व्याख्यान नीति – व्याख्यान का तात्पर्य किसी भी पाठ को भाषण के रूप में पढ़ाने से है। शिक्षक किसी विषय विशेष पर कक्षा में व्याख्यान देते हैं तथा छात्र निष्क्रिय होकर सुनते रहते हैं। यह विधि उच्च स्तर की कक्षाओं के लिए उपयोगी मानी जाती है। व्याख्यान विधि में विषय की सूचना दी जा सकती है। किन्तु छात्रों को स्वयं ज्ञान प्राप्त करने की प्रेरणा तथा प्राप्त ज्ञान के व्यावहारिक प्रयोग की क्षमता नहीं दी जा सकती। व्याख्यान विधि में यह जानना कठिन होता है कि छात्र किस सीमा तक शिक्षक द्वारा प्रदत्त ज्ञान को सीख सके हैं।
व्याख्यान नीति की विशेषताएँ
व्याख्यान नीति की विशेषताएँ निम्न हैं –
- उच्च कक्षाओं के लिए उपयोगी है।
- यह शिक्षक के लिए सरल, संक्षिप्त तथा आकर्षक है।
- कम समय में अधिक सूचनाएँ दी जा सकती हैं।
- अधिक संख्या में छात्र सुनकर इसको नोट कर सकते हैं।
- विषय का तार्किक क्रम सदैव बना रहता है।
- यह शिक्षक तथा छात्र दोनों को विषय के अध्ययन की प्रगति के विषय में सन्तुष्टि प्रदान करती है।
- शिक्षक विचारधारा के प्रवाह में बहुत-सी नई बातें बता देते हैं।
- इस विधि के प्रयोग से अध्यापक को शिक्षण कार्य में बहुत सुविधा है।
- एक ही समय में छात्रों के बड़े समूह का शिक्षण किया जाता है।
- शिक्षक सदैव सक्रिय रहता है।
- यदि शिक्षक इस विधि का प्रयोग कुशलता से करे तो छात्रों को आकर्षित किया जा सकता है, साथ ही उनके पाठ के लिए रुचि उत्पन्न की जा सकती हैं।



व्याख्यान नीति के दोष
व्याख्यान नीति के दोष निम्न हैं-
- कुछ बातों की सूचनाएँ प्राप्त कर लेना ही अध्ययन नहीं है।
- छात्र निष्क्रिय बैंठे रहते हैं।
- छोटी कक्षाओं में छात्रों के लिए यह विधि अनुचित व अमनोवैज्ञानिक है।
- छात्रों में ज्ञान प्राप्त करने की रुचि जाग्रत नहीं होती।
- छात्रों की मानसिक शक्ति में किसी प्रकार का विकास नहीं होता है।
- इस प्रकार से प्रदत्त ज्ञान अस्थाई होता है।
- व्याख्यान के बीच में यदि छात्र कोई बात न समझ पायें तो शेष व्याख्यान भी समझने में असमर्थ रहते हैं।
- व्याख्यान की सभी बातों को शीघ्रतापूर्वक लिखना छात्रों के लिए कठिन होता है।
- ‘गुरु-शिष्य – शिक्षण’ सिद्धान्त की अवहेलना यह विधि करती है।
- व्याख्यान विधि में श्रवणेन्द्रिय के अतिरिक्त अन्य ज्ञानेन्द्रियों का प्रयोग नहीं हो पाता।
- विषय का प्रयोगात्मक पक्ष उपेक्षित रहता है।
- इसमें शिक्षक ‘शिक्षक’ न रहकर केवल ‘वक्ता’ बन कर रह जाता है।
- यह मनोवैज्ञानिक विधि नहीं है।



व्याख्यान नीति से पढ़ाते समय सुधार के लिए सुझाव
- आवश्यकतानुसार श्यामपट का उपयोग करना चाहिये।
- उचित सहायक सामग्री का प्रयोग किया जाये।
- उसे सामान्यीकरण के सिद्धान्त पर जोर देना चाहिये।
- बालकों को कम बताकर उन्हें ऐसे अवसर प्रदान करने चाहिये जिससे वे अपने पूर्व ज्ञान के आधार पर अपने परिश्रम व अनुभव से अधिक ज्ञान प्राप्त कर सकें।
- व्याख्यान में छात्रों को क्रियाशील रखने के लिए उनसे समय-समय पर प्रश्न पूछे जाने चाहिये।