विषाणु एवं जीवाणु

विषाणु एवं जीवाणु – पृथ्वी पर असंख्य अति सूक्ष्म जीवित कण पाए जाते हैं। यह न्यूक्लिक अम्ल एवं प्रोटीन से बने होते हैं। इनमें निर्जीव एवं सजीवों के लक्षणों का सम्मिश्रण होता है, इन्हें विषाणु या वायरस कहते हैं। जीवाणु एक एककोशिकीय जीव है। इसका आकार कुछ मिलिमीटर तक ही होता है।

विषाणु एवं जीवाणु

विषाणु सजीव एवं निर्जीव जगत के बीच संयोजक कड़ी माने जाते हैं। इनके कारण जंतु एवं पौधे में संक्रामक रोग उत्पन्न होते हैं। यह इतने सूक्ष्म होते हैं कि केवल इलेक्ट्रॉन सूक्ष्म दर्शी द्वारा ही देखे जा सकते हैं। इनका अध्ययन विषाणु विज्ञान (virology) के अंतर्गत किया जाता है। यह कोशिका के बाहर निर्जीव पदार्थ की तरह होते हैं और जीवन संबंधी कोई लक्षण प्रदर्शित नहीं करते किंतु जीवित कोशिका के संपर्क में आने पर यह सजीव हो जाते हैं।

जीवाणु की खोज सर्वप्रथम एंटोनी वॉनल्यूवेन हॉक ने 1683 मैं की थी। उन्होंने इन्हें एनिमल क्यूल कहा। लीनियस ने जीवाणु को वंश वरमिज में रखा। एरनबर्ग ने 1829 मैं इन्हें जीवाणु नाम दिया। फ्रांस के वैज्ञानिक लुई पाश्चर ने 1876 ईस्वी में बताया कि किण्वन की क्रिया जीवाणुओं द्वारा होती है। जर्मन वैज्ञानिक रॉबर्ट कोच ने बताया कि मनुष्य में हैजा तथा क्षय रोग आदि जीवाणुवो के कारण होते हैं।

इन्होंने रोगाणुओं द्वारा रोगों को उत्पत्ति का सिद्धांत प्रतिपादित किया। जीवाणुओं के अध्ययन को जीवाणु विज्ञान (Bacteriology) कहते हैं। एंटोनी वॉनल्यूवेनक को जीवन विज्ञान का जनक, लुई पाश्चर को सूक्ष्म जीव विज्ञान का जनक तथा रॉबर्ट कोच को आधुनिक विज्ञान का जनक कहा जाता है।

विषाणु जनित रोग

विषाणु परजीवी होते हैं। पोषक कोशिका में विशाल की उपस्थिति के कारण रोग उत्पन्न होते हैं। विषाणु जनित रोग निम्नलिखित है-

  • हेपेटाइटिस
  • रेबीज
  • पोलियो
  • डेंगू
  • चिकनगुनिया
  • पीत ज्वर
  • मस्तिष्क ज्वर
  • फ्लू या इनफ्लुएंजा
  • चेचक आदि।

जीवाणु जनित रोग

परजीवी जीवाणु के द्वारा पौषध में अनेक रोग हो जाते हैं; जैसे-

  • टायफाइड
  • क्षय रोग
  • अतिसार
  • कुकर खासी
  • हैजा
  • कर्ण फेर
  • छोटी माता
  • चेचक आदि।
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