विशिष्ट बालक – प्रत्येक विद्यालय में शिक्षा प्राप्त करने के लिए सामान्य बालकों के अलावा कुछ ऐसे बालक भी आते हैं जिनकी अपनी कुछ शारीरिक एवं मानसिक विशेषताएँ होती हैं। इनमें से कुछ प्रतिभाशाली, कुछ मंद बुद्धि, कुछ पिछड़े हुए और कुछ शारीरिक दोषों वाले बालक होते हैं। इन्हें ‘विशिष्ट बालक’ अथवा ‘अपवादात्मक’ बालक कहते हैं।
विशिष्ट बालकों में सामान्य बालकों की अपेक्षा कुछ असामान्यताएँ तथा विशेषताएँ पायी जाती हैं। इन विभिन्नताओं की चरम सीमा वाले बालक विशिष्ट बालक कहे जाते हैं। ऐसे बालक मानसिक, संवेगात्मक, शारीरिक एवं मानसिक रूप से सामान्य बालकों से अलग होते हैं।
विशिष्ट बालक परिभाषाएँ
‘विशिष्ट’ शब्द का अर्थ प्रत्येक व्यक्तियों हेतु भिन्न-भिन्न होता है। कहीं पर इस शब्द का प्रयोग ‘सर्वगुण सम्पन्न’ बालकों हेतु भी किया जाता है तथा कहीं पर यह शब्द असाधारण बालकों हेतु प्रयोग किया जाता है। टेलफोर्ड तथा सावरे ने ‘विशिष्ट’ का अर्थ ‘दुर्लभ’ गुणों से लगाया है।
विशिष्ट बालक मानसिक, शारीरिक तथा सामाजिक गुणों में सामान्य बालकों से भिन्न होता है उसकी भिन्नता कुछ ऐसी सीमा तक होती है कि उसे विद्यालय के सामान्य कार्यों में विशिष्ट शिक्षा सेवाओं में परिवर्तन की आवश्यकता होती है। ऐसे बालकों के लिए कुछ अतिरिक्त अनुदेशन भी चाहिए ऐसी दशा में उनका सामर्थ्य का सामान्य बालकों की अपेक्षा अधिक विकास हो सकता है।
क्रिक के शब्दों में
एक विशिष्ट बालक वह है जो शारीरिक, बुद्धिमानी तथा समाज के आधार पर सामान्य बालक की अपेक्षा गुणों में अधिक विकसित हो तथा सामान्य शिक्षा कक्ष में शिक्षण कार्यक्रम के मध्य उसे विशिष्ट प्रकार के व्यवहार की आवश्यकता हो।
डब्ल्यू. एम. क्रूचशेन्क
‘विशिष्ट’ एक ऐसा व्यक्ति होता है जिसकी शारीरिक, मानसिक, बुद्धि, इन्द्रियाँ, माँसपेशीय क्षमताएँ अनोखी हों अर्थात् सामान्यता ऐसे गुण दुर्लभ हों। ऐसी अनोखी दुर्लभ क्षमताएँ उसकी प्रवृत्ति तथा कार्यों के स्तर में भी हो सकती हैं। इस प्रकार के बालक प्रतिभाशाली बालक के रूप में परिभाषित होते हैं ऐसे बालक बड़ी आसानी से अन्य बालकों के बीच में पहचाने जा सकते हैं।
फोरनेस
वह बालक जो मानसिक, शारीरिक, सामाजिक और संवेगात्मक आदि विशेषताओं से विशिष्ट हो और यह विशिष्टता इस स्तर की हो कि उसे अपनी विकास क्षमता की उच्चतम सीमा तक पहुँचने के लिए विशेष प्रशिक्षण की आवश्यकता हो, असाधारण या विशिष्ट बालक कहलाता है।
क्रो एवं क्रो के अनुसार
असाधारण बालक वे हैं जो शारीरिक, मानसिक, सांवेगिक और सामाजिक दृष्टि से सामान्य गुणों से इस सीमा तक विचलित होते हैं कि उन्हें अपनी अधिकतम क्षमता के अनुसार स्वयं का विकास करने के लिए विशिष्ट शिक्षा की आवश्यकता होती है।
हैरी बाकर के अनुसार
अतः कहा जाता है कि विशिष्ट बालक वह होते हैं जो कि सामान्य बालकों से भिन्नता तथा शारीरिक व मानसिक विशिष्टता लिए हुए होते हैं।
विशिष्ट बालक के प्रकार
विशिष्ट बालकों के प्रकार निम्न हैं-
- श्रवण बाधित बालक
- दृष्टि बाधित
- मानसिक मन्दित
- अधिगम असमर्थी
- वाणी बाधित बालक
- अस्थि बाधित
- भावनात्मक रूप से बाधित
- विशेष स्वास्थ्य सम्बन्धी समस्यायुक्त बालक
- बुहविकारों से ग्रसित बालक
- प्रतिभावान बालक
- सृजनात्मक बालक
- समाज से असुविधाजनक बालक
विशिष्ट बालकों की विशेषताएँ
विशिष्ट बालकों की विशेषताएँ निम्नलिखित होती हैं-
- विशिष्ट बालक शारीरिक, मानसिक, सामाजिक तथा भावात्मक रूप में एक दूसरे से पूर्णतः भिन्न होते हैं।
- विशिष्ट बालकों के गुण तथा स्वरूप सामान्य बालकों से अलग होते हैं।
- विशिष्ट बालकों को समझने की शक्ति अन्य बालकों से भिन्न होती है।
- एक विशिष्ट बालक की अधिकतम सामर्थ्य के विकास के लिए उसे विद्यालय की कार्य-प्रणाली तथा उसके साथ किये जाने वाले व्यवहार में परिवर्तन की आवश्यकता होती है।
- विशिष्ट बालकों का विकास सामान्य बालकों की अपेक्षा तीव्र गति से होता है।



विशिष्ट बालक का वर्गीकरण
- शारीरिक रूप से विशिष्ट बालक।bharat
- मानसिक रूप से विशिष्ट बालक।
- शैक्षिक रूप से विशिष्ट बालक।
- सामाजिक रूप से विशिष्ट बालक।
शारीरिक रूप से विशिष्ट बालक
इस श्रेणी में वे सभी बालक आते हैं जिनमें किसी भी प्रकार की ऐसी शारीरिक अक्षमता एवं अयोग्यताएँ होती हैं जिनके कारण वे सामान्य बालकों के समान प्रचलित शिक्षण विधियों एवं पाठ्यक्रम से लाभान्वित नहीं हो पाते। ये शारीरिक अक्षमताएँ एवं अयोग्यताएँ प्रायः इन बालकों के अन्य क्षेत्रों में विकास में भी बाधा उत्पन्न करती हैं। अत: उन्हें शिक्षित करने व स्वावलम्बी बनाने के लिए विशेष प्रविधियों व सहायक यन्त्रों के उपयोग से शिक्षा देने व निर्देशन प्रदान करने की आवश्यकता होती है।
शारीरिक रूप से विकलांग बालकों को तीन उपवर्गों में रखा जा सकता है-
- सांवेदिक रूप से विकलांग बालक – जैसे – जन्मान्ध, कमजोर दृष्टि वाले, बहरे, ऊँचा सुनने वाले श्रवण दोष, देर से बोलना, गूंगे आदि।
- गतीय रूप से विकलांग बालक – जैसे- शरीर के किसी अंग को पोलियो, लकवा, अनियमित रक्तचाप, दुर्घटना या लम्बी बीमारी के कारण पूर्ण या आंशिक क्षति जोकि बालक के प्रभावित अंग की गति को अनियन्त्रित व अनियमित कर देती है।
- बहुल विकलांग – इस श्रेणी के अन्तर्गत वे बालक सम्मिलित हैं जो एक से अधिक शारीरिक निर्योग्यताओं, जैसे- सेरिवल पाल्सी, गिरगी, पैराप्लेजिया आदि रोगों से ग्रस्त होते हैं।
मानसिक रूप से विशिष्ट बालक
असामान्य बौद्धिक क्षमताओं वाले सभी बालक इस वर्ग में आते हैं। यह बौद्धिक असामान्यता धनात्मक व ऋणात्मक दोनों प्रकार की हो सकती हैं।
- प्रतिभाशाली बालक – धनात्मक बौद्धिक असामान्यता वाले बालकों को प्रतिभाशाली बालक कहा जाता है। ये प्रायः विलक्षण बुद्धि अथवा किसी क्षेत्र विशेष में उल्लेखनीय उच्च स्तरीय योगत्यता या उपलब्धि रखते हैं। इनकी बुद्धिलब्धि (IQ) 120 से अधिक होती है।
- सृजनात्मक बालक – कुछ विद्वान सृजनात्मक बालक को भी उच्च मानसिक योग्यता वाले या प्रतिभा सम्पन्न बालकों को श्रेणी में रखते हैं जबकि अन्य सृजनात्मक बालक को प्रतिभाशाली बालक से भिन्न मानते हैं। अनेक अध्ययनों एवं शोधों में प्राय: एक औसत बौद्धिक क्षमता वाले बालक को अधिक सृजनात्मक पाया गया है। प्रतिभाशाली बालकों में कुछ सीमा तक सृजनात्मकता का गुण होता है किन्तु यह आवश्यक नहीं है कि प्रत्येक सृजनात्मक बालक औसत से अधिक मानसिक योग्यता रखता हो। अतः सृजनात्मकता को एक अलग प्रकार की विशिष्टता मानना अधिक व्यावहारिक होगा।
- मन्द बुद्धि बालक – ऋणात्मक बौद्धिक असामान्यता वाले बालक मन्द बुद्धि होते हैं। इनकी बुद्धि लब्धि औसत से भी कम होती है। इनमें से कुछ सामान्य कक्षाओं में ही या अलग से विशेष शिक्षण विधियों द्वारा शिक्षित करके स्वयं के व समाज के लिए उपयोगी बनाये जा सकते हैं। किन्तु अन्य इस सीमा तक मन्द बुद्धि होते हैं कि उनको किसी भी प्रकार के कार्यों के लिए प्रशिक्षित नहीं किया जा सकता है।
शैक्षिक रूप से विशिष्ट बालक
शैक्षिक रूप से विशिष्ट बालक वे होते हैं जो पढ़ने-लिखने की योग्यता एवं निष्पादन में सामान्य बालकों से भिन्न होते हैं। इनको तीन वर्गों में रखा जा सकता है-
- शैक्षिक रूप से समृद्ध बालक – ऐसे बालकों का उपलब्धि स्तर सामान्य बालकों की तुलना में काफी अच्छा होता है। इनमें सीखने की ग्राह्यता, समझ तथा विचारों का समन्वय उच्च स्तरीय होता है। यह याद की हुई विषयवस्तु को अधिक समय तक धारण किये रह सकते हैं। इसी कारण से ये शैक्षिक रूप से समृद्ध एवं श्रेष्ठ होते हैं। इनका बौद्धिक स्तर भी प्रायः सामान्य से उच्च होता है। ये निरन्तर अच्छा अभिलेख रखने वाले, योग्यता सूची में स्थान पाने वाले, अध्यापकों व अभिभावकों के प्रिय होते हैं। इनके लिए योग्य अध्यापकों व उत्तम शैक्षिक पर्यावरण की आवश्यकता होती है।
प्रायः लोग शैक्षिक रूप से समृद्ध एवं प्रतिभाशाली बालकों को एक ही वर्ग में रखते हैं जोकि विवादास्पद है। यद्यपि शैक्षिक उपलब्धि तथा बौद्धिक स्तर में उच्च धनात्मक सम्बन्ध पाया जाता है और उच्च प्रतिभा सम्पन्न बालक (विशेष रूप से उच्च बौद्धिक क्षमता वाले) प्रायः शैक्षिक रूप से समृद्ध होते हैं। यह आवश्यक नहीं कि उच्च शैक्षिक उपलब्धि वाला बालक उच्च बौद्धिक क्षमता या किसी क्षेत्र विशेष में उच्च प्रतिभा रखता हो। इसके अतिरिक्त प्रतिभा सम्पन्नता जन्मजात होती है जबकि उच्च शैक्षिक उपलब्धि उचित अभ्यास, निर्देशन एवं प्रयासों का प्रतिफल होती है।
- शैक्षिक रूप से पिछड़ा बालक – वे बालक जो अपने आयुवर्ग के बालकों से शैक्षिक रूप से 1 या 2 वर्ष पिछड़े हुए होते हैं, शैक्षिक रूप से पिछड़े बालक कहलाते हैं। इनका यह पिछड़ापन दो मुख्य कारणों से हो सकता है प्रथम, दोषयुक्त शैक्षिक पर्यावरण एवं त्रुटिपूर्ण शिक्षण विधियों का प्रयोग; द्वितीय, बालक का मन्द बुद्धि होना। यहाँ यह स्पष्ट कर देना आवश्यक है कि सभी शैक्षिक रूप से पिछड़े बालक मन्द बुद्धि नहीं होते। हाँ, मन्द बुद्धि का होना शैक्षिक पिछड़ेपन का कारण हो सकता है।
- किसी अमुक विषय में सीखने की निर्योग्यता रखने वाला बालक – ऐसे बालक शैक्षिक रूप से औसत या श्रेष्ठ होते हैं किन्तु विषय विशेष को सीखने में कठिनाई का अनुभव करते हैं; उदाहरणार्थ- कुछ बालक साहित्यिक विषयों के पढ़ने में कठिनाई का अनुभव करते हैं जबकि कुछ अन्य गणित या विज्ञान विषय मुश्किल से सीख पाते हैं।
- सम्प्रेषण वाधित बालक – ऐसे बालक वे होते हैं जो दूसरे की बताई गई बात को सही ढंग से नहीं समझ पाते ना ही अपने विचारों की भाषा के द्वारा उपयुक्त अभिव्यक्ति कर पाते हैं। अतः यह सम्प्रेषण करने में काफी कमजोर होते हैं जिसके कारण इन्हें अनेकों कठिनाइयों का सामना करना होता है।
सामाजिक रूप से विशिष्ट बालक
इस श्रेणी में प्राय: वे बालक आते हैं जिनका समाज में समायोजन उचित प्रकार से नहीं होता है। वह अपनी किसी व्यक्तिगत समस्या, व्यवहार या अपनी संवेगात्मक स्थिति के कारण सामाजिक रूप से विचलित हो जाते हैं। इसी कारण इन्हें सामान्य बालकों के साथ शिक्षा देना असम्भव सा हो जाता है। सामाजिक रूप से विशिष्ट बालकों को निम्नलिखित छः उपवर्गों में विभाजित कर सकते हैं-
- सांवेगिक रूप से परेशान बालक – ऐसे बालक परिवार के सदस्यों, संगी-साथियों तथा अध्यापकों के पक्षपाती एवं हतोत्साहित करने वाले व्यवहार के कारण सांवेगिक रूप से विचलित हो जाते हैं।
- असमायोजित बालक – ऐसे बालक किन्हीं असमानताओं व समस्याओं के कारण समाज, परिवार व साथियों में अपना समायोजन नहीं कर पाते हैं। फलस्वरूप ये या तो एकाकी जीवन व्यतीत करना पसन्द करते हैं या उग्र प्रवृत्ति के बन जाते हैं।
- वंचित बालक – वंचन की स्थिति बालकों में सामाजिक, आर्थिक तथा सांस्कृतिक विषमताओं के फलस्वरूप उत्पन्न होती है। इसके अतिरिक्त निम्न सामाजिक आर्थिक स्तर के बच्चे भी इसी श्रेणी में आ जाते हैं जो कि परिवार की निम्न सामाजिक एवं आर्थिक स्थिति होने के कारण अपनी योग्यताओं का विकास नहीं कर पाते हैं।
- समस्यात्मक बालक – ये बालक अल्पायु से ही उचित निर्देशन के अभाव में चोरी करने, झूठ बोलने, झगड़ा करने, बिस्तर गीला करने, नाखून काटने वाले एवं भगोड़े बन जाते हैं तथा शिक्षक, माता-पिता व अन्य व्यक्तियों के लिए समस्याएँ उत्पन्न करते हैं।
- बाल अपराधी – ऐसे बालक जो समाज विरोधी कार्यों, कानून की अवहेलना तथा विध्वंसकारी कार्यों के करने में संलग्न हो जाते हैं, बाल अपराधी कहलाते हैं।
- माता-पिता द्वारा तिरस्कृत बालक – इसमें ऐसे बालक आते हैं जो कि माता-पिता द्वारा तिरस्कृत किये जाते हैं। यह तिरस्कार किसी भी कारण से हो सकता है, जैसे- माता-पिता की आपसी लड़ाई के कारण या अधिक भाई-बहनों के कारण इत्यादि । फलस्वरूप ऐसे तिरस्कृत बालक समाज के लिए समस्या बन जाते हैं।



विशिष्ट बालक के लिए विशेष शिक्षा
जब बालकों में वैयक्तिक भिन्नताएँ इस सीमा तक पायी जाती हैं कि उन्हें विशिष्ट बालकों की श्रेणी में रखना आवश्यक हो जाता है तब ये बालक सामान्य शिक्षण पद्धतियों एवं शिक्षा व्यवस्था से लाभान्वित नहीं हो पाते हैं। एक प्रजातान्त्रिक प्रणाली वाले राष्ट्र में जहाँ प्रत्येक व्यक्ति की योग्यताओं व क्षमताओंका अधिकतम मानवीय अधिकार माना जाता है, राष्ट्र, समाज व अभिभावकों का यह कर्त्तव्य हो जाता है कि विभिन्न विशिष्टताओं वाले बालकों/व्यक्तियों के लिए विशेष शिक्षा की व्यवस्था की जाये। निम्नलिखित विशिष्ट आवश्यकतायें भी विशिष्ट शिक्षा के संगठन एवं प्रसार को बल प्रदान करती हैं-
- विशिष्ट बालक सामान्य स्कूलों की सामान्य कक्षाओं से लाभ नहीं उठा पाते हैं। अतः उनके लिए विशेष शिक्षण विधियों, पाठ्यक्रमों एवं शिक्षकों की आवश्यकता होती है। यदि उनकी ओर ध्यान न दिया जाए तो वे समस्यात्मक बालक बन जाते हैं और वे स्वयं परिवार तथा समाज को हानि पहुँचाते हैं। इसीलिए विशिष्ट बालकों के लिए विशिष्ट शिक्षा की व्यवस्था एक अनिवार्य आवश्यकता बन जाती है।
- विशिष्ट शिक्षा की आवश्यकता मानसिक व शारीरिक विकलांग बालकों को भी होती है क्योंकि वे परिवार व समाज में समायोजित होने में कठिनाई का अनुभव करते हैं। यदि इन बालकों पर ध्यान न दिया जाए तो ये बालक कुण्ठा एवं भग्नाशा से ग्रसित होकर मानसिक दृष्टि से बीमार हो जायेंगे और समाज के ऊपर बोझ बन जायेंगे। अतः हमें चाहिए कि हम उन्हें विशिष्ट शिक्षा देकर उनमें आत्मविश्वास जाग्रत करें और उन्हें आत्मनिर्भर बनायें। उचित शिक्षा द्वारा उन्हें समाज का उपयोगी सदस्य बनाया जा सकता है।
- विशिष्ट शिक्षा, अभिभावकों, शिक्षकों एवं शैक्षिक प्रबन्धकों को विशिष्ट बालकों की समस्याओं को समझने में सहायता प्रदान करती है। इसके द्वारा विशिष्ट बालक समाज से समायोजन स्थापित कर लेते हैं।
- अन्धे, बहरे, गूँगे, बालकों को सामान्य बालकों के साथ बैठाकर शिक्षित नहीं किया जा सकता है। अतः ऐसे बालकों की शिक्षा के लिए विशिष्ट पाठ्यक्रम, शिक्षण विधि एवं शिक्षकों की आवश्यकता होती है।
- विशिष्ट बालकों की शैक्षिक, सामाजिक एवं शारीरिक आवश्यकतायें सामान्य बालकों से भिन्न होती हैं। अतः समाज एवं शिक्षाशास्त्रियों का यह दायित्व है कि उनकी आवश्यकताओं की पूर्ति के लिए विशिष्ट शिक्षा की व्यवस्था करें।
- विशिष्ट बालक अपनी योग्यताओं एवं क्षमताओं के अनुसार विकास कर सकें इसके लिए विशिष्ट शिक्षा की आवश्यकता होती है। विशिष्ट शिक्षा के द्वारा हम बालकों को समायोजित, उत्पादक एवं आत्म-निर्भर बना सकते हैं।
विशिष्ट बालक की विशिष्ट आवश्यकताएँ
बाधिक बालकों की विशिष्ट आवश्यकताएँ निम्नलिखित हैं-
- बाधिक बालकों की विशिष्ट आवश्यकताएँ होती हैं। परन्तु यह आवश्यकताएँ क्या हैं? इनका पता लगाने के लिए हमें इन बालकों का मूल्यांकन करना पड़ता है। परन्तु यहाँ समस्या यह आती है कि यह मूल्यांकन निर्धारण प्रक्रिया वस्तुनिष्ठ तथा क्रमबद्धता लिए नहीं होती है। अतः कई बार ऐसा होता है कि एक अंदाज अनुमान के अनुसार बालकों की विशिष्टता को ज्ञात कर लिया जाता है। यह गलत है। विशिष्ट बालकों हेतु एक विशिष्ट परीक्षा लेने के पश्चात् ही हमें व मनोवैज्ञानिकों को उनकी विशिष्टता को ज्ञात करना चाहिए। इसमें यह तथ्य ध्यान में रखना चाहिए कि बाधित अस्थि बाधित आदि की श्रेणी में रखना उचित नहीं है। इसके निम्नलिखित कारण हैं-
- बालकों को वर्गीकृत करना एक नकारात्मक पद्धति है। अतः बालकों का वर्गीकरण करना अनुचित है। इससे बालकों की अक्षमताओं के बारे में धारण बन जाती है।
- यदि बालक बाधित होता है तो अभिभावकों व शिक्षकों को उनके प्रति उदासीन नहीं होना बाहिए। बल्कि उन बालकों को सुधारने हेतु अनेक प्रयास करने चाहिए।
- बालकों को यह महसूस कराना कि वह बाधित हैं, यह बालकों में हीनता व निराशा के विचार प्रकट करता है।
- विशिष्ट बालकों की विशिष्ट समस्याओं को दूर करने हेतु सामान्य व विशिष्ट कार्यक्रमों की आवश्यकता होती है तथा अन्य उपकरणों की भी आवश्यकता होती है। इस प्रकार बाधित बालकों के लिए खेलने की सामग्री, अभ्यास पुस्तिका आदि की आवश्यकता होती है। यहाँ पर प्रतिभाशाली बालकों को उच्च स्तर की अधिगम सामग्री जैसे विश्व शब्द कोष आदि की आवश्यकता होती है। अतः विद्यालयों में पूर्ण साधन उपलब्ध कराये जाने चाहिए। इससे बालकों की वास्तविक क्षमता तथा कार्यकलापों में अन्तर बढ़ जाता है।
- विशिष्ट बालकों को प्रेरणा तथा आर्थिक सहायता, वाहन भत्ता तथा अधिगम सामग्री आदि देने हेतु आर्थिक सहायता की आवश्यकता है। राज्य सरकार शारीरिक तथा मानसिक रूप से बाधित बालकों को ऐसे अनुदान देने में समर्थ नहीं है। इन्हें इन अनुदानों हेतु मानव संसाधन विकास मन्त्रालय पर निर्भर रहना पड़ता है। क्योंकि भारत सरकार ने इस प्रकार के अनुदान वापस ले लिये हैं। अर्थात् सरकार अनुदान नहीं दे रही है इसलिए बाधित बालकों की शिक्षा पर विपरीत प्रभाव पड़ता है। समय-समय पर यह बाधित बालकों हेतु समस्या बन जाती है।
विशिष्ट बालकों की शिक्षा व्यवस्था में ध्यान रखने योग्य बातें
- विशिष्ट बालकों की रुचियों को ध्यान में रखा जाना चाहिए।
- विशिष्ट बालकों की स्वयं की आवश्यकताओं को ध्यान में रखा जाना चाहिए।
- शिक्षा व्यवस्था गाँव तथा शहर दोनों स्थानों पर की जानी चाहिए।
- विशिष्ट बालकों के लिए अच्छी निर्देशन सेवा की व्यवस्था की जानी चाहिए।
- विशेष शिक्षा का प्रबन्ध विद्यालय के साथ-ही-साथ घर पर अस्पताल में भी की जानी चाहिए।
- विशिष्ट बालकों के शिक्षकों के लिए भी प्रशिक्षण की व्यवस्था भी की जानी चाहिए।
- विशिष्ट बालकों के माता-पिता की सलाह अथवा निर्देशन व्यवस्था भी की जानी चाहिए। विशिष्ट शिक्षा के विभिन्न उद्देश्य विशिष्ट शिक्षा का मुख्य उद्देश्य विशिष्ट विद्यार्थियों की सामान्य विद्यार्थी की तरह विकसित किया जाना है। अब इनके लिए निम्न रूप से ध्यान रखा जाना चाहिए।
विशिष्ट बालक की शिक्षा व्यवस्था
- विशिष्ट स्कूलों की स्थापना किया जाना,
- विभिन्न योग्य अध्यापकों की नियुक्ति,
- विशेष प्रकार के पाठ्यक्रम का निर्माण,
- विशेष प्रकार की शिक्षण विधियों का उपयोग,
- विशिष्ट कक्षाओं को स्थापित करना,
- विभिन्न छोटे समूहों में शिक्षा व्यवस्था करना,
- सांस्कृतिक विषयों की शिक्षा व्यवस्था, एवं
- शिक्षा के साथ-ही-साथ मनोरंजन व्यवस्था भी किया जाना।
विशेष शिक्षा के प्रशासन अथवा निरीक्षण व्यवस्था
- विशिष्ट शिक्षा में विशेष शिक्षा सम्बन्धी उत्तरदायित्वों को निश्चित करके ही शिक्षा प्रदान की जानी चाहिए।
- विशेष शिक्षा के विभिन्न कार्यक्रमों के उद्देश्य व कार्यों को बालकों के संरक्षकों द्वारा परिचित कराया जाना चाहिए।
- विद्यालयी प्रशासन बालकों का उचित निरीक्षण करवाए व उनको उचित कक्षा में रखवाए।
- प्रशासन द्वारा विभिन्न प्रकार की आवश्यकता अनुरूप उचित इमारत इत्यादि का प्रबन्ध किया जाना चाहिए।
- विशिष्ट बालकों की रुचिनुसार ही पाठ्यक्रम का निर्माण किया जाना चाहिए।
- विशिष्ट बालकों की शिक्षा व्यवस्था को समाज तथा परिवार द्वारा जोड़कर बनाया जाना।
- विशिष्ट बालकों को वातावरण के साथ सामंजस्य बैठाने में संयोजन इत्यादि की व्यवस्था की जानी चाहिए। शिक्षा से विद्यार्थियों का समायोजन बैठाने हेतु आवश्यक योजनाओं की व्यवस्था किया जाना।
- विभिन्न नौकरियों के अन्तर्गत आरक्षण योजना ।
- पेंशन योजना – निराश्रित विशिष्ट बालकों हेतु ।
- छात्रवृत्ति की व्यवस्था-अध्ययनरत विशिष्ट विद्यार्थियों के लिए।
- अपने उद्यम के लिए ऋण सुविधा
- सामाजिक सुरक्षा व्यवस्था
- भेदभाव दूर किये जाने हेतु कानून व्यवस्था करना।
विशिष्ट शिक्षा के विभिन्न सिद्धान्त
विशिष्ट शिक्षा मुख्यतः निम्नलिखित सिद्धान्तों पर आधारित होती है-
- शारीरिक रूप से बाधिक व्यक्तियों हेतु निःशुल्क शिक्षा व्यवस्था की जाए।
- विशिष्ट बालकों की पहचान कर उनके मानसिक व शारीरिक स्तर को ध्यान में रखकर ही शिक्षा प्रदान की जानी चाहिए।
- यदि शारीरिक रूप से विकलांग बालकों के अथवा विशिष्ट बालकों के अभिभावक भी यदि शिक्षण कार्यों में रुचि लेंगे, तो इन विशिष्ट शिक्षण कार्यक्रमों को और रुचिपूर्ण बनाया जा सकता है।
- कई छात्र ऐसे होते हैं, जिन्हें थोड़ी-सी सावधानी दी जायें तो वह सामान्य कक्षा-कक्ष में सामान्य छात्रों के साथ ही शिक्षा ग्रहण कर सकते हैं। अतः प्रयत्न करना चाहिए कि बाधित छात्रों व सामान्य छात्रों को साथ-साथ शिक्षा प्रदान की जाये। परन्तु यहाँ ध्यान देने योग्य तथ्य यह है कि यदि बालक थोड़ी अपंगता के लिए हुए हो, तभी उन्हें सामान्य छात्रों के साथ शिक्षा प्रदान की जाये, अन्यथा नहीं।
- शारीरिक रूप से अपंग बालकों के माता-पिता को यह अधिकार प्राप्त होने चाहिए कि यदि उनके बच्चों को ठीक शिक्षा नहीं मिल पा रही है तो वह अपना निर्णय बदलकर बालक को दूसरी संस्था मैं जा सकते हैं। यह संस्था ऐसी होनी चाहिए जहाँ पहली संस्था को अपेक्षा शिक्षा के उपयुक्त कार्यक्रम होने चाहिए। अर्थात शारीरिक व मानसिक अविकसित बालकों को शिक्षा प्रदान करने में हमें उपरोक्त सिद्धान्तों का उपयोग करना चाहिए।
विशिष्ट शिक्षा की आवश्यकताएँ
पिछड़े हुए व प्रतिभाशाली बालकों के उत्थान हेतु विशेष सुविधाओं तथा साधनों की आवश्यकता है। इसलिए विशिष्ट शिक्षा के महत्व को निम्न प्रकार समझा जा सकता है-
- विशिष्ट कक्षाएँ मुख्यतः उन बालकों के लिए लगायी जाती हैं, जो कि शारीरिक रूप से बाधित होते हैं। इन्हीं की शिक्षाओं हेतु ही विशिष्ट विधियों की आवश्यकता होती है।
- विशिष्ट कक्षाओं में बुद्धिमान छात्रों को भी आगे बढ़ने के अवसर मिलते हैं क्योंकि ऐसे छात्र सामान्य कक्षा में तेजी से आगे बढ़ते हैं। जिसकी वजह से अन्य छात्रों में नकारात्मक प्रवृत्ति आ सकती है । अतः इन बुद्धिमान छात्रों को शिक्षण हेतु अलग कक्षा में भेजा जाना ही उचित रहता है, क्योंकि यह बालक जल्दी अपना कक्षा कार्य पूरा कर लेते हैं। तत्पश्चात् यह कक्षा में अनुशासनहीनता या उद्दण्डता करने लगते हैं, क्योंकि सामान्य बालकों का पाठ्यक्रम इतना सरल होता है कि प्रतिभाशाली बालक इन कक्षाओं में रुचि नहीं लेते हैं। अतः प्रतिभाशाली बालकों हेतु अलग से विशिष्ट कक्षाओं की स्थापना करनी आवश्यक हो जाती है।
- विशिष्ट शिक्षा के लिए एक ऐसे स्थान का चुनाव किया जाता है, जिसे चयनित स्थानापन्न की संज्ञा दी जाती है। विभिन्न शाखाओं के विशेषज्ञों के द्वारा बालकों को पूर्ण रूप से सामाजिक वातावरण में विभिन्न श्रेणियों में मूल्यांकन निर्धारित किया जाता है। भौतिक परीक्षण तथा मूल्य निर्धारण भिन्न-भिन्न क्षेत्रों में विशेषज्ञों; जैसे- मानसिक, मनोवैज्ञानिक श्रवण, मस्तिष्क व शिक्षाविदों आदि द्वारा प्रतिभाशाली बालकों के चयनित स्थानापन्न हेतु अति आवश्यक होता है।
- विशिष्ट बालकों को शिक्षा के अतिरिक्त अन्य सेवाओं की भी आवश्यकता होती है; जैसे- अपंग बालकों को नियमित शारीरिक परीक्षण की आवश्यकता होती है। समय-समय पर अन्धे बालकों व शारीरिक रूप से अपंग बालकों को भी देखरेख की आवश्यकता होती है। अतः इनके लिए विशिष्ट कक्षाओं में चिकित्सक को भी स्थान दिया जाता है, ताकि वह समस्या के समय छात्रों को सहायता प्रदान कर सकें। कुछ विशिष्ट बालकों को व्यावसायिक, शारीरिक, मानसिक व मनोवैज्ञानिक आदि सेवाएँ अति आवश्यक हैं।
- विशिष्ट बालकों को शिक्षा देने हेतु शिक्षाविद् ऐसी विधियाँ अपनाते हैं, जो कि इन बालकों के लिए उपयुक्त होती हैं। परन्तु कई बाद शिक्षाविदों को कई समस्याओं का सामना भी करना पड़ता है। क्योंकि कई बार ऐसा हो जाता है कि छात्रों को शिक्षकों की सिखाने की विधि समझ नहीं आती है। तब ऐसी अवस्था में विशिष्ट कक्षाओं की आवश्यकता इन बालकों को समझाने के लिए अवश्य पड़ती है। यह विशिष्ट कक्षाएँ इन्हें अनुदेशन में सहायता प्रदान करती हैं।