों का निर्वाहन भी करते हैं।


परिभाषाएं
समाजीकृत अभिव्यक्ति एक आदर्श है जो शिक्षण में ऐसे प्रयोग की कल्पना है जिससे कक्षा के सभी बालक सहयोग तथा सद्भावना से ज्ञानार्जन कर सके। इसके द्वारा कक्षा की औपचारिकता को समाप्त किया जाता है तथा इसके स्थान पर स्वाभाविकता उत्पन्न की जाती है, जिससे छात्र अपनी प्रकृति, रुचि तथा सहयोग के साथ ज्ञानोपार्जन कर सकें।
वेस्ले (Wesley) के अनुसार
समाजीकृत अभिव्यक्ति को सामाजिक वाद-विवाद (Social discussion) कहा जा सकता है।
बाइनिंग एवं बाइनिंग के अनुसार
समाजीकृत कक्षा का एक महत्वपूर्ण उद्देश्य विद्यार्थियों की गतिविधियों में वृद्धि करना है तथा उन्हें मित्रतापूर्ण सहयोगी तरीके से साथ रहना, काम करना तथा खेलना सिखाना है।
योकम तथा सिम्पसन के अनुसार


समाजीकृत अभिव्यक्ति विधि के गुण
सामाजिक पर्यावरणीय समस्याओं के समाधान और छात्र समाजीकरण हेतु समाजीकृत अभिव्यक्ति विधि वर्तमान में बालकों हेतु बहुत आवश्यक है। यह पद्धति निम्न कारणों से अत्यन्त आवश्यक मानी जाती है-
- इस विधि में उन सभी प्रविधियों या पद्धतियों का उपयोग हो सकता है जो अन्य पद्धतियों में प्रयुक्त होती है जिससे यह सरस है।
- यह विधि मनोवैज्ञानिक है क्योंकि इसमें छात्रों की रुचियों तथा प्रवृत्तियों के अनुसार शिक्षा दी जाती है साथ ही यह अधिगम की जीवन्त प्रकृति पर बल देती है।
- छात्रों के सामाजिक उत्तरदायित्व की भावना का विकास होता है।
- यह क्रियाशीलता के सिद्धान्त पर आधारित है जिससे विद्यार्थी विभिन्न सामाजिक गतिविधियों का आयोजन करना भी सीखते हैं।
- विद्यार्थी स्वयं योजनाएं बनाते हैं जिससे उनमें नियोजन की भावना व स्पष्ट चिन्तन की योग्यता मुखर होती है।
- प्रश्नोत्तर से विद्यार्थियों में सामूहिक तार्किक चिन्तन का विकास होता है।
- अध्यापक तथा विद्यार्थी के बीच आपसी सम्बन्धों में अभिवृद्धि सम्भव है क्योंकि प्रकरण तैयारी से उसके निष्कर्ष तक आपस में मिल-जुलकर कार्य करते हैं।
- विद्यार्थी में स्वतन्त्र निर्णय लेने की क्षमता, विचारों के स्पष्टीकरण, चिन्तन व तर्क जैसी मानसिक क्रियाओं का विकास होता है। इस विधि से छात्रों के समान उद्देश्यों तथा रुचियों की खोज की जा सकती है।
- शिक्षक अपने विद्यार्थी के ज्ञान स्तर व सामाजिक अभिव्यक्ति के स्तर को परख सकता है।
- इस विधि से विद्यार्थी विचारों को संगठित तथा लिखित रूप में रखना सीख जाता है।


समाजीकृत अभिव्यक्ति विधि के दोष
- समय की दृष्टि से यह विधि उपयुक्त नहीं है क्योंकि छात्र व्यर्थ के वाद-विवाद में समय अधिक नष्ट करते हैं।
- विद्यार्थी पाठ उद्देश्यों की पूर्ति से भटक सकते हैं क्योंकि छात्रों में सामाजिक अभिव्यक्ति की प्रारम्भिक औपचारिकताओं के पूर्ति की पूर्णता सक्षमता हेतु शंका बनी रहती है।
- यह आवश्यक नहीं रहता कि कक्षा के सभी विद्यार्थी समान भाग लें। कुछ बालक हावी हो सकते हैं जबकि कुछ बिल्कुल भी हिस्सा न ले रहे हों।
- इस विधि द्वारा शिक्षण से छात्र विषयवस्तु पर समुचित अधिकार कर पाने में असमर्थ रहते हैं।
- इस विधि में शिक्षक, व्यवस्थापक होने से उसका प्रयास शिक्षण के गौण कर देता है और वह शिक्षण के उद्देश्यों को प्राप्त कर पाने में अपने को सक्षम नहीं रख पाता।


सुझाव –
यह पद्धति निःसंदेह भारतीय विद्यालयों के लिए काफी लाभकारी है तथा जो अध्यापक इसका समुचित उपयोग कर सकते हैं उनके लिए हितकर है। इस हेतु निम्न सुझाव उल्लिखित हैं-
- छात्रों के मानसिक स्तर का समूह निर्माण में विशेष ध्यान रखना चाहिए।
- सभी छात्रों को क्रमशः समान अवसर मिले ऐसी व्यवस्था की जानी चाहिए।
- आवश्यकतानुसार विभिन्न विधियों का समेकन करना हितकर रहता है।
- अन्तर्मुखी बालकों को विचारों के प्रस्तुतीकरण हेतु प्रोत्साहन आवश्यक है जिससे वे भी कक्षा की सामान्य धारा के अनुकूल अधिगम कर सकें।
- शिक्षक को अपने शिक्षण के उद्देश्यों को ध्यान में रखना चहिए।
- एक-दूसरे के विचारों का आदर करते हुए धैर्य से उसको सुनना चाहिए।
- शिक्षक इस योजना में निर्देशक, परामर्शदाता एवं सहयोगी के रूप में भूमिका का निर्वाहनकरें तथा विवाद में मार्गान्तीकरण न हो।

