शिक्षण कौशल परिभाषा विशेषताएं व 14 शिक्षण कौशल

शिक्षण कौशल – शिक्षण की प्रक्रिया में शिक्षक एक मदारी की भाँति क्रियाकलाप कर अपने पाठ को अधिगम कराने का प्रयास करता है साथ ही अपनी कला के कलात्मक पक्ष के निरन्तर विकास हेतु विभिन्न क्रियाओं अर्थात् शिक्षण कौशलों में सुधार हेतु प्रयास करता है। प्रभावशाली शिक्षण का विकास तभी होता है जब शिक्षण के विभिन्न स्तरों का विकास कौशलात्मक रूप से किया गया हो। इसी के निमित्त यह आवश्यक हो जाता है कि शिक्षक के शिक्षण को प्रभावी बनाने के लिए उससे सम्बन्धित क्रियाओं अर्थात् कौशलों के बारे में प्रशिक्षण स्तर पर ही बताया जाये जिससे वे शिक्षण कौशलों को पहचान कर पाठ के विकास में प्राथमिकता दे सकें।

सेमिनार, शिक्षण कौशल

शिक्षण कौशल

शिक्षण की प्रभावशीलता और विश्लेषण के सापेल विभिन्न विद्वानों ने शिक्षण कौशल को परिभाषित किया है-

शिक्षण-कौशल वह विशिष्ट अनुदेशन प्रक्रिया है जिसे अध्यापक अपनी कक्षा-शिक्षण में प्रयोग करता है। यह शिक्षण क्रम की विभिन्न क्रियाओं से सम्बन्धित होता है जिन्हें शिक्षक अपनी कक्षा अन्तःक्रिया में लगातार उपयोग करता है।

एन.एल. गेज

शिक्षण-कौशल छात्रों के सीखने के लिए सुगमता प्रदान करना के विचार से सम्पन्न की गई सम्बन्धित शिक्षण क्रियाओं या व्यवहारों का समूह है।

बी. के. पासी

शिक्षण-कौशल शिक्षक के हाथ में वह शस्त्र है जिसका प्रयोग करके शिक्षक अपने कक्षा शिक्षण को प्रभावशाली तथा सक्रिय बनाता है तथा कक्षा की अन्तः प्रक्रिया में सुधार लाने का प्रयास करता है।

डॉ. एस. पी. कुलश्रेष्ठ
सेमिनार के उद्देश्य

शिक्षण कौशल की विशेषताएं

उक्त परिभाषाओं के आधार पर शिक्षण-कौशल की निम्न विशेषताएं हैं –

  1. यह शिक्षण प्रक्रिया को प्रभावपूर्ण बनाने में सहायक है।
  2. शिक्षण प्रक्रियाओं अथवा व्यवहारों से शिक्षण कौशल सम्बन्धित होते हैं।
  3. यह छात्रों के अधिगम में सहायता एवं सुगमता प्रदान करते हैं।
  4. ये विशिष्ट शैक्षिक उद्देश्यों के प्राप्त करने में सहायक हैं।
  5. शिक्षण कौशलों से समस्त अन्तःक्रिया को सक्रिय किया जा सकता है।
  6. यह कक्षा शिक्षण व्यवहार की इकाई से सम्बन्धित होते हैं।

शिक्षण के निहित विभिन्न शिक्षण कौशल

यह शिक्षक प्रशिक्षण में विभिन्न विषयों से सम्बन्धित विभिन्न शिक्षण कोशलों का प्रयोग किया जाता है। इस हेतु समस्त विषयों के शिक्षण कौशलों की पहचान सर्वप्रथम एलेन तथा रावन (1969) ने की। इन्होंने 14 शिक्षण-कौशलों का उल्लेख किया है-

  1. उद्दीपन वैभिन्य ( Stimulus variation)
  2. प्रस्तावना या विन्यास प्रेरणा (Set Induction )
  3. समीपता (Closure)
  4. शिक्षक मीन एवं अशाब्दिक संकेत (Teacher silence and non-verbal clues)
  5. पुनर्बलन (Reinforcement)
  6. प्रश्न पूछने में प्रवाह (Fluency in asking questions)
  7. खोजपूर्ण प्रश्न (Probing questions )
  8. विकेन्द्री प्रश्न (Divergent questions)
  9. छात्र व्यवहार का ज्ञान ( Attending behaviours)
  10. स्पष्टीकरण एवं उदाहरणों का प्रयोग (Illustrating and use of examples)
  11. व्याख्यान (Lecturing)
  12. उच्चस्तरीय प्रश्न (Higher order questions)
  13. नियोजित पुनरावृत्ति (Planned repetition)
  14. सम्प्रेषण पूर्णता (Completeness of communications )
सेमिनार

भारतीय शिक्षा शास्त्री डॉ. बी. के पासी ने भारतीय शैक्षिक पर्यावरण को ध्यान में रखकर निम्न 13 शिक्षण कौशल प्रस्तुत किये-

  1. अनुदेशनात्मक उद्देश्यों को लिखना (Writing instructional objectives)
  2. पाठ-प्रस्तावना (Introduction of a lesson )
  3. प्रश्न पूछने में प्रवाहशीलता (Fluency in questioning)
  4. खोजपूर्ण प्रश्न (Probing questions)
  5. व्याख्या कौशल (Explaining)
  6. उदाहरण के साथ दृष्टान्त देना (Illustrating with examples)
  7. उद्दीपन परिवर्तन ( Stimulus Variation)
  8. मौन एवं अशाब्दिक अन्तःप्रक्रिया (Silence & Non-verbal clues)
  9. पुनर्बलन (Reinforcement)
  10. छात्रों की सहभागिता बढ़ाना (Increasing students participation)
  11. श्यामपटूट का प्रयोग (Use of Black board)
  12. समापन की प्राप्ति (Achieving closure)
  13. छात्र व्यवहार की पहचान (Attending behaviours )
व्याख्यान विधि के गुण, सेमिनार
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