समन्वय अर्थ व 14 उद्देश्य

एक संगठन के प्रबन्धकीय कार्यों के उचित रूप से किये जाने के लिए यह आवश्यक है कि सभी प्राकीय कार्यों का समन्वय हो प्रबन्धक द्वारा कार्यों को संगठन के व्यक्तियों व विभागों को कार्यों का बंटवारा तथा अभिहस्ताकन करके किया जाता है। इसलिए यह आवश्यक है कि लक्ष्यों को प्राप्त करने हेतु सभी व्याक्तियों एवं विभागों के प्रयासों एवं कार्यों में समन्वय हो।

प्रबन्धक समन्वय को सुनिश्चित करते हैं तथा पर्यावरण के साथ अपनी गतिविधियों को एकीकृत करते हैं। समन्वय संगठन के लक्ष्यों को प्राप्त करने के अनुक्रम में संगठन के विभिन्न व्यक्तियों एवं विभागों की गतिविधियों को एक ही समय में सम्पादित करने की प्रक्रिया होती है।

समन्वय की परिभाषाएँ

समन्वय की कुछ सुस्वीकृत परिभाषाएं निम्नलिखित हैं-

ई. एफ. एल. बीच के अनुसार, “समन्वय का आशय विभिन्न सदस्यों में चालू कार्यों का समुचित आवंटन करके एवं यह तय करके कि सदस्य उन कार्यों को सद्भावनापूर्वक कर रहे हैं, संगठन में सन्तुलन एवं समूह भावना बनाये रखना होता है।

मूने व रेले के अनुसार, किसी सामान्य उद्देश्य की प्राप्ति के लिए की जाने वाली विभिन्न गतिविधियों में एकता बनाये रखने के उद्देश्य से सामूहिक प्रयासों में सुव्यवस्था करने को समन्वय कहते हैं।

मैक्फारलेण्ड के अनुसार, समन्वय एक प्रक्रिया है जिसके द्वारा एक कार्यकारी अधिकारी अपने अधीनस्थों में सामूहिक प्रयास का एक सुव्यवस्थित स्वरूप विकसित करता है तथा सामूहिक उद्देश्यों की पूर्ति के लिए गतिविधि सम्बन्धी एकता स्थापित करता है।

उपरोक्त परिभाषाओं के विश्लेषणात्मक अध्ययन के आधार पर यह कहा जा सकता है कि समन्वय एक ऐसी प्रक्रिया है जिसके माध्यम से उद्यम की विभिन्न गतिविधियों में जाता है जिससे कि संस्था (संगठन) अपने निर्धारित लक्ष्यों को सरलतापूर्वक प्राप्त करते समय संगठनात्मक लक्ष्यों को प्राप्त करने के दृष्टिकोण से संगठन के विभिन्न व्यक्तियों तथा विभागों के प्रयासों में एकीकरण करता है।

समन्वय

समन्वय की प्रकृति

  1. प्रबन्ध का कार्य नहीं वरन् सार समन्वय प्रथा का पृथक एवं भिन्न कार्य नहीं है। इसे प्रबन्ध का सार माना जाता है। यह सभी प्रबन्धकीय कार्यो का भाग है।
  2. प्रबन्धकीय उत्तरदायित्व – संगठन करने वाले कार्यकारी वर्ग पर होता है। इससे बचा नहीं जा सकता।
  3. सतत् प्रक्रिया समन्वय की एक सतत् प्रक्रिया है। प्रबन्ध के सभी स्तरों पर इसकी सदैव आवश्यकता होती है। यह प्रक्रिया सतत् रूप से चलती रहती है।
  4. प्रयासों की एकता यह संगठन के विभिन्न कर्मचारियों तथा विभागों के प्रयासों में एकता लाता है। मैक्फारलेण्ड के अनुसार, कार्य की एकता समन्वय समस्या का हृदय है।
  5. विचारजन्य प्रयास का परिणाम समन्वय प्रबन्धको के जागरुक तथा विवेकपूर्ण प्रयासों का परिणाम होता है। समन्वय लगनशील प्रयासों द्वारा सुनिश्चित किया जाना चाहिए।
  6. सामूहिक प्रयास समन्वय को संगठन की सामूहिक गतिविधियों में अच्छे सम्बन्ध स्थापित करने हेतु लाया जाता है। समन्वय एक अवधारणा है जो समूह के प्रयासों पर लागू होती है।
  7. सामान्य समन्वय का अन्तिम उद्देश्य कुछ सामान्य उदेश्य प्राप्त करना होता है।
  8. सहयोग से भिन्न समन्वय सहयोग से मित्र होता है। समन्वय सहयोग को शामिल करता है।

समन्वय के उद्देश्य

समन्वय के उद्देश्य निम्नलिखित होते हैं-

  1. विशेषज्ञीकरण के लाभों को प्राप्त करना – संगठन श्रम विभाजन एवं विशेषशीकरण सिद्धान्त पर आधारित होते है। प्रबन्धको द्वारा कार्य को विशिष्टीकृत कार्यों तथा विभागों में बांटा जाता है। प्रत्येक विशेष अपने कार्य पर एकाग्रचित होता है। प्रबन्धकों द्वारा विशेषज्ञीकरण के लाभों को प्राप्त करने के लिए सभी विशेषज्ञों तथा विभागों के कार्यों में समन्वय किया जाता है।
  2. अभिगम में अन्तर का समाधान करना – समन्वय का उद्देश्य अभिगम में अन्तर का समाधान करना होता है। कार्यों में एकता लाने के लिए प्रबन्धक सामान्य अभिगम से प्रत्येक व्यक्ति के अभिगम में अन्तर का समाधा करते हैं।
  3. अन्तर्निर्भर इकाइयों के अनुपालन का एकीकरण करना – कुछ संगठनों में एक विभाग का कार्य अन्य विभागों के कार्यों पर निर्भर करता है। इसके कारण अनुपालन हेतु समन्वय की आवश्यकता होती है।
  4. हितों में अन्तर का समाधान करना – हितों में अन्तर का समाधान करने के लिए समन्वय किया जाता है। प्रबन्धक व्यक्तियों तथा संगठनात्मक लक्ष्यों में अन्तर में समन्यय का प्रयास करते हैं।
  5. प्रबन्धकीय प्रक्रिया की प्रभावशीलता को सुनिश्चित करना – समन्वय का उद्देश्य सम्पूर्ण प्रबन्धकीय प्रक्रिया की प्रभावशीलता को सुनिश्चित करना होता है। समन्वय द्वारा नियोजन को अधिक उद्देश्यपूर्ण, संगठन को अधिक व्यवस्थित तथा नियंत्रण को अधिक नियंत्रणकारी बनाया जाता है।
  6. विविधता में एकता स्थापित करना।
  7. संगठन में कर्मचारियों को बनाये रखना।
  8. उत्पादकता बढ़ाना।
  9. परिवर्तन की सुविधा देना।
  10. मानवीय सम्बन्ध बनाये रखना।
  11. संसाधनों एवं प्रयासों की बर्बादी को कम करना।
  12. कार्य के दोहरीकरण से बचना।
  13. लागतो को कम करना।
  14. ख्याति को बढ़ाना आदि।
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