साधारणतया सभ्यता तथा संस्कृति का एक ही अर्थ में प्रयोग कर लिया जाता है, लेकिन वास्तव में संस्कृति तथा सभ्यता की धारणा एक-दूसरे से अत्यधिक भिन्न है। इस दृष्टिकोण से यह आवश्यक हो जाता है कि प्रस्तुत विवेचन में हम सभ्यता के अर्थ को स्पष्ट करके इसका संस्कृति से अन्तर तथा सम्बन्ध स्पष्ट करेंगे।
सभ्यता का अर्थ
साधारण रूप से कहा जा सकता है कि सभ्यता का अर्थ भौतिक साधनों में होने वाली वृद्धि से है। सभी भौतिक वस्तुओं को सभ्यता के अन्तर्गत सम्मिलित नहीं किया जाता बल्कि केवल वे वस्तुएं, जिनके माध्यम से हमारी आवश्यकताओं की पूर्ति होती है, सभ्यता के अन्तर्गत आती हैं।
सभ्यता मनुष्य के बाह्य आचरण की वह व्यवस्था है जिसे अनेक भौतिक पदार्थों के माध्यम से एक मूर्त रूप प्राप्त होता है।
कान्त
मनुष्य ने अपने जीवन की विभिन्न दशाओं को नियन्त्रित करने के प्रयत्न में जिन सम्पूर्ण वस्तुओं की रचना की है, उन्हीं के संगठन अथवा विन्यास को हम सभ्यता कहते है।
मैकाइवर
उपर्युक्त दोनों परिभाषाओं से स्पष्ट होता है कि
- सभ्यता संस्कृति का भौतिक पक्ष है।
- यह भौतिक वस्तुएं एक साधन के रूप में हमारी आवश्यकताओं को पूरा करती हैं।
- सभ्यता में भी एक व्यवस्था पायी जाती है, क्योंकि एक व्यवस्था के विना विभिन्न प्रकार भौतिक पदार्थ हमारी आवश्यकताओं को पूरा नहीं कर सकते।
- सभ्यता का जब कोई भाग अनुपयोगी हो जाता है तो व्यक्ति उसे स्वयं छोड़ देते हैं।
- इस प्रकार सभ्यता एक परिवर्तनशील अवधारणा हैं।




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सभ्यता तथा संस्कृति में अन्तर
सभ्यता तथा संस्कृति में अंतर निम्न है-
- सभ्यता की माप सम्भव है, संस्कृति की नहीं – सभ्यता के विभिन्न तत्वों को कुशलता के आधार पर भाषा जा सकता है। उदाहरण के लिए, कोई भी व्यक्ति सरलतापूर्वक यह निर्णय दे सकता है कि वायुयान मोटर से अधिक तेज चलता है और इसलिए यह उससे अधिक अच्छा है। संस्कृति के विषय में इस प्रकार का कोई निर्णय नहीं दिया जा सकता। यह सभ्यता तथा संस्कृति में मुख्य अंतर माना जाता है।
- सभ्यता का क्रमिक विकास होता है, संस्कृति के विकास का कोई क्रम नहीं है – सभ्यता सदैव ही एक निश्चित दिशा में आगे की ओर बढ़ती है; जैसे- बैलगाड़ी के बाद रेल और रेलों के बाद वायुयान और इसके उपरान्त विभिन्न ग्रहों तक पहुंचने के लिए अन्तरिक्ष यानों का विकास हुआ। संस्कृति के विकास की कोई निश्चित दिशा नहीं होती। उदाहरण के लिए, आज से बहुत पहले कालिदास ने कविता के क्षेत्र में और भास ने श्रेष्ठ नाटक लिखकर साहित्य को बहुत समृद्ध बना दिया, लेकिन आज की कविता और नाटकों को इनसे किसी प्रकार भी श्रेष्ठ नहीं कहा जा सकता। इस प्रकार संस्कृति में होने वाले परिवर्तन सदैव । एक ही दिशा में आगे की ओर न बढ़कर उतार-चढ़ाव के रूप में हमारे सामने आते रहते हैं।
- सभ्यता को सीखना सरल है, संस्कृति को नहीं– सभ्यता को सीखना तनिक भी कठिन नहीं होता। एक अशिक्षित व्यक्ति भी धन प्राप्त करके मोटर और विकसित उपकरणों का उपयोग करना सीख सकता है लेकिन संस्कृति को बहुत धीरे-धीरे और प्रयत्न करने पर ही सीखा जा सकता है। विशेष बात यह है कि किसी नई संस्कृति को ग्रहण करते समय व्यक्ति के व्यवहार कुछ सीमा तक अपनी संस्कृति से अवश्य प्रभावित रहते हैं।
- सभ्यता साधन है और संस्कृति साध्य – साध्य का अर्थ है लक्ष्य और लक्ष्य तक पहुंचने के ढंग का नाम है साधन स्पष्ट है कि संस्कृति एक साध्य है अथवा इसको प्राप्त करना ही हमारा लक्ष्य होता है। इस लक्ष्य तक पहुंचने का कार्य सभ्यता के द्वारा किया जाता है। उदाहरण के लिए चित्रकला और नृत्य सस्कृति के अंग हैं और इन तक पहुंचने के लिए जितने उपकरणों का उपयोग किया जाएगा, वे सभी सभ्यता के अन्तर्गत आते हैं।
- सभ्यता तेजी से फैलती है लेकिन संस्कृति का क्षेत्र सीमित है — सभ्यता को सरलता और शीघ्रता जा सकता है। उदाहरण के लिए मोटर इंजन और वायुयान का निर्माण न कर पाने पर भी दूसरे देशों से इन वस्तुओं को खरीदकर कुछ देश अपनी आवश्यकताओं को पूरा कर सकते हैं। दूसरी और संस्कृति का क्षेत्र सीमित होता है, इसलिए उसे दूसरे समाज में फैला देना सरल कार्य नहीं होता।




सभ्यता तथा संस्कृति में सम्बन्ध
यद्यपि सभ्यता तथा संस्कृति एक-दूसरे से भिन्न मालूम होते हैं, लेकिन यह दोनों घनिष्ठ रूप से सम्बन्धित हैं। जिन वस्तुओं से सभ्यता का निर्माण होता है, वे संस्कृति के द्वारा बहुत बड़ी सीमा तक प्रभावित होते हैं। मैकाइवर ने सभ्यता तथा संस्कृति के सम्बन्ध को निम्नांकित रूप से स्पष्ट किया है-
- सभ्यता संस्कृति की वाहक है— प्रत्येक समाज में सभ्यता के विकास से ही संस्कृति का विकास सम्भव हो सका है। इसका तात्पर्य यह है कि संस्कृति को स्थायी बनाने में सभ्यता एक माध्यम का कार्य करती है। इसके अतिरिक्त, सभ्यता के विभिन्न तत्व उन सभी विश्वासों और विचारों को भी बदलने का प्रयत्न करते हैं जिन्हें किसी संस्कृति में अधिक उपयोगी नहीं समझा जाता।
- सभ्यता सांस्कृतिक क्रियाओं को सरल बनाती है— मैकाइवर का कथन है कि सभ्यता के अभाव में संस्कृति का विकास होना बहुत कठिन होता है। सभ्यता से सम्बन्धित उपकरण कम समय में ही हमारी विभिन्न आवश्यकताओं को पूरा कर देते हैं। इसके परिणामस्वरूप व्यक्ति को अपने ज्ञान में वृद्धि करने के लिए कुछ अतिरिक्त समय मिल जाता है।
- सभ्यता संस्कृति का पर्यावरण है— प्रत्येक समाज की सभ्यता उस समाज की सांस्कृतिक विशेषताओं को प्रभावित करती है। उदाहरण के लिए, आदिम समाजों में सभ्यता विकसित रूप में न होने के कारण उनकी संस्कृति भी बहुत सरल और सामान्य प्रकृति की होती है, जबकि सभ्य समाजों में संस्कृति का क्षेत्र बहुत व्यापक होता है। सभ्यता में विकास होने से सांस्कृतिक जीवन में भी तीव्र गति से परिवर्तन होने लगते हैं।
- संस्कृति सभ्यता की दिशा निर्धारित करती है— केवल सभ्यता ही संस्कृति को प्रभावित नहीं करती बल्कि संस्कृति का भी सभ्यता पर बहुत अधिक प्रभाव पड़ता है। किसी समाज की सांस्कृतिक विशेषताएं ही यह निर्धारित करती हैं कि उस समाज में सभ्यता का विकास किस रूप में होगा। सभ्यता पर संस्कृति के प्रभाव को मैकाइवर ने एक विशेष उदाहरण के द्वारा स्पष्ट किया है।




उपर्युक्त विवेचन से स्पष्ट होता है कि सभ्यता तथा संस्कृति एक-दूसरे से घनिष्ठ रूप से सम्बन्धित वास्तविकता तो यह है कि सभ्यता तथा संस्कृति के तत्व एक-दूसरे से इतने घुले-मिले हैं कि उन्हें पूर्णतव एक-दूसरे से पृथक् नहीं किया जा सकता। सभ्यता तथा संस्कृति के विकास में सहायक होती है, लेकिन सभ्याता को स्वयं भी अपने विकास के लिए सांस्कृतिक विशेषताओं पर निर्भर रहना पड़ता है।