विशिष्ट बालकों के प्रकार – विशिष्ट बालक की अवधारणा यह है कि वह सामान्य होते हुए भी प्रायः असामान्य गुणों से युक्त होता है। व्यक्तिक भिन्नता ही विशिष्टता का आधार है। मनोवैज्ञानिकों ने यह अनुभव किया है कि कोई भी दो बालक एक दूसरे से भिन्न होते हैं। उनमें समानता के साथ-साथ कुछ बताएं होती हैं। जो उन्हें अन्य बालकों से अलग करती हैं। एक बालक शारीरिक रूप से समान होने पर भी मानसिक रूप से भिन्न हो सकता है।
विशिष्ट बालकों के प्रकार
विशिष्ट बालकों को विभिन्न वर्गों में बांटा जा सकता है –
- प्रतिभाशाली बालक
- मानसिक दृष्टि से पिछड़े बालक
- पिछड़े बालक
- शारीरिक विकलांग बालक
- समस्यात्मक बालक
- अपराधी बालक
- सृजनात्मक बालक
- खिलाड़ी बालक
- कुसुमायोजित बालक
- तिरस्कृत बालक
- सुविधा वंचित बालक
- अधिगम निर्योग्य बालक
विशिष्ट बालकों की पहचान
विशिष्ट आवश्यकता वाले बच्चे सामान्य बच्चों से विशिष्ट लक्षणों वाले होते हैं। सामान्य बच्चों में पाए जाने वाली निम्न विशिष्ट प्रवृत्तियां पाई जाती हैं। यह अंतर्मुखी, निराशावादी, सांविधिक स्थिर, शर्मीले, निष्क्रिय, आत्म केंद्रित, चिंताग्रस्त, निर्भर प्रवृत्ति, कभी-कभी उग्र की भावना वाले होते हैं। इनकी पहचान हम निम्न तरीके से कर सकते हैं।
- शिक्षक अपने कच्छा कच्छा में शिक्षण के दौरान उपयोग के लक्षणों के आधार पर विशिष्ट आवश्यकता वाले बच्चों को चिन्हित कर सकता है और उन्हें आवश्यकता अनुसार शिक्षा प्रक्रिया में लाभान्वित कर सकता है।
- कभी-कभी ऐसा होता है कि विशिष्ट आवश्यकता वाले बच्चों की पहचान ना होने के कारण विशेष आवश्यकता वाले बच्चों के शरीर एवं मस्तिष्क का चिकित्सकीय परीक्षण कर उनकी पहचान की जा सकती है।
- छात्रों का मानसिक परीक्षण करो उनकी विशेषता का पता लगाया जा सकता है।
- विशेष आवश्यकता वाले बच्चे के कक्षा के परीक्षा में प्राप्त परिणामों का अवलोकन एवं विश्लेषण के द्वारा इनकी विशेषता का पता लगाया जा सकता है।
- विशिष्ट आवश्यकता वाले बच्चों द्वारा किए गए व्यवहार को मनोवैज्ञानिक परीक्षण एवं विश्लेषण से उनकी विशेषताओं का पता लगाया जा सकता है।
- विशिष्ट आवश्यकता वाले बच्चों के पहचान के लिए समाज मित्र एवं उनका प्रत्यक्ष विधि से। साक्षात्कार कर उनकी विशेषताओं का पता लगाया जा सकता है।