माध्यमिक शिक्षा का व्यवसायीकरण को लेकर भारत सरकार ने कई आयोगों का गठन ही नहीं किया अपितु उनकी सलाह पर कार्य किया। परंतु फिर भी स्थिति में ज्यादा सुधार नहीं हुआ। इसके संबंध में कोठारी आयोग 1964 ने कहा है बार-बार सलाह देने के पश्चात भी दुर्भाग्य की बात यह है कि विद्यालय स्तर पर व्यवसायिक शिक्षा को एक घटिया किस्म की शिक्षा समझा जाता है और अभिभावक तथा विद्यार्थियों का सबसे आखरी चुनाव होता है।
शिक्षा का व्यवसायीकरण का सामान्य शब्दों में अर्थ होता है किसी व्यवसायिक में प्रशिक्षण अर्थात विद्यार्थी को एक व्यवसाय सिखाना ताकि वह अपना जीवन यापन सुगमता से कर सके। शिक्षा के साथ-साथ उन कोर्सों की भी व्यवस्था की जाए जो छात्रों को शिक्षा के साथ-साथ किसी व्यवसाय में भी कुशल व्यक्ति बनाए।



शिक्षा का व्यवसायीकरण की आवश्यकता
प्रत्येक राष्ट्र का यही प्रयास होता है कि उसके राष्ट्र की शिक्षा का ढांचा उन्नत तथा सक्षम होता कि यह सभी व्यक्तियों की आवश्यकता व तथा मांगों को पूरा कर सके। इसलिए देश में एक विशेष प्रकार की शिक्षा की व्यवस्था होनी चाहिए अर्थात शिक्षा का व्यवसायीकरण कई प्रकार से देशों की आवश्यकताओं को पूरी कर सकती है। जिन क्षेत्रों में व्यवसायीकरण की आवश्यकता है वे निम्न है-
- आर्थिक विकास के लिए
- बेरोजगारी की समस्या को हल करने के लिए
- विद्यार्थियों की योग्यताओं सूचियों तथा गुणों को प्रशस्त करने के लिए
- आत्मसंतुष्टि
- नैतिक तथा सांस्कृतिक विकास
- बौद्धिक विस्तार
- शिक्षा प्रक्रिया को उद्देश्य पूर्ण बनाना
- माध्यमिक शिक्षा को आत्मनिर्भर कोर्स बनाने के लिए
1. आर्थिक विकास के लिए
भारत एकमात्र ऐसा देश है जिसे प्रकृति ने खुले दिल से अपने तीनों गुणों शक्ति सुंदरता तथा ताकत को भरपूर मात्रा में दिया है। परंतु इतने अच्छे तथा सशक्त प्राकृतिक साधनों के बावजूद भी हमारे देश की आर्थिक व्यवस्था उतनी सुंदर नहीं है जितना इसे होना चाहिए था। अवनति का एक मुख्य कारण प्रशिक्षित मानवीय शक्ति का न होना है।
यह भी सत्य है कि जनसंख्या की दृष्टि से हमारा देश दुनिया में दूसरे स्थान पर है और प्रकृति ने भी इसे दोनों हाथों से सींचा है। परंतु हमारी अयोग्य शिक्षा प्रणाली वह कारण है जिससे देश आर्थिक विकास की बुलंदियों को छू नहीं पा रहा है।
अब समय आ गया है जब हमें हमारे छात्र छात्राओं को व्यवसाय तथा व्यवहारिक रूप से कुशल बनाना होगा ताकि वे औद्योगिक तथा तकनीकी उन्नति की योजनाओं में सार्थक योगदान देकर देश को आर्थिक रूप से सशक्त तथा खुशहाल बना सकें। इन सब बातों को ध्यान में रखते हुए भारतीय शिक्षा आयोग ने शिक्षा के चार मुख्य लक्षणों में से उत्पादन वृद्धि को लक्ष्य साध कर उसकी प्राप्ति के लिए माध्यमिक शिक्षा को व्यवसायिक रूप देने की सिफारिश की है।
2. बेरोजगारी की समस्या को हल करने के लिए
भारत में बेरोजगारी की समस्या दिन प्रतिदिन बढ़ती जा रही है। ऐसे में व्यवसायिक शिक्षा बेरोजगारी की समस्या को दूर करने में सक्षम है। अतः शिक्षा में व्यवसाई करण से शिक्षित लोगों में बेरोजगारी की समस्या को दूर किया जा सकता है। निसंदेह व्यवसायीकरण विद्यार्थियों को किसी एक व्यवसाय में निपुण बनाती है। महात्मा गांधी के अनुसार शिक्षा बेरोजगारी के विरुद्ध एक प्रकार का बीमा होना चाहिए।
3. विद्यार्थियों की योग्यताओं सूचियों तथा गुणों को प्रशस्त करने के लिए
आयोग के अनुसार माध्यमिक शिक्षा का व्यवसायीकरण करने से विद्यार्थी अपनी अपनी विशेष पसंद तथा सूचियों के अनुरूप प्रशिक्षण ले सकते हैं। यह उनके लिए रोजगार के अवसर मुहैया कराने के साथ उन पर छिपी हुई क्षमताओं को भी विकसित करेगा।
4. आत्मसंतुष्टि
अपने आप को मानव केवल उस समय आत्मा संतुष्ट समझता है जब उसे अपनी पसंद का व्यवसाय मिल जाए और शिक्षा में व्यवसायीकरण से विद्यार्थियों को पूरा नहीं तो कुछ हद तक उसकी रूचि के अनुरूप कोई ना कोई व्यवसाय मिल ही जाता है।
5. नैतिक तथा सांस्कृतिक विकास
यदि मानव की मूलभूत आवश्यकताएं रोटी कपड़ा और मकान पूरी हो जाती है, तो नैतिकता व संस्कृत की बात सोचता है और शिक्षा के व्यवसायीकरण से विद्यार्थी अपनी पसंद का रोजगार प्राप्त कर सकते हैं। जो उन्हें धन के साथ-साथ संतुष्ट भी दे सकता है और आर्थिक रूप से सबल होने पर नैतिक तथा सांस्कृतिक विकास सदा प्राप्त हो सकता है।

6. बौद्धिक विस्तार
शिक्षा में व्यवसाई करण का मुख्य उद्देश्य विद्यार्थियों को रोजगार उपलब्ध कराना है। एक बार रोजगार प्राप्त होने पर वह दूसरे क्षेत्रों में भी कार्य करने की सोच सकते हैं। ऐसा करने से तथा दूसरे क्षेत्रों में रुचि लेने से उनका बौद्धिक विस्तार स्वत: ही हो जाता है।
7. शिक्षा प्रक्रिया को उद्देश्यपूर्ण बनाना
शिक्षा को ज्यादा से ज्यादा उपयोगी बनाने के लिए व्यवसायीकरण अति आवश्यक है, क्योंकि व्यवसायीकरण शिक्षा की प्रक्रिया को दिशा देने में सक्षम है यही कारण है कि शिक्षा व्यावहारिक रूप से विद्यार्थियों के लिए उपयोगी हो सकती है।
8. माध्यमिक शिक्षा को आत्मनिर्भर कोर्स बनाने के लिए
वर्तमान में माध्यमिक शिक्षा का स्वरूप अत्यधिक शैक्षिक होने के कारण इसका मुख्य कार्य विद्यार्थियों को महाविद्यालयों तथा विश्वविद्यालयों में प्रवेश दिलाने मात्र तक सीमित होकर रह गया है। यदि सामान्य रूप से देखा जाए तो हम पाएंगे कि इस वर्तमान शिक्षा प्रणाली में पढ़कर महाविद्यालय तथा विश्वविद्यालय में जाने वाले छात्रों की संख्या 25% भी नहीं होती है।
माध्यमिक शिक्षा के तुरंत बाद वेद रोजी-रोटी कमाने की सोचते हैं इसलिए इस समस्या से छुटकारा पाने के लिए शिक्षा कार्यक्रम को व्यवसायिक स्वरूप देकर इस दिशा में कुछ प्रशिक्षण जरूर दिया जाना चाहिए।
Vigyaapan
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