शैक्षिक तकनीकी के उपागम – शैक्षिक तकनीकी के कुल तीन उपागम यहाँ बताए गए हैं। कठोर उपागम, कोमल उपागम तथा प्रणाली उपागम। शिक्षण-अधिगम प्रक्रिया को सहज, सरल, सक्षम तथा प्रभावशाली बनाने के लिए वैज्ञानिक, तकनीकी, मनोवैज्ञानिक सिद्धान्तों तथा विधियों का उचित प्रयोग शिक्षा तकनीकी कहलाता है। जैसे-जैसे नवीनतम खोजें तथा अन्वेषण सामने आते हैं, शैक्षिक तकनीकी के अर्थ, परिभाषा तथा स्वरूप में परिवर्तन आ जाता है।
आज विज्ञान के युग में वैज्ञानिक तथा प्रौद्योगिकी आविष्कारों ने मानव जीवन के हर पक्ष को प्रभावित किया है। इनसे शिक्षा, शिक्षण तथा अधिगम भी बहुत प्रभावित हुए हैं। शिक्षा के क्षेत्र में भी नवीन अनुसन्धानों, खोजों एवं अन्वेषण के फलस्वरूप ऐसी-ऐसी तकनीकों अर्थात् कौशलों का विकास किया गया है जिनसे शिक्षा के उद्देश्यों को प्राप्त करने में पर्याप्त सहायता मिल रही है। इन दक्षताओं और कौशलों को, जो कि विशेषतया विज्ञान पर आधारित हैं, शैक्षिक तकनीकी का नाम दिया गया है।
शैक्षिक तकनीकी के उपागम
लुम्सडेन ने कुल तीन शैक्षिक तकनीकी के उपागम बताएँ हैं-
- कठोर उपागम
- कोमल उपागम
- प्रणाली उपागम
कठोर उपागम
शैक्षिक तकनीकी के उपागम प्रथम अथवा कठोर उपागम को दृश्य अन्य सामग्री या मशीनी प्रणाली के रूप में भी जाना जा सकता है। इसका जन्म भौतिकी तथा अभियान्त्रिकी के योग से हुआ है जितने भी उपकरण या मशीनें जिन्हें हम देख सकते हैं, छू सकते हैं तथा अनुभव कर सकते हैं जिनका शिक्षा में प्रयोग सहायक सामग्री के रूप में किया जाता है. वे सभी इसी वर्ग में आते हैं इसलिये इन्हें कठोर शिल्प कहा जाता है। सिल्वरमैन ने इसे सापेक्षिक तकनीकी का नाम दिया है।
शिक्षा में तकनीकी और शिक्षा की तकनीकी जिन दो सम्प्रत्ययों का वर्णन शैक्षिक तकनीकी के सन्दर्भ में किया जाता है, उनमें से यह शिक्षा में तकनीकी के लिए प्रयुक्त की जाती है। विज्ञान एवं तकनीकी विकास के फलस्वरूप रेडियो, टेलीविजन, टेपरिकॉर्डर, प्रोजेक्टर एवं कम्प्यूटर आदि जिन मशीनों, उपकरणों का आविष्कार किया गया है, उन सभी की इस प्रकार की शैक्षिक तकनीकी में महत्त्वपूर्ण भूमिका होती है। इसी तकनीकी ने शिक्षण अधिगम प्रक्रिया का मशीनीकरण कर दिया है। यह एक विशेष प्रकार के शैक्षिक तकनीकी के उपागम में से एक है।



शिक्षण मशीन तकनीकी के द्वारा अध्यापक कम-से-कम समय में एक साथ अधिक-से-अधिक छात्रों को शिक्षा प्रदान कर सकता है। इसका सम्बन्ध केवल ज्ञानात्मक पक्ष से होता है। इस तकनीकी के द्वारा ही ज्ञान को संचित करना, दूसरी पीढ़ी तक पहुँचाना या सम्प्रेषित करना और ज्ञान का विस्तार करना सम्भव हो सका है। शैक्षिक तकनीकी प्रथम ने शिक्षा जगत में अनेक क्रान्तिकारी परिवर्तन किये हैं। दूर-दूर तक फैले, उपेक्षित और पिछड़े हुए इलाकों में रहने वाले जनसमुदाय तक शिक्षा सुविधाएँ पहुँचाने का कार्य इस तकनीकी के सम्प्रेषण एवं संचार साधनों के द्वारा ही किया गया है।
कठोर उपागम की विशेषताएँ
शैक्षिक तकनीकी के उपागम में कठोर उपागम की विशेषताएँ निम्नलिखित हैं-
- शैक्षिक तकनीकी प्रथम को कठोर शिल्प उपागम भी कहते हैं।
- इसका जन्म भौतिकी तथा अभियान्त्रिकी के योग से हुआ है जितने भी उपकरण या मशीनें जिनका शिक्षा में प्रयोग सहायक सामग्री के रूप में किया जाता है, वे सभी इसी वर्ग में आते हैं इसलिये इन्हें कठोर शिल्प कहा जाता है।
- दैनिक जीवन में काम आने वाली सामग्रियाँ जैसे— रेडियो, ट्रांजिस्टर, टीवी, टेपरिकॉर्डर, भाषा प्रयोगशाला, शिरोपरि प्रक्षेपी, टीचिंग मशीन आदि शिक्षा तकनीकी या कठोर शिल्प के उदाहरण हैं। इससे शिक्षण रोचक बनता है।
- शैक्षिक तकनीकी प्रथम ज्ञान के संचय, ज्ञान के प्रसारण तथा ज्ञान के विस्तार पर विशेष बल देता है।
- डेविस ने भी स्वीकार किया है कि कठोर शिल्प उपागम शिक्षण प्रक्रिया का क्रमशः मशीनीकरण करके, शिक्षा के द्वारा कम खर्च तथा कम समय में अधिक छात्रों को शिक्षित करने का प्रयास चल रहा है ।
- इनके प्रयोग से शिक्षा प्रक्रिया का यन्त्रीकरण किया जा सका है इनके प्रयोग से कई ज्ञानेन्द्रियों का प्रयोग अधिगम के लिये एक साथ किया जा सकता है अतः इनके प्रयोग से शिक्षण प्रभावशाली होता है ।
कोमल उपागम
यह शैक्षिक तकनीकी के उपागम सामाजिक विज्ञान, मनोविज्ञान और विशेषकर अधिगम के मनोविज्ञान की आधारशिला पर खड़ा है। मेल्टन (1959) के अनुसार यह तकनीकी इस मान्यता पर आधारित है कि अधिगम का मनोविज्ञान अनुभव के फलस्वरूप व्यवहार में हर प्रकार के स्थायी परिवर्तन, जिसमें बच्चों का स्कूली अनुभव आदि भी सम्मिलित है, को अन्तर्निहित करता हैं तकनीकी एवं मशीनी उपक्रम (रेडियो, टेलीविजन, शिक्षण मशीन आदि) जो कठोर उपागम हैं, उनके माध्यम से प्रयोग में लायी जाने वाली शिक्षण सामग्री, अभिक्रमित अनुदेशन सामग्री शिक्षण विधियाँ, युक्तियाँ आदि मृदुल अथवा सॉफ्टवेयर उपागम हैं।
शैक्षिक तकनीकी के उपागम के मृदुल उपागम तकनीक के माध्यम से नवीन विशिष्ट शिक्षण विधियों, प्रविधियों, तकनीकों, युक्तियों एवं व्यूह-रचनाओं का निर्माण एवं विकास किया जाता है। यह तकनीक शिक्षण अधिगम प्रक्रिया को रुचिकर, सरल, प्रभावशाली तथा मृदुल बनाती है। इसलिए इसे मृदुल उपागम नाम दिया गया है।
इस शैक्षिक तकनीकी के उपागम के अन्तर्गत ही कार्य विश्लेषण, शैक्षिक उद्देश्यों को व्यवहारपरक शब्दावली में लिखना, छात्रों के प्रारम्भिक व्यवहार का परीक्षण करना, पुनर्बलन देना एवं शिक्षण कार्यों का मूल्यांकन करना आदि क्रियाओं के बारे में विचार-विमर्श किया जाता है इस प्रकार शिक्षण अधिगम से सम्बन्धित सभी प्रकार की क्रियाओं का सम्पादन इसी तकनीकी के द्वारा किया जाता है। इसीलिए अनुदेशनात्मक तकनीकी, शिक्षण तकनीकी एवं व्यवहार तकनीकी इसी तकनीकी की परिधि के अन्तर्गत आती हैं।
कोमल उपागम की विशेषताएँ
शैक्षिक तकनीकी के उपागम में कोमल उपागम की विशेषताएँ निम्नलिखित हैं-
- शिक्षा तकनीकी को कोमल शिल्प उपागम भी कहते हैं सिल्वरमैन ने इसे सृजनात्मक शैक्षिक तकनीकी कहकर पुकारा है।
- इसमें शिक्षा तकनीकी । की भाँति भौतिकी व अभियांत्रिकी का प्रयोग नहीं किया जाता है बल्कि मनोविज्ञान के विभिन्न सिद्धान्तों व नियमों का प्रयोग किया जाता है। इसी कारण यह उपागम कोमल शिल्प कहलाता है तथा इनके प्रयोग से शिक्षण प्रभावशाली होता है।
- कोमल शिल्प उपागम पाठ्य वस्तु को स्पष्ट तथा रोचक बनाते हैं तथा इनके उपयोग से छात्रों की ग्रहण क्षमता बढ़ती है और उन्हें (छात्रों को) अभिप्रेरणा प्राप्त होती है।
- इसके अन्तर्गत अधिगम के सिद्धान्तों नियम, प्रेरणा, मूल्यांकन, रुचिवर्द्धन, पुनर्बलन, पृष्ठपोषण आदि प्रत्ययों का प्रयोग किया जाता, प्रयास यही किया जाता है कि इनके प्रयोग से व्यवहार में परिवर्तन (उद्देश्यों की प्राप्ति) सरलता से स्थायी रूप सम्भव हो सकेगा।
- कोमल शिल्प उपागम व्यक्तिगत भिन्नताओं के आधार पर शिक्षण कार्य सम्पन्न करना सम्भव बनाते हैं।



प्रणाली उपागम
इस प्रणाली के अन्तर्गत शैक्षिक प्रशासन सम्बन्धी विभिन्न प्रकार की समस्याओं का वैज्ञानिक पद्धति से विश्लेषण किया जाता है और प्रभावशाली तथा संतुलित समाधान निकाला जाता है। इसके द्वारा शिक्षा के नियोजन, संगठन, संचालन और मूल्यांकन करने में बहुत सहायता मिलती है। शिक्षण प्रणाली की सफलता के लिये आवश्यक है कि कोई न कोई ऐसी शैक्षिक तकनीकी अवश्य होनी चाहिये जो कोमल व कठोर उपागमों में संतुलन व समन्वय स्थापित करके दोनों के मध्य एक स्वाभाविक सम्बन्ध बना सके।
अतः शैक्षिक तकनीकी के उपागम में प्रणाली उपागम इस कार्य को पूर्ण करते हैं। ये शैक्षिक साधनों के अपव्यय को रोकते हुये सीमित साधनों के प्रयोग से शैक्षिक उद्देश्यों को प्राप्त करने में सहायक होते हैं। प्रणाली उपागम दो प्रकार का होता है – कठोर सामग्री, कोमल सामग्री।
प्रणाली उपागम क्रमिक रूप से विशिष्ट ढंग से कार्य करने का व्यवस्थित तरीका है।
राब के अनुसार
यह शिक्षा के उत्पाद तथा प्रक्रिया को प्रबन्धित करने, नियन्त्रित करने तथा सुधारने की रणनीति है।
डॉ. कुलश्रेष्ठ
It is the strategy to manage, control and improve the process and products of education.
Dr. Kulshreshth
नील का विचार शिक्षा का प्रणाली उपागम क्रियाशील अधिगम स्थितियों पर प्रभावशाली ढंग से विचार करने, उनका प्रारूप तैयार करने तथा उन्हें गठन करने की अनुसंधान विधि है।
ब्रैट्ज का विचार शिक्षा की प्रणाली उपागम में शिक्षा की आवश्यकताओं एवं समस्याओं की सही पहचान, विशिष्ट निष्पत्ति उद्देश्यों का निश्चय, समस्याओं के लिये तर्क एवं विश्लेषण की तकनीकों का प्रयोग और विशिष्ट निष्पत्ति उद्देश्यों के सन्दर्भ में इनके सब परिणामों का कठोर मापन सम्मिलित है।
प्रणाली उपागम की विशेषताएँ
शैक्षिक तकनीकी के उपागम में प्रणाली उपागम की विशेषताएँ निम्नलिखित हैं-
- प्रणाली उपागम ‘छात्र तथा समस्या केन्द्रित उपागम है।
- प्रणाली उपागम शिक्षण तथा प्रशिक्षण को एक सामाजिक तथा तकनीकी प्रक्रिया मानता है।
- प्रणाली उपागम समस्या के सभी तत्त्वों के समग्र विश्लेषण पर बल देता है।
- प्रणाली उपागम के कुछ अंग अदा, कुछ तत्त्व प्रक्रिया तथा कुछ तत्त्व प्रदा के रूप में कार्य करते हैं। उद्देश्यों की प्राप्ति ही प्रदा है।
- प्रणाली उपागम शिक्षा को एक उत्पादक कार्य के रूप में स्थापित करने का प्रयास करता है।
शिक्षा तथा शिक्षण के क्षेत्र में प्रणाली विश्लेषण की चर्चा करते हुए डॉ. एस. पी. कुलश्रेष्ठ लिखते हैं, “प्रणाली उपागम एक ऐसी संकल्पना है अथवा यह एक ऐसा शैक्षिक उपकरण है जो शैक्षिक कार्यों व चुनौतियों को अधिक, सपुल, समग्र, अनुक्रियापूर्ण (प्रत्युत्तरित), उत्तरदायी, तार्किक व क्रमबद्ध. क्रमबद्ध व लचीला बनाता है। इससे युक्तिमूलक समस्या समाधान विधि के द्वारा शैक्षिक प्रक्रिया के प्रत्येक पक्ष का पूर्ण विश्लेषण किया जाता है, पूर्व निर्धारित उद्देश्यों का मूल्यांकन किया जाता है और फिर विश्लेषित तत्त्वों का संश्लेषण करते हुए समग्र की ओर रखा जाता है। (शैक्षिक तकनीकी के उपागम)
उपर्युक्त परिभाषाओं के प्रकाश में कहा जा सकता है कि प्रणाली उपागम शिक्षा प्रणाली के विधिवत् नियोजन, प्रारूप निर्माण तथा मूल्यांकन के साथ सम्बन्धित है। यह शिक्षा प्रणाली के विकास, कार्यान्वयन एवं मूल्यांकन में प्रयुक्त की जाती है। केवल शिक्षा की प्रणाली में ही नहीं बल्कि उसकी उप-प्रणाली, पाठ्यक्रम तथा वैयक्तिक पाठ नियोजन में भी इसका प्रयोग किया जाता है। यह शिक्षा-प्रक्रिया के विश्लेषण की युक्ति युक्त विधि है जो उसे अधिक प्रभावशाली बनाती है। यह एक ऐसी प्रक्रिया है जिसमें शिक्षा के सभी तत्त्व मिलकर एक समग्र इकाई के रूप में काम करते हैं।
शिक्षा में प्रणाली उपागम का महत्व
शैक्षिक तकनीकी के उपागम के प्रणाली उपागम से शिक्षा के निम्नलिखित विशिष्ट उद्देश्यों को प्राप्त किया जा सकता है—
- शिक्षा प्रणाली उपागम प्रभावशाली योजना बनाने में सहायक है।
- प्रणाली उपागम से योजना के उद्देश्यों को परिभाषित करना, योजना की कार्य प्रणाली निश्चित करना, योजना का संचालन व मूल्यांकन करना व्यावहारिक होता जा रहा है।
- प्रणाली उपागम शिक्षा के क्षेत्र में नियन्त्रण तथा समन्वय की वृद्धि करती है जिससे शिक्षा प्रणाली प्रभावशीलता की ओर अग्रसर होती है। विद्यालय व्यवस्था को उन्नत बनाती है।
- प्रणाली उपागम के माध्यम से अनुदेशन प्रक्रिया को नियन्त्रित करके अनुदेशन उद्देश्यों की प्राप्ति की जा सकती है।
- शैक्षिक तकनीकी के उपागम के प्रणाली उपागम संसाधनों के अधिकतम उपयोग की व्यवस्था में सहायक है।
- प्रणाली उपागम के माध्यम से शिक्षक, शिक्षार्थी तथा विभिन्न कर्मचारी अपने-अपने कार्यों को व्यवस्थित रूप से पूरा कर सकते हैं।
प्रणाली उपागम की उपयोगिता
- शिक्षा प्रणाली में किसी भी प्रकार का परिवर्तन व अपेक्षित सुधार लाने में प्रणाली उपागम का उपयोग महत्त्वपूर्ण भूमिका निभाता है।
- प्रणाली उपागम की सहायता से शिक्षा अधिकारियों व शैक्षिक प्रबन्धकों को शिक्षा की वास्तविक समस्या का पता लगाने में सहायता मिलती है। 3. यह शिक्षा तथा शिक्षण के उद्देश्यों को अधिक स्पष्ट रूप से विश्लेषित कर उन्हें सहज प्राप्यनीय बनाती है।
- शैक्षिक तकनीकी के उपागम का यह उपागम शिक्षा से सम्बन्धित विभिन्न समस्याओं का समग्र रूप से अध्ययन करने पर बल देती है।
- उद्देश्यों का पूर्व निर्धारण होने के कारण, छात्रों के व्यवहार में वांछित परिवर्तन लाने के लिये पाठ्यक्रम व पाठान्तर क्रियाओं की उचित व्यवस्था करने में सहायता मिलती है।
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Behatar tarike se smjhaya he 👌