शैक्षिक प्रशासन की विशेषताएँ प्रकृति उद्देश्य कार्य आवश्यकता

शैक्षिक प्रशासन का सम्बन्ध शिक्षा जगत की एक ऐसी मानवीय प्रक्रिया से है जिसके अन्तर्गत शिक्षा का समुचित संगठन एवं प्रबन्धन का प्रयास किया जाता है। आधुनिक युग में शिक्षा का क्षेत्र प्रशासन का अर्थ केवल शिक्षा की व्यवस्था करना तो नहीं है अपितु शिक्षा से सम्बन्धित विभिन्न शैक्षिक नीतियों का निर्धारण करना, योजना बनाना, संगठन पर ध्यान देना, निर्देशन देना एवं पर्यवेक्षण करना इत्यादि कार्यों से गहरा सम्बन्ध है। वास्तविक रूप में शैक्षिक प्रशासन का मुख्य उद्देश्य शिक्षा के उद्देश्यों को प्राप्त करना है। प्रशासन को एक प्रक्रिया मानते हैं जिससे विभिन्न सिद्धातों के प्रयोग द्वारा सुचारु बनाया जा सकता है।

अत्यन्त व्यापक है जिसके ऊपर सम्पूर्ण राष्ट्र के विकास का भार है। शिक्षा एक गतिशील प्रक्रिया है जिसका सीधा-सादा सम्बन्ध मानव विकास के लिए किये जाने वाले मानवीय प्रयासों से होता है। यदि वास्तव में देखा जाय तो प्रशासन न तो पूर्णतया कला है और न विज्ञान। परन्तु आज वैज्ञानिक पक्ष पर अधिक बल दिया जा रहा है।

विद्यालय पुस्तकालयप्रधानाचार्य शिक्षक संबंधसंप्रेषण की समस्याएं
नेतृत्व के सिद्धांतविश्वविद्यालय शिक्षा प्रशासनसंप्रेषण अर्थ आवश्यकता महत्व
नेतृत्व अर्थ प्रकार आवश्यकतानेता के सामान्य गुणडायट
केंद्रीय शिक्षा सलाहकार बोर्डशैक्षिक नेतृत्वआदर्श शैक्षिक प्रशासक
प्राथमिक शिक्षा प्रशासनराज्य स्तर पर शैक्षिक प्रशासनपर्यवेक्षण
शैक्षिक पर्यवेक्षणशिक्षा के क्षेत्र में केंद्र सरकार की भूमिकाप्रबन्धन अर्थ परिभाषा विशेषताएं
शैक्षिक प्रबंधन कार्यशैक्षिक प्रबंधन समस्याएंप्रयोगशाला लाभ सिद्धांत महत्त्व
प्रधानाचार्य के कर्तव्यविद्यालय प्रबंधन

शैक्षिक प्रशासन

शैक्षिक प्रशासन सामान्य प्रशासन या लोक प्रशासन का ही एक अंग है किन्तु ये अन्य प्रशासनों से थोड़ा भिन्न है चूँकि इसका उद्देश्य मानव मूल्यों को प्राप्त करना है और मानवीय कुशलता का अधिकतम विकास इसके द्वारा किया जाता है। अतः शैक्षिक प्रशासन को निम्न प्रकार से परिभाषित किया जा सकता है-

शैक्षिक प्रशासन वह प्रक्रिया है जिसके द्वारा शैक्षिक कार्य में रत कार्यकर्ताओं के प्रयासों में समन्वय एवं सामंजस्य स्थापित किया जाता है। जिससे मानवोचित गुणों का प्रभावशाली ढंग से विकास हो सके ताकि वे राष्ट्र की आकांक्षा व आशाओं पर खरे उतर सकें।

शिक्षा में प्रशासन शब्द सरकार से सम्बन्धित है । इससे सम्बन्धित शब्द अधीक्षक, पर्यवेक्षण, नियोजन, अनावधान, दिशा संगठन, नियन्त्रण, मार्गदर्शन एवं नियमन है।

जे. बी. सीयर्स के मतानुसार

शिक्षा प्रशासन उपयुक्त बालकों को उपयुक्त शिक्षकों द्वारा समुचित शिक्षा प्राप्त करने के योग्य बनाता है जिससे वे उपलब्ध आर्थिक संसाधनों का उपयोग करके अपने प्रशिक्षण से सर्वोत्तम लाभ प्राप्त करने में समर्थ हो सकें ।

ग्राहम बेलफोर के मतानुसार

शैक्षिक प्रशासन का अर्थ है – “विद्यार्थियों के विकास को निर्धारित उद्देश्यों की तरफ मोड़ना, शिक्षकों को साधन के रूप में प्रयुक्त करना तथा सम्बन्धित जनसमुदाय को उद्देश्यों तथा उनकी प्राप्ति के साधनों की ओर प्रेरित करना।”

मोर्ट तथा रौस के मतानुसार

मूल रूप से वे शैक्षिक प्रशासन का उद्देश्य यही है कि विद्यार्थियों को ऐसी परिस्थिति में एक साथ लाया जाए, जिससे वे अधिकतम रूप से सफलतापूर्वक शिक्षा के उद्देश्यों को प्राप्त कर सकें।

केन्डल के मतानुसार

शैक्षिक प्रशासन वस्तुओं के साथ-साथ मानवीय साधनों की व्यवस्था से सम्बन्धित है अर्थात् व्यक्तियों के मिल-जुल के और उत्तम कार्य करने से सम्बन्धित है। वास्तव में इसका सम्बन्ध मानवीय सजीवों से अधिक है तथा अमानवीय वस्तुओं से कम है।

डॉ. एस. एन. मुखर्जी के अनुसार

शैक्षिक प्रशासन को एक प्रक्रिया के रूप में परिभाषित किया जाता जिसका सम्बन्ध किसी शैक्षिक संस्था में पूर्व निर्धारित उद्देश्यों की पूर्ति हेतु साधन शक्तियों के निर्माण सुरक्षा तथा समन्वय से है।

स्टीफन नेजेविल के मतानुसार

अन्य प्रशासन की भाँति शैक्षिक प्रशासन पाँच तत्त्वों- नियोजन, संगठन, आदेश, समन्वय तथा नियन्त्रण की प्रक्रिया है।

हेनरी फेयॉल के मतानुसार

शैक्षिक प्रशासन एक ऐसी सेवा करने वाली गतिविधि है जिसके माध्यम से शैक्षिक प्रक्रिया के लक्ष्य प्रभावकारी ढंग से प्राप्त किये जाते हैं।

फॉक्स, विश तथा रफनर के मतानुसार

शैक्षिक प्रशासन एक ऐसी प्रक्रिया है जिसके द्वारा सम्बन्धित व्यक्ति के प्रयासों का एकीकरण तथा उचित सामग्री का उपयोग इस प्रकार किया जाता है जिससे मानवीय गुणों का विकास हो सके।

शिक्षा अनुसन्धान के विश्वकोष के अनुसार

शिक्षा प्रशासन में शिक्षण तथा सीखने की प्रक्रिया से सम्बन्धित लक्ष्यों तथा नीतियों के विकास को प्रोत्साहित करने वाली सुविधा निहित है । यह शिक्षण तथा अधिगम के उपर्युक्त कार्यक्रमों के विकास को प्रोत्साहन प्रदान करता है, साथ ही शिक्षण तथा अधिगम की प्रक्रिया को संचालित करने के लिए भौतिक एवं मानवीय तत्त्वों की व्यवस्था करता है।

कैम्बल, कॉरबेल तथा रैमसेयर के मतानुसार

शैक्षिक प्रशासन की विशेषताएँ

प्रशासन में दूसरों से कार्य करवाने एवं उन्हें दिशा देने की क्षमता होती है। शैक्षिक प्रशासन में वह सभी तत्व एवं गुण सम्मिलित होते हैं, जिसके द्वारा निर्देशन जैसे कार्य भी व्यवस्थित रूप से सम्पादित कराये जा सकते हैं। इस प्रकार विभिन्न तत्वों का सम्मिश्रण शैक्षिक प्रशासन में समाहित होते है वे सब इसकी विशेषताओं को दर्शाते हैं। शैक्षिक प्रशासन की आधारभूत विशेषताएँ निम्नवत् हैं-

  1. शैक्षिक प्रशासन का मूलभूत उद्देश्य जनकल्याण होता है और शैक्षिक संस्थाएँ मानव के सर्वांगीण विकास पर केन्द्रित होती हैं।
  2. शैक्षिक प्रशासन लाभ न कमाने वाला प्रतिष्ठान है वह प्रमुख्यतः कल्याण या समाज सेवा की भावना से ओत-प्रोत होता है।
  3. शैक्षिक प्रशासन में मानवीय क्रियायें शामिल होती हैं अर्थात् मनुष्य के द्वारा मनुष्य अथवा प्राणी मात्र के लिए की जाने वाली समस्त क्रियाएँ शैक्षिक प्रशासन का अंग होती है।
  4. शैक्षिक प्रशासन एक ऐसी प्रक्रिया है जिसके द्वारा किसी भी कार्य को सर्वश्रेष्ठ के लिए प्रक्रिया के अन्तर्गत इस प्रकार से क्रियान्वित किया जाता है जिससे यह लाभप्रद सिद्ध होती है।
  5. शैक्षिक प्रशासन का मानव जीवन, सामाजिक परिवर्तन व राष्ट्रीय विकास से घनिष्ठ सम्बन्ध होता है। आज के वैज्ञानिक व तकनीकी युग में एक मात्र शिक्षा ही ऐसा साधन है जो लोगों की भलाई सुरक्षा, खुशहाली को निश्चित करती है। हमारी राष्ट्रीय उन्नति हमारी संस्थाओं से निकलने वाले विशेष योग्य व्यक्तियों की संख्या एवं स्तर पर ही निर्भर करती है अतः शैक्षिक प्रशासन ऐसा होना चाहिए जो इस दिशा में अपना योगदान दे सके। इस विषय में कोठारी आयोग का कथन ध्यान देने योग्य है।
  6. शैक्षिक प्रशासन में एक यह भी विशेषता निहित है कि वह विद्यार्थी के विकास का पूर्ण आधार है। विद्यार्थियों के पूर्ण विकास से तात्पर्य उनके शैक्षिक कार्यक्रम को सुचारु रूप से सम्पादित करना, व्यक्तित्व विकास एवं नैतिक मूल्यों पर आधारित शिक्षा से उन्हें जोड़ना, अध्ययन के प्रति जागरूकता उत्पन्न करना, उत्तम सकारात्मक सोच एवं कार्यों के लिए प्रेरित करना, समाज के विकास में उनकी भूमिकाओं के विषय में बतलाना, विद्यार्थियों को उनके कर्तव्य के प्रति सचेत एवं जागरूक करना तथा कर्त्तव्य निर्वाह पर जोर देना इत्यादि है। विद्यार्थियों के विकास के साथ-साथ मनुष्य और विश्व को परस्पर जोड़ने में भी शैक्षिक प्रशासन महत्त्वपूर्ण भूमिका अदा करता है।
  7. शैक्षिक प्रशासन की एक और महत्त्वपूर्ण विशेषता यह है कि वह दूसरे से कार्य करवाने में, दूसरों से कराये गये कार्यों की जाँच करने में, किसी कार्य को करने से पूर्व योजना बनाने में, कार्य को सुव्यवस्थित ढंग से करने हेतु निर्देशन देने में, परस्पर समन्वय स्थापित करने में तथा पृथक्-पृथक परिस्थितियों में तालमेल बिठाने में अपना महत्वपूर्ण योगदान देता है।
  8. शैक्षिक प्रशासन दीर्घकालीन नीतियों के निर्धारण में विश्वास रखता है जो उद्देश्यों की प्राप्ति में सहायक होती है। मात्र साक्षर बनाना शैक्षिक प्रशासन की विशेषता नहीं है बल्कि वह इस प्रकार की नीतियों का निर्धारण करता है जिनके द्वारा विद्यार्थी व्यक्तिगत एवं भावी जीवन में सर्वांगीण लाभ को प्राप्त कर सके।
  9. शैक्षिक प्रशासन में संगठन के गुण निहित होते हैं क्योंकि प्रत्येक विद्यालय में संगठन के आधार पर ही कार्य किये जाते हैं अर्थात् कक्षाएँ पृथक्-पृथक् होती हैं किन्तु विद्यालय एक होता है, विषय शिक्षक अलग अलग होते हैं परन्तु सभी मिलकर एक विद्यालय का निर्माण करते हैं। जिसमें विभिन्न मस्तिष्क एवं विचारों वाले विद्यार्थी सभी सम्मिलित हैं। यदि विद्यालय से संगठन को अलग कर दिया जाय तो विद्यार्थी या शिक्षक किसी विद्यालय की संरचना नहीं कर सकते हैं। यदि संगठित रूप से कार्य किया जाये और शैक्षिक प्रशासन अपना योगदान दे तो वह विद्यालय का रूप लेता है। अतः शैक्षिक प्रशासन की एक महत्वपूर्ण विशेषता सुदृढ़ एवं मजबूत संगठन का होना भी है।
  10. शैक्षिक प्रशासन में निर्णय प्रक्रिया का भी महत्त्वपूर्ण स्थान है। निर्णय प्रक्रिया के विषय में कहा भी गया है कि-“प्रशासन का निर्णय के साथ ही शुम्भारम्भ होता और निर्णय के साथ ही समापन होता है।” शैक्षिक प्रशासन में विद्यालय में तो निर्णय प्रक्रिया लागू होती ही है साथ ही साथ विद्यालयों को संचालित करने में सरकारी स्तर पर लिए जाने वाले निर्णयों में भी महत्त्वपूर्ण है। अर्थात् विद्यालय की समय सारिणी, शिक्षकों की संख्या, विद्यालय का शैक्षिक स्तर इत्यादि के विषय में सरकारी स्तर पर कई सामान्य, असामान्य निर्णय लिये जाते हैं। अतः शैक्षिक प्रशासन को निर्णय प्रक्रिया से गुजरना ही पड़ता है।

शैक्षिक प्रशासन की प्रकृति

शैक्षिक प्रशासन की प्रकृति से तात्पर्य उसके स्वभाव से है। जिस प्रकार किसी एक व्यक्ति के स्वभाव के विषय में कहा जाता है कि उसका स्वभाव अच्छा है या बुरा, गर्म मिजाज है या ठण्डे मिजाज का इन्हीं गुणों के आधार पर इसकी प्रकृति किस प्रकार की है इससे ही अन्दाज इन सब बातों को ध्यान में रखकर शैक्षिक प्रशासन की प्रकृति के विषय में भी यह कहा जा सकता है कि-

  1. शैक्षिक प्रशासन मानव के व्यवहार को नवीन दिशा देता है।
  2. शैक्षिक प्रशासन सहयोग, सहानुभूति एवं सद्भाव से परिपूर्ण होता है।
  3. शैक्षिक प्रशासन किसी भी व्यक्ति विशेष में अर्न्तदृष्टि के विकास से सम्बन्धित है ।
  4. इसके द्वारा शैक्षिक जगत में शिक्षकों की परख उनकी प्रकृति के आधार पर करके, शैक्षिक कार्यों में गति प्रदान कर सकता है।
  5. शैक्षिक प्रशासन गत्यात्मक होता है।
  6. शैक्षिक प्रशासन में अनुसन्धान तथा विकास की सम्भावनाएँ निहित हैं।
  7. शैक्षिक प्रशासन मनोवैज्ञानिक एवं दार्शनिक प्रक्रिया के रूप में क्रियान्वित रहता है।
  8. शैक्षिक प्रशासन परिमाण ओर उन्मुख रहता है। शैक्षिक प्रशासन में केन्द्रीयकरण व विकेन्द्रीयकरण की प्रवृत्ति विद्यमान रहती है।
  9. शैक्षिक प्रशासन बालक के जीवन में आधार का कार्य करता है।

शैक्षिक प्रशासन के उद्देश्य

शैक्षिक प्रशासन के उद्देश्यों की चर्चा करते हुए जॉन ड्यूवी ने कहा है-” उद्देश्य के अन्तर्गत व्यवस्था पूर्ण गतिशील होती है, जिसे क्रिया द्वारा प्राप्त किया जाता है। इसके लिए हम क्रियाशील होते हैं।” इस विषय में एनसर्ट महोदय ने भी कहा है कि “उद्देश्य वह बिन्दु है जिसकी दिशा में कार्य किया जाता है। लक्ष्य या उद्देश्य को क्रिया द्वारा प्राप्त व्यवस्थित परिवर्तन भी कहते हैं।”

शैक्षिक प्रशासन का प्रयास प्रमुख निम्न समस्याओं से छुटकारा प्राप्त करना है जो उत्तम नागरिक होने के लिए आवश्यक है। शैक्षिक प्रशासन के निम्न उद्देश्य हैं-

  1. कार्य संचालन – शैक्षिक प्रशासन का प्रमुख उद्देश्य है कि शिक्षा के कार्य को कैसे सुसंगठित किया जाय, उससे सम्बन्धित योजना, विधियों, व्यक्तियों तथा संसाधनों एवं वित्त के द्वारा किस प्रकार परिणाम तक पहुँचाया जाय । इसका क्रियान्वयन करके वांछित लक्ष्यों की प्राप्ति की जा सकती है।
  2. निर्देशन एवं सहयोग प्राप्त करना – शैक्षिक प्रशासन में कर्मचारियों में परस्पर सहयोग, आत्मविश्वास एक-दूसरे की भावनाओं को समझने का अवसर दिया जाता है। इसलिए उन्हें उचित निर्देशन देकर प्रशासन में आने वाली बाधाओं को दूर किया जाता है जिससे वह कार्य को कुशलतापूर्वक कर सकने में समक्ष होते हैं।
  3. सर्वांगीण विकास करना – शैक्षिक प्रशासन का मूल उद्देश्य बालकों का सर्वागीण विकास करना है तथा विद्यार्थियों की रुचि के अनुरूप व्यवसाय के लिए तैयार करना है। राज्य द्वारा उपलब्ध सीमित साधनों के माध्यम से उत्तम गुणों का विकास कर बालक के व्यक्तित्व में निखार लाने की व्यवस्था करना शैक्षिक प्रशासन के उद्देश्य हैं।
  4. उद्देश्य प्राप्ति हेतु परिस्थितियों को उत्पन्न करना – शैक्षिक प्रशासन द्वारा उन परिस्थितियों को उत्पन्न किया जाता है जिनके द्वारा शैक्षिक वातावरण का सृजन होता है। इस विषय में कैण्डल महोदय ने कहा, “शैक्षिक प्रशासन का उद्देश्य शिक्षकों तथा विद्यार्थियों को ऐसी परिस्थिति में लाना है, जिससे शिक्षा के उद्देश्य अधिक सफलतापूर्वक प्राप्त हो सकें और शिक्षा से अपव्यय की समस्या दूर हो सके।
  5. उद्देश्य प्राप्ति का साधन शैक्षिक प्रशासन शिक्षा के उद्देश्यों की प्राप्ति में सक्रिय एवं सशक्त साधन के रूप में कार्य करता है। सीयर्स के मतानुसार “हम प्रशासन के शैक्षिक उद्देश्यों की प्राप्ति को साधन के रूप में स्वीकार करते हैं। इसमें यह ध्यान रखा जाता है कि प्रत्येक प्रशासनिक निर्णय शैक्षिक आवश्यकताओं को ध्यान में रखकर लिए जायें।”

शैक्षिक प्रशासन के प्रकार

यह सर्वविदित है सभी व्यक्तियों का कार्य करने का तरीका एक-सा नहीं है हो सकता है और न ही सभी से एक ही तरीके से कार्य कराया जा सकता है। उसी प्रकार सभी विद्यालय में एक ही तरीके से शिक्षण कार्य नहीं कराया जा सकता है और न ही एक ही प्रशासनिक तरीके से विद्यालय का संचाल किया जा सकता है कहीं स्थान एवं प्रकृति के आधार पर कार्य सम्पादित किये जाते हैं तो कहीं शैक्षिक स्तर और शैक्षिण गुणात्मकता को ध्यान में रखकर शैक्षिक प्रशासन किया जाता है। इस प्रकार की विभिन्नताओं के आधार पर ही कहाँ, कैसे, किस प्रकार व्यवस्था को अपनाया जाय इसको ध्यान में रखकर शैक्षिक प्रशासन को निम्न प्रकार से विभाजित कर सकते हैं-

  • प्रकृति के आधार पर यह निम्न प्रकार का हो सकता है-
    • बाह्य प्रशासन – बाह्य प्रशासन से अभिप्राय है वह अनुशासन जं उच्च स्तर की शक्ति द्वारा प्रदान किये जाते हैं। भारतवर्ष में शिक्षा के बाह्य प्रशासन का अर्थ है वह नियन्त्रण जो शिक्षा के क्षेत्र में स्थानीय, राजकीय केन्द्रीय स्तर पर किया जाता है। इसके अन्तर्गत शिक्षा की समयावधि पाठ्यक्रमों, पाठ्यवस्तु, पाठ्य-पुस्तकें तथा शिक्षक की सेवाओं की दशाएँ सभी कं सम्मिलित किया जाता है।
    • आन्तरिक प्रशासन – आन्तरिक प्रशासन का तात्पर्य उस व्यवस्था से लिया जाता है जो विद्यालय का प्राचार्य अपने सहकर्मियों की सहायता द्वारा विद्यालय की प्रतिदिन व क्रियाकलापों एवं प्रविधियों को संचालित करने के लिए स्थापित करता है।
  • सत्ता के आधार पर शैक्षिक प्रशासन निम्नलिखित दो प्रकार का होता है-
    • एकतन्त्रात्मक शैक्षिक प्रशासन – एकतन्त्रात्मक या तानाशाही प्रशासन एक ही व्यक्ति या समूह के अधीन होता है । इस प्रकार के प्रशासन में एक ही समूह या व्यक्ति द्वारा शैक्षिक कार्यों की आयोजना तैयार की जाती है। सम्पूर्ण गतिविधियाँ एक ही समूह या व्यक्ति के नियन्त्रण में रहती हैं। विद्यालय प्रशासन से सम्बन्धित समस्त क्रियाएँ: यथा विपवार कालांश, विद्यालय में अध्ययनरत विद्यार्थियों का स्तर, विद्यालय में कार्यरत शिक्षकों से किस प्रकार कार्य लिया जाय, शिक्षकों की कमी के कारण विद्यार्थियों का शिक्षण कार्य प्रभावित न हो, इत्यादि विद्यालय से सम्बन्धित महत्वपूर्ण कार्यों में उनकी भूमिका व्यक्तिगत रूप से प्रभावी रहती है। यहाँ समूह व्यक्ति सर्वोपरि रहता है। सम्पूर्ण गतिविधियाँ एक ही समूह या व्यक्ति के नियन्त्रण में होने के कारण सभी कार्मिक उसके आदेशों की अवहेलना करने में असमर्थ होते हैं चाहे व आदेश उचित हों या अनुचित हों।
    • लोकतान्त्रिक शैक्षिक प्रशासन – लोकतान्त्रिक प्रशासन में एक ही अधिकारी का प्रशासन नहीं होता है वरन् वह समस्त लोगों के सहयोग से प्रशासनिक निर्णयों को लेता है। जिस देश की शासन व्यवस्था ही लोकतान्त्रिक हो यहाँ शिक्षा प्रशासन का भी लोकतान्त्रिक होना स्वभाविक है। लोकतान्त्रिक शैक्षिक प्रशासन से तात्पर्य एक ऐसी व्यवस्था से है जिसके अन्तर्गत जाति, धर्म, लिंग से दूर वर्णविहीन समाज की परिकल्पना की जाती है। विद्यालय में धर्म, जाति, लिंग की दृष्टि से कोई भेदभाव नहीं किया जायेगा। सभी के साथ समानता का व्यवहार किया जायेगा, सभी को समान शिक्षा के अवसर प्रदान किये जायेंगे, राजनीति से विद्यार्थियों को दूर रखा जाता है। व्यक्ति को अपने विचारों अपने एवं अपने मत को व्यक्त करने की पूर्ण स्वतन्त्रता होती है।

शैक्षिक प्रशासन के चरण

बी. सीयर्स ने शैक्षिक प्रशासन की प्रशासनिक प्रक्रिया में पाँच आवश्यक तत्व बताये हैं-

  1. नियोजन किसी भी कार्य या कुशल प्रशासन का केन्द्र बिन्दु है। इसके अन्तर्गत किसी भी कार्य की शुभारम्भ से लेकर अन्त तक की रूपरेखा तैयार कर ली जाती है। वास्तव में योजना बनाना एक बौद्धिक प्रक्रिया है जिसका निर्माण करते समय पूर्ण अर्न्तदृष्टि, पूर्ण ज्ञान की आवश्यकता होती है। योजना का निर्माण करते समय उसके उद्देश्यों प्राप्त संसाधनों इत्यादि को ध्यान में रखना चाहिए क्योंकि किसी भी कार्य की सफलता एक उत्तम योजना के ऊपर ही आधारित होती है। योजना बनाते समय इस बात का ध्यान रखना चाहिए कि योजना लक्ष्य पूर्ति में अपना पूर्ण योगदान प्रदान करे। इस कारण जो व्यक्ति योजना का निर्माण कर रहा है उसे धैर्यवान, दूरदृष्टा, साहसी और चतुर होना चाहिए।
  2. योजना निर्माण के समय इस बात पर विचार किया जाता है कि इसके लिए किन-किन वस्तुओं की आवश्यकता होगी ? संगठन के स्तर पर हम अस्त-व्यस्त वस्तुओं को संगठित करके शक्ति, समय एवं धन का सदुपयोग करने का प्रयास करते हैं। संगठन वास्तविक रूप में कार्य को गति प्रदान करने की एक मशीन है। संगठन के अन्तर्गत दो प्रकार की व्यवस्थाएँ निहित होती हैं- 1. मानवीय, 2. भौतिक। मानवीय तत्वों के अन्तर्गत शिक्षक वर्ग, विद्यार्थी वर्ग, कर्मचारी वर्ग, कक्षाएँ समितियाँ सम्मिलित हैं व भौतिक तत्वों के अन्तर्गत भवन, फर्नीचर, शैक्षिक सामग्री की व्यवस्था, पुस्तकालय इत्यादि पर ध्यान दिया जाता है। संगठन भी दो प्रकार का होता है— प्रथम औपचारिक द्वितीय अनौपचारिक चेस्टर बनार्ड के अनुसार – “औचारिक संगठन में अनौपचारिक संगठन व्याप्त रहता है। प्रथम (औपचारिक) संगठन उसकी व्यवस्था व सततता के लिए, द्वितीय (अनौपचारिक) उसकी जीवन-शक्ति के लिए आवश्यक होता है।”
  3. दिशा से तात्पर्य है – विद्यालय के कार्य संचालन में मार्ग-दर्शन करना। इस तत्व के माध्यम से ही इस बात का ज्ञान होता है कि गतिविधि को कब शुरू करना है और कब उसे विराम देना है साथ ही शुरू से अन्त तक के मध्य में किस किस प्रकार की किन-किन क्रियाकलापों को करना है। यदि कहीं किसी प्रकार की त्रुटि हो जाती है तो उस त्रुटि का सुधार कैसे किया जा सकता है। दिशा निर्देशक के रूप में विद्यालय के मुखिया को सदैव इस बात को ध्यान में रखना चाहिए कि दिशा निर्देशन में निरंकुशतापूर्ण व्यवहार न करे।
  4. एक कुशल समन्वयक के रूप में विद्यालय के प्राचार्य का उत्तरदायित्व है कि वह सभी को साथ लेकर विद्यालय में एक ही समय में विभिन्न प्रकार की गतिविधियाँ संचालित होती हैं। यदि वह परस्पर सामंजस्य की स्थिति उत्पन्न नहीं करेगा तो विद्यालय में संघर्षमयी परिस्थितियों जन्म ले सकती हैं। जिसका विद्यालय वातावरण पर प्रतिकूल प्रभाव पड़ेगा। यह जरूरी है कि विभिन्न गतिविधियों को शिक्षकों की देख-रेख में आयोजित करवाये जायें किन्तु केन्द्रीय शक्ति को स्वयं अपने ही हाथ में रखें।
  5. समन्वय के स्तर पर जिस प्रक्रिया का प्राचार्य सहयोग लेता है वह है नियन्त्रण की प्रक्रिया। विद्यालय के स्तर को उच्च बनाने में नियन्त्रण की प्रक्रिया सहायक होती है। नियन्त्रण जहाँ एक और प्रगति को सुनिश्चित करता है, वहीं दूसरी ओर भावी क्रियाओं को क्रियान्वित करने के अवसर प्रदान करता है विद्यालय का वार्षिक कलेण्डर निर्माण, समय-सारिणी, अर्थव्यवस्था, पाठ्य-सहयोगी क्रियाओं इत्यादि के निर्माण में विद्यालय के मुखिया के नियन्त्रण की आवश्यकता होती है। किन्तु नियन्त्रण के स्तर पर प्रशासक के लिए यह आवश्यक है कि वह सभी के साथ निष्पक्ष पूर्ण व्यवहार करें न कि पक्षपातपूर्ण रवैया को अपनाये। उचित तथा अनुचित में विभेद करके अनुचित को नियन्त्रण में लेकर उसे सुधारने का प्रयास करे।

शैक्षिक प्रशासन के कार्य

शैक्षिक प्रशासन की परिभाषा एवं अन्य बिन्दुओं का अध्ययन करने के उपरान्त इसके कार्यों को समझा जा सकता है। यूँ तो इसके अनेक कार्य हैं किन्तु प्रमुख रूप से शैक्षिक प्रशासन के निम्नलिखित कार्य हो सकते हैं-

  1. विद्यालय की पूर्ण सुव्यवस्थित रूप से व्यवस्था करना।
  2. शिक्षकों की नियुक्ति करना।
  3. शिक्षकों के अध्यापन हेतु व्यवस्था बनाना।विद्यार्थियों के प्रवेश सम्बन्धी प्रक्रिया को एक राह दिखाना तथा सैद्धान्तिक प्रक्रिया को अपनाना।
  4. विषयानुसार शिक्षकों की नियुक्ति करना।
  5. विद्यार्थियों के शैक्षिक विषयों की पूर्ण व्यवस्था करना
  6. विद्यालय में शैक्षिक वातावरण का ‘सृजन करना
  7. उत्तम पुस्तकालय की व्यवस्था करना एवं पाठ्यक्रमानुसार पुस्तकों की उपलब्धि हेतु प्रयास करना।
  8. पाठ्य सहगामी क्रियाओं को समुचित व्यवस्था करना।
  9. विद्यालय में अनुशासन कायम रखना।
  10. विद्यालय में मानवीय एवं सामाजिक सम्बन्धों को विकसित करना।
  11. विद्यालय में उचित निर्देशन व्यवस्था करना।
  12. भौतिक संसाधनों की समुचित व्यवस्था करना।
  13. विद्यालय में संचालित शैक्षिक व्यवस्था का मूल्यांकन करना
  14. विभिन्न मानवीय, सामाजिक, भौतिक तथा अभौतिक क्रियाओं के मध्य सामंजस्य एवं समन्वय स्थापित करना।
  15. निर्धारित लक्ष्यों की प्राप्ति हेतु योजनाएँ बनाना। विद्यालय भवन, फर्नीचर, प्रयोगशाला, शौचालय व मूत्रालय तथा पीने के पानी की समुचित रूप से सुव्यवस्था करना।
  16. योजनाओं का लक्ष्य प्राप्ति हेतु सुव्यवस्थित रूप से संचालन करना।
  17. विद्यार्थियों के सर्वांगीण विकास हेतु नये अनुसन्धान करना।

शैक्षिक प्रशासन की आवश्यकता

किसी भी राष्ट्र का उत्थान वहाँ के प्रशासन की कुशलता एवं उस राष्ट्र की शिक्षा व्यवस्था पर आधारित होता है । शिक्षा व्यवस्था की कुशलता शैक्षिक प्रशासन के ऊपर निर्भर होती है। देश के शैक्षिक लक्ष्यों को प्राप्त करने के लिए शिक्षा प्रशासन द्वारा अनेक प्रकार की शैक्षिक योजनाओं का निर्माण किया जाता है तथा उनका क्रियान्वयन करने के लिए प्रशासनिक तन्त्र का संगठन किया जाता है यह प्रशासनिक तन्त्र व्यवस्था जितनी अधिक मजबूत और प्रभावशाली होगी, उतनी ही शैक्षिक लक्ष्यों की प्राप्ति का प्रयास सफल होगा तथा राष्ट्र की प्रगति में सहायक सिद्ध होगा।

इस विषय में ग्रेग महोदय ने लिखा है “शैक्षिक प्रशासन उपर्युक्त सामग्री का उपयोग करने वाली वह प्रक्रिया है जिसके माध्यम से मानवोचित गुणों को प्रभावशाली ढंग से विकसित किया जा सकता है। संसार का व्यापार हानि-लाभ की अवधारणा से संचालित होता है किन्तु शिक्षा का कार्य हानि-लाभ के ज्ञान के बिना संचालित किये जाने पर उद्देश्यहीन हो जाता है।” इसलिए शिक्षा के लक्ष्यों और उद्देश्यों की प्राप्ति के लिए शिक्षा प्रशासन की आवश्यकता होती है। इसी प्रकार शैक्षिक प्रशासन की आवश्यकताएँ हैं-

  1. शैक्षिक उद्देश्यों की प्राप्ति हेतु प्रयासरत होना।
  2. आवश्यकतानुसार शैक्षिक लक्ष्यों को परिभाषित करना।
  3. समाज के द्वारा दिये गये लक्ष्यों की पहचान करके शैक्षिक कार्यक्रमों का निर्माण करना।
  4. शैक्षिक प्रशासन द्वारा समस्त संसाधनों का समन्वय करना तथा उनके उपयोग पर नियन्त्रण रखना।
  5. संसाधनों का शैक्षिक कार्यक्रमों के लिए उपयोग करना।
  6. शिक्षा कार्यक्रम का नियोजन करना।
  7. क्रियाकलापों तथा परिणामों का मूल्यांकन करना।
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