शिक्षण सूत्र क्या है? विभिन्न प्रकार के 11 शिक्षण

शिक्षण सूत्र में अच्छा शिक्षक सदैव अपने ज्ञान तथा अनुभवों की व्याख्या छात्रों के मस्तिष्क तक पहुँचाने में सफल होता है। छात्रों को उनकी रुचि एवं जिज्ञासा के अनुकूल, विषय-वस्तु का ज्ञान प्रदान करना, ज्ञान को स्पष्ट रूप से समझाना तथा ऐसी कक्षा-परिस्थितियाँ एवं कक्षा वातावरण तैयार करना, जिसमें छात्र अधिकतम अधिगम क्रियायें तथा अधिगम अनुभव प्राप्त कर सकें, एक सफल एवं प्रभावशाली शिक्षक के महत्त्वपूर्ण तथा आवश्यक कार्य हैं।

शिक्षण सूत्र

शिक्षण के क्षेत्र में विभिन्न खोजों के आधार पर समय-समय पर अनुभवी शिक्षकों, मनोवैज्ञानिकों तथा शिक्षाशास्त्रियों ने अपने-अपने अनुभवों तथा निर्णयों को सूत्र रूप में प्रस्तुत किया है। इन्हीं सूत्र रूप में दिये गये अनुभवों तथा निर्णयों को शिक्षण-सूत्र कहा गया। इनके प्रयोग करके शिक्षण-अधिगम प्रक्रिया अधिक प्रभावशाली तथा वैज्ञानिक बन जाती है।

ये शिक्षण सूत्र अधिगम की प्रत्येक परिस्थिति में उपादेय सिद्ध होते हैं। कुछ प्रमुख शिक्षण सूत्र आगे दिये जा रहे हैं। ये सूत्र सार्वभौमिक रूप से स्वीकृत तथा विश्वसनीय माने जाते हैं। रेमाण्ट के अनुसार, “शिक्षण सूत्र पथ प्रदर्शन करते हैं, जिसमें सिद्धान्त से व्यवहार में सहायता के लिये अपेक्षा की जाती है।”

शिक्षण के विभिन्न सूत्र

शिक्षण अधिगम प्रक्रिया में विभिन्न शिक्षण सूत्र का प्रयोग किया जाता है। शिक्षण अधिगम प्रक्रिया में प्रयुक्त होने वाले प्रमुख शिक्षण सूत्र निम्नलिखित हैं-

  1. ज्ञात से अज्ञात की ओर
  2. सरल से जटिल की ओर
  3. अनिश्चित से निश्चित की ओर
  4. अनुभूत से युक्तियुक्त की ओर
  5. मूर्त से अमूर्त की ओर
  6. विश्लेषण से संश्लेषण की ओर
  7. प्रत्यक्ष से अप्रत्यक्ष की ओर
  8. विशिष्ट से सामान्य की ओर
  9. मनोवैज्ञानिक से तार्किक या तर्कात्मक क्रम की ओर
  10. आगमन से निगमन की ओर
  11. पूर्ण से अंश की ओर

1. ज्ञात से अज्ञात की ओर

यह सूत्र हमें बताता है कि जो छात्रों को ज्ञात है, छात्रों को जानकारी है अथवा छात्रों का पूर्व ज्ञान है, उसी के आधार पर नवीन ज्ञान प्रदान करना चाहिये। दूसरे शब्दों में छात्रों को पहले वे बातें बतानी चाहिये जो छात्रों को ज्ञात हैं। फिर इनका सम्बन्ध नवीन (अज्ञात) ज्ञान से करना चाहिये। इस प्रकार पढ़ाने से छात्र सरलता से अज्ञात या नया ज्ञान प्राप्त कर लेते हैं। एक अच्छा शिक्षक सदैव छात्रों के पूर्व ज्ञान पर नवीन ज्ञान आधारित करके पढ़ाता है।

2. सरल से जटिल की ओर

पाठ्य सामग्री को संगठित करते समय शिक्षक को चाहिये कि वे सरल प्रत्यय छात्र को पहले बतायें और क्रमानुसार कठिन या जटिल प्रत्ययों को उनके बाद जब छात्र सरल प्रत्यय सीख लेते हैं, तो बाद में कठिन प्रत्यय भी समझ जाते हैं। इस प्रकार से छात्रों की रुचि शिक्षण प्रक्रिया में बनी रहती है।

3. अनिश्चित से निश्चित की ओर

शिक्षण सूत्र के प्रारम्भ में छात्रों के विचारों में अस्पष्टता तथा अनिश्चितता होती है। धीरे-धीरे उनमें परिपक्वता आती है, नये-नये अनुभव मिलते हैं और वे स्पष्ट तथा निश्चित विचारों को स्वीकारने लगते हैं। एक अच्छा शिक्षक छात्रों की धुंधली तथा अनिश्चित धारणाओं तथा विचारों को निश्चयात्मकता प्रदान करता है।

4. अनुभूत से युक्तियुक्त की ओर

शिक्षण सूत्र के शिक्षण-अधिगम प्रक्रिया का प्रारम्भ अनुभूत ठोस अनुभवों से किया जाना चाहिये क्योंकि ‘ठोस अनुभूत सत्यों की अनुभूति के बाद ही युक्तियुक्त चिन्तन आता है। शिक्षकों को छात्रों के समक्ष पहले प्रत्यक्ष अनुभव तथा उदाहरण प्रस्तुत करने चाहिये, फिर उसे छात्रों के इन प्रत्यक्ष अनुभवों तथा उदाहरणों को तर्कयुक्त बनाने का प्रयास करना चाहिये।

5. मूर्त से अमूर्त की ओर

छात्र पहले मूर्त (स्थूल) वस्तुओं से परिचित होता है, उनके बारे में जानता है फिर इसके बाद वह इनसे सम्बन्धित सूक्ष्म (अमूर्त) विचारों को ग्रहण करता है। मूर्त तथ्य सरल, वस्तुनिष्ठ तथा बोधगम्य होते हैं। जबकि अमूर्त तथ्य काल्पनिक, कठिन, जटिल व भ्रामक होते हैं। अतः शिक्षा शुरू करते समय छात्रों को पहले सरल तथा मूर्त व स्थूल पदार्थों के विषय में ज्ञान देना चाहिये, बाद में उन्हें अमूर्त या सूक्ष्म तथ्यों के विषय में जानकारी।

6. विश्लेषण से संश्लेषण की ओर

किसी भी समस्या का विश्लेषण करने से ही छात्रों की समस्या के बारे में स्पष्ट तथा निश्चित ज्ञान प्राप्त होता है। विश्लेषण से प्राप्त सूचनाओं को जोड़कर समग्र रूप से समझना, संश्लेषण का उपयोग करना है। एक अच्छा शिक्षक पहले छात्रों को विचारों का विश्लेषण करके ज्ञान प्रदान करता है, फिर संश्लेषण के द्वारा उस ज्ञान को स्थायित्व प्रदान करता है। विश्लेषण व संश्लेषण दोनों एक-दूसरे के पूरक हैं। ये दोनों ही छात्रों को स्पष्ट तथा निश्चित तथा सुव्यवस्थित ज्ञान देने में सहायक हैं।

7. प्रत्यक्ष से अप्रत्यक्ष की ओर

एक अच्छा शिक्षक सदैव छात्रों को पहले उन वस्तुओं का ज्ञान प्रदान करता है जो उनके सामने प्रत्यक्ष रूप से उपस्थित होती हैं। तत्पश्चात् वह उन चीजों के विषय में ज्ञान प्रदान करता है, जो उनके सामने मौजूद नहीं हैं या जिन्हें वह देख नहीं सकता। दूसरे शब्दों में छात्रों को पहले वर्तमान का ज्ञान दिया जाना चाहिए बाद में भूत भविष्य का।

8. विशिष्ट से सामान्य की ओर

शिक्षण सूत्र का अभिप्राय है कि पहले छात्रों के सामने विशिष्ट उदाहरण प्रस्तुत किये जायें और बाद में उन्हीं उदाहरणों/दृष्टान्तों के माध्यम से सामान्य सिद्धान्त या सामान्य नियम निकलवाये जायें। एक अच्छा शिक्षक पहले विशिष्ट तथ्य, उदाहरण, दृष्टान्त छात्रों के समक्ष प्रस्तुत करता है और फिर उनके आधार पर छात्रों को सामान्य नियम या सिद्धान्त तक पहुँचने के लिये प्रोत्साहित करता है।

शैक्षिक तकनीकीशैक्षिक तकनीकी के उपागमशैक्षिक तकनीकी के रूप
व्यवहार तकनीकीअनुदेशन तकनीकीकंप्यूटर सहायक अनुदेशन
ई लर्निंगशिक्षण अर्थ विशेषताएँशिक्षण के स्तर
स्मृति स्तर शिक्षणबोध स्तर शिक्षणचिंतन स्तर शिक्षण
शिक्षण के सिद्धान्तशिक्षण सूत्रशिक्षण नीतियाँ
व्याख्यान नीतिप्रदर्शन नीतिवाद विवाद विधि
श्रव्य दृश्य सामग्रीअनुरूपित शिक्षण विशेषताएँसूचना सम्प्रेषण तकनीकी महत्व
जनसंचारश्यामपट

9. मनोवैज्ञानिक से तार्किक या तर्कात्मक क्रम की ओर

शिक्षण प्रक्रिया मनोवैज्ञानिक सिद्धान्तों के आधार पर दी जाती है। बालक की रुचि, योग्यताओं, जिज्ञासा, आवश्यकता व परिपक्वता के अनुसार पाठ्यक्रम, शिक्षण विधियों व शिक्षण सहायक सामग्री का प्रयोग किया जाना चाहिये। तर्कात्मक विधि के अनुसार ज्ञान / पाठ को तर्कसम्मत ढंग से विभिन्न वर्गों में विभाजित किया जाता है और एक-एक करके छात्रों के समक्ष प्रस्तुत किया जाता है। शिक्षक को चाहिये कि वह पहले मनोवैज्ञानिक ढंग से शिक्षण आयोजित करे और फिर धीरे-धीरे उनके मानसिक विकास के अनुकूल ज्ञान को तर्कसम्मत क्रमानुसार शिक्षण को लेकर चले ।

10. आगमन से निगमन की ओर

आगमन विधि में प्रारम्भ में छात्रों के समक्ष उदाहरण प्रस्तुत किये जाते हैं और फिर नियमों को निकाला जाता है, जबकि निगमन में इसके विपरीत पहले नियम प्रस्तुत किये जाते हैं, बाद में उदाहरणों की सहायता से उन नियमों (नियम) की सत्यता परखी जाती है। आगमन नये ज्ञान की खोज में सहायक होता है जबकि निगमन इन खोजों के फलस्वरूप प्राप्त होता है। एक उत्तम शिक्षक अपना शिक्षण आगमन से प्रारम्भ करता है और निगमन पर समाप्त करता है।

11. पूर्ण से अंश की ओर

इस सूत्र के अनुसार शिक्षण में पहले विषय-वस्तु को पूर्ण (समग्र) रूप में छात्रों के सामने रखा जाये और फिर धीरे-धीरे उसके विभिन्न भागों के विषय में ज्ञान दिया जाये तो छात्र ज्यादा प्रभावशाली ढंग से सीखते हैं। पूर्ण का परिमाण छात्र के ज्ञान की वृद्धि के साथ-साथ बढ़ता चला जाता है। उदाहरणार्थ छात्र को पहले छोटी-छोटी कवितायें ‘पूर्ण’ रूप में याद कराई जाती हैं। बाद में एक-एक लाइन का धीरे-धीरे उनका अर्थ स्पष्ट किया जाता है। पहले ‘कम्प्यूटर’ का पूर्ण आइडिया (विचार) देता है फिर उसके विभिन्न अवयवों पर प्रकाश डालता है।

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