विश्वविद्यालय स्तर पर पर्यावरण शिक्षा – विश्वविद्यालयों में शिक्षा स्नातक कक्षाओं से आरम्भ होकर उच्च स्तर तक जाती है। विश्वविद्यालयों में प्रवेश लेने वाले छात्रों की आयु प्रायः 18 से लेकर 25 वर्ष के मध्य रहती है। इस आयु के छात्र पूरी तरह से विचरणीय अर्थात् परिपक्व हो जाते हैं, क्योंकि वे किसी भी समस्या का समाधान खोजने में समर्थ हो जाते हैं। अतः आयु एवं मानसिक स्तर पर विश्वविद्यालयों में पर्यावरण शिक्षा की रूपरेखा निम्नलिखित प्रकार से तैयार की जा सकती है-

विश्वविद्यालय स्तर पर पर्यावरण शिक्षा
- प्रत्येक विश्वविद्यालय में पर्यावरण शिक्षा विभाग होना चाहिये, जिसमें अनुभवी प्रोफेसर (व्याख्याता) तथा प्रयोगात्मक वैज्ञानिक होने चाहिये।
- विश्वविद्यालय के इस विभाग में विद्यालयों के शिक्षकों को भी पर्यावरण शिक्षा प्रदान की जानी चाहिये, जिससे वे पर्यावरण की शिक्षा लेकर पर्यावरण शिक्षा का प्रचार-प्रसार कर सकें।
- प्रत्येक विश्वविद्यालय में उन सभी विषयों का समन्वय स्थापित करना चाहिये जिनका सम्बन्ध प्रत्यक्ष या अप्रत्यक्ष रूप से पर्यावरण से है।
- विश्वविद्यालयों में पर्यावरण से सम्बन्धित छोटी अवधि के पाठ्यक्रमों का भी समावेश किया जाना चाहिये।
- छात्रों को इस बात के लिये प्रोत्साहित किया जाना चाहिये कि वे घातक एवं हानिकारक पदार्थों के प्रयोग को कम कर सकें।
- विश्वविद्यालयों के द्वारा पर्यावरण सुरक्षा पर विशेषज्ञों के द्वारा सभी भाषाओं मेंपुस्तकें लिखी जानी चाहिये।
- विश्वविद्यालय की उच्च शिक्षा के सभी विषयों में पर्यावरण के सम्बन्ध में कुछ न कुछ जानकारी अवश्य होनी चाहिये।
- विश्वविद्यालय में वैज्ञानिकों तथा इंजीनियरों आदि के लिए पर्यावरण प्रशिक्षण कीव्यवस्था होनी चाहिये।

- विश्वविद्यालय के शिक्षकों को पर्यावरण एवं वन मंत्रालय द्वारा प्रशिक्षण दिया जाना चाहिए।
- पर्यावरण शिक्षा के अन्तर्गत पर्यावरण विभाग को विश्वविद्यालय स्तर पर, राष्ट्रीय स्तर तथा अन्तर्राष्ट्रीय स्तर पर पर्यावरण से सम्बन्धित संगोष्ठियाँ आयोजित करनी चाहिये, क्योंकि इन संगोष्ठियों के माध्यम से लोगों को पर्यावरण के सम्बन्ध में आवश्यक जानकारियाँ प्राप्त हो सकेंगी।
- विश्वविद्यालयों द्वारा तैयार किये गये लेख, रिपोर्ट तथा पर्यावरण से सम्बन्धित आवश्यक लेखों को दूसरी संस्थाओं, संस्थानों, एवं विश्वविद्यालयों में भेजने की उचित व्यवस्थाहोनी चाहिये।प्रत्येक विश्वविद्यालय में पर्यावरण से सम्बन्धित एक प्रदर्शनी कक्ष की व्यवस्था होनी चाहिये, जिससे उस प्रदर्शनी में देश के नागरिक जाकर पर्यावरण के विषय में कुछ सीख सकें।
- विश्वविद्यालय में छात्रों को पर्यावरण संरक्षण से सम्बन्धित शिक्षा प्रदान करनी चाहिये।
- पर्यावरण से सम्बन्धित स्नातक स्तर की शिक्षा की अवधि तीन वर्ष तथा स्नातकोत्तर स्तर की शिक्षा की अवधि दो वर्ष होनी चाहिए।
- विश्वविद्यलयों में पर्यावरण शिक्षा ग्रहण करने वाले छात्रों को कम से कम प्रत्येक तीन वर्ष में एक महीने की अवधि के लिये प्रयोगात्मक कार्यों के लिये उनके क्षेत्र में भेजने की व्यवस्था की जानी चाहिये।

- विश्वविद्यालयों को पर्यावरण समस्याओं से सम्बन्धित आँकड़े एकत्रित करने चाहिये एवं उन आँकड़ों के आधार पर समस्याओं के समाधान खोजे जाने चाहिये।
- पर्यावरण शिक्षा ग्रहण करने वाले छात्रों को पर्यावरण की मूल शिक्षा के अतिरिक्त पर्यावरण से सम्बन्धित दूसरे विषयों की भी शिक्षा दी जानी चाहिये, जिससे वे पर्यावरणीय समस्याओं का समाधान अच्छी तरह से कर सकें।
- विश्वविद्यालय के पर्यावरण विभाग को अपने क्षेत्र की पर्यावरण समस्याओं के समाधान के लिये स्थानीय शिक्षण कार्यक्रम भी चलाने चाहिये।
- पर्यावरण की अधिकांश समस्याओं का जन्म प्रौद्योगिकी, तकनीकी एवं औद्योगिक विकास की देन है। इसलिये यह आवश्यक है कि इंजीनियरिंग के प्रत्येक छात्रों को उनके व्यवसाय से सम्बन्धित पर्यावरण की शिक्षा दी जानी चाहिये ।
- विश्वविद्यालयों में पर्यावरण दिवस आवश्यक रूप से मनाया जाना चाहिए।
- यह हमारे लिये खेद एवं दुर्भाग्य की बात है कि अभी तक देश के किसी भी विश्वविद्यालय स्तर पर पर्यावरण शिक्षा विभाग नहीं है। जहाँ कहीं भी पर्यावरण शिक्षा दी जा रही है, वह केवल कुछ ही विषयों का एक बहुत ही छोटा-सा अंश है। यदि देश को पर्यावरण संकट से बचाना है तो विश्वविद्यालय में पर्यावरण शिक्षा विभाग खोलने होंगे और पर्यावरण शिक्षा के उचित पाठ्यक्रम निर्धारित करने होंगे।