समाजशास्त्र एवं समाजिक विज्ञान में क्या सम्बन्ध है? – समाजशास्त्र की प्रकृति को समझने के लिए यह जानना बहुत आवश्यक है कि दूसरे सामाजिक विज्ञानों की तुलना में समाजशास्त्र का स्थान क्या है? यह सच है कि समाजशास्त्र सम्पूर्ण समाज का एक सामान्य अध्ययन है, लेकिन इसका तात्पर्य यह नहीं है कि समाजशास्त्र को ही एकमात्र सामाजिक विज्ञान मान लिया जाये।
अनेक दूसरे विज्ञान भी सामाजिक जीवन के विभिन्न पक्षों का व्यवस्थित रूप से अध्ययन करते हैं। आज अनेक विद्वान समाजशास्त्र को केवल अन्य सामाजिक विज्ञानों का मिश्रण मान लेने की भूल करते हैं, जबकि कुछ विचारकों का मत है कि समाजशास्त्र पूर्णतया एक स्वतन्त्र विज्ञान है और इस प्रकार दूसरे सामाजिक विज्ञानों से इसका कोई प्रत्यक्ष सम्बन्ध नहीं है। ये दोनों धारणाएं भ्रान्तिपूर्ण हैं। समाजशास्त्र एवं समाजिक विज्ञान का कुछ ना कुछ सम्बंध ज़रूर है।

वास्तविकता यह है कि सामाजिक विज्ञान की सीमाएं इतनी विस्तृत हैं कि सभी सामाजिक विज्ञानों को इसमें से आवश्यक विषय-वस्तु प्राप्त हो जाती है। समाजशास्त्र एवं समाजिक विज्ञान, जिस प्रकार अर्थशास्त्र, राजनीतिशास्त्र, मनोविज्ञान, इतिहास, मानवशास्त्र और दर्शन सामाजिक जीवन के ही किसी-न-किसी पक्ष का अध्ययन करते हैं, उसी प्रकार समाजशास्त्र भी सामाजिक घटनाओं और मानव व्यवहारों का सामान्य दृष्टिकोण से अध्ययन करता है। इस आधार पर सभी सामाजिक, विज्ञानों की अध्ययन-वस्तु में कुछ-न-कुछ समानता का होना स्वाभाविक है। यदि विभिन्न सामाजिक विज्ञान समाज की विभिन्न दशाओं और घटनाओं का अध्ययन अलग-अलग दृष्टिकोण को लेकर करते हैं तो इसका अर्थ यह नहीं है कि उनके बीच विभाजन की एक दृढ़ रेखा खींच दी जाये।
प्रश्न यह उठता है कि उपर्युक्त समानता के बाद भी विभिन्न सामाजिक विज्ञानों को एक-दूसरे के पूर्णतया समान क्यों नहीं माना जाता? वास्तव में, इसका कारण ‘विशेष सामाजिक विज्ञान’ और ‘सामान्य सामाजिक विज्ञान’ की धारणा है। अर्थशास्त्र केवल आर्थिक क्रियाओं का अध्ययन करता है, जबकि राजनीति शास्त्र का कार्य केवल राज्य से सम्बन्धित तथ्यों का अध्ययन करता है। यह दोनों विज्ञान समाज के एक विशेष भाग का ही अध्ययन करते हैं इसलिए इन्हें ‘विशेष सामाजिक विज्ञान’ कहा जाता है।
समाजशास्त्र एवं समाजिक विज्ञान
समाजशास्त्र समाज के किसी विशेष पहलू का अध्ययन न होकर सम्पूर्ण समाज की सामान्य दशाओं का अध्ययन है। इस प्रकार समाजशास्त्र की प्रकृति अन्य विशेष सामाजिक विज्ञानों से कुछ भिन्न हो जाना बहुत स्वाभाविक है। हमारे अध्ययन से सम्बन्धित प्रमुख समस्या यह है कि समाजशास्त्र एवं समाजिक विज्ञान के बीच पाये जाने वाले सम्बन्धों की प्रकृति कैसी है? इस विषय पर समाजशास्त्रियों ने भिन्न-भिन दृष्टिकोण प्रस्तुत किये हैं। समाजशास्त्र और अन्य सामाजिक विज्ञानों के सम्बन्ध को समझने से पहले इन विचारों को जान लेना आवश्यक होगा क्योंकि इन्हीं के सन्दर्भ में समाजशास्त्र एवं समाजिक विज्ञान के पारस्परिक सम्बन्ध को उचित रूप से समझा जा सकता है।
- कॉम्ट : समाजशास्त्र एकमात्र सामाजिक विज्ञान है।
- स्पेन्सर : यह अनेक विज्ञानों का समन्वय है।
- वार्ड : समाजशास्त्र व अन्य सामाजिक विज्ञानों के बीच समानता का सम्बन्ध है।
- सोरोकिन
1. कॉम्ट : समाजशास्त्र एकमात्र सामाजिक विज्ञान है –
ऑगस्त कॉम्ट (August Comte) ने समाजशास्त्र को समाज का एकमात्र वास्तविक विज्ञान माना है। तथा अन्य सामाजिक विज्ञानों के महत्व को अस्वीकार किया है। कॉम्ट का विचार है कि समाज एक ‘समग्रता’ (totality) है जिसका अध्ययन अनेक भागों से विभाजित करके नहीं किया जा सकता । समाजशास्त्र के अतिरिक्त दूसरे सभी सामाजिक विज्ञान समाज के छोटे-से भाग का ही अध्ययन करते हैं, इसलिए उन्हें समाज का वास्तविक विज्ञान नहीं कहा जा सकता।
समाजशास्त्र एकमात्र ऐसा विज्ञान है जो सम्पूर्ण समाज का अध्ययन करके हमारे सामने समाज का एक सामान्य चित्र प्रस्तुत करता है और इसलिए समाजशास्त्र को ही समाज का एकमात्र प्रामाणिक विज्ञान मानना उचित होगा। इस दृष्टिकोण से, कॉम्ट के अनुसार, समाजशास्त्र का अन्य सामाजिक विज्ञानों से सम्बन्ध स्थापित करने का कोई प्रश्न ही नहीं उठता। कॉम्ट ने राजनीतिशास्त्र के विषय में तो स्पष्ट मत व्यक्त करते हुए कहा है कि इसका समाजशास्त्र से कोई भी सम्बन्ध नहीं है, क्योंकि राजनीतिशास्त्र सदैव ही सामाजिक घटनाओं का अध्ययन नहीं करता।
कॉम्ट के विचार को आज अधिक उपयुक्त नहीं समझा जाता। यह कहना कि समाजशास्त्र सम्पूर्ण समाज का अध्ययन कर लेता है एक अतिशयोक्ति है। इसके उपरान्त भी कॉम्ट ने यदि समाज को एक पूर्ण और स्वतन्त्र सामाजिक विज्ञान के रूप में स्पष्ट किया है तो ऐसा समाजशास्त्र की तत्कालीन तीव्र प्रगति को ध्यान में रखते हुए ही कहा गया होगा। कॉम्ट के अतिरिक्त अन्य सभी विद्वानों ने समाजशास्त्र एवं समाजिक विज्ञान को किसी न किसी प्रकार सम्बन्धित अवश्य माना है।

2. स्पेन्सर यह अनेक विज्ञानों का समन्वय है –
हरबर्ट स्पेन्सर (Herbert Spencer) ने सावयवी आधार (organic basis) पर समाजशास्त्र व दूसरे सामाजिक विज्ञानों के बीच सम्बन्ध स्पष्ट करने का प्रयत्न किया है। सावयवी आधार यह स्पष्ट करता है कि शरीर के सभी अंग एक-दूसरे पर निर्भर हैं और एक अंग पर पड़ने वाला कोई प्रभाव दूसरे अंगों को भी किसी-न-किसी रूप में अवश्य प्रभावित करता है। इन सभी अंगों की पारस्परिक क्रियाशीलता से ही शरीर का समुचित रूप से विकास होता है। समाजशास्त्र एवं समाजिक विज्ञान में सम्बंध अतुल्य है। अतः समाजशास्त्र एवं समाजिक विज्ञान में अनेक विज्ञानों का समन्वय है।
ठीक इसी प्रकार विभिन्न सामाजिक विज्ञान सम्पूर्ण सामाजिक जीवन के विभिन्न अंग हैं और इन्हीं के समन्वय से समाजशास्त्र का विकास सम्भव हो सका है। इस प्रकार स्पेन्सर ने समाजशास्त्र को अन्य सामाजिक विज्ञानों का समन्वय माना है और यह स्वीकार किया है कि सभी सामाजिक विज्ञान एक-दूसरे पर निर्भर और पूर्णतया वैध हैं। स्पेन्सर की यह धारणा उचित नहीं है कि समाजशास्त्र अन्य सामाजिक विज्ञानों का समन्वय मात्र है।
स्पेन्सर की व्याख्या के अनुसार तो समाजशास्त्र में होने वाले सभी परिवर्तन अन्य सामाजिक विज्ञानों के परिवर्तनों के अनुसार ही होने चाहिए, जबकि सत्य यह है कि समाजशास्त्र अपने निष्कर्षों और सिद्धान्तों द्वारा सभी दूसरे सामाजिक विज्ञानों को प्रभावित करता है। स्पेन्सर ने स्वयं एक स्थान पर समाजशास्त्र को ‘संरक्षक विज्ञान’ का नाम दिया है। इसका अर्थ है कि समाजशास्त्र अन्य विज्ञानों का मिश्रण मात्र न होकर अपने पृथक् अस्तित्व को बनाये हुए है।
3. वार्ड : समाजशास्त्र एवं समाजिक विज्ञान के बीच समानता का सम्बन्ध है –
लेस्टर वार्ड (Laster Ward) न तो कॉम्ट के इस विचार को सही मानते हैं कि समाजशास्त्र एकमात्र सामाजिक विज्ञान है और न ही स्पेन्सर के इस कथन में विश्वास करते हैं कि समाजशास्त्र अन्य सामाजिक विज्ञानों पर आश्रित है। वास्तव में समाजशास्त्र एवं समाजिक विज्ञान की भांति ही एक स्वतन्त्र विज्ञान है। वार्ड के शब्दों में, “यह कहना उचित नहीं है कि समाजशास्त्र विशेष सामाजिक विज्ञानों का समन्वय है।
समाजशास्त्र वह विज्ञान है जिसे अन्य सामाजिक विज्ञान स्वतः ही बनाते हैं विशेष सामाजिक विज्ञान समाजशास्त्र रूपी योग की विभिन्न इकाइयां हैं, जो इसके निर्माण के लिए पूर्णरूप से मिल जाती हैं, लेकिन आपस में मिलने के बाद वे रसायनशास्त्र की इकाइयों के समान ही अपने अस्तित्व को उसी में खो दे देती हैं। इस कथन से स्पष्ट होता है कि विशेष सामाजिक विज्ञानों से समाजशास्त्र उसी प्रकार बना है जिस प्रकार नीला व पीला रंग मिलाकर एक नये हरे रंग का निर्माण करते हैं।
यह हरा रंग फिर न तो नीला रह जाता है और न ही पीला। इसका अपना एक स्वतन्त्र अस्तित्व हो जाता है और स्वतन्त्र रूप से इसका उपयोग भी किया जा सकता है। इस प्रकार अन्य विज्ञानों से समाजशास्त्र का सम्बन्ध समानता के आधार पर स्पष्ट किया जाना चाहिए, न कि पृथकता के आधार पर मोटवानी ने भी इस तथ्य का समर्थन किया है। अतः समाजशास्त्र एवं समाजिक विज्ञान में बहुत अधिक समानता है।
4. सोरोकिन (Pitrim Sorokin) –
सोरोकिन ने समाजशास्त्र को दूसरे सामाजिक विज्ञानों की अपेक्षा कुछ व्यापक मानते हुए यह निष्कर्ष दिया है, “समाजशास्त्र अन्य सामाजिक विज्ञानों का जनक नहीं है बल्कि उसी प्रकार एक स्वतन्त्र विज्ञान है जिस प्रकार दूसरे सामाजिक विज्ञानों का एक स्वतन्त्र अस्तित्व होता है।” जहां तक समाजशास्त्र के महत्व का प्रश्न है, यह निश्चित ही विशेष सामाजिक विज्ञानों की तुलना में अधिक महत्वपूर्ण है।
इसका कारण यह है कि समाजशास्त्र समाज के सामान्य सिद्धान्तों को ही स्पष्ट नहीं करता बल्कि विशेष सामाजिक विज्ञानों को एक-दूसरे के समीप लाने का भी कार्य करता है। इसी आधार पर वार्न्स और वेकर (Barnes and Backer) ने कहा है, “समाजशास्त्र एवं समाजिक विज्ञान की न तो गृहस्वामिनी है और न ही दासी, बल्कि उनकी बहन है।”

समाजशास्त्र एवं समाजिक विज्ञान में सम्बन्ध
समाजशास्त्र एवं समाजिक विज्ञान के पारस्परिक सम्बन्धों को लेकर विभिन्न विद्वानों के विचारों से एक भ्रमपूर्ण स्थिति उत्पन्न हो जाती है। वास्तविकता यह है कि विशेषीकरण और श्रम विभाजन के आधुनिक युग में प्रत्येक वस्तु ऊपर से भिन्न प्रकृति की दिखायी देती है, लेकिन मौलिक रूप से सामाजिक तथ्यों का यह विभाजन और विशेषीकरण केवल इस कारण है, क्योंकि समाज में एकता है। समाजशास्त्र एवं सामाजिक विज्ञान के बारे में भी यही तथ्य लागू होता है।
यद्यपि प्रत्येक सामाजिक विज्ञान एक स्वतन्त्र विज्ञान के रूप में अपना पृथक् अस्तित्व बनाये हुए है, लेकिन उसकी यह स्वतन्त्रता केवल बाहरी है, आन्तरिक रूप से प्रत्येक सामाजिक विज्ञान और समाजशास्त्र में एक आधारभूत एकता पायी जाती है। इसी एकता के फलस्वरूप विभिन्न सामाजिक विज्ञान अपना विकास करते हैं। इस प्रकार समाजशास्त्र ऊपर से तो प्रत्येक विषय विज्ञान से भिन्न मालूम होता है, जबकि आन्तरिक रूप से उनके बीच घनिष्ठ सम्बन्ध पाये जाते हैं।
- समाजशास्त्र तथा मानवशास्त्र में संबंध
- समाजशास्त्र तथा अर्थशास्त्र में संबंध
- समाजशास्त्र तथा राजनीतिशास्त्र में संबंध
- समाजशास्त्र तथा मनोविज्ञान में संबंध
- समाजशास्त्र तथा इतिहास में संबंध