वैदिककालीन शिक्षा में गुरु शिष्य सम्बंध विशेष प्रकार के थे, जोकि अत्यंत मधुर, आत्मीय एवं अनुकरणीय थे। वैदिक काल में गुरु और शिष्य के मध्य भरोसे और जिम्मेदारी के संबंध हुआ करते थे। गुरु शिष्यों के साथ पुत्रवतभावना से व्यवहार करते थे। और शिष्य भी गुरु को पिता तुल्य मानकर उनकी सभी आज्ञाओ का पालन करते थे।
वैदिककालीन शिक्षा में गुरु शिष्य सम्बंध
वैदिक कालीन शिक्षा प्रणाली में गुरु शिष्य का संबंध आदर्श होने के कारण प्रेरणादायक है। ऋग्वेद में गुरु को कुछ ज्ञान से परिपूर्ण कहा गया है। अन्य वेदों में उसे गुरु या अचार की संज्ञा दी गई है जिसका अर्थ है अच्छे आचरण वाला, शुद्ध आचरण युक्त। वैदिक कालीन गुरु अज्ञान का नाश करने वाले, कोमल हृदय वाले, मोह रहित, कर्तव्य परायण होते थे। वैदिककालीन शिक्षा में गुरु शिष्य सम्बंध पिता पुत्र के समान था। प्रेम, स्नेह, आत्मीयता, त्याग, समर्पण तथा श्रद्धा का यह वातावरण उस समय की शिक्षा के महत्व को और अधिक बढ़ा रहा था।


वैदिक काल में गुरु के प्रति शिष्यों के कर्तव्य
वैदिक काल में जिस प्रकार गुरुओं के शिष्यों के प्रति दायित्व होते थे, उसी प्रकार शिष्यों के भी गुरुओं के प्रति कर्तव्य होते थे। शिष्य निम्नलिखित कर्तव्यों का बड़े आदर, निष्ठा एवं धर्म मानकर पालन करते थे।
- गुरुकुल से जाने के बाद भी गुरु के प्रति आदर का भाव रखना, उनका सम्मान करना तथा उनके मार्गदर्शन एवं उपदेशों का पालन करना।
- गुरु माता तथा गुरु दोनों को माता-पिता के तुल्य मानना।
- गुरु के सोने से पूर्व आवश्यकतानुसार उनके पैर हाथ दबाना।
- गुरु तथा गुरुकुल वासियों के लिए भिक्षा मांगना एवं भोजन की व्यवस्था करना।
- नित्य प्रति गुरुकुल की सफाई करना तथा उसकी पूर्ण व्यवस्था करना।
- गुरु गृह की सफाई करना, गुरु के स्नान एवं पूजा पाठ इत्यादि की नित्य प्रति व्यवस्था करना।
- गुरु के रात्रि विश्राम की व्यवस्था करना।
- गुरु के आदेशों का पूर्ण निष्ठा से पालन करना।
- शिक्षा पूरी होने के उपरांत सामर्थ एवं श्रद्धा अनुसार दक्षिणा अर्पण करना।
गुरुब्रह्मा, गुरुर्विष्णु: गुरुर्देवो महेश्वर:।
गुरु: साक्षात् परमब्रम्हा, तस्मै श्रीगुरुवे नमः।।


वैदिक काल में शिष्यों के प्रति गुरु के कर्तव्य
वैदिक काल में गुरु शिष्यों के प्रति पूर्ण रूप से उत्तरदाई होते थे। विषयों के प्रति निम्नलिखित दायित्व एवं कर्तव्यों के निर्वहन को अपना नैतिक धर्म समझते थे। गुरु शिष्य के प्रति निम्नलिखित दायित्वों का निर्वाह करते थे। आप वैदिककालीन शिक्षा में गुरु शिष्य सम्बंध Hindibag पर पढ़ रहे हैं।
- शिष्यों के आवास, उनके भोजन, वस्त्र इत्यादि की व्यवस्था करना।
- शिष्यों को भाषा, धर्म, नीतिशास्त्र का ज्ञान अनिवार्य रूप से कराना।
- शिष्यों को सह-आचरण की शिक्षा देना तथा उनका चरित्र निर्माण करना।
- शिष्यों का सर्वांगीण विकास करना।
- शिक्षा पूरी करने के उपरांत शिष्यों को गृहस्थ जीवन में प्रवेश की आज्ञा देना तथा उनका मार्गदर्शन करना।
- शिष्यों के स्वास्थ्य की देखभाल करना तथा अस्वस्थ होने पर उपचार की व्यवस्था करना।
- शिष्यों को करने योग्य कर्मों के प्रति उन्मुख एवं प्रेरित करना तथा ना करने हेतु कर्मों से बचाना।
प्राचीन शिक्षा परंपरा का आधार समाज ऋण चुकाना था। गुरु समाज ऋण चुकाने के लिए अध्यापन करते थे। उनका स्थान सर्वोच्च था प्रत्येक व्यक्ति गुरुओं का आदर करते थे तथा उनका समाज में पूजनीय स्थान होता था।
प्राचीन भारत में कक्षाएं छोटी होती थी और उसमें 15 या 20 छात्रों से अधिक नहीं थे। जिससे आचार्य द्वारा प्रत्येक विद्यार्थी को प्रति व्यक्तिगत ध्यान दिया जाना संभव था।
डा• अल्वेकर

आधुनिक काल के अध्यापकों को प्राचीन काल के गुरुओं का अनुकरण करना चाहिए। वे छात्रों को अपने बच्चों की तरह माने और उनके चारित्रिक व शारीरिक विकास का पूरा पूरा ध्यान रखें। अध्यापक को स्वयं अपना आचरण भी ठीक रखना चाहिए क्योंकि छात्रों का हृदय अपने गुरुओं की आज्ञा पालन व उनका अनुसरण करने की भावना से जुड़ा रहता है।
छात्रों को भी चाहिए कि वे गुरुओं का उसी प्रकार आदर करें जैसा कि वे माता-पिता का आदर करते हैं। गुरुओं की आज्ञा पालन का पाठ इन्हें प्राचीन काल की शिक्षा प्रणाली से सूचना चाहिए। शिक्षा का प्रचार तथा प्रसार व्यक्ति की योग्यताओं के आधार पर होना चाहिए तभी शिक्षा का वास्तविक रूप सामने आएगा।
वैदिककालीन शिक्षा की विशेषताएं वैदिककालीन शिक्षा के उद्देश्यों की पूर्ति करती है। उद्देश्यों की प्राप्ति के लिए जो भी नियम थे उनके कुछ गुण व कुछ दोष भी थे। वैदिककालीन शिक्षा गुण व दोष का अध्ययन वैदिककालीन शिक्षा के उद्देश्यों को और अधिक परिपूर्ण करता है।