शिक्षण नीतियाँ दो शब्दों से मिलकर बना है-शिक्षण + नीतियाँ। शिक्षण एक अन्तक्रियात्मक प्रक्रिया है जो कक्षागत परिस्थितियों में वांछित उद्देश्यों को प्राप्त करने के लिए छात्र और शिक्षकों के द्वारा सम्पन्न की जाती है। नीतियाँ योजना, नीति, चतुराई तथा कौशल की ओर संकेत करती हैं। कौलिन इंगलिश जैम शब्दकोष के अनुसार नीति का अर्थ युद्ध कला तथा युद्ध कौशल है।
इसको अधिकतर युद्ध में सेना को उचित स्थान (मोर्चे) पर खड़े करने की तथा लड़ने की कला के सन्दर्भ में प्रयोग किया जाता है। युद्ध विज्ञान की ‘नीति’ शब्द को शैक्षिक तकनीकी में लिया गया है। यहाँ पर नीतियों से अभिप्रायः ऐसी कौशलपूर्ण व्यवस्था से है, जिन्हें कक्षागत परिस्थितियों में शिक्षक अपने उद्देश्यों को प्राप्त करने के लिए तथा छात्रों के व्यवहारों में वांछित परिवर्तन लाने के लिए करता है।
शिक्षण नीतियाँ परिभाषाएँ
शिक्षण नीतियों की विभिन्न विद्वानों ने निम्न प्रकार से परिभाषायें दी हैं-
शिक्षण नीति पाठ की एक सामान्यीकृत योजना है, जिसमें वांछित व्यवहार परिवर्तन की संरचना अनुदेशन के उद्देश्यों के रूप में सम्मिलित होती है साथ ही इसमें युक्तियों की योजनाएँ भी तैयार की जाती हैं।
स्टोन्स तथा मॉरिस
शिक्षण नीतियाँ वे योजनाएँ होती हैं जिसमें शिक्षण के उद्देश्यों, छात्रों के व्यवहार परिवर्तन, पाठ्य-वस्तु, कार्य-विश्लेषण अधिगम अनुभव तथा छात्रों की पृष्ठभूमि आदि को विशेष महत्त्व दिया जाता है।
स्ट्रेसर
शिक्षण प्रारम्भ करने से पूर्व ही शिक्षक कक्षा के लिए प्रयोग हेतु उपयुक्त शिक्षण नीतियों का चयन कर लेता है। शिक्षण नीतियों में अनेक कारक होते हैं जो सम्मिलित रूप से शिक्षण प्रक्रिया को सशक्त बनाने का प्रयास करते हैं और शिक्षण की प्रभावशीलता बढ़ाते हैं।






शिक्षण नीतियाँ विशेषताएँ
शिक्षण नीतियों की निम्न विशेषताएँ हैं-
- ये शिक्षण कार्यों के किसी प्रतिमान की ओर संकेत करती हैं।
- शिक्षण नीतियाँ शैक्षिक उद्देश्यों की प्राप्ति में सहायक होती हैं।
- ये व्यवहार परिवर्तन के क्षेत्र में महत्त्वपूर्ण कार्य करती हैं।
- ये कार्य विश्लेषण और उसकी संरचना में महत्त्वपूर्ण हैं।
- ये शिक्षक की कार्य निष्ठा बढ़ाती हैं और उसकी शिक्षण कुशलता में वृद्धि करती हैं।
- ये शिक्षण प्रक्रिया को उन्नत तथा वैज्ञानिक आधार प्रदान करती हैं।
- इनके माध्यम से बुद्धि, अध्यवसाय, स्पष्ट चिन्तन तथा कार्यशालाओं के प्रत्यय का विकास होता है।
- शिक्षण नीतियों में शिक्षा दर्शन अधिगम सिद्धान्त, पृष्ठपोषण आदि तत्त्व निहित रहते हैं।
- ये शिक्षण प्रक्रिया को क्रमबद्ध तथा सार्थक बनाती हैं।
शिक्षण विधियाँ
शिक्षण नीतियाँ तथा शिक्षण विधियाँ, दोनों के अपने विशिष्ट क्षेत्र तथा अर्थ हैं। भ्रमवश बहुत से लोग इन्हें एक-दूसरे के पर्याय शब्द मान लेते हैं। शिक्षण विधि में ‘पाठ्य-वस्तु’ महत्त्वपूर्ण होती है। जैसी पाठ्य-वस्तु की प्रकृति होती है उसी प्रकार की शिक्षण विधि का चयन किया जाता है। दूसरे शब्दों में पाठ्य-वस्तु के प्रस्तुतीकरण की शैली को शिक्षण विधि कहा जाता है।
विधि अंग्रेजी भाषा के Method शब्द का पर्याय है। Method शब्द लैटिन भाषा से लिया गया है जिसका अर्थ है Mode या way रास्ता या अथवा माध्यम। प्रो. एन. वैद्य (N. Vaidya) विधियों का सीमांकन करते हुए लिखा है-
एक शिक्षक के लिए आवश्यक है कि उसे शिक्षण विधियों का ज्ञान हो ताकि वह आवश्यकता और परिस्थितियों के अनुसार किसी भी उपर्युक्त विधि का प्रयोग कर अपने शिक्षण कार्य को सुचारु रूप से चला सके। शिक्षण विधियाँ शिक्षक का मार्ग-दर्शन करती हैं कि वह अपने छात्रों को किस प्रकार से शिक्षा प्रदान करें। यह सत्य है कि जिस प्रकार से सही रास्ते के अभाव में एक व्यक्ति अपने निर्दिष्ट स्थान पर नहीं पहुँच सकता, उसी प्रकार बिना उचित विधि के उपयोग के छात्रों को सही ज्ञान नहीं दिया जा सकता।
शिक्षण नीतियाँ वर्गीकरण
कक्षा के वातावरण, कक्षा की परिस्थितियाँ तथा शिक्षक के दृष्टिकोणों के आधार पर शिक्षण नीतियों को प्रमुख रूप से दो वर्गों में विभाजित किया जा सकता है-
- जनतान्त्रिक शिक्षण नीतियाँ।
- प्रभुत्ववादी शिक्षण नीतियाँ।
जनतान्त्रिक शिक्षण नीतियाँ
जनतान्त्रिक शिक्षण नीतियाँ जनतन्त्र के मूल्यों पर आधारित रहती हैं ये नीतियाँ बाल मनोविज्ञान का प्रयोग कर शिक्षण को बाल- केन्द्रित बनाती हैं। इन नीतियों में प्रमुख स्थान बालकों या छात्रों को दिया जाता है। शिक्षक का स्थान गौण रहता है। इसमें शिक्षक छात्रों की आयु, परिपक्वता, मानसिक योग्यताओं, रुचि, सामर्थ्य तथा क्षमताओं आदि के आधार पर अपने शिक्षण कार्य की व्यवस्था करते हैं।
इसमें छात्र अपने विचारों को व्यक्त करने में स्वतन्त्र होते हैं। इस प्रकार की जनतान्त्रिक शिक्षण नीतियाँ छात्रों में स्वतन्त्र रूप से चिन्तन करने तथा उनकी कल्पना, तर्क, निर्माण तथा सृजन आदि क्षमताओं का विकास करने में महत्त्वपूर्ण कार्य करती हैं। छात्र स्मृति स्तर से प्रारम्भ कर अपने ज्ञान को चिन्तन स्तर तक ले जाकर समस्याओं के समाधान में सफलता प्रदान करते हैं।
यह नीति छात्रों में सामाजिक विकास करती है और उन्हें ज्ञानात्मक, भावात्मक तथा गत्यात्मक उद्देश्यों की प्राप्ति में सहायता देती है। इस प्रकार की नीतियों में प्रमुख नीतियाँ हैं-वाद-विवाद, अन्वेषण, समीक्षा, योजना पद्धति, गृहकार्य, मस्तिष्क हलचल, स्वतन्त्र अध्ययन, अभिनय, संवेदनशील प्रशिक्षण आदि ।
प्रभुत्ववादी शिक्षण नीतियाँ
प्रभुत्ववादी शिक्षण नीतियाँ प्रभुत्ववाद या निरंकुशवाद के मूल्यों पर आधारित रहती हैं। इन नीतियों में शिक्षक अधिक सक्रिय रहता है और छात्र निष्क्रिय बैठे रहते हैं। ये नीतियाँ शिक्षक प्रधान होती हैं। इसमें छात्र शिक्षक की प्रत्येक बात, विचार तथा दर्शन बिना किसी तर्क के स्वीकार कर लेते हैं। शिक्षक स्वयं पाठ्य वस्तु का निर्धारण अपने आदर्शों तथा रुचियों के आधार पर करता है।
छात्रों की आवश्यकताओं और उनकी मनोवैज्ञानिक पृष्ठभूमि का बिल्कुल भी ध्यान नहीं रखता। यह शिक्षण स्मृति स्तर पर ही होता है और इनके माध्यम से केवल ज्ञानात्मक उद्देश्यों की प्राप्ति सरलता से होती है। इन नीतियों के प्रयोग कक्षा का वातावरण पूर्णतः औपचारिक रूप ग्रहण कर लेता है। प्रभुत्ववादी शिक्षण नीतियों में प्रमुख नीतियाँ हैं – व्याख्यान, पाठ प्रदर्शन, ट्यूटोरियल, अभिक्रमित अनुदेशन आदि ।






विभिन्न प्रकार की शिक्षण नीतियाँ
कुछ महत्त्वपूर्ण शिक्षण नीतियाँ जिनका विवरण दिया गया है। इन नीतियों का प्रयोग शिक्षण को अधिक प्रभावशाली बनाने के लिए सावधानीपूर्वक शिक्षक को करना चाहिये।
- व्याख्यान नीति
- प्रदर्शन नीति
- मस्तिष्क उद्वेलन व्यूह रचना
- समस्या समाधान विधि
- व्याख्यान विधि
- वाद विवाद विधि
- योजना विधि
- विवरण विधि