संतुलित पाठ्यक्रम आवश्यकता – पाठ शालाओं की आत्मा होने के कारण पाठ्यक्रम में एकात्मक संतुलन और संजीवता होनी चाहिए। शिक्षा ऐसे जीवन के लिए होती है जो स्थिर न रहकर परिवर्तनशील होता है। शिक्षण एक निरंतर चलते रहने वाला कार्य है। इसीलिए यह थोड़े वर्षों में ही नहीं हो सकता। शैशव से मृत्यु तक का प्रत्येक कार्य शिक्षाप्रद होता है।

इसीलिए इसे ज्ञान पूर्ण तथाकथित विषयों में विभाजित करना हास्यप्रद है। पाठ्यक्रम में होने वाले प्रत्येक कार्य तथा प्रत्येक संबंध पाठ्यक्रम है। पाठ्यक्रम निरंतर प्रगतिशील तथा परिवर्तनशील संसार में प्रगतिशील बच्चे के लिए एक प्रगतिशील व परिवर्तनशील क्रम है।
संतुलित पाठ्यक्रम आवश्यकता
नई शिक्षा नीति 1986 तथा राष्ट्रीय पाठ्यक्रम नई शिक्षा नीति में पाठ्यक्रम संबंधी निम्नलिखित दिशानिर्देशों अथवा सिद्धांतों को ध्यान में रखा गया है
- पाठ्यक्रम संविधान में दर्शाए मूल्यों पर आधारित हो।
- पाठ्यक्रम समाजवाद, धर्मनिरपेक्षता तथा प्रजातंत्र को बढ़ावा देने वाला हो।
- पाठ्यक्रम देश की सांस्कृतिक परंपराओं तथा आधुनिक टेक्नोलॉजी की खाई को पाटने वाला हो
- पाठ्यक्रम में मूल्यों की शिक्षा का प्रावधान हो
- 1968 की भाषा नीति को अपनाया जाए।
- पाठ्यक्रम में पर्यावरण शिक्षा की व्यवस्था हो।
- पाठ्यक्रम में कार्य अनुभव गणित शिक्षण और विज्ञान शिक्षण को दृढ़ किया जाए।
- पाठ्यक्रम में संकीर्ण विचारों की कोई बात नहीं होनी चाहिए।
- खेल और शारीरिक शिक्षा को पाठ्यक्रम का अभिन्न अंग बनाया जाए।
- पाठ्यक्रम में व्यवसायिक विषयों पर विशेष बल दिया जाए।
- एक कोर पाठ्यक्रम हो जो सभी छात्रों के लिए अनिवार्य हो।