शाखा बैंकिंग

शाखा बैंकिंग प्रणाली व्यापारिक बैंकों का एक महत्वपूर्ण संगठन है। शाखा बैंकिंग प्रणाली लोगों में अधिक प्रिय हुई है। इसका स्पष्ट प्रमाण यह है कि आज के युग में विश्व के अनेक देश इसी व्यवस्था के आधार पर बैंकिंग सुविधाएँ प्रदान कर रहे हैं। वर्तमान में अधिकांश देश शाखा बैंकिंग प्रणाली को अपना रहे हैं। इस प्रणाली के अन्तर्गत एक बड़े बैंक भी देश के विभिन्न भागों में कई शाखाएँ बढ़ाती हैं। यह बैंकिंग प्रणाली कनाडा, आस्ट्रेलिया व भारत में अधिक लोकप्रिय हैं। बैंक द्वारा बड़े स्तर पर व्यापार किया जाता है।

शाखा बैंकिंग की विशेषताएं

शाखा बैंकिंग की शाखा बैंकिंग की प्रमुख विशेषताएँ निम्नलिखित हैं-

  1. केन्द्रीय बैंक शाखा बैंकिंग का प्रधान स्रोत होता है या कि केन्द्रीय बैंक ही इनका बैंक होता है जो ऋण प्रदान करता है।
  2. शाखा बैंकिंग में बैंक साख का निर्माण भी करती है।
  3. इस व्यवस्था में बैंक अपनी शाखाओं का विस्तार करने के लिये स्वतन्त्र है।
  4. शाखा बैंकिंग में वित्तीय व्यवस्था का आकलन शाखाओं के वित्तीय योग से किया जाता है।

शाखा बैंकिंग के गुण

शाखा बैंकिंग प्रणाली के प्रमुख गुण निम्नलिखित हैं-

  1. श्रम विभाजन एवं विशिष्टीकरण – व्यापक स्तर पर संचालित होने के कारण इस प्रणाली में श्रम विभाजन सरल हो जाता है क्योंकि बैंकों में तकनीक में निपुण लोगों को ज्यादा वेतन दिया जाता है। अतः आधुनिकतम विधियों को शाखा बैंकिंग में अपनाया जा सकता है।
  2. सीमित कोष से ही शाखा की स्थापना – इस प्रणाली का दूसरा प्रमुख लाभ यह है कि नयी शाखाओं की स्थापना में सीमित कोष की आवश्यकता होती है । यदि इसके लिये पूँजी की आवश्यकता पड़ती है तो ये बैंक दूसरी शाखाओं से ले लेती हैं। यही एक प्रमुख कारण है कि इस बैंकिंग प्रणाली में बैंकिंग संस्थाओं में निरन्तर वृद्धि होती जा रही है।
  3. धन का हस्तान्तरण – इकाई बैंकिंग में धन का आवागमन कठिन तथा खर्चीला होता है जबकि शाखा बैंकिंग प्रणाली में धन का आवागमन सरल होता है क्योंकि ग्राहक का धन उसकी अपनी इच्छा से हस्तान्तरित करने में शाखा प्रणाली का बहुत योगदान है।
  4. पूँजी का समुचित उपयोग – इस प्रणाली में पूँजी का पूरा उपयोग होना सम्भव है क्योंकि जिन बैंकिंग शाखाओं में पूँजी एकत्र है, परन्तु निवेश में उसका पूरा उपयोग नहीं हो पा रहा है तो ऐसी शाखाओं से पूँजी उन शाखाओं में दे दी जाती है।निवेश करने पर अधिक लाभ मिलता है। पूँजी के अधिक उपयोग की दृष्टि से शाखा प्रणाली गुणकारी होती है।

शाखा बैंकिंग प्रणाली के दोष

शाखा बैंकिंग प्रणाली के प्रमुख दोष निम्नलिखित हैं-

  1. एकाधिकारी प्रवृत्ति उत्पन्न होने का भय – इसमें बैंक का नियन्त्रण सामान्यतया कुछ ही हाथों में होता है जिससे कि एकाधिकारी प्रवृत्ति के जन्म का डर बना रहता है क्योंकि वित्तीय साधनकेन्द्रित हो जाते हैं।
  2. अविकसित क्षेत्रों की अवहेलना – इस प्रणाली में अविकसित क्षेत्रों में शाखाएं तो स्थापित कर दी जाती है परन्तु उन क्षेत्रों के निक्षेप को विकसित व्यावसायिक व औद्योगिक क्षेत्रों में निवेश करके ऊँचा लाभ प्राप्त होता है। इस स्थिति में अविकसित क्षेत्र हमेशा पिछड़े बने रहते हैं। इसका परिणाम यह निकलता है कि चारों तरफ क्षेत्रीय विषमताएं व्याप्त हो जाती हैं।
  3. अपव्ययी प्रणाली – इस प्रणाली में अपव्यये – एवं फिजूलखर्ची को प्रोत्साहन दिया जाता है क्योंकि शाखाओं की स्थापना करते समय आ की जगह ऊँचे खर्चे करने पड़ते हैं। शाखाओं के आरम्भ में जमा कम होता है जबकि कर्मचारि पर व्यय अधिक हो जाता है। यही कारण है कि छोटे बैंक इस प्रणाली को अपनाने मे नहीं हैं।
  4. संचालन, प्रबन्ध एवं निरीक्षण सम्बन्धी कठिनाइयाँ – यह प्रणाली उस समय भी दोषपूर्ण बन जाती है जब इसके उचित संचालन में प्रबन्ध एवं निरीक्षण सम्बन्धी कमियां भारतीय बैंकिंग प्रणाली उत्पन्न हो जाती हैं क्योंकि साधारणतया शाखायें सभी देशों में स्थापित हो जाती हैं तो उनके प्रबन्ध एवं निरीक्षण की देखभाल करने में काफी समय बरबाद जाता है जबकि ये शाखायें प्रधान कार्यालयों के निर्णयों द्वारा संचालित होती हैं परन्तु छोटे-छोटे निर्णयों के लिये प्रधान कार्यालय के इन्तजार में बैंकों का कार्य प्रभावित होता है।
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