संगठन संरचना से आशय किसी संस्था की समय संगठन व्यवस्था का रूप निश्चित करने लगाया जाता है। संगठन संरचना के द्वारा ऐसे प्रारूप का निर्धारण किया जाता है जिसकेअनुसार संस्था के प्रशासनिक संगा स्थापित एवं निश्चित किये जाते हैं। इस राज्य में विभिन्न विद्वानों ने निम्नलिखित परिभाषाएं दी है-
संगठन की सर्वोत्तम परिभाषा काम करने की एक विशिष्ट स्थिति में व्यक्तियों और पदों के के दांचे या वाने-जाने तथा इस दावे के बनाने कायम रखने तथा उपयोग करने की के रूप में दी जाती है।
मैक्फारलेण्ड संगठन पारस्परिक संबंधों का ऐसा डांचा है जिसके द्वारा व्यवसाय को एकरूपता प्रदान की जाती है और व्यक्तियों के प्रयास को समन्वित किया जाता है।
संगठन प्रबंध की संरचना है क्योंकि यह अधिक सार्थक कार्य सम्पादन के लिए कुल उत्तरदायित्व को उचित भागो मे विभक्त या वितरित करता है।
उपरोक्त परिभाषाओं के आधार पर यह कहा जा सकता है कि उपयुक्त संगठन संरचना भिन्न पदो और कार्यों के बीच विशिष्ट संबंधों का ताना-बाना होता है जिसके फलस्वरूप संगठन में लगे हुए व्यक्तियों के कार्यों पर प्रभावशाली नियंत्रण रखा जा सकता है। यह एक स्थैतिक विचार है जबकि इसकी प्रक्रिया एक गतिशील विचार है।
संगठन संरचना के घटक
किसी संगठन उपक्रम संरचना को निम्नलिखित घटक प्रभावित करते है-
- कार्यों की प्रकृति – कार्यों की प्रकृति का भी प्रभाव संगठन संरचना पर भी पड़ता है। अतः संगठन संरचना करते समय कार्यों की प्रकृति को भी ध्यान में रखना आवश्यक होता है। प्रत्येक संस्था की स्थापना कुछ निश्चित प्रकार के कार्यों के लिए की जाती है इसलिये संगठन की संरचना उसी के अनुरूप होनी चाहिए।
- प्रबंध की योग्यता – प्रबंध की योग्यता का भी प्रभाव संगठन की संरचना पर पड़ता है। यदि संस्था के प्रबंधक योग्य है तो उन्हें किसी अन्य व्यक्ति से परामर्श लेने की आवश्यकता नहीं पड़ेगी। इसके विपरीत यदि प्रबंधक योग्य नहीं है तो उन्हें परामर्श लेने की आवश्यकता पड़ेगी। अतः संगठन संरचना का निर्माण प्रबंधकों की योग्यता को ध्यान में रखकर करना चाहिए।
- वातावरण – वातावरण का भी प्रभाव संगठन की संरचना पर पड़ता है। इसलिये संगठन संरचना करते समय देश के आर्थिक, सामाजिक, राजनैतिक वातावरण को ध्यान में रखना चाहिए ताकि संस्था वातावरण के अनुरूप चलायी जा सके।
- व्यापारिक क्षेत्र – व्यापारिक क्षेत्र का भी प्रभाव संगठन संरचना पर पड़ता है। यदि व्यवसायका क्षेत्र सो समय की संरचना का आकार होगा इसके विपरीत यदि व्यवसाय अन्तर्राष्ट्रीय स्तर पर हो रहा है अर्थात व्यवसाय का व्यापारिक क्षेत्र बसा है तो ऐसी दशा में संगठन संरचना का आकार व्यापक एवं विस्तृत होगा।
- नियंत्रण का विस्तार – नियंत्रण के विस्तार का भी संगठन पर पड़ता है। अत संगठन संरचना का निर्माण करते समय नियंत्रण के विस्तारको भी ध्यान में रखना आवश्यक है। यदि नियंत्रण का विस्तार व्यापक है तो संगठन संरचन आकार बड़ा होगा। इसके विपरीत यदि नियंत्रण का विस्तार संकुचित है तो संगठन का छोटा होगा।
- कर्मचारियों का मनोविज्ञान – कर्मचारी के मनोविज्ञान का भी प्रभाव संगठन की संरचना पर पड़ता है। यदि कर्मचारियों की समस्त सामाजिक आर्थिक आवश्यकताएं पूरी हो रही है तो वह सहयोग की भावना से कार्य करेंगे। इसके विपरीत यदि कर्मचारियों की सामाजिक, आर्थिक व मानवीय आवश्यकताएं नहीं पूरी हो रही है यह सहयोग की भावना से कार्य नहीं करेंगे। अतः संगठन की संरचना का आकार ऐसा होना चाहिए जिससे कर्मचारी संतुष्ट हो।
- संगठन का आकार – संगठन के आकार का भी प्रभाव संगठन की संरचना पर पड़ता है। आकार का आशय साधारणतया कर्मचारियों की संख्र वस्तु उत्पादन का पैमाना, पूंजी की मात्रा आदि के संदर्भ में लिया जाता है। इस संदर्भ में किये गये विभिन्न अनुसंधानों से यह बात पता चलती है कि जितना बड़ा संगठन होगा, हमें विशिष्टीकरण प्रमापीकरण, विभागीकरण आदि की उतनी ही अधिक आवश्यकता होगी। अतः संगठन संरचना है आकार का निर्धारण करते समय संगठन के आकार को ध्यान में रखना आवश्यक होता है।
- संगठन के उद्देश्य – संगठन के उद्देश्य का भी प्रभाव संगठन की संरचना पर पड़ता है। संगठन का निर्माण करते समय संगठन के उदेस्यों आदि को भी ध्यान में रखना पड़ता है। यदि संगठन का उद्देश्य अन्तर्राष्ट्रीय स्तर पर व्यापार कस का है तो संगठन संरचना का आकार बड़ा होगा। इसके विपरीत यदि संगठन का उद्देश्य छोटे स्तर पर व्यापार करने का है तो संगठन संरचना का आकार छोटा होगा।
- प्रबंधकीय रणनीति – प्रबंधकीय रणनीति का प्रभाव संगठन की संरचना पर पड़ता है। संगठन संरचना प्रबंधकों की रणनीति के अनुकूल होनी चाहिए। यदि प्रबंधकों की रणनीति अधिक से अधिक कार्य कराने की है तो उसी के अनुरूप संगठन की संरचना करानी चाहिए ताकि अधिक से अधिक कार्य कराया जा सके। इसी प्रकार यदि प्रबंधक की रणनीति उम्र किस्म के उत्पाद की है तो संगठन की संरचना ऐसी होनी चाहिए जिसे उच्च किस्म का माल तैयार किया जा सके।
- बाजार की दशा – बाजार की दशा का भी प्रभाव संगठन की संरचना पर पड़ता है। संगठन संरचना का निर्माण करते समय बाजार की स्थिति कमी ध्यान रखना आवश्यक होता है क्योंकि प्रतिस्पर्धा की दृष्टि से संगठन संरचना का आकार छोटा या बड़ा हो सकता है।
- विभागीयकरण – विभागीयकरण का भी प्रभाव संगठन की संरचना पर पड़ता है। इसलिए संगठन संरचना का निर्माण करते समय विभागीकरण को ध्यान में रखना आवश्यक होता है। विभागीकरण के अनेक आधार हो सकते हैं जैसे वस्तु ग्राहक, भौगोलिक क्षेत्र, प्रक्रिया इत्यादि।
- पद समता – पद की समता का प्रभाव संगठन की संरचना पर पड़ता है। समान कार्य करने वाले व्यक्तियों के पद एवं अधिकारों में समानता होनी चाहिए जिससे उनके संबंधों में कटुता न आये।