संगठन

संगठन का अंग्रेजी शब्द Unity है। जिसकी उत्पत्ति ओजी के ही से हुई है जिसका आशय एक ऐसी सरचना से है जो कई भागों में विभक्त हो तथा जिसे एक समुदाय से जोड़ना आवश्यक हो कोई भी संगठन हो यह मानव शरीर के समान होता है क्योंकि जिस प्रकार मानव शरीर के कई विभाग होते है तथा प्रत्येक विभाग को नियन्त्रित करने का एक महत्वपूर्ण विभाग होता है जिसे हम लोग मस्तिष्क कहते है।

संगठन

मस्तिष्क ही शरीर की क्रियाओं का नियोजन करता है तथा शरीर के सभी विभागों का निर्देशन एवं संचालन करता है, इसी प्रकार एक संगठन मानव शरीर रूपी उपक्रम की सभी क्रियाओं का नियोजन करता है तथा उपक्रम के सभी विभागों का संचालन निर्देशन, समन्वय एवं नियन्त्रण रखता है। विभिन्न विभागों का प्रभावपूर्ण समन्वय स्थापित करने की कला को ही वाणिज्य की भाषा में संगठन’ कहा जाता है।

किसी विशेष उद्देश्य या उद्देश्यों की पूर्ति के लिए किसी वस्तु के भाग अथवा कार्य दिन साधनों को एकताबद्ध करके उनमें सहकारिता पैदा करना ही संगठन कहलाता है। प्रो. ने “किसी कार्य को पूरा करने के लिए किन-किन क्रियाओं को किया जाये, इसका करना एवं उन क्रियाओं को व्यक्तियों के मध्य वितरित करना ही संगठन कहलाता है। उर्विक संगठन मूलतः व्यक्तियों का एक समूह है जो एक नेता के निर्देशन में सामान्य उद्देश्य को पूर्ति हेतु सहयोग प्रदान करता है। संगठन सामान्य हितों की पूर्ति के लिए बनाया गया मनुष्यों का एक समुदाय है।

संगठन की विशेषताएं

संगठन की विशेषताएं निम्नलिखित है-

  1. संगठन मनुष्यों का एक समुदाय है।
  2. संगठन पूर्व निर्धारित लक्ष्यों की प्राप्ति में सहायक है।
  3. संगठन एक सामाजिक प्रथा है।
  4. संगठन से तात्पर्य व्यावसायिक प्रतिछा से भी होता है।
  5. संगठन सार्वभौमिक होते है, इनकी स्थापना समूह की क्रियाओं के निष्पादन हेतु की जाती है।
  6. संगठन व्यवसाय का आधार है।
  7. संगठन निर्णयन का माध्यम है।
  8. संगठन की रचना सामान्य उद्देश्यों की पूर्ति के लिए की जाती है।
  9. संगठन सम्प्रेषण की एक विधि है।
  10. संगठन एक चक्रीय क्रिया है।
  11. संगठन एक साधन है साध्य नहीं।

संगठन के उद्देश्य

संगठन के उद्देश्य निम्नलिखित हैं-

  1. कम लागत पर अधिकतम उत्पादन संगठन का मुख्य उद्देश्य कम लागत पर अधिकतम व श्रेष्ठ उत्पादन प्राप्त ना है। संगठन उन कारणों का पता लगाता है जिनके कारण उत्पादन लागत अधिक होती है।या उन कारणों को समाप्त करता है।
  2. समय व श्रम की बचत करना  संगठन वह उद्देश्य होता है कि वह ऐसी नीतियों और प्रणाली उपक्रम में लागू करे जिससे समय और न दोनों में मितव्ययिता आये।
  3. प्रबन्ध लागत में मितव्ययिता लाना  प्रबन्ध की लागत में कमी लाना संगठन का एक उद्देश्य है। संगठन ऐसे प्रबन्ध व्यवस्था को लागू करता है जिससे प्रबन्ध की लागते कम हो जाती है जिससे उत्पादन लागत में भी कमी आती है।
  4. समन्वय स्थापित करना  संगठन एक महत्वपूर्ण उद्देश्य यह भी है कि वह श्रमिकों और प्रबन्ध-वर्ग के बीच समन्वय स्थापित करे से अधिक कार्य करने के लिए प्रेरित हो तथा श्रमिकों में संतोष की भावना बनी रहे।
  5. सेवा भावना प्रत्येक व्यावसायिक संस्था का मुख्य उद्देश्यसमाना होता है जबकि लाभ के उद्देश्य के साथ-साथ सेवा की भावना भी होनी चाहिए। संगठन भावना के लिए प्रेरित करता है।

संगठन का महत्व

संगठन को वाँछित लक्ष्यों की प्राप्ति हेतु बौद्धिक एवं भौतिक शक्तियों का माध्यमा जाता है। संगठन एक आधारभूत प्रबन्धकीय कार्य है। यह प्रबन्ध प्रक्रिया का एक चरण होता है प्रदन प्रक्रिया संगठन के बिना अपूर्ण होती है। संगठन वह तंत्र है जिसके माध्यम से प्रबन्धक व्यवसाय का प्रबन्ध करता है। यह उपक्रम के उद्देश्यों को प्रभावी रूप से प्राप्त करने का एक साधन है।

  1. विकास एवं उत्पादन क्षमता को बढ़ाना  प्रत्येक संस्था को अपनी क्रियाओं का विकास एवं विस्तृत बनाने के लिए संगठन की आवश्यकता पड़ती है। बिना संगठन के कोई भी उपक्रम नह अपनी क्रियाओं को विकसित कर सकता है न ही उन्हें विस्तृत बना सकता है। बिना कुशल के किसी भी विशाल व्यवसाय का क्रियाशील रहना असम्भव है।
  2. मानवीय साधनों का उपयोग मानवीय  साधनों का श्रेष्ठतम उपयोग संगठन के द्वारा ही सम्भव है क्योंकि संगठन श्रम विभाजन एक विशिष्टीकरण को प्रोत्साहित करता है।
  3. विशिष्टीकरण को प्रोत्साहन  संग विशिष्टीकरण को प्रोत्साहित करता है जिससे विशेषज्ञों की नियुक्ति की जाती है तथा प्रत्येक तिकार्य की सलाह विशेषज्ञों से प्राप्त की जाती है जिससे प्रत्येक कार्य कुशलतापूर्ण ढंग से होता है।
  4. समन्वय की स्थापना संगठन के व्यावसायिक उपक्रम में समन्वय स्थापित करना कठिन है। संगठन के माध्यम से कर्मचारियों, अधीनस्थों, विभिन्न विभागों एवं कार्यों में समन्वय स्थापित किया जा सकता है।
  5. सन्तुलन बनाये रखना – संगठन के से कार्यभार दायित्व एवं अधिकारों में सन्तुलन बनाये रखा गया जा सकता है।
  6. प्रशासन व प्रबन्ध की सुगमता नीतियों का निर्धारण करना प्रशासन का मुख्य कार्य होता है और उन नीतियों को, एक निर्धारित सीमा के अन्दर कार्यान्वित करना प्रबन्ध का कार्य है। संगठन इन नीतियों के निर्धारण एवं कार्यान्वयन में सहायता करता है।
  7. अन्य लाभ संगठन से व्यवसाय को बहुत से कम प्राप्त होते हैं। संगठन प्रबन्धकों के विकास तथा उनके प्रशिक्षण में भी सहायक होता है। कुशल संगठन से भ्रष्टाचार को रोका जा सकता है। एन्ड्रयू कार्नेगी के अनुसार, “हमारा धन, महान कार्य, खाने आदि सभी कुछ ले लो किन्तु हमारा संगठन हमारे पास छोड़ दो। कुछ वर्षों में ही हम स्वयं को पुनः स्थापित करअमिताई इटजिओनी के अनुसार, “हम संगठनों में ही जन्म लेते हैं, शिक्षा प्राप्त करते हैं, तथाहममें से अधिकांश लोग अपना अधिकांश जीवन संगठन में ही व्यतीत करते है।”

संगठन से प्रशासन में सुविधा व आसानी होती है तथा विकास का विविधीकरण सम्म होता है। तकनीकी सुधारों का अधिकतम उपयोग करने का सुअवसर प्रदान करता है। इससे विचारधारा एवं प्रेरणा को प्रोत्साहन मिलता है। अतः निष्कर्षतया यह कहना ठीक प्रीति सेन मिलता है अतः इस कार्य का यह कहना ठीक है कि प्रभाव शील संगठन का प्रबंधन में वही महत्व होता है जो कि मानव शरीर में हड्डियों के ढांचे का होता है।

संगठन के सिद्धान्त

  1. समन्वय का सिद्धान्त
  2. व्याख्या का सिद्धान्त
  3. अनुरूपता का सिद्धान्त
  4. उद्देश्य सिद्धाना
  5. संतुलन का सिद्धान्त
  6. विशिष्टीकरण का सिद्धान्त
  7. उत्तरदायित्व का सिद्धाना
  8. विस्तार नियन्त्रण का सिद्धान्त
  9. निरन्तरता का सिद्धान्त
  10. आदेश की एकता का सिद्धान्त
  11. अधिकार का सिद्धान्त
  12. सरलीकरण का सिद्धान्त।

एक स्वस्थ संगठन की विशेषताएं

एक स्वस्थ संगठन की विशेषताएं निम्नलिखित हैं-

  1. स्थायित्व एक आदर्श एवं स्वस्थ संगठन में स्थायित्व का गुण पाया जाता है। अर्थात् संगठन दीर्घकाल तक चलने वाला होता है। संगठन ऐसा होना चाहिए जिसे छोटी- ‘छोटी समस्याएं प्रभावित न कर सकें।
  2. उच्च मनोबल  एक आदर्श एवं स्वस्थ संगठन में काम करने वाले सभी कर्मचारियों का मनोबल उच्च पाया जाता है अर्थात् संगठन में सभी कर्मचारी पूरे उत्साह लगन, निःस्वार्थ भावना से मन लगाकर काम करते हैं।
  3. संचार की प्रभावी व्यवस्था एक आदर्श एवं स्वस्थ संगठन में सन्देशवाहन की प्रभावी व्यवस्था पाई जाती है। दूसरे शब्दों में यह  जा सकता है कि संस्था में ऐसी संचार व्यवस्था होनी चाहिए जिससे विचारों का आदान-प्रदान श्रीघ्रता से किया जा सके तथा संस्था के प्रत्येक कर्मचारी को पता होना चाहिए कि संस्था में हो रहा है।
  4. प्रभावी नेतृत्व – एक आदर्श एवं स्वस्थ संगठन में प्रभावी नेतृत्व का गुण पाया जाता है। प्रभावी नेतृत्व से ही सभी साधनों का सर्वोत्तम उपयोग किया ना. सकता है और कर्मचारियों से मधुर सम्बन्ध स्थापित किये जा सकते हैं।
  5. साधनों का उचित विदोहन  एक आदर्श एवं स्वस्थ संगठन में समस्त भौतिक व मानवीय साधनो का श्रेष्ठतम उपयोग किया जाता है। अर्थात संस्था में उपलब्ध श्रम शक्ति का अधिकतम एवं मित्व्युतीपूर्ण पूर्ण उपयोग किया जाता है।
  6. संतुष्टि का विकास एक आदर्श एवं स्वस्थ संगठन में सबसे बड़ी विशेषता संतुष्टि के विकास की पाई जाती है। किसी भी संस्था की सफलता एवं असफलता इस बात पर निर्भर करती है कि इस संस्था के कर्मचारी कितने संतुष्ट है। अर्थात एक आदर्श संगठन को ऐसी व्यवस्था बनानी चाहिए ताकि कर्मचारियों की संतुष्टि का विकास हो।
  7. कार्यों का समूहीकरण एक आदर्श एवं स्वस्थ संगठन में कार्यों के समूहीकरण का गुण पाया जाता है अर्थात् संगठन में जो भी कार्य होता है उसे समूहों में बांटकर प्रत्येक व्यक्ति को उसकी योग्यता के अनुसार दिया जाता है।
  8. नियन्त्रण का उचित क्षेत्र एक आदर्श एवं स्वस्थ संगठन में नियन्त्रण का क्षेत्र न तो अधिक बड़ा होता है और न ही अधिक छोटा होता है। इस प्रकार नियन्त्रण के क्षेत्र में ऐसे अधीनस्थों की संख्या 5 या 6 से अधिक नहीं होनी चाहिए प्रत्यक्ष रूप से नियन्त्रण में हो।
  9. लोच एक आदर्श एवं स्वस्थ संगठन में लोच का गुण पाया जा है। अतः अपने संगठन की रचना ऐसी होनी चाहिए जिससे आवश्यकता पड़ने पर अपने आप को परिवर्तित कर लें।
  10. कर्तव्य एवं दायित्वों का स्पष्ट आवंटन एक आदर्श एवं स्वस्थ संगठन में कर्तव्यों एवं दायित्वों का उल्लेख होता है। अतः संगठन में यह नितान्त आवश्यक है कि कर्मचारियों के कर्तव्यों एवं दायित्यो का स्पष्ट उल्लेख होना चाहिए।
  11. अधिकारों तथा दायित्वों में समानता  एक आदर्श एवं स्वस्थ संगठन में अधिकारों तथा दायित्वों में समा पाई जाती है। अतः संगठन की व्यवस्था ऐसी होनी चाहिए कि अधिकार दायित्व के अनुरूप हो और दायित्व अधिकार के अनुरूप हो।
  1. विकास एवं विस्तार की व्यवस्था  एक आदर्श एवं स्वस्थ संगठन में विकास एवं विस्तार के सभी तत्व मौजूद रहते है। अतः संगठन की रचना ऐसी की जानी चाहिए जिससे आवश्यकतानुसार विकास एवं विस्तार किया जा सके।
  2. कार्यान्वयन में आसान  एक स्वस्थ एवं आदर्श संगठन को सबसे महत्वपूर्ण तत्व यह है कि इसमें यदि किसी नीति, नियम, सुविधा लागू करना हो तो कार्यान्वयन में बढ़ी आसानी होती है। अतः संगठन की रचना ऐसी होनी चाहिए जिसमे कार्य अत्यधिक सुविधा एवं मितव्ययिता के साथ सम्पन्न किया जा सके।
  3. प्रभावी समन्वय  एक आदर्श एवं स्वस्थ संगठन में समन्वय का गुण पाया जाता है अर्थात् संगठन ऐसा होना चाहिए जिसमे संस्था के समस्त विभागों, क्रियाओं एवं व्यक्तियों के बीच प्रभावशाली समन्वय हो। इससे संस्था के उद्देश्यों को पाने में आसानी होती है।

एक आदर्श संगठन के महत्व को स्पष्ट करते हुए, ने कहा “हमारा सारा धन ले जाओ, हमारे कारखाने को लो जाओ, हमारा व्यापार एवं यातायात के साधनों को ले जाओ, किन्तु हमारे लिए केवल संगठन को छोड़ दो और कुछ ही वर्षों में मैं अपने आपको पुनः स्थापित कर लूँगा।

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