श्रव्य दृश्य सामग्री वे उपकरण / सामग्री जिनका प्रयोग कक्षा में विद्यार्थियों के समक्ष करके अध्यापन करने से उनके देखने तथा सुनने वाली इन्द्रियों को ज्ञान प्राप्त करने का अवसर प्राप्त होता है। दृश्य सामग्री का मनोवैज्ञानिक आधार एक इन्द्रिय के बजाय अनेक इन्द्रियों से ज्ञान प्राप्त करने का अवसर दिया जाता है। जिससे बालक उस ज्ञान को स्थायी रूप से अपने मस्तिष्क में धारण कर सकते हैं। दूसरे शब्दों में, जिस सामग्री का प्रयोग शिक्षक शिक्षण को प्रभावशाली बनाने के लिए करते हैं तथा छात्र उसे देखकर सुनकर एवं प्रयोग करके सीखते हैं, श्रव्य दृश्य सामग्री या शिक्षण सहायक सामग्री कहलाती है।
श्रव्य दृश्य सामग्री की परिभाषा
श्रव्य दृश्य सामग्री की परिभाषाएँ निम्नलिखित हैं-
- शिक्षा शब्दकोष के अनुसार- श्रव्य-दृश्य उपकरण कोई युक्ति है, जिनके द्वारा अधिगम-प्रक्रिया दृष्टि और श्रवण की अनुभूति के माध्यम से अग्रसारित अथवा प्रोत्साहित हो सकती है।
- बिनिंग एवं बिनिंग के अनुसार सीखने का कोई भी तरीका जिसमें विद्यार्थी अपनी श्रव्य एवं दृश्य इन्द्रियों का प्रयोग करता है, उन्हें हम श्रव्य दृश्य सामग्री कहते हैं।
- एम. पी. मोफल के अनुसार सहायक सामग्री हमें अनुभव प्रदान करती है और शुद्ध एवं वस्तु में सम्बन्धी स्थापित करती है। यह विद्यार्थियों के समय में वाचन करती है, सरल व विश्वसनीय सूचना प्रदान करती है, सौन्दर्यात्मक ज्ञान का विकास एवं अभिवृद्धि करती है, कल्पना को उत्तेजित करती है तथा विद्यार्थियों की निरीक्षण शक्ति का विकास करती है।
- फ्रेंसिस डब्ल्यू. नील के शिक्षा योजना की आधारशिला अच्छा अध्यापन है। दृश्य-श्रव्य प्रशिक्षण सामग्री उस आधारशिला का अभिन्न अंग है। 5. मैकन एवं रॉबर्टस के अनुसार- शिक्षक इन उपकरणों के प्रयोग द्वारा बालक को एक से अधिक इंद्रियों को प्रयोग में लाकर पाठय पुस्तक को सरल, रुचिकर, प्रभावशाली तथा स्थायी बनाता है। कितने ही विषयों पर जो पाठ्य पुस्तकों में नहीं लेते, उन पर प्रकाश डाला जाता है।



श्रव्य-दृश्य सामग्री की आवश्यकता व महत्व
श्रव्य दृश्य सामग्री की आवश्यकता एवं महत्व निम्नलिखित हैं-
- विषय-वस्तु को रोचक एवं आकर्षक बनाना– विद्यार्थियों को नवीन विषय-वस्तु का ज्ञान प्रदान करने के लिए उसे रोचक एवं आकर्षक बनाने हेतु इसकी आवश्यकता प्रदान करें तो गंभीर तथा कठिन विषय-वस्तु को विद्यार्थी आसानी से समझ लेते हैं तथा उससे रुचि भी लेते हैं।
- शिक्षण को प्रभावपूर्ण बनाना– इसकी सहायता से शिक्षण प्रभावशाली होता है और शिक्षण – उददेश्यों की प्राप्ति काफी हद तक सम्भव होती है।
- ज्ञानार्जन में सहयोग– यह विद्यार्थियों को ज्ञानार्जन में सहायक होती है। नवीन बातों की जानकारी श्रव्य दृश्य सामग्रियों की सहायता से आसानी से प्रदान की जा सकती है।
- भाषागत दोषों एवं भ्रमों का निवारण– इसकी सहायता से विद्यार्थियों के दोषों को दूर किया जा सकता है। साथ ही उनके भ्रमों का निवारण भी इनकी सहायता से सम्भव होता है।
- अर्जित ज्ञान को स्थाई बनाना – श्रव्य दृश्य सामग्री की सहायता से जो ज्ञान क्रियाओं प्राप्त करते हैं उसका स्थायीकरण सम्भव होता हैं। विद्यार्थियों को विभिन्न सम्प्रत्यय स्पष्ट होते हैं और सीखा हुआ या अर्जित ज्ञान स्थायी होता है।
- कक्षा के नीरस वातावरण का समापन – श्रव्य दृश्य सामग्री विषय-वस्तु को रोचक बनाती है तथा विषय में नीरसता कर समापन करने में सहायक होती है। इससे विद्यार्थी उत्साहित होकर तथा मन लगाकर ज्ञानार्जन करते हैं तथा कक्षा का वातावरण और शिक्षण बोझिल नहीं होता ।
- विद्यार्थियों की श्रव्य दृश्य इंद्रियों का प्रशिक्षण – इसका प्रयोग शिक्षण में करने में विद्यार्थियों की श्रव्य दृश्य इंद्रियों का प्रशिक्षण होता है। उनकी अवलोकन क्षमता बढ़ती है साथ ही सुनने की कला का विकास भी होता है।
- ध्यान एवं एकाग्रता – पाठय-वस्तु में विद्यार्थियों का ध्यान आकर्षित करने एवं उनकी विषय में एकाग्रता बढ़ाने हेतु श्रव्य दृश्य सामग्री अत्यन्त आवश्यक होती है। ध्यान एवं एकाग्रता विकसित होने पर विद्यार्थी विषय सामग्री को भली प्रकार समझ लेते हैं।
- शिक्षक के लिए सरलता – श्रव्य दृश्य सामग्री का प्रयोग करने से शिक्षक को अपने शिक्षण में आसानी होती है। जो बात वो कहकर या अपने स्पष्टीकरण में नही समझा सकते, इसकी सहायता से आसानी से समझा सकते हैं।
- प्रत्यक्षीकरण – श्रव्य दृश्य सामग्री की सहायता से विद्यार्थियों को विषय सामग्री से सम्बन्धित बातों को प्रत्यक्ष रूप से समझने का अवसर मिलता है जो उनके अधिगम में सहायक होता है।
- सूक्ष्म वातों को स्थूल रूप देना– इसकी सहायता से सूक्ष्म बातों को रूप से समझाया जा सकता है।
- अपेक्षित व्यवहार परिवर्तन– श्रव्य-दृश्य सामग्री का प्रयोग शिक्षण में करने से विद्यार्थियों के व्यवहार में अपेक्षित परिवर्तन किया जा सकता है। क्योंकि इनके प्रयोग से विद्यार्थी शारीरिक एवं मानसिक रूप से अधिक सक्रिय होते हैं और यह सक्रियता अपेक्षित व्यवहार परिवर्तन में सहायक होती है।
- वैज्ञानिक दृष्टिकोण का विकास– श्रव्य दृश्य सामग्री का उपयोग करने से विद्यार्थियों का दृष्टिकोण वैज्ञानिक होता है। उनकी निरीक्षण शक्ति, अवलोकन क्षमता, स्मरण शक्ति तथा क्रियाशील शक्ति का विकास होता है तथा उचित दृष्टिकोण बनता है।
- समय और शक्ति की बचत – श्रव्य दृश्य सामग्री का प्रयोग शिक्षण में करने से समय और शक्ति की बचत होती है।



- पुनर्बलन प्रदान करने में सहायक- विद्यार्थी जो कुछ सैद्धान्तिक रूप से सीखते हैं उसे जब उन्हें वास्तविक रूप में दिखाया जाता है या प्रयोगात्मक रूप से सिखाया जाता है तब उन्हें अपने सैद्धान्तिक ज्ञान का मूल्यांकन हो जाता है और पुनर्बलन की प्राप्ति होती है। अतः पुनर्बलन प्रदान करने में भी श्रव्य दृश्य सामग्री आवश्यक तथा उपयोगी होती है।
- अभिप्रेरणा प्रदान करने में सहायक– श्रव्य दृश्य सामग्री पाठ को रोचक बनाती है साथ ही विषय-सामग्री को सीखने हेतु विद्यार्थियों में उत्सुकता भी उत्पन्न होती है। वे नवीन ज्ञान को सीखने हेतु अभिप्रेरित होते हैं।
- अनुशासनहीनता रोकने में सहायक यदि बिना किसी रोचकता के विद्यार्थियों को ज्ञान प्रदान किया जाए तो वे शैतानी करते हैं एक दूसरे को छेड़ते हैं क्योंकि उनका मन पढ़ने में नहीं लगता विषय-वस्तु उन्हें बोरिंग लगती है अतः अनुशासनहीनता उत्पन्न होती है।
- मनोवैज्ञानिक आवश्यकताओं की पूर्ति कक्षा में विभिन्न मानसिक स्तरों के विद्यार्थी होते हैं। कुछ विद्यार्थी केवल सुनकर समझ लेते हैं, कुछ देखकर समझते हैं कुछ सुनकर देखकर तथा स्वयं प्रयोग कर समझते हैं। अतः श्रव्य दृश्य सामग्री से इस मनोवैज्ञानिक आवश्यकता की पूर्ति होती है।
- शिक्षण– बिन्दुओं का विकास आसान-श्रव्य दृश्य सामग्री की सहायता से शिक्षण के बिन्दुओं को क्रमबद्ध रूप से विकसित किया जा सकता है तथा इस प्रक्रिया को करने में आसानी रहती है।
- कल्पना, तर्क एवं निर्णय शक्तियों का विकास – श्रव्य दृश्य सामग्री का प्रयोग शिक्षण में करने से विद्यार्थियों की कल्पना तर्क एवं निर्णय शक्तियों का विकास होता है।
- पिछड़े हुए विद्यार्थियों के लिए उपयोगी – श्रव्य दृश्य सामग्री का प्रयोग पिछड़े हुए विद्यार्थियों के लिए अत्यन्त लाभकारी होता है।