व्याख्यान विधि के गुण व व्याख्यान विधि के दोष

व्याख्यान विधि – शिक्षा के क्षेत्र में प्राचीनकाल से ही प्रचलित व्याख्यान विधि सामाजिक विज्ञान शिक्षण की प्रमुख विधि रही है। वस्तुतः व्याख्यान विधि उच्च कक्षाओं के शिक्षण कार्य में अपनाई जाने वाली एक प्रमुख विधि है जिसमें शिक्षार्थी एक श्रोता की भाँति और शिक्षक एक व्याख्याता की भाँति क्रिया करता है। यह विधि तब बोधगम्य नहीं रहती जब शिक्षक केवल वक्ता बना रहता है और विद्यार्थियों का सहयोग नहीं लेता।

व्याख्यान विधि

‘व्याख्यान’ शब्द अंग्रेजी भाषा के लेक्चर (Lecture) शब्द का हिन्दी रूपान्तर है जो लैटिन शब्द लेक्टेयर से बना है जिसका अर्थ ‘तेज बोलकर पढ़ना’ है। ‘व्याख्यान’ का शाब्दिक अर्थ है भाषण देना। अतः इसे भाषण विधि भी कहते हैं। इस विधि में शिक्षक अपने पाठ सन्दर्भ को भाषण के रूप में विकसित करता है। साथ ही विद्यार्थी अपनी मानसिक क्रिया करके श्रोता बना रहता है। जब शिक्षक प्रश्नों के साथ व्याख्या भी करता है तो यह विधि अत्यन्त सरस हो जाती है। इस विधि का प्रयोग अतीत काल से ही होता चला आ रहा है इस कारण इसे परम्परागत शिक्षण विधि भी कहते हैं।

व्याख्यान शिक्षण की एक विधि है, जिसमें निर्देशक तथ्यों जयमा सिद्धान्तों का मौखिक प्रस्तुतीकरण करता है, कक्षा सामान्यतया नोट्स लेने के लिए होती है, कक्षा की सहभागिता कम या बिल्कुल नहीं होती है, जैसा कि कक्षा के घण्टे प्रश्न पूछना अपवा विवेचना करना।

शिक्षा शब्दकोश के अनुसार

व्याख्यान एक शिक्षण शास्त्रीय विधि है जिसमें अध्यापक औपचारिक रूप से नियोजित रूप में किसी प्रकरण या समस्या पर भाषण देता है।

जेन्स एम.ली. के अनुसार

व्याख्यान तथ्यों, सिद्धान्तों या अन्य सम्बन्धों का प्रतिपादन अध्यापक अपने सुनने वालों को समझाना चाहता है।

धानस एम. रिस्क के अनुसार
व्याख्यान विधि

प्राचीनकाल में जब लेखन कला का विकास नहीं हुआ था उस समय अध्यापक या गुरु अपने शिष्यों को सम्पूर्ण कार्य मौखिक ही कराता था। विद्यार्थी को वेद मंत्र मौखिक ही रटा दिये जाते थे और यह ज्ञान भण्डार पीढ़ियों तक चलता रहता था। विद्वानों द्वारा भाषण दिये जाते थे जिन्हें समाज ग्रहण करता था। इस्लाम उदय के साथ मदरसों में उच्च शिक्षा की व्यवस्था की गई जिसमें संभाषण विधि थी। अंग्रेजी शासन के आगमन के पश्चात् भी अंग्रेजों ने तर्कपूर्ण विवेचन के उद्देश्य से भाषण विधि का प्रयोग किया स्वतंत्रता प्राप्ति के बाद भी छात्र संख्या के आधार पर यह विधि सरल और सुगम प्रतीत हुई। परिणामतः इसका प्रयोग किया जाता रहा है।

व्याख्यान विधि के गुण

प्रस्तावना सुगमता

किसी प्रकरण या पाठ आरम्भ करने हेतु तथा अध्ययनरत विषय में छात्र ध्यानाकर्षण हेतु व्याख्यान विधि द्वारा प्रस्तावना विस्तार करना उपयोगी है इससे विषयवस्तु की अधिक व्यापकता एवं स्पष्टता प्रस्तुत होती है। किसी नवीन पाठ को बालकों के समक्ष प्रस्तुत करने के पूर्व उस पाठ से संबंधित / संबद्ध प्रारम्भिक जानकारी को व्याख्यान विधि द्वारा स्पष्ट कर देने से उस पाठ की सामग्री को बालक अपेक्षाकृत सरलता से ग्रहण कर लेते हैं। साथ ही छात्र के भावात्मक उद्देश्य की भी पूर्ति करती है जिससे एकाग्रता भी बढ़ती है। विषयवस्तु से सम्बन्धित पूर्व ज्ञान तथा पृष्ठभूमि और दैनिक जीवन से सम्बन्धित उदाहरणों को प्रस्तुत करने में व्याख्यान विधि उपयोगी है।

समय एवं शक्ति की बचत

इस विधि द्वारा कम समय में अधिक विषयवस्तु को सुगमता से स्पष्ट किया जा सकता है साथ ही विभिन्न शिक्षण विधियों में व्यक्त समय व श्रम की बचत होती है। कला प्रवेश के पूर्व ही व्याख्यान की रूपरेखा तैयार कर लेने से अधिक समय व्यय नहीं करना पड़ता जिससे यह छात्र तथा शिक्षक दोनों के हित में है।

व्याख्यान विधि के गुण

छात्र संख्या अधिक्य शिक्षण हेतु

आज आवश्यकतानुसार कक्षाओं के आकार में वृद्धि होती जा रही है। व्याख्यान विधि द्वारा छात्रों के बड़े समूह को भी एक ही समय में एक साथ पढ़ाया जा सकता है जिससे यह विधि शिक्षक संख्या की कमी को भी किसी हद तक पूरी करती है जो वर्तमान छात्र शिक्षक अनुपात में सहायक है।

छात्र स्वाध्याय उत्प्रेरण हेतु

यह विधि तथ्यात्मक ज्ञान प्रदान करने एवं विवेचना करने की सर्वोत्तम विधि है। छात्र को अपनी गति से अध्ययन करने में आयी समस्याओं के निराकरण तथा तथ्यों के विवेचनात्मक स्पष्टीकरण हेतु यह प्रभावी है जिससे छात्रों में स्वअध्ययन की भावना का विकास होता है।

समस्या निराकरण एवं शब्दावली स्पष्टीकरण हेतु

इस विधि में शिक्षण के समय छात्र विषयवस्तु को ध्यान से सुनते हुए आत्मसात् करने की कोशिश करता है। शिक्षक को परिभाषाओं एवं अवधारणाओं को स्पष्ट करने की आवश्यकता होती है जिसे दैनिक जीवन की घटनाओं, अनुभवों एवं उदाहरणों द्वारा शिक्षक स्पष्टीकरण करता है। इस तरह यद छात्र समस्या निराकरण तथा शब्दावली विवेचन में सहायक है।

व्याख्यान विधि के गुण

अभ्यास कार्य में सहायक

शिक्षक कक्षा-कक्ष में पढ़ाये गये प्रकरण से सम्बन्धित अभ्यास कार्य देने के समय पूर्व ज्ञान का विषयवस्तु से सम्बन्ध स्थापन कर, किस प्रकार कार्य करना है, इसका स्पष्टीकरण भी व्याख्यान विधि द्वारा सुगमता से कर सकता है।

छात्र प्रेरणा हेतु

व्याख्यान में अध्यापक अपने हाव-भाव से छात्रों में विषयवस्तु में रुचि उत्पन्न कर उन्हें पाठ में सक्रिय भागीदार बनाता है। कुशल एवं अनुभवी शिक्षक के भाषण से छात्रों को प्रेरणा मिलती है, जिससे छात्रों में विषय के प्रति रुचि उत्पन्न होती है।

पाठ सारांश हेतु

व्याख्यान विधि द्वारा शिक्षक अपने द्वारा पढ़ाई विषयवस्तु के मुख्य बिन्दुओं को क्रमयोजित कर पाठ सारांश को व्यक्त कर सकता है जो पूर्व ज्ञान से सम्बन्ध स्थापित करता है। इस प्रकार व्याख्यान पद्धति प्राचीनकाल से ही प्रयोग में आने के बावजूद आज भी अपना अस्तित्व बनाये हुए है और परोक्ष रूप से छात्र के व्यक्तित्व विकास में योगदान कर रही है।

व्याख्यान विधि के दोष

व्याख्यान विधि के दोष

गिजुभाई ने व्याख्यान पद्धति के एकतरफा क्रिया हेतु लिखा है। उनके अनुसार इस पद्धति में शिक्षक शिष्य के भोजन को स्वयं चबाकर फिर शिष्य को देता है जिसे शिष्य रुचिपूर्वक खाता है अर्थात् शिक्षक शिष्य द्वारा सम्पादित होने वाले कार्यों को स्वयं करता है और शिष्य बिना स्वयं किये हुए ही शिक्षा का परिणाम प्राप्त करता है। इस प्रकार इस विधि में शिक्षक नौकर और शिष्य मालिक या सेठ की भूमिका का निर्वाहन करता है।

  1. शिक्षक केन्द्रित होने के कारण यह मनोवैज्ञानिक सिद्धान्तों के प्रतिकूल है क्योंकि छात्रों को कोई विशेष महत्व नहीं दिया जाता।
  2. इसमें सैद्धान्तिक ज्ञान पर बल दिया जाता है जिससे क्रियात्मक विकास रुक जाता है और ‘करके सीखने का सिद्धान्त निरर्थक हो जाता है।
  3. निम्न कक्षाओं में उपयोग के लिए प्रभावी नहीं है क्योंकि यह पद्धति केवल श्रवणेन्द्रिय का उपयोग करती है जिससे अन्य इन्द्रिय विकास शिथिल पड़ जाता है।
  4. उच्च कक्षाओं के शिक्षण में भी यह विधि अधिक प्रभावी नहीं है क्योंकि इस स्तर पर भी इस विधि के समय छात्र निष्क्रिय एवं मूक श्रोता बना रहता है।
  5. छात्र सहभागिता न होने के कारण कक्षा अनुशासन की समस्या बलवती रहती है।
  6. निम्न बौद्धिक स्तर के छात्रों में यह विधि प्रभावी नहीं हो पाती।
  7. प्रत्येक शिक्षक एक कुशल वक्ता नहीं होता जिस कारण यह सभी शिक्षकों से प्रभावी नहीं हो पाती।
सामाजिक अध्ययनसामाजिक अध्ययन पाठ्यक्रम निर्माण के सिद्धांतपाठ्यक्रम संगठन के उपागम
व्याख्यान विधिपर्यवेक्षिक अध्ययन विधिसमस्या समाधान विधि
सेमिनारसमाजीकृत अभिव्यक्ति विधिपर्यवेक्षिक अध्ययन विधि
सूक्ष्म शिक्षणशिक्षण कौशलशिक्षण तकनीकी
Subscribe
Notify of
guest

0 Comments
Inline Feedbacks
View all comments