व्यूहरचना नियोजन का आशय प्रतिस्पर्द्धियों की गतिविधियों, नीतियों व लक्ष्यों को ध्यान में बते हुए एक विस्तृत योजना निर्माण करने से है जिससे कि संस्था अपने दीर्घकालीन लक्ष्यों को आसानी से प्राप्त कर सके। व्यूहरचना नियोजन में ऐसी योजना तैयार की जाती है जो निर्धारित उद्देश्यों को प्राप्त करने में संस्था की कार्यवाहियों का मार्गदर्शन कर सके। यह व्यूहरचना को विकसित करने की एक प्रक्रिया होती है। व्यूहरचना नियोजन को विभिन्न विद्वानों ने निम्नवत परिभाषित किया है-
व्यूहरचना नियोजन कम्पनी का एक ऐसा क्रमबद्ध औपचारिक प्रयत्न होता है जिसके माध्यम से कम्पनी के मौलिक उद्देश्यों, लक्ष्यों, नीतियों एवं यूहरचनाओं को निर्धारित किया जाता है तथा कम्पनी के इन उद्देश्यों एवं लक्ष्यों को पाने हेतु व्यूहरचनाओं को कार्यान्वित करने हेतु विस्तृत योजनाओं का निर्माण किया जाता है।
जार्ज ए. स्टेनर के अनुसार
व्यूहरचना नियोजन वह मूलभूत संसाधन नियोजन होता है उसके अन्तर्गत संस्था को इसके पर्यावरण में उचित स्थान प्रदान कराने हेतु संस्था की शक्ति निर्धारित एवं सुव्यवस्थित किया जाता है।
डेविड हेम्पटन के अनुसार
व्यूहरचना नियोजन की विशेषताएं
व्यूहरचना नियोजन की विशेषताएँ निम्नलिखित है-
- निर्देशक नियोजन होना।
- विशिष्ट कहियो एवं गतिविधियों का चयन करने से सम्बन्धित होना।
- प्रतिद्वन्द्रियों की गतिविधियों एवं नीतियों को ध्यान में रखकर बनाया जा सकता है।
- व्यूहरचनात्मक नियोजन का उद्देश्य विभिन्न वर्गों के साथ समन्यव करना होना।
- व्यूहरचना नियोजन करना उस सारीय प्रबन्ध का कार्य होना ।
- एकांकी उपयोग वाली योजना होना।
- पर्यावरणीय समस्याओं का संगठन के माध्यम से प्रत्युत्तर होना।
- दीर्घकालीन प्रभावों को ध्यान में रखा जाना।
- समस्त संसाधनों के उपयोग की नवीन योजना होना।
व्यूहरचनात्मक नियोजन की प्रक्रिया
व्यूहरचनात्मक नियोजन की प्रक्रिया निम्नलिखित है-
- पर्यावरणीय विश्लेषण एवं निदान – व्यूहरचना नियोजन की यह प्रथम अवस्था होती है। इस अवस्था में संस्था कर अपनी क्षमता व दुर्बलता का मूल्यांकन करना होता है, जिससे कि पर्यावरण के साथ बेहतर रूप से सामंजस्य बैठाया जा सके।
- व्यूहरचना का चयन तथा निर्माण – संस्था के अन्तर्गत व्यूहरचनाओं को निगमीय स्तर पर, व्यवसाय स्तर पर तथा क्रियात्मक स्तर पर तैयार किया जाता है। निगमित स्तर पर व्यूहरचनाओं को सम्पूर्ण संस्था के संदर्भ में, व्यवसाय स्तर पर व्यूहरचनाओं को विशिष्ट बाजार स्तर पर तथा क्रियात्मक स्तर पर विभिन्न कार्यात्मक क्षेत्रों हेतु तैयार किया जाता है।
- संसाधन, संरचना, नीतियाँ एवं लक्ष्यों का प्रबन्ध – व्यूहरचना तैयार कर लेने के उपरान्त व्यूहरचना को कार्यान्वित किया जाता है। इस चरण में सामान्य नीतियों, नियमों व कार्यविधियों को तय करते हैं।
- कार्यान्वयन – व्यूहरचना का प्रभावी क्रियान्वयन आवश्यक होता है। प्रभावी कार्यान्वयन के लिए वार्षिक उद्देश्यों को तय करके कार्यात्मक लक्ष्यों का विकास- करना चाहिए। नीतियों को समस्त सम्बन्धित विभागों को सम्प्रेषित किया जाना चाहिए।
- मूल्यांकन – व्यूहरचना का मूल्यांकन करना आवश्यक होता है। व्यूहरचना मूल्यांकन के अन्तर्गत व्यूहरचना की सुसंगतता, बदलते परिवेश में सामंजस्य बैठाने की पात्रता, संसाधनों की उपलब्धता, जोखिम की स्वीकार्यता आदि को देखना चाहिए। व्यूहरचना मूल्यांकन में व्यूहरचना की व्यावहारिकता को भी देखा जाना चाहिए।