व्यावसायिक निर्देशन – संसार में भिन्न भिन्न प्रकार के कार्य और व्यवसाय हैं। सभी प्रकार के व्यक्ति सभी कार्यों को नहीं कर सकते। सभी कार्यों और व्यवसाय से संबंधित योग्यताएं सभी व्यक्ति में समान नहीं होती। किसी विषय या व्यवसाय में सफलता प्राप्त करने के लिए व्यक्ति में कुछ जन्मजात गुणों का होना आवश्यक होता है।
व्यक्ति के इन जन्मजात गुणों के कारण ही कोई व्यक्ति एक सफल डॉक्टर, प्रोफ़ेसर, इंजीनियर, प्रशासक, सैनिक आदि बनता है। व्यक्ति में निहित गुणों, योग्यताओं, सूचियों और क्षमताओं के अनुसार जब कोई विषय सुनता है तो उसे उसमें पूर्ण सफलता प्राप्त होती है। व्यक्ति में निहित इन विभिन्न गुणों के अनुसार किसी विषय का चुनाव करने में सहायता देने के कार्य को व्यवसायिक संगठन कहा जाता है।

व्यावसायिक निर्देशन
व्यावसायिक निर्देशन का सबसे पहले प्रयोग सन उन्नीस सौ आठ में फ्रैंक पार्सल नामक व्यक्ति ने एक रिपोर्ट में किया था। मनुष्य के सामाजिक स्तर और प्रतिष्ठा को बनाने में उसके द्वारा अपनाए गए व्यवसाय की प्रमुख भूमिका होती है। व्यक्ति में कुछ जन्मजात गुण होते हैं और कुछ गुणों और योग्यताओं को वह वातावरण के संपर्क में आकर सीखता है। इसके अतिरिक्त कुछ योग्यताओं, कुशलता और दक्षता ओं को वह विशिष्ट प्रकार का व्यवसाय प्राप्त करने के उद्देश्य से अर्जित करता है।
व्यक्ति में निहित इन विभिन्न गुणों के अनुसार किसी भी व्यवसाय का चुनाव करने में सहायता देने के कार्य को व्यवसायिक निर्देशन कहा जाता है। दूसरे शब्दों में इस प्रकार भी कहा जाता है कि व्यवसायिक निर्देशन व्यक्ति की जन्मजात शक्तियों एवं प्रशिक्षण के द्वारा अर्जित क्षमताओं को व्यवस्थित करके किसी भी व्यवसाय को अपनाने में दी जाने वाली सहायता है।
व्यावसायिक निर्देशन परिभाषा
व्यावसायिक निर्देशन के संबंध में विभिन्न विद्वानों ने भिन्न-भिन्न विचार प्रकट किए हैं। व्यावसायिक निर्देशन की कुछ महत्वपूर्ण परिभाषाएं निम्न है –
व्यावसायिक निर्देशन व्यक्ति को अपने व्यवसाय से संबंधित कुछ निश्चित कार्यों को स्वयं करने में सहायता देने की प्रक्रिया है।
व्यावसायिक निर्देशन की व्याख्या साधारणत: उस सहायता के रूप में की जाती है जो छात्रों को किसी व्यवसाय को सुनने उसके लिए तैयारी करने और उसमें उन्नति करने के लिए दी जाती है।
व्यावसायिक निर्देशन का संबंध उन समस्याओं और विधियों से है जो किसी व्यवसाय को चुनने और उसमें समायोजित होने में निहित होती हैं।
किसी भी व्यवसाय के चयन, प्रशिक्षण, उसमें प्रवेश और विकास के लिए उपयुक्त सलाह, अनुभव तथा सूचना प्रदान करना ही व्यवसायिक निर्देशन कहलाता है।

व्यावसायिक निर्देशन की आवश्यकता
वर्तमान युग में निर्देशन की अत्यंत आवश्यकता है। जैसे-जैसे बौद्धिक प्रगति के कारण नए-नए व्यवसायियों की खोज निरंतर होती जा रही है वैसे-वैसे व्यावसायिक निर्देशन की आवश्यकता में भी बढ़ोतरी होती जा रही है। विभिन्न दृष्टिकोण से व्यावसायिक निर्देशन की निम्नलिखित कारणों से आवश्यकता है –
- व्यवसायियों की जटिलता की दृष्टि से आवश्यकता
- आर्थिक और सामाजिक दशाओं में परिवर्तन के कारण
- व्यावसायिक निर्देशन व्यक्तिगत और सामाजिक दोनों ही दृष्टिकोणों से आवश्यक
- युवकों में अनुशासन के दृष्टिकोण से
- स्वास्थ्य के दृष्टिकोण से आवश्यकता
- व्यवस्थाओं की संख्या में निरंतर वृद्धि के कारण
- व्यावसायिक निर्देशन व्यक्ति के आर्थिक लाभ के दृष्टिकोण से आवश्यक है
- व्यवसाय प्राप्त करने में सहयोग के दृष्टिकोण से
- मानव शक्तियों के प्रयोग के दृष्टिकोण से
- आर्थिक दृष्टिकोण से आवश्यकता
- व्यक्ति के निजी जीवन की सफलता एवं संतोष की दृष्टि से
- स्वामी के वित्तीय दृष्टिकोण से
- मानवीय शक्ति का सही उपयोग तथा विकास
- छात्रों के भावी जीवन में स्थिरता लाना
1. व्यवसायियों की जटिलता की दृष्टि से आवश्यकता
व्यावसायिक निर्देशन के अभाव में व्यक्ति के लिए उचित व्यवसाय को चुनना बहुत कठिन है। इसका कारण यह है कि विज्ञान के निरंतर नए ज्ञान और अविष्कारों के कारण नए नए उद्योग खुलते जा रहे हैं। बहुत से व्यवसाय बिल्कुल नए हैं और जो पुराने हैं वह भी नए रूप लेते जा रहे हैं।
विभिन्न प्रकार के व्यवसायियों की जटिलता के कारण व्यक्ति के उपयुक्त व्यवसाय को चुनना अत्यंत कठिन हो गया है। इसलिए व्यवसायियों की जटिलता के कारण व्यक्ति को उचित व्यवसाय सुनने के लिए व्यावसायिक निर्देशन की नितांत आवश्यकता है।
2. आर्थिक और सामाजिक दशाओं में परिवर्तन के कारण
पहले लोग अपने खानदानी व्यवसाय को अपना लेते थे, परंतु अब परिस्थितियां बदल गई हैं।नए-नए उद्योग धंधों की स्थापना और जनसंख्या की निरंतर वृद्धि के कारण आर्थिक और सामाजिक दशाओं में तेजी से परिवर्तन हो रहे हैं। ऐसी स्थिति में व्यक्ति के लिए यह निर्णय लेना कठिन हो जाता है कि कौन सा व्यवसाय भविष्य में उसके लिए उपयोगी सिद्ध होगा। व्यावसायिक निर्देशन की सहायता से इस समस्या को सरलता पूर्वक हल किया जा सकता है।
3. व्यावसायिक निर्देशन व्यक्तिगत और सामाजिक दोनों ही दृष्टिकोणों से आवश्यक
व्यवसायिक निर्देशन के बिना व्यक्ति ऐसे व्यवसायो का चुनाव भी कर सकता है जिससे की व्यक्तिगत और सामाजिक मूल्यों का पतन हो सकता है। जो व्यवसाय व्यक्ति की रुचियां योग्यताओं और क्षमताओं के अनुकूल नहीं होता उसे उस व्यवसाय को करने में संतोष और आनंद की प्राप्ति नहीं होती। फल स्वरूप वाह निराश, उदासीन और असंतुष्ट हो जाता है। इस प्रकार की स्थिति में वह ना तो स्वयं का विकास कर सकता है और ना ही समाज के साथ अपने आपको उचित रूप से समायोजित कर पाता है।

4. युवकों में अनुशासन के दृष्टिकोण से
युवको को उनकी रूचि, और योग्यता के अनुसार व्यवसाय ना मिलने के कारण उनका काम में मन नहीं लगता। अपने व्यवसाय को संतुष्टि न मिलने के कारण उनमें निराशा, उदासीनता आक्रामकता की भावना पैदा हो जाती है जिसके कारण वे हड़ताल, तोड़फोड़ तथा तालाबंदी जैसे अनुशासनहीनता से संबंधित व्यवहार करते हैं। युवकों में इस अनुशासनहीनता की समस्या को हल करने के लिए व्यवसायिक निर्देशन की आवश्यकता है।
5. स्वास्थ्य के दृष्टिकोण से आवश्यकता
स्वास्थ्य के दृष्टिकोण से भी व्यवसायिक निर्देशन की अति आवश्यकता है। जो व्यवसाय व्यक्ति के स्वास्थ्य के अनुकूलन नहीं होता है उससे व्यक्ति के स्वास्थ्य पर बुरा प्रभाव पड़ता है जिसके कारण व्यक्ति की कार्य क्षमता घट जाती है। अतः व्यक्ति के स्वास्थ्य के अनुकूलन व्यवसाय का चुनाव करने के लिए व्यवसायिक निर्देशन की आवश्यकता है।
6. व्यवस्थाओं की संख्या में निरंतर वृद्धि के कारण
आधुनिक युग में विज्ञान और टेक्नोलॉजी की उन्नति के कारण व्यवसायो की संख्या में निरंतर वृद्धि हो रही है। बहुत से विद्यार्थी स्कूल और कॉलेज की शिक्षा प्राप्त करने के पश्चात निर्देशन के अभाव में अपनी रूचि, योगिता और क्षमता के अनुसार व्यवसाय न मिलने के कारण व्यवसाय में उचित उन्नति नहीं कर पाते जिसके कारण उन्हें निराशा और चिंता होती है। इस समस्या को दूर करने के लिए व्यवसायिक निर्देशन जरूरी है।
7. व्यावसायिक निर्देशन व्यक्ति के आर्थिक लाभ के दृष्टिकोण से आवश्यक है
व्यवसायिक निर्देशन के अभाव में व्यक्ति अधिकतर ऐसे व्यवसायो को चुन लेते हैं जोकि इनकी रूचि और योगिता के अनुकूल नहीं होता है परिणाम स्वरूप वे उस व्यवसाय को कुछ समय तक करते रहने के पश्चात नए व्यवसाय की तलाश शुरू कर देते हैं और भिन्न भिन्न प्रकार के व्यवसाय प्रारंभ कर देते हैं जिसके कारण उनको काफी आर्थिक हानि उठानी पड़ती है। इस आर्थिक हानि से बचने के लिए व्यवसायिक निर्देशन आवश्यक हैं।
8. व्यवसाय प्राप्त करने में सहयोग के दृष्टिकोण से
साधारण तौर पर या देखा जाता है कि अनेक व्यक्ति अपनी शिक्षा समाप्त करने के पश्चात भी नौकरी प्राप्त नहीं कर पाते हैं। इसका कारण है कि वह आरंभ से अपनी शिक्षा, अपनी क्षमताओं, रुचियां तथा समाज की आवश्यकताओं के अनुसार दी हुई योजना अनुसार प्राप्त नहीं कर पाते हैं जिसके कारण उनमें निराशा की भावना जन्म ले लेती है। ऐसी स्थिति में व्यवसायिक निर्देशन अत्यावश्यक है।

9. मानव शक्तियों के प्रयोग के दृष्टिकोण से
व्यवसायिक निर्देशन बिना मानव शक्तियों की खोज संभव नहीं है। प्रत्येक समाज में अनेकों ऐसे व्यक्ति होते हैं जिनमें एक या एक से अधिक अभूतपूर्व शक्तियां निहित होती हैं। इस प्रकार की शक्तियों वाले व्यक्ति समाज को प्रगति की राह पर ले जाते हैं। व्यवसायिक निर्देशन इस प्रकार की शक्तियों वाले व्यक्तियों की खोज करता है और साथ ही मानव शक्तियों के अधिकतम प्रयोग की योग्यता प्रदान करता है।
10. आर्थिक दृष्टिकोण से आवश्यकता
जब अरूचिकर व्यवसाय में नवयुवक विवश होकर कार्य करता है तो वहां उत्साह और लगन कम होने से उत्पादन कम होता है और कार्य में निपुणता का अभाव रहता है। इससे नवयुवक तथा देश की आर्थिक अवस्था पर बुरा प्रभाव पड़ता है। अतः इस आर्थिक अवस्था से देश, समाज एवं युवक को बचाने हेतु निर्देशन की आवश्यकता पड़ जाती है। व्यवसायिक निर्देशन की आवश्यकता पड़ जाती है। व्यवसायिक निर्देशन से नौकरी देने वालों को बहुत आर्थिक लाभ होता है, क्योंकि उसके कर्मचारी अपने काम से संतुष्ट होते हैं।
11. व्यक्ति के निजी जीवन की सफलता एवं संतोष की दृष्टि से
यदि व्यक्ति का विकास समुचित रूप से होता है और उसे अपनी रुचि एवं क्षमता के अनुरूप व्यवसाय चयन करने में सफलता होती है तो उसे सर्वागीण विकास प्राप्त करने एवं सुखी जीवन व्यतीत करने में सफलता मिलती है। इस कारण वह समाज एवं एक अच्छा सदस्य बनता है। जीवन में जितनी अधिक व्यक्ति इस प्रकार सामंजस्य प्राप्त करते हैं, समाज की आर्थिक एवं संस्कृतिक समृद्धि उसी अनुपात में बढ़ती है।
12. स्वामी के वित्तीय दृष्टिकोण से
कार्य देने वाला जब एक कुशल व्यक्ति को काम पर लगाता है तो उत्पादन तथा निपुणता पर अच्छा प्रभाव पड़ता है और स्वामी को अच्छा लाभ होता है। यदि कोई अयोग्य व्यक्ति काम पर रखा जाता है तो उसके द्वारा एक कार नहीं हो सकता और स्वामी को इस कारण आर्थिक नुकसान होता है। व्यवसाय निर्देशन से इस बात को रोका जा सत्ता है। उपयुक्त व्यक्ति ही निर्देशन की सहायता से कार्य पर रखा जाता है।

13. मानवीय शक्ति का सही उपयोग तथा विकास
हमारे देश में एक बहुत बड़ी जनशक्ति है। इस मानवीय शक्ति का अदुप्रयोग हो सके इसके लिए व्यवसाय निर्देशन की सहायता से प्रत्येक व्यक्ति को उसी योग्यताओं, शक्तियों और प्रतिभाओं का ज्ञान करवाया जाता है। इस कारण से सब प्रकार के व्यक्तियों को खोज कर उनकी शक्ति से देश को लाभ हो सकता है।
14. छात्रों के भावी जीवन में स्थिरता लाना
विद्यालय छोड़ने के बाद व्यक्ति जब व्यवसाय में प्रवेश करता है तो नए वातावरण में वह समायोजित नहीं हो पाता है। आता बच्चों को छात्र जीवन में ही कार्य जगत का पर्याप्त ज्ञान प्रदान कर दिया जाए जिससे छात्र जीवन के पश्चात व्यवसाय जीवन में स्थिरता ला सके और उन्हें शीघ्र ही अपना व्यवसाय बदलना न पड़े। अतः उनके भावी जीवन को स्थिर बनाने के लिए निर्देशन की आवश्यकता है।