सतत शिक्षा और सतत शिक्षा की विशेषताएँ, माध्यम व उद्देश्य

सतत शिक्षा एक ऐसी व्यापक अवधारणा है जो सभी रूपों में चलने वाले शैक्षिक क्रियाकलापों को अंतर्निहित करती है। इसके अंतर्गत औपचारिक सहज तथा गैर औपचारिक सभी प्रकार की शैक्षिक प्रणालियां आ जाती हैं। सतत शिक्षा मूल्य शिक्षा को जीवन और जीवन को शिक्षा समझने वाली अवधारणा है। व्यापक अर्थ में सतत शिक्षा यह जीवन शिक्षा जन्म से मृत्यु तक अविरल चलने वाली प्रक्रिया है। सतत शिक्षा के अर्थ को और अधिक स्पष्ट करने के लिए नीचे कुछ परिभाषाएं दी जा रही हैं।

सतत शिक्षा व्यक्तियों को इस योग्य बनाती है कि वह अपने उपयुक्त कौशलों योग्यताओं एवं व्यक्तियों का विकास कर सकें।

सतत शिक्षा एक नवीन क्षेत्र है और यह सामाजिक अणु को विखंडित करने के लिए शक्तिशाली अस्त्र के समान है जो हमारे समाज परिवर्तन की ओर उन्मुख है और सतत शिक्षा ही उचित दिशा प्रदान कर सकती है।

सतत शिक्षा निरंतर चलने वाला एक ऐसा प्रयास जो जीवन पथ पर चलने वाले व्यक्ति की अपनी व्यावहारिक समस्याओं के लिए आजीवन अधिगम एक निरंतर चलने वाली प्रक्रिया है।

यह शैक्षिक प्रयासों को व्यक्ति जीवन अनुभवों को प्रकाश में उसके जीवन से संदर्भित करने का आवेदन प्रयास है।

सतत शिक्षा

राष्ट्रीय शिक्षा नीति 1986 के अनुसार सदस्य शिक्षा मानव विकास संसाधन की रणनीति का एक आवश्यक पक्ष है इसका लक्ष्य सीखने के योग्य समाज की रचना करना है। यह नवसाक्षर एवं अधूरी पढ़ाई छोड़ने वाले के लिए उत्तर साक्षरता की व्यवस्था करती है, जिससे वह साक्षरता युक्त कौशल को धारण करने प्रारंभिक साक्षरता के बाद सीखने के क्रम को जारी रखने तथा अपने जीवन स्तर में गुणात्मक विकास के लिए सीखे हुए ज्ञान को व्यवहारिक बनाने में सक्षम हो सकें।

सतत शिक्षा की विशेषताएं

उपयुक्त विवेचन के आधार पर सतत शिक्षा के निम्नलिखित विशेषताएं स्पष्ट होती हैं।

  1. सतत शिक्षा समाज के सभी वर्गों के लिए होती हैं।
  2. यह विशिष्ट परिस्थितियों एवं आवश्यकताओं की पूर्ति हेतु बहुआयामी कथा बहुउद्देशीय होती हैं।
  3. यह सभी के लिए समान अवसर प्रदान करने के लिए मुक्त या खुली होती हैं।
  4. यह अनुकूलन को प्रोत्साहन प्रदान करती हैं।

क्राफ्ट लेवा दवे ने सतत शिक्षा की विशेषताओं को निम्नलिखित आयामों के रूप में प्रस्तुत किया है –

  1. सतत शिक्षा समग्र शिक्षा है इसमें संपूर्णता पर बल दिया जाता है।
  2. यह समन्वित शिक्षा है।
  3. यह लचीली शिक्षा है।
  4. यह खुले पन पर बल देती है।
  5. यह जनतांत्रिक शिक्षा है।

सतत शिक्षा की विधियां तथा माध्यम

भारत में सतत शिक्षा मुख्यता चार प्रकार की शैक्षिक आवश्यकताओं से संबंधित है।

  1. साक्षरता सहित न्यूनतम प्रारंभिक शिक्षा
  2. साक्षरता पुण्य शिक्षा
  3. सांस्कृतिक मूल्योंमुख शिक्षा
  4. पर्यावरणीय शिक्षा
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सतत शिक्षा के उद्देश्य

सतत शिक्षा के प्रमुख उद्देश्यों के अंतर्गत साक्षरता कौशल को बनाए रखना एवं उसका विकास करना तथा इस कार्यक्रम के अंतर्गत विकासात्मक गतिविधियों में समाज के सभी सदस्यों की सहभागिता बढ़ाना। साथ ही साथ व्यावसायिक कौशल को बढ़ाने के लिए प्रशिक्षण प्रदान करना पुस्तकालयों एवं वाचनालयों की व्यवस्था करना और सांस्कृतिक गतिविधियों का आयोजन करना।

सतत शिक्षा मानव संसाधन के विकास के उपाय का और ऐसे समाज के निर्माण के दे का अनुवाद पहलू है जो निरंतर ज्ञानार्जन करता रहता है सतत शिक्षा में 9 अक्षरों तथा पढ़ाई पूरी किए बगैर ही स्कूल छोड़ने वाले बच्चों की उत्तर साक्षरता भी शामिल है जिसका उद्देश्य है कि शिक्षार्थी अपनी साक्षरता बनाए रखें प्रारंभिक शिक्षा के आगे अपनी शिक्षा जारी रखें तथा इस शिक्षा से अपने जीवन को अधिक अच्छा बनाएं।

सतत शिक्षा की सार्थकता व उद्देश्य निम्नवत है-

  1. लोकतांत्रिक मूल्यों का प्रसार
  2. साक्षरता का प्रसार
  3. वयक्तिक उत्थान
  4. महिलाओं की स्थिति बेहतर करने के लिए
  5. जनसंख्या वृद्धि में नियंत्रण
  6. व्यावसायिक प्रगति के अवसर प्रदान करना

1. लोकतांत्रिक मूल्यों का प्रसार

भारत दुनिया का सबसे बड़ा लोकतांत्रिक देश है। लोकतंत्र की रक्षा व प्रसार इसका मुख्य ध्येय है। सभी के लिए शैक्षिक अवसरों की समानता महिलाओं अल्पसंख्यकों और विकलांगों के लिए शिक्षा प्रोड शिक्षा का प्रसार आदि लोकतांत्रिक मूल्यों को मजबूत करने के लिए आवश्यक है। लोकतंत्र की सुरक्षा व प्रसार देश के सुशिक्षित नागरिक के माध्यम से ही संभव है। यह शिक्षा नागरिकों को लोकतांत्रिक मूल्यों की जानकारी देती है और कुशल मानवीय संसाधन के विकास में योगदान करती है।

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सतत शिक्षा

2. साक्षरता का प्रसार

बहुल जनसंख्या को देखते हुए भारत में साक्षरता का प्रतिशत अभी भी कम है किसी भी लोकतांत्रिक देश के लिए साक्षरता अभिशाप हैं देश में साक्षरता का प्रसार करने में सतत शिक्षा की भूमिका महत्वपूर्ण होती है साक्षर पौधों के लिए भी उत्तर साक्षरता आवश्यकता होती है अनवरत शिक्षा के द्वारा उत्तर साक्षरता के कार्यक्रम सुगमता से चलाए जाते हैं

3. वयक्तिक उत्थान

किसी भी देश के लिए यह आवश्यक होता है कि उस देश के नागरिकों को व्यक्तित्व उत्थान होता रहे इससे उस राष्ट्र की उन्नति और विकास निर्भर रहता है सामान्य शिक्षा प्राप्त करके प्राया लोग जीवन यापन करने लगते हैं परंतु यदि उन्हें अवसर मिले तो वह आगे भी ज्ञानार्जन कर अपने ज्ञान को बेहतर बना सकते हैं जिससे उनका व्यक्तित्व उत्थान किया जा सकता है और उनके व्यक्तित्व का बहुमुखी विकास किया जा सकता है।

4. महिलाओं की स्थिति बेहतर करने के लिए

भारत में महिला साक्षरता आज भी पुरुषों की तुलना में कम है जिससे उनके जीवन स्तर वह सोच का दायरा अत्यंत सीमित रहता है महिलाओं की स्थिति बेहतर करने की दिशा में अनवरत शिक्षा का एक कारगर उपाय है अनवर शिक्षा के द्वारा महिलाएं अपने और अधिकारों को समझ सकेंगे अपने ऊपर होने वाले अत्याचारों से मुक्त होने का प्रयास करें कि वह अपने अधिकारों एवं कर्तव्य के प्रति सजग एवं जागरूक हो सकेंगे।

आधुनिक भारतीय समाजसामाजिक परिवर्तनभारतीय समाज का आधुनिक स्वरूप
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स्त्री शिक्षाविकलांग शिक्षाभारत में स्त्री शिक्षा का विकास
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No.aaruf
No.aaruf
11 months ago

Sb axa h Jo btaye h aap akdam bistar me thanx sir

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