शिक्षण प्रतिमान आंगला भाषा की टीचिंग मॉडल का पर्यायवाची है। किसी रूपरेखा अथवा उद्देश्य के अनुसार व्यवहार को डालने की प्रक्रिया प्रतिमान कहलाती है। इस प्रकार प्रतिमान का अर्थ किसी अमुक उद्देश्य के अनुसार व्यवहार में परिवर्तन लाने की प्रक्रिया है। शिक्षण के प्रत्येक प्रतिमान में शिक्षण की विशिष्ट रूप रेखा का विवरण होता है।
जिसके सिद्धांतों की पुष्टि प्राप्त किए हुए निष्कर्षों पर आधारित होती है। इस प्रकार शिक्षण प्रतिमान शिक्षण सिद्धांत के लिए उपकल्पना का कार्य करते हैं। इन्ही उपकल्पनाओं की जांच के पश्चात सिद्धांतों को प्रतिपादित किया जाता है।
शिक्षण प्रतिमान
शिक्षण प्रतिमान वह विस्तृत रूपरेखा है जिसमें उसके पाठ्यक्रम स्रोत शिक्षण तथा अधिगम को प्रभावशाली ढंग से वर्णित किया जाता है। अतः शिक्षण प्रतिमान में उसके पाठ्यक्रम स्रोत शिक्षण तथा अधिगम को कलात्मक एवं विस्तृत रूप प्रदान किया जाता है।
शिक्षण प्रतिमान के संबंध में विचार करने तथा सोचने की एक रीति है जिसमें उसको निश्चित तथ्यों को संगठित / तथा तर्कसंगत व्याख्या के रूप में प्रस्तुत किया जाता है।
हाईमैन के अनुसार
शिक्षण प्रतिमान अनुदेशन की रूपरेखा माने जाते हैं इसमें विशेष लक्ष्य प्राप्ति हेतु परिस्थितियों का प्रयोग किया जाता है जिसमें छात्रा अंतः क्रिया इस रूप में होती है कि छात्रा के व्यवहार में वांछित परिवर्तन लाया जा सके।
पी आर जोयस के अनुसार
उपर्युक्त से स्पष्ट है कि शिक्षण प्रतिमान शिक्षण प्रक्रिया से पूर्व निर्धारित उद्देश्यों की प्राप्ति हेतु शिक्षण द्वारा संपादित विभिन्न क्रियाओं विधियों एवं विधियों युक्त एक गतिशील एवं सुनियोजित बहुमुखी प्रक्रिया है। इस प्रक्रिया में इस प्रकार का प्रेरक पर्यावरण विकसित किया जाता है। जिसके प्रतिक्रिया कर वांछित व्यवहार परिवर्तन की ओर अग्रसर होता है। शिक्षण प्रतिमान में निम्न क्रियाएं निहीत होती हैं-
- सीखने की निष्पत्ति को व्यवहारिक रूप देना
- छात्र तथा शैक्षिक वातावरण में अंतर प्रक्रिया परिस्थितियों के लिए युक्तियों का विशिष्टीकरण करना
- ऐसे मानदंड व्यवहार का निर्धारण करना जिनमें विद्यार्थियों की निष्पत्ति को देखा जा सके।
- छात्रों के अपेक्षित व्यवहार परिवर्तन के अभाव में नीतियों तथा युक्तियों में सुधार करना।
- उन परिस्थितियों का विशेषीकरण करना जिसमें छात्रों की अनु क्रियाओं को देखा जा सके।
- उद्दीपन का इस प्रकार चयन करना कि छात्र वांछित अनुक्रिया कर सके।






शिक्षण प्रतिमान के प्रकार
शिक्षण प्रतिमान परिवार को मुख्य चार परिवारों में वर्गीकृत किया गया है –
- सामाजिक परिवार
- सूचना प्रक्रिया परिवार
- व्यक्तिगत परिवार
- व्यावहारिक व्यवस्था परिवार
उपरोक्त परिवारों के आधार पर ही जायज एवं वील ने शिक्षण प्रतिमानों को वर्गीकृत किया है, जिन्हें आधुनिक शिक्षण प्रतिमान कहा जाता है इनका विवरण निम्न है-
सामाजिक अंत:क्रिया शिक्षण प्रतिमान
सामाजिक अंत:क्रिया शिक्षण प्रतिमान में मनुष्य के सामाजिक पक्ष के दृष्टिगत सामाजिक विकास पर विशेष ध्यान दिया जाता है। मानव अपने सामाजिक संबंधों पर अधिक बल देता है। इसीलिए इसका अध्ययन उस शिक्षण प्रतिमान में किया जाता है। जिसमें संबंधित प्रजातांत्रिक व्यवहार को उत्पन्न करने सामाजिक जीवन दोनों में वृद्धि करने में नागरिकों को तैयार किया जा सके।
सूचना प्रक्रिया शिक्षण प्रतिमान
सूचना प्रक्रिया शिक्षण प्रतिमान में मानव प्राणियों के जन्मजात से संबंधित व्रतियों पर बल दिया जाता है। इसमें इसके आंकड़ों को प्राप्त करने कथा व्यवस्थित करने समस्याओं की भावना समझने और समाधान खोजने का प्रयास किया जाता है। इसलिए प्रतिमान सृजनात्मक चिंतन उत्पन्न करते हैं। इस शिक्षण प्रतिमान के निम्नलिखित 6 प्रकार हैं।
- वैज्ञानिक पूछताछ प्रशिक्षण प्रतिमान
- संप्रत्यय उपलब्धि शिक्षण प्रतिमान
- अग्रिम संगठन शिक्षण प्रतिमान
- आगमन शिक्षण प्रतिमान
- जैविक विज्ञान पूछताछ शिक्षण प्रतिमान
- विकासात्मक शिक्षण प्रतिमान
व्यक्तिगत शिक्षण प्रतिमान
व्यक्तिगत शिक्षण प्रतिमान में व्यक्तिगत विकास को विशेष महत्व दिया जाता है जिससे वह स्वयं के विषय में समझ सकें अपनी शिक्षा के उत्तरदायित्व ले सकें और अपने विकास से आगे बढ़ने के लिए सीख सकें और उच्च स्तरीय जीवन यापन के लिए अपनी खोज में अधिक संवेदनशील और अधिक रचनात्मक हो सके।
व्यवहार परिवर्तन शिक्षण प्रतिमान
व्यवहार परिवर्तन शिक्षण प्रतिमान किसी के व्यवहार में परिवर्तन करने पर बल देते हैं जिसमें व्यवहारों कार्यों एवं विधियों का विशेष रूप से ध्यान केंद्रित किया जाता है।






विकासात्मक शिक्षण प्रतिमान
इस प्रतिमान का प्रतिपादन जीन पियाजे ने बालकों के संज्ञात्मक वृद्धि के लिए विकास क्रम के अध्ययन के आधार पर किया गया। इसमें छात्रों की मानसिक क्षमता तथा तार्किक चिंतन की क्षमताओं के विकास पर महत्व दिया जाता है। इस कारण छात्रों में इस प्रतिमान से सामाजिक योग्यताओं व ज्ञानात्मक वृद्धि का विकास होता है। इस विकास में शिक्षक इनकी सहायता करता है।
विकासात्मक शिक्षण प्रतिमान के प्रमुख तत्व
इस प्रतिमान के प्रमुख तत्व निम्न है।
- केंद्र बिंदु
- संरचना
- सामाजिक व्यवस्था
- सहायक व्यवस्था
- उपयोग
केंद्र बिंदु
इस प्रतिमान का मुख्य केंद्र बिंदु छात्रों की सामान्य मानसिक योग्यताओं का विकास करना होता है।
संरचना
इस प्रतिमान में दो अवस्थाएं निम्न है-
- इसमें अध्यापक कक्षा में ऐसा वातावरण प्रस्तुत करते हैं जिसमें तार्किक चिंतन की आवश्यकता नहीं होती।
- इसमें शिक्षक छात्रों को आवश्यक निर्देश तथा उनको सहायता प्रदान करता है जिससे भी विषय को आत्मचिंतन कर सके।
सामाजिक व्यवस्था
इसमें संरचना उच्च स्तर से साधारण स्तर तक ही हो सकती है। इसमें छात्र एवं शिक्षक के मध्य अंत: क्रिया होती है। इसमें छात्रों के समक्ष ऐसा वातावरण प्रस्तुत होता है जिससे छात्रों को प्रेरणा मिलती है। यह वातावरण स्वतंत्र एवं खुले बौद्धिक विचारों वाला तथा सामाजिक होता है जिसमें शिक्षक विभिन्न प्रकार की सूचनाओं को एकत्रित करने हेतु रास्ता दिखाता है।
सहायक व्यवस्था
इस प्रतिमान में शिक्षक अधिगम के लिए एक वातावरण प्रदान करता है। इसमें छात्रों के मानसिक स्तर के अनुरूप चुनौतीपूर्ण समस्या प्रस्तुत करता है। समस्या के समाधान के लिए सहायक संसाधन उपलब्ध कराता है। इस प्रकार शिक्षक मार्गदर्शक एक परामर्शदाता के रूप में कार्य करता है।
उपयोग
यह तार्किक एवं बौद्धिक चिंतन का विकास करने में सहायक होता है या छात्रों में ज्ञानात्मक एवं सामाजिक व्यवस्थाओं के विकास के लिए प्रस्तुत किया जा सकता है। जिससे उनकी ज्ञानात्मक वृद्धि होती है। इनका प्रयोग उन समस्त विषयों में किया जा सकता है। जिनमें किसी प्रकार की समस्या उत्पन्न हो सके।
वैज्ञानिक पूछताछ प्रतिमान
यह प्रतिमान वैज्ञानिक विधि पर आधारित है जो विद्यार्थियों को उसके विद्वता पूर्ण पूछताछ के लिए प्रशिक्षित करता है। इसमें विद्यार्थियों को पूछताछ की पूर्ण स्वतंत्रता प्रदान की जाती है, जिससे वे अनुशासित ढंग से प्रश्न पूछने के लिए प्रेरित होते हैं। इस प्रकार की पूछताछ से विद्यार्थी विषय संबंधी नए आयामों की खोज करते हैं जिससे विद्यार्थियों को संतुष्टि होती है और इससे इनकी जिज्ञासा में आनंद का अनुभव करते हैं।
वैज्ञानिक पूछताछ प्रतिमान के प्रमुख तत्व
इस प्रतिमान के प्रमुख तत्व निम्नलिखित हैं –
- लक्ष्य
- संरचना
- सामाजिक प्रणाली
- सहायक प्रणाली
- उपयोग
लक्ष्य
इस प्रतिमान का लक्ष्य छात्रों में खोज एवं आंकड़े के विश्लेषण में दक्षता एवं कौशल विकसित होता है। जिससे वे स्वयं घटनाओं की व्याख्या कर सके तथा उनमें विभिन्न तत्वों के पारस्परिक संबंध हो सके एवं सत्यता का पता लगा सके।
संरचना
इस प्रतिमान की संरचना की निम्नलिखित 5 अवस्थाएं हैं
- समस्या का प्रस्तुतीकरण – इसमें शिक्षक के निर्देशन में विद्यार्थी समस्या का चयन करते हैं।
- समस्या संबंधी प्रयोग करना – समस्या से संबंधित सूचना प्राप्त करने के लिए विद्यार्थी ऐसा प्रश्न पूछता है, जिनका उत्तर शिक्षक केवल हां या ना में देता है इसी प्रकार विद्यार्थियों की पूछताछ उस समय तक चलती रहती है, जब तक विद्यार्थी प्रस्तुत घटना से समस्या से स्पष्टीकरण पर नहीं पहुंच जाते।
- छात्रों एवं शिक्षकों के समस्या समाधान के लिए प्रयास – इसमें विद्यार्थी किसी भी वस्तु या उससे संबंधित प्रत्यक्ष परीक्षण कर के नेतृत्व से परिचित होने के लिए उन तत्वों का संकलन करते हैं इसके बाद वे परिकल्पना ओं का निर्माण करते हैं तथा उनके आधार पर कारण प्रभाव संबंधों की परीक्षा करते हैं।
- सूचनाओं का संगठन – इसमें सूचनाओं व आंकड़े एकत्रित करके संगठित किया जाता है शिक्षक छात्रों को एकत्रित कर आंकड़ों से परिणाम निकल जाता है और परिणामों की व्याख्या करता है।
- पूछताछ प्रक्रिया का विश्लेषण – इसमें विद्यार्थियों को उसकी पूछताछ प्रक्रिया का विश्लेषण करने के लिए कहा जाता है शिक्षक इस प्रक्रिया का मूल्यांकन करता है और एक सही निर्णय लेता है जिससे वह निष्कर्ष पर पहुंचने का प्रयास करता है।
सामाजिक प्रणाली
शिक्षक इस प्रतिमान में छात्रों को पूछताछ के लिए प्रेरित करता है तथा उस उनको सही दिशा प्रदान करता है। इस प्रतिमान में शिक्षक तथा छात्र दोनों की भूमिका महत्वपूर्ण है। शिक्षक छात्रों के मध्य सहयोग का उचित वातावरण होता है।
सहायक प्रणाली
इस प्रतिमान में छात्र समस्या समाधान के माध्यम से अपना कार्य कितने और किस सीमा तक प्रभावशाली ढंग से करता है।
उपयोग
इस प्रतिमान में शिक्षक भौतिक विज्ञान शिक्षण हेतु किया गया था परंतु इस प्रतिमान का प्रयोग अन्य विषयों के लिए भी किया जाने लगा है।