शिक्षण के स्तर – 1. स्मृति स्तर 2. बोध स्तर 3. चिंतन स्तर

शिक्षण के स्तर – शिक्षण एक सदैव चलने वाली उद्देश्यपूर्ण प्रक्रिया है। औपचारिक रूप से शिक्षण प्राथमिक से लेकर उच्चस्तरीय शिक्षा तक चलता रहता है। शिक्षण का प्रारम्भ अर्थहीन से लेकर गहन अर्थ तक चलता रहता है। शिक्षण कक्षा में विभिन्न कार्यों को करने की एक व्यवस्था है जिसका मुख्य उद्देश्य छात्रों को सीखते रहने के लिये प्रेरित करते रहना है।

शिक्षण के उद्देश्य का स्पष्ट होना आवश्यक है जब ये उद्देश्य अत्यन्त स्पष्ट होंगे तभी शिक्षक प्रभावशाली शिक्षण करने में सफल हो सकता है। शिक्षण सदैव सीखने की गति को प्रभावित करता है। मौरिस एल. बिग्गी का यह मानना है कि औपचारिक कक्षा शिक्षण के दौरान शिक्षक जो भी कार्य अपने विद्यार्थियों के हितार्थ करता है उसे बौद्धिक शक्तियों के उपयोग की दृष्टि से कम से कम विचार युक्त या विचार- विहीन शिक्षण के स्तर से लेकर अति विचार युक्त स्तर तक आयोजित करने के प्रयास किये जा सकते हैं। सीखने में ‘संकेत’ अधिगम से ‘समस्या समाधान‘ तक की कार्यवाही सम्मिलित होती है।

शिक्षण के स्तर

शिक्षक द्वारा संपन्न शिक्षण कार्यों के आयोजन के लिये उपरोक्त दृष्टि से शिक्षण के स्तर तीन बनाये जा सकते हैं-

  1. स्मृति स्तर (Memory level)
  2. बोध स्तर (Understanding level)
  3. चिन्तन स्तर (Reflective level)

शिक्षण के इन तीनों स्तरों को बौद्धिकता के अनुसार तुलनात्मक दृष्टि निम्नलिखित रूप में प्रदर्शित कर सकते हैं-

स्मृति -> बोध स्तर -> चिंतन स्तर

स्मृति स्तरबोध स्तरचिन्तन स्तर
स्मृति स्तर का शिक्षण सबसे निम्न स्तर का होता है तथा इसमें विचार नगण्य मात्रा में होते हैं इसलिये इसे सबसे नीचे स्थान दिया गया है। बोध स्तर में अपेक्षाकृत अधिक विचारं विद्यमान होते हैं इसलिये इसे मध्य में रखा गया है। चिंतन स्तर सर्वाधिक विचारपूर्ण माना जाता है। इस स्तर पर शिक्षण अत्यधिक श्रेष्ठता को प्राप्त कर लेता है अतः इससे शीर्ष स्थान प्राप्त है।चिंतन स्तर पर शिक्षण व्यवस्था तभी हो सकती है जब बोध स्तर पर शिक्षण हो चुका हो। बोध स्तर का शिक्षण तभी किया जा सकता है जब स्मृति स्तर पर शिक्षण हो जाये। अतः हम कह सकते हैं कि शिक्षण निम्न स्तर से आरम्भ करके उच्च स्तर तक लाया जा सकता है। सीधे उच्चस्तरीय शिक्षण करना न तो व्यावहारिक है न ही उपयोगी।राजतन्त्रीय शासन व्यवस्था में स्मृति स्तर के शिक्षण को महत्व दिया जाता है। लोकतान्त्रिक व्यवस्था में बोध स्तर को महत्त्व दिया जाता है। चिन्तन स्तर के शिक्षण को निरपेक्ष शासन व्यवस्था में महत्वपूर्ण स्थान प्राप्त होता है। इन तीनों शिक्षण व्यवस्था स्तर को नीचे हम विस्तृत रूप में समझने का प्रयास करेंगे।
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