विश्वविद्यालय शिक्षा आयोग 1948 – Best उद्देश्य एवं सुझाव

विश्वविद्यालय शिक्षा आयोग ने भारतीय शिक्षा के गिरते हुए स्तर पर गहरी चिंता व्यक्त करते हुए उनमें प्रत्येक संभव उपाय के द्वारा सुधार करने के संबंध में अपने सुझाव दिए। उच्च शिक्षा के स्तर में वृद्धि करने के उद्देश्य से आयोग ने विश्वविद्यालय शिक्षा के स्तर की ओर ध्यान दिया। उनका मानना था कि हमारे विश्वविद्यालयों से शिक्षा प्राप्त स्नातक देश को विभिन्न क्षेत्रों में नेतृत्व प्रदान करें। आयोग चाहता था कि हमारे स्नातक विश्व स्तर के हो।

विश्वविद्यालय शिक्षा आयोग

विश्वविद्यालय शिक्षा आयोग या राधाकृष्ण आयोग भारत सरकार द्वारा नवम्बर 1947 में भारतीय विश्वविद्यालयी शिक्षा की अवस्था पर रिपोर्ट देने के लिये नियुक्त किया गया था। इस आयोग के अध्यक्ष डॉ॰ सर्वपल्ली राधा कृष्णन थे। विश्वविद्यालय शिक्षा आयोग ने उच्च एवं विश्वविद्यालयी शिक्षा के संबंध में सम्यक विचार-विमर्श के बाद 25 अगस्त 1949 को 747 पृष्ठों का अपना प्रतिवेदन भारत सरकार के समक्ष प्रस्तुत किया।

विश्वविद्यालय शिक्षा आयोग के उद्देश्य

राधाकृष्णन आयोग ने विश्वविद्यालय शिक्षा के निम्नांकित उद्देश्य बताएं हैं

नेतृत्व निर्माण

इस बात का एहसास किया गया कि स्वतंत्रता प्राप्ति के पश्चात देश की आर्थिक, सामाजिक व राजनीतिक परिस्थितियों में परिवर्तनों ने हमारे विश्वविद्यालयों के कार्यों व उत्तरदायित्वों में वृद्धि कर दी है। अतः राजनीतिक, व्यवसायिक, औद्योगिक एवं वाणिज्यिक क्षेत्रों में नेतृत्व ग्रहण कर सकने वाले व्यक्तियों का निर्माण करना चाहिए।

आदर्शों के प्रति तथा राष्ट्रीय विरासत के संरक्षक

आयोग के शब्दों में हम न्याय स्वतंत्रता समानता एवं बंता के प्राप्त द्वारा प्रजातंत्र की खोज में संगठन है। अतः हमारे विश्वविद्यालयों की अनिवार्यता इन आदर्शों का प्रति तथा संरक्षक होना चाहिए। विश्वविद्यालयों की अपनी संस्कृति विरासत को अच्छा रखने हेतु राष्ट्रीय विरासत को अपनाने वाले और उन में योगदान देने वाले युवकों को तैयार करना चाहिए।

बुद्धिजीवी तथा बौद्धिक साहस वाले व्यक्ति

विश्वविद्यालयों को प्रजातंत्र को सफल बनाने हेतु शिक्षा का प्रसार व ज्ञान की खोज कर सकने वाले व्यक्तियों को तैयार करना चाहिए। यह अनुभव किया गया कि विश्वविद्यालय समाज सुधार के कार्य में महान योगदान दे सकते हैं। अतः उन्हें दूरदर्शी, बुद्धिमान व बौद्धिक साहस वाले व्यक्तियों को उत्पन्न करना चाहिए।

शारीरिक स्वास्थ्य तथा जन्मजात गुणों का विकास

स्वस्थ शरीर में स्वस्थ मस्तिष्क का निर्माण होने के कारण विश्वविद्यालयों को अपने छात्रों का मानसिक विकास के साथ-साथ शारीरिक विकास भी करना चाहिए। शिक्षा को व्यक्ति के जन्मजात गुणों की खोज करके उनका विकास करना चाहिए।
शिक्षा शास्त्र

भारत सरकार द्वारा 1948 में नियुक्त विश्वविद्यालय शिक्षा आयोग के सुझाव के अनुसार 1953 ईस्वी में विश्वविद्यालय अनुदान आयोग की स्थापना की गई। सन 1956 में संसद के अधिनियम द्वारा इसे वैधानिक संस्था स्वीकार कर लिया गया। इस अधिनियम के अनुसार चेयरमैन तथा सचिव के अतिरिक्त विश्वविद्यालय अनुदान आयोग के 9 सदस्य होंगे।

विश्वविद्यालय अनुदान आयोग के कार्य

विश्वविद्यालय अनुदान आयोग के कार्य निम्नलिखित हैं –

  1. विश्वविद्यालय शिक्षा में सुधार करने एवं शिक्षण स्तर को उच्च बनाने के लिए विश्वविद्यालयों को सलाह देना।
  2. विश्वविद्यालयों को अपने कोष से दी जाने वाली धन राशि का वितरण करना तथा इस संबंध में अपनी नीति का निर्धारण करना।
  3. नवीन विश्वविद्यालयों की स्थापना एवं प्रचलित विश्वविद्यालयों के कार्य क्षेत्र की वृद्धि के बारे में पूछे जाने पर अपना मत प्रकट करना।
  4. भारत सरकार एवं विश्वविद्यालयों द्वारा पूछे गए प्रश्नों का उत्तर देना तथा उनकी शंकाओं का समाधान करना।
  5. विश्वविद्यालयों की आर्थिक स्थितियों की जांच करना और केंद्रीय सरकार द्वारा उनको सहायता अनुदान में दी जाने वाली धनराशि के संबंध में सुझाव देना।
  6. विश्वविद्यालय शिक्षा के विस्तार एवं विकास से संबंधित आवश्यक कार्यों को पूरा करना।
  7. विश्वविद्यालयों से उनकी परीक्षाओं पाठ्यक्रमों अनुसंधान कार्यों आदि के संबंध में सूचना प्राप्त करना।
  8. विश्वविद्यालयों के लिए उपयुक्त समझी जाने वाली सूचनाओं को भारत तथा विदेशों से एकत्रित करके विश्वविद्यालयों को भेजना।
  9. विश्वविद्यालय तथा विविध सेवाओं के लिए प्रदान की गई उपाधियों के संबंध में भारत सरकार तथा राज्य सरकारों को अपनी सलाह देना।

विश्वविद्यालय शिक्षा आयोग के सुझाव

विश्वविद्यालय शिक्षा आयोग ने अपनी उपाधि के मध्य में पाया कि उच्च शिक्षा का स्तर गिर रहा है, क्योंकि इंटरमीडिएट शिक्षा के स्तर में गिरावट आई है। इसके कारण विश्वविद्यालय में प्रवेश लेने वाले छात्रों का शैक्षिक स्तर नीचे हो रहा है। इस दोष को दूर करने के लिए आयोग ने निम्न सुझाव दिए हैं-

  1. केवल इंटरमीडिएट परीक्षा में उत्तीर्ण छात्रों को विश्वविद्यालय में प्रवेश पाने का अधिकार हो तथा इससे कम योग्यता वाले छात्र को प्रवेश न दिया जाए।
  2. प्रत्येक राज्य में अच्छे इंटरमीडिएट कॉलेज खोले जाएं ताकि विद्यार्थियों को इस स्तर की शिक्षा पाने में कोई असुविधा न हो।
  3. इंटरमीडिएट कक्षाओं में व्यवसायिक शिक्षा प्राप्त करने के आधिकारिक अवसर उपलब्ध कराए जाएं।
  4. विश्वविद्यालयों से संबद्ध डिग्री कॉलेजों में छात्र संख्या पंद्रह सौ से अधिक न हो तथा उन विश्वविद्यालयों में जहां शिक्षा प्रदान की जाती है छात्र संख्या 3000 तक सीमित हो।
  5. एक सत्र में 180 दिन डिग्री कॉलेजों में शिक्षण कार्य होना चाहिए।
  6. शिक्षकों को अपने व्याख्यान ध्यान पूर्वक तैयार करने चाहिए तथा ट्यूटोरियल कार्य में विशेष रूचि लेनी चाहिए।
  7. किसी भी पुस्तक को पाठ्य पुस्तक की संज्ञा नहीं देनी चाहिए। किसी भी विषय में किसी भी पुस्तक को पाठ्यपुस्तक निर्धारित नहीं करनी चाहिए।
  8. प्राइवेट छात्रों की संख्या अधिक नहीं होनी चाहिए। छात्रों के लिए व्याख्यान कक्षाओं में उपस्थिति के संबंध में प्रतिशत निर्धारित कर दिया जाना चाहिए तथा कम उपस्थिति वाले छात्रों को परीक्षा में सम्मिलित नहीं होने देना चाहिए।
  9. ट्यूटोरियल कार्य के लिए विशेष योग्य शिक्षकों को नियुक्त करना चाहिए।
  • विश्वविद्यालय शिक्षा आयोग
  • वैदिककालीन शिक्षा, उच्च शिक्षा के उद्देश्य

विश्वविद्यालय शिक्षा आयोग के पाठ्यक्रम संबंधी सुझाव

  1. विश्वविद्यालय तथा माध्यमिक शिक्षण संस्थाएं पाठ्यक्रम तथा पाठ्य सामग्री की उचित व्यवस्था करें और सामान्य रूप से प्रचलित एवं मान्यता प्राप्त व्यवहारों तथा शिक्षा के सिद्धांतों का प्रशिक्षण अनिवार्य कर दें।
  2. इन सिद्धांतों व व्यवहारों का शिक्षण कार्य प्रारंभ करने में विलंब हानिकारक होगा। यह सुझाव विश्वविद्यालय व माध्यमिक शिक्षा संस्थाओं में लागू किया जाना चाहिए।
  3. छात्रों के हित में सामान्य शिक्षा तथा विशिष्ट शिक्षा की व्यवस्था हो। इस प्रकार के हित में व्यक्तिगत, धनोपार्जन, श्रेष्ठ नागरिकता आदि सम्मिलित है।

विश्वविद्यालय शिक्षा आयोग के अध्यापक प्रशिक्षण संबंधी सुझाव

  1. अध्यापक प्रशिक्षण संस्थाओं में पुस्तक की ज्ञान के स्थान पर व्यावहारिक ज्ञान प्राप्त करने पर विशेष बल देना चाहिए। इसी प्रकार पाठ्यक्रम में परिवर्तन करके उसे और उपयोगी बनाया जाना चाहिए। परीक्षा में अभ्यास कार्य को वरीयता मिलनी चाहिए।
  2. पर्याप्त अनुभवी अध्यापकों की नियुक्ति इन प्रशिक्षण विद्यालयों में होनी चाहिए।
  3. इनके पाठ्यक्रम समय की मांग व आवश्यकता के अनुसार आसानी से परिवर्तित होने चाहिए तथा पाठ्यक्रम में सामयिक व स्थानीय आवश्यकताओं को महत्त्व मिलना चाहिए।
  4. इस व्यवसाय की उच्च शिक्षा उन छात्रों को मिलनी चाहिए जिन्होंने कुछ समय तक शिक्षण कार्य किया हो।
  5. इन संस्थाओं के वरिष्ठ अध्यापकों को अध्यापन कार्य के क्षेत्र में अनुसंधान करने व मौलिक अनुभव प्राप्त करते रहना चाहिए।

विश्वविद्यालय शिक्षा आयोग के धनोपार्जन से संबंधित व्यावसायिक शिक्षा संबंधी सुझाव

इस आयोग के अनुसार छात्र को तीन या चार व्यवसायिक विषयों की शिक्षा देनी चाहिए। स्नातकों को किसी भी व्यवसाय को उसकी रूचि के अनुसार शिक्षण ग्रहण करने को प्रोत्साहित करना चाहिए।

विश्वविद्यालय शिक्षा आयोग के चिकित्सा शिक्षा संबंधी सुझाव

  1. प्राचीन भारतीय चिकित्सा पद्धतियों का विकास किया जाए, आयुर्वेदिक व हकीमी प्रणालियों का विकास करके इनमें अनुसंधान को बढ़ावा दिया जाए।
  2. रोगी परिचर्या व रोगों की रोकथाम के लिए उपाय किए जाएं।
  3. इन कॉलेजों में अधिक छात्र ना लेकर एक सत्र में 190 से अधिक छात्र ना लिया जाए तथा प्रत्येक छात्र के अधीन 10 से अधिक रोगी न हों।
  4. स्नातकोत्तर चिकित्सा की शिक्षा देने वाली संस्थाओं में औजार, साज सज्जा, औषधि आदि की पर्याप्त व्यवस्था होनी चाहिए।
  5. ग्रामीण व साधन हीन लोगों की चिकित्सा का प्रशिक्षण भी छात्रों को दिया जाए।

विश्वविद्यालय शिक्षा आयोग के महिला शिक्षा संबंधी सुझाव

  1. स्त्रियों व पुरुषों की शिक्षा कुछ क्षेत्रों में समान व कुछ में भिन्न होनी चाहिए। या भिन्नता उनके स्वभाव गुण प्रकृति व कार्य क्षेत्र के अनुरूप होनी चाहिए।
  2. नारी शिक्षा के अभाव को दूर करके उन्हें सुविधाएं प्रदान की जानी चाहिए।
  3. स्त्रियों को अपनी रूचि की शिक्षा के चुनाव में अनुभवी और योग्य व्यक्तियों की सलाह सहायता उपलब्ध होनी चाहिए।
  4. समाज में नारी का महत्व व उससे अपेक्षा का ज्ञान उन्हें होना चाहिए जिससे वह देश समाज परिवार में अपनी भूमिका को समझ सके व उसे निभा सके।
  5. स्त्रियों को गृह विज्ञान हुआ ग्रह अर्थशास्त्र की शिक्षा आवश्यक है।
  6. सह शिक्षण संस्थाओं में स्त्रियों के लिए आवश्यक बुनियादी सुविधाएं हो।

विश्वविद्यालय शिक्षा आयोग के धार्मिक शिक्षा के संबंध में सुझाव

  1. आत्मचिंतन छात्रों के लिए आवश्यक है। प्रत्येक दिन थोड़ा समय इसके लिए अवश्य दिया जाना चाहिए, उसके बाद ही अध्ययन कार्य प्रारंभ हो।
  2. स्वामी दयानंद ईसा मसीह बुद्ध शंकराचार्य मोहम्मद आदि महापुरुषों की जीवनियों का अध्ययन स्नातक के प्रथम वर्ष में होना चाहिए।
  3. धार्मिक ग्रंथों के मूल तत्वों का अध्ययन स्नातक के द्वितीय वर्ष में होना चाहिए।
  4. धर्म दर्शन के तत्वों व समस्याओं का अध्ययन तीसरे वर्ष में होना चाहिए।

विश्वविद्यालय शिक्षा आयोग के चरित्र निर्माण संबंधी सुझाव

छात्र कल्याण कथा चरित्र निर्माण से संबंधित आयोग ने निम्नलिखित सुझाव दिए हैं जो कि इस प्रकार है-

  1. डिग्री कॉलेज तथा विश्वविद्यालयों में योग्यता के आधार पर प्रवेश।
  2. योग्य व निर्धन प्रतिभावान छात्रों को निष्पक्ष रुप से छात्रवृत्तियां मिले।
  3. स्वास्थ्य सुधार की सभी सुविधाएं नियमित रूप से मिले।
  4. खेल कूद और व्यायामशालाओं की विद्यालयों में व्यवस्था हो।
  5. छात्र यूनियन को राजनीति से दूर रखा जाए।
  6. परामर्श दात्री समिति प्रत्येक कॉलेज में गठित हो।
  7. शिक्षा संस्था के प्रशासन में छात्रों को सक्रीय भागीदारी मिले।
वैदिककालीन शिक्षाबौद्धकालीन शिक्षामुस्लिमकालीन शिक्षा
तक्षशिला विश्वविद्यालयमैकाले का विवरण पत्र 1835लॉर्ड विलियम बैंटिक की शिक्षा नीति
वुड का घोषणा पत्रहण्टर आयोगलार्ड कर्जन की शिक्षा नीति
सैडलर आयोग 1917सार्जेण्ट रिपोर्ट 1944मुदालियर आयोग 1952
कोठारी आयोग 1964राष्ट्रीय पाठ्यक्रम 2005बेसिक शिक्षा
विश्वविद्यालय शिक्षा आयोगशिक्षा का राष्ट्रीयकरणत्रिभाषा सूत्र
राष्ट्रीय साक्षरता मिशनप्रौढ़ शिक्षा अर्थप्रशिक्षित अप्रशिक्षित शिक्षक में अंतर
दूरस्थ शिक्षा अर्थ परिभाषाऑपरेशन ब्लैक बोर्डशिक्षक शिक्षा की समस्याएं
विश्वविद्यालय संप्रभुताउच्च शिक्षा समस्याएंउच्च शिक्षा समस्याएं
उच्च शिक्षा के उद्देश्यशैक्षिक स्तर गिरने के कारणमुक्त विश्वविद्यालय
मुक्त विश्वविद्यालय के उद्देश्यशिक्षा का व्यवसायीकरणसर्व शिक्षा अभियान
guest

0 Comments
Inline Feedbacks
View all comments