वृद्धो की समस्याएं – सामान्यत: 65 वर्ष से अधिक आयु के व्यक्तियों की गणना वृद्ध वर्ग के अंतर्गत की जाती है लेकिन भारत में जहां व्यक्ति की औसत जीवन अवधि अपेक्षाकृत कम है 69 वर्ष से अधिक आयु के व्यक्तियों को वृद्ध कहा जाता है।
भारत में स्वास्थ्य सेवाओं के विकास, आयु संभावित में वृद्धि तथा मृत्यु दर में ह्रास के कारण वृद्धों की संख्या में निरंतर वृद्धि हो रही है और इसकी अधिकता के कारण इनकी स्थिति दयनीय होती जा रही है। 1969 मैं देश में वृद्धों की संख्या जनसंख्या का 6.21% जो आज बढ़कर 6.57% हो गई है। इस प्रकार देश में वृद्धों की बढ़ती हुई संख्या सामाजिक अर्थव्यवस्था के समक्ष एक गंभीर समस्या है।

सन 2000 में वृद्धजनों का राष्ट्रीय दिवस मनाया गया। वृद्धों की बढ़ती हुई संख्या औद्योगिक देशों के लिए चिंता का विषय है। इस बढ़ती हुई वृद्धजनों की संख्या के कारण इनके प्रति लोगों में स्नेह एवं सम्मान का भाव परिवर्तित होता जा रहा है, वे भावात्मक सुरक्षा का अभाव अनुभव कर रहे हैं तथा आर्थिक दृष्टि से असहाय अवस्था का सामना कर रहे हैं। वे स्वयं को ठगा हुआ सा अर्थात अलगाव का अनुभव कर रहे हैं तथा वे सामाजिक सहभागिता, प्रतिष्ठा एवं आत्मसम्मान की कमी का अनुभव कर रहे हैं।
वृद्धावस्था एक विशिष्ट बीमारी के समान है यह वह बीमारी है जो प्रत्येक व्यक्ति को लगती है। वह व्यक्ति जो जीवित रहता है अन्य सभी बीमारियां इस बीमारी को निरपवाद रुप से जकड़ लेती है।
वृद्धो की समस्याएं
वृद्धो की समस्याएं निम्नलिखित हैं-
- वृद्ध लोगों की बढ़ती उम्र के कारण वे शारीरिक रोग से पीड़ित हो जाते हैं और उनका शरीर भी कमजोर हो जाता है इसीलिए वह मानसिक रोग से भी पीड़ित हो जाते हैं क्योंकि व्यक्ति के शारीरिक रोग व मानसिक रोग अंतः संबंधित होते हैं।
- भारत में वृद्धों की सबसे अधिक समस्या शारीरिक दुर्बलता की है। वृद्धों के सामने अनेकों समस्याएं होती हैं जैसे आंखों से कम दिखाई देना कानों से कम सुनाई पड़ना एवं शारीरिक दर्द आदि। वृद्धों के लिए सर्दी, खांसी, जुकाम, बुखार होना तो सामान्य सी बात है।
- संयुक्त परिवारों में परिवार की बागडोर परिवार के वयोवृद्ध के हाथ में होती है। परिवार संबंधी किसी भी प्रकार की गतिविधियों के नियंत्रण करने का अधिकार भी होता है। इनकी आज्ञा के बिना परिवार का कोई भी कार्य नहीं किया जा सकता है। वर्तमान समय में भौतिकवादी और व्यक्तिवादी मूल्यों के फलस्वरूप परिवार में वृद्धों की परंपरागत स्थिति में अत्यधिक परिवर्तन हो गया है।
- समाज में वृद्धजनों की एक महत्वपूर्ण समस्या एकाकीपन की है। आधुनिक युग में लोग वृद्धों को परिवार का फालतू का अंग समझते हैं और उनके साथ उपेक्षा व्यवहार करते हैं। केवल मजबूरी में ही उनका भरण पोषण करते हैं। परिवार के सदस्य उनके साथ की भांति आत्मीयता व सम्मान का व्यवहार नहीं करते हैं बल्कि उपेक्षा का व्यवहार करते हैं।

- व्यक्ति जब वृद्ध हो जाता है तब उसकी आय कम हो जाती है अर्थात उसकी आय सामाजिक प्रस्थिति सामाजिक महत्व एवं उपयोगिता तथा उसके सामाजिक संबंधों में व्यंजन उत्पन्न करती है। इसके साथ ही साथ उसकी सामाजिक परिस्थिति में भी परिवर्तन होने लगता है।
- वर्तमान समय में प्रत्येक राष्ट्र में सुरक्षा का महत्व बढ़ता जा रहा है। भारत जैसे देशों में सामाजिक सुरक्षा की अत्यंत आवश्यकता होने के बावजूद यहां पर सामाजिक सुरक्षा का अभाव पाया जाता है। यही कारण है कि यहां पर वृद्धो की समस्याएं व्याप्त रहती हैं।
- वृद्धजनों का खाली समय घर पर नहीं कटता है। अतः उनके समक्ष अपने खाली समय का उपयोग करने की भी प्रमुख समस्या होती है व्यक्ति अपनी युवावस्था में अपनी नौकरी या व्यापार में व्यस्त रहता है किंतु वृद्ध होने पर उनका तन किसी कार्य को करने में असमर्थता जताता है तब वह अपने खाली समय किताबें पढ़कर या फिर दूरदर्शन देखकर व्यतीत करता है।
- अधिकांश वृद्धजनों की आय नहीं के बराबर हो पाती है और जिनकी आए हो भी पाती है तो बहुत ही कम हो पाती है अतः उनके समक्ष आर्थिक समस्या गंभीर रूप धारण कर लेती है हमारे समाज में संपन्न वृद्धों की संख्या बहुत कम है और विपन्न वृद्धों की संख्या बहुत अधिक है अतः इनके सामने भरण-पोषण की भी समस्या बनी रहती है।

उपर्युक्त विवेचन से यह स्पष्ट होता है कि वर्तमान समय में भारत में अन्य देशों की अपेक्षा वृद्धो की समस्याएं हैं।
I was searching for the good topic to research and read, I got it this article on your blog, Thank you so much. To get all details