समस्यात्मक बालक से हमारा तात्पर्य उन बालकों से है जो परिवार एवं कक्षा वह विद्यालय में भलीभांति से समस्याएं उत्पन्न करते हैं। ऐसे बालकों का व्यवहार सामान्य प्रकार के बालकों से भिन्न होता है। वह वातावरण के साथ अपने आप को समायोजित नहीं कर पाते हैं। ऐसे बच्चे अपने अध्यापकों के लिए समस्या बने रहते हैं। समस्यात्मक बालक कई प्रकार के हो सकते हैं। जैसे चोरी करने वाले बच्चे, झूठ बोलने वाले बच्चे, क्रोध करने वाले बच्चे, विद्यालय से भाग जाने वाले बच्चे, गृह कार्य करने वाले बच्चे, कक्षा में देर से आने वाले बच्चे आदि।
समस्यात्मक बच्चों के समस्यात्मक व्यवहार के कारणों को जानकर ऐसे बच्चों के व्यवहार में सुधार लाया जा सकता है। बालक आवश्यकताएं पूरी ना होने पर लाड प्यार में कठोर अनुशासन के कारण या असुरक्षा की भावना के कारण विभिन्न प्रकार की समस्यात्मक व्यवहार करता है। समस्यात्मक बच्चों को उनके समस्यात्मक व्यवहार के लिए प्रताड़ित अथवा शारीरिक मनोवैज्ञानिक ढंग से शिक्षा देनी चाहिए।
समस्यात्मक बच्चे वे होते हैं जिनके व्यवहार तथा व्यक्तित्व इस सीमा तक असामान्य होते हैं कि वह घर विद्यालय तथा समाज में समस्याओं के जनक बन जाते हैं।

समस्यात्मक बालक
समस्यात्मक बालक वह है जो अनुशासनहीन है तथा असामान्य समस्यात्मक बालक हुए हैं जिनका व्यवहार एवं समायोजन सामान्य बालकों से अलग होता है। इनकी पहचान निम्न बिंदुओं के अध्ययन द्वारा की जा सकती है-
- यदि बच्चे में व्यक्तिगत या स्कूल की समस्याओं के प्रति शारीरिक लक्षणों या अन्य विभिन्न तरह के डर के रूप में समाधान करने की प्रवृत्ति अधिक हो।
- यदि बच्चे में सामान्यता परिस्थितियों में भी उपयुक्त व्यवहार किया जाता है।
- यदि बच्चे में सीखने की ऐसी क्षमता हो जिसकी बौद्धिक आधार पर व्याख्या नहीं की जा सकती है।
- यदि बच्चे में अपने साथियों एवं शिक्षकों के साथ संतोषजनक अंतर वैयक्तिक संबंध बनाने एवं कायम रखने की क्षमता हो।
- यदि बच्चे में सामान्यतः दुख या उदासी की प्रधानता रहती हो।

समस्यात्मक बालकों की पहचान
समस्यात्मक बालकों की पहचान निम्न प्रकार से की जा सकती है-
- निरीक्षण विधि का प्रयोग करके
- साक्षात्कार द्वारा
- अभिभावकों, शिक्षकों तथा मित्रों से वार्तालाप
- कथात्मक अभिलेख
- संचई अभिलेख के द्वारा
- मनोवैज्ञानिक परीक्षणों के द्वारा