विश्वविद्यालय शिक्षा प्रशासन आंतरिक व्यवस्था व संस्थाएं

विश्वविद्यालय शिक्षा प्रशासन – विश्वविद्यालय शिक्षा से हमारा अभिप्राय केवल उच्च शिक्षा से नहीं है, जो विश्वविद्यालयों के द्वारा ही प्रदान की जाती है। वरन् उसका अर्थ उच्च शिक्षा से है। जो विश्वविद्यालय से संबद्ध कालेजों में भी प्रदान की जाती है। विश्वविद्यालय एक स्वायत्त प्राप्त संस्था है, जिसका प्रबंध स्वयं उसी के द्वारा किया जाता है।

भारत में विश्वविद्यालय के प्रकार

भारत में तीन प्रकार के विश्वविद्यालय हैं –

  1. केंद्रीय विश्वविद्यालय – ये विश्वविद्यालय केंद्र शासित हैं और इनके व एवं प्रबंध का संपूर्ण भार केंद्रीय सरकार पर है। इस प्रकार के 30 से अधिक विश्वविद्यालय हैं।
  2. राज्य विश्वविद्यालय – यह विश्वविद्यालय राज्य शासित हैं और इनके व्यय एवं प्रबंध का भार राज्य सरकार पर है। केंद्रीय विश्वविद्यालयों के अतिरिक्त शेष समस्त विश्व विद्यालय राजकीय विश्वविद्यालय हैं।
  3. विश्वविद्यालय समझी जाने वाली संस्थाएंभारत में इस प्रकार की संस्थाएं विश्वविद्यालय अनुदान आयोग अधिनियम की धारा 3 के अनुसार स्थापित की गई है ऐसी संस्थाएं 100 से भी अधिक है।

प्रथम तथा द्वितीय प्रकार के विश्वविद्यालयों को उनके संगठन के अनुसार 3 वर्गों में विभाजित किया जा सकता है-

  1. सम्बद्ध विश्वविद्यालय – यह विश्वविद्यालय अपने अधिकार क्षेत्र में स्थित कॉलेजों को मान्यता प्रदान करता है, ‌ उन पर नियंत्रण रखता है, उनके लिए पाठ्यक्रम निर्धारित करता है तथा उन में अध्ययन करने वाले छात्रों की परीक्षाओं का आयोजन करता है।
  2. एकात्मक विश्वविद्यालय – यह विश्वविद्यालय अपने द्वारा नियुक्त किए जाने वाले शिक्षकों को अध्ययन कार्य सकता है और इसका अपने प्रशासन पर पूर्ण अधिकार होता है।
  3. संघात्मक विश्वविद्यालय – इस विश्वविद्यालय के अंतर्गत उसका संविधान कॉलेज विश्वविद्यालय स्तर की शिक्षा प्रदान करता है।

भारत में विश्वविद्यालयों एवं विश्वविद्यालय स्तर की संस्थाओं में 20 केंद्रीय विश्वविद्यालय, 215 राज्य विश्वविद्यालय, 100 डीम्ड विश्वविद्यालय राज्य अधिनियम के अंतर्गत गठित 5 संस्थाएं तथा 13 राष्ट्रीय महत्व के संस्थान शामिल है। यह संस्थान 1800 महिला महाविद्यालयों सहित 17000 महाविद्यालयों के अतिरिक्त है।

विश्वविद्यालय की आंतरिक व्यवस्था

विश्वविद्यालय की आंतरिक व्यवस्था मामूली विभिन्नता के अतिरिक्त प्रायः एक सी है। केंद्रीय विश्वविद्यालयों को छोड़कर राज्य विश्वविद्यालयों का अपदेन कुलाधिपति या औपचारिक अध्यक्ष राज्य का गवर्नर होता है। इसके अतिरिक्त कुलपति प्रतिदिन के प्रशासन के लिए पूर्ण समय के लिए एक वेतन पाने वाला अधिकारी होता है। आप विश्वविद्यालय शिक्षा प्रशासन Hindibag पर पढ़ रहे हैं।

इसकी नियुक्ति एक निश्चित समय के लिए होती है। यह अवधि 3 से 5 वर्ष तक है। विश्वविद्यालय शिक्षा आयोग ने सिफारिश की थी कि कुलपति वह व्यक्ति होना चाहिए जो शिक्षकों तथा छात्रों के विश्वास को अपने व्यक्तित्व एवं विधता के फलस्वरूप प्राप्त कर सके। कुलपति को विश्वविद्यालय की चेतना को कायम रखने वाला होना चाहिए। कुलपति को विश्वविद्यालय तथा जनता के बीच उपयुक्त संपर्क स्थापित करने वाला अधिकारी होना चाहिए।

कुछ विश्वविद्यालय प्रो वाइस चांसलर या व्यक्ति रखते हैं जो कि कुलपति को उसके कार्य में सहायता प्रदान करता है। कुलपति की नियुक्ति राज्यपाल एक चयन समिति की सहायता से करता है।

विश्वविद्यालय की संस्थाएं

विश्वविद्यालय शिक्षा प्रशासन के अंतर्गत विश्वविद्यालय की 3 संस्थाएं हैं –

1. सीनेट या कोर्ट

इस संस्था में विभिन्न हितों को प्रतिनिधित्व प्राप्त है। जैसे प्राचार्य शिक्षक नगर पालिका ने व्यावसायिक एवं औद्योगिक हित, स्थानीय हित, प्रांतीय विधानमंडल, दान देने वालों के हित, पंजीकृत ग्रेजुएट आदि। कुछ सरकारी विभागों के अध्यक्ष इसके अपदेन सदस्य होते हैं। इसके अतिरिक्त इसके लिए कुलाधिपति या सरकार की कुछ सदस्यों को मनोनीत करती है।

यह संस्था विश्वविद्यालय नीति के विभिन्न प्रश्नों को निर्धारित करती है। इसको बजट एवं अपील संबंधी शक्तियां भी प्राप्त हैं। धीरे-धीरे इस संस्था में निर्वाचित तत्वों को भी स्थान दिया जाने लगा है। शिक्षा आयोग ने सुझाव दिया है कि इस संस्था में छात्रों को भी प्रतिनिधित्व प्रदान किया जाए। (विश्वविद्यालय शिक्षा प्रशासन)

2. सिंडिकेट या कार्यकारिणी परिषद

विश्वविद्यालय के प्रशासन में यह संस्था धुरी जैसा कार्य करती है। यही संस्था संपूर्ण प्रशासन संबंधी कार्यों को करती है और यह विश्वविद्यालय की संपत्ति तथा कोष एवं उसके प्रति दिन के प्रशासन का संचालन करती है। यह एक छोटा निकाय है जिसमें निम्नलिखित का प्रतिनिधित्व होता है-

  1. कुलपति
  2. प्रदेश का शिक्षा संचालक
  3. सीनेट या कोर्ट के प्रतिनिधि
  4. संस्थाओं के सदस्य
  5. कालेजों के वरिष्ठ प्रधानाचार्य

3. संकाय

यह अध्ययन मंडलों के माध्यम से कार्य करते हैं। वस्तुतः यह समन्वय स्थापित करने वाले निकाय हैं जो कि विभिन्न विषयों से संबंधित समान हितों की देखभाल करते हैं। एकेडमिक परिषद की सहायता से पाठ्यक्रम, शिक्षण का संगठन तथा परीक्षाओं का विनियमन करते हैं। (विश्वविद्यालय शिक्षा प्रशासन)

कुछ विश्वविद्यालयों में विद्यालय शिक्षण मंडल भी हैं जो कि संबंधित कालेजों में शिक्षण का नियंत्रण एवं उससे समन्वय स्थापित करता है। बहुत से विश्व विद्यालय की स्थाई वित्त समिति तथा विश्वविद्यालयों के शिक्षकों के चयन के लिए वैधानिक मंडल स्थापित करते हैं। उत्तर प्रदेश में राज्य विश्वविद्यालय से संबंधित अध्यादेश लागू करके उनके प्रशासन में महत्वपूर्ण परिवर्तन किए गए हैं।

विश्वविद्यालय की स्वायत्तता

कोठारी कमीशन का सुझाव है कि विश्वविद्यालय की स्वायत्तता निम्नलिखित क्षेत्रों में निहित हो-

  1. छात्रों के चयन में
  2. शिक्षकों की नियुक्ति एवं पदोन्नति में।
  3. अध्ययन विषयों शिक्षण विधियों तथा अनुसंधान के लिए उपयुक्त क्षेत्रों एवं समस्याओं के चयन में।
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