विज्ञान शिक्षक समाज का एक महत्त्वपूर्ण एवं सम्भ्रांत व्यक्ति होता है। वह सामाजिक अभियन्ता है। समाज में विभिन्न प्रकार के परिवर्तनों में उसका योगदान होता है। वह अपनी शिक्षा, योग्यता, क्षमता और चरित्र की शुद्धता से बालक में विशिष्ट सामाजिक परिवर्तन लाने का प्रयास करता है। समाज की रूढ़िवादी परम्पराओं को शिक्षा द्वारा दूर करने की कोशिश करता है। बालकों को बौद्धिक शारीरिक, आध्यात्मिक और शैक्षिक रूप से योग्य बनाकर राष्ट्र की सेवा के लिए समर्पित करता है इसलिए शिक्षक का स्थान समाज में सर्वोच्च होता है।
डॉ. राधाकृष्णन ने भी कहा है, समाज में अध्यापक का स्थान अत्यन्त महत्वपूर्ण है। वह एक पीढ़ी से दूसरी पीढ़ी को बौद्धिक परम्पराओं और तकनीकी कौशल सौंपने की प्रक्रिया का केन्द्रीय बिन्दु है और सभ्यता के दीपक को प्रज्वलित रखने में सहायक होता है। वह केवल व्यक्तियों का ही मार्गदर्शन नहीं करता है, बल्कि राष्ट्र के भाग्य को भी दिशा प्रदान करता है। अतः अध्यापक को समाज के प्रति अपने विशिष्ट उत्तरदायित्व को समझना चाहिए।
जहाँ हम एक ओर शिक्षा के महत्त्वपूर्ण, प्रगतिशील गुणों से प्रभावित होते हैं। जो हमारे राष्ट्रीय जीवन में योगदान करती हैं। वहाँ हमें यह नहीं भूल जाना चाहिए कि शिक्षक का पूर्णरूपेण चरित्रवान होना अधिक महत्वपूर्ण है। क्योंकि उसके बिना, उसकी योग्यता, क्षमता और व्यावसायिक रुचि के अभाव में बालक कुछ भी नहीं सीख पायेगा और न वह बालक को राष्ट्र-निर्माण के लिए तैयार ही कर सकता है।


यह भी सत्य है कि कोई भी सुधारवादी योग्यता या स्कीम विज्ञान पढ़ाने के लिए तथा स्कूलों के बालकों में वैज्ञानिक जागृति पैदा करने के लिए क्रियान्वित नहीं हो सकती है। जब तक कि योग्य विज्ञान शिक्षक व्यवसाय की ओर झुकाव न हो या उसको जब तक राष्ट्र-निर्माण जैसे कार्यों के लिए स्कूल में उचित वेतन तथा नौकरी की सुरक्षा न प्रदान की जाय। इसलिए अध्यापक की मूल आवश्यकताओं की ओर सरकार का ध्यान होना चाहिए।
चूँकि शिक्षक राष्ट्रीय निर्माण की प्रक्रिया का महत्त्वपूर्ण घटक है। वह बालक के व्यक्तित्व का विकास करने वाला है तथा बालक के जीवन का निर्माण कार्य इसी को सौंपा गया था इसलिए उसका समाज में तथा शिक्षा के क्षेत्र में बहुत बड़ा उत्तरदायित्व है। उसका हर प्रकार से योग्य होना जरूरी है। तभी वह अपने कार्यों को सही ढंग से पूरा कर सकता है। उसमें सभी प्रकार की योग्यताएँ होनी चाहिए।
विज्ञान शिक्षक की विशेषताएँ
विज्ञान शिक्षक में निम्न गुण होने चाहिए –
- शैक्षिक योग्यताएँ
- विषय का ज्ञान
- प्रयोगशाला तकनीकों का ज्ञान
- विशिष्ट बालकों का शिक्षण
- उपकरण बनाने का ज्ञान
- शिक्षा में नई-नई तकनीकियों का ज्ञान
- नई शिक्षण पद्धतियों का ज्ञान
- शिक्षण सामग्री तैयार करना
- बाल मनोविज्ञान का ज्ञान
- अवकाश के दिनों का उपयोग
- व्यावसायिक योग्यताएँ
- व्यक्तिगत योग्यताएँ
- मूल्यांकन प्रविधियों का ज्ञान।
शैक्षिक योग्यताएँ
विज्ञान शिक्षक में ठोस एवं बुनियादी विषय के ज्ञान होना चाहिए। शिक्षा विभाग द्वारा अध्यापक के लिये जो योग्यता निर्धारित की गई है उनके अनुमा अध्यापक में योग्यता होनी चाहिए। हाईस्कूल के लिए बी. एस-सी. तथा हायर सेकेण्डरी कक्षाओं के लिए एम. एस-सी. होना चाहिए और प्रत्येक विज्ञान शिक्षक को प्रशिक्षित होना जरूरी है। क्योंकि बिना बी. एड., बी. टी. सी. की ट्रेनिंग किये हुए अध्यापक को नियुक्त नहीं किया जायेगा। उसकी योग्यता में निरन्तर वृद्धि का होना भी आवश्यक है ताकि वह बालकों को समय-समय पर नये ज्ञान से परिचित कराते रहे। बाल कौ नवीन तथ्य, सूचनाएँ बतानी चाहिए जो वह भिन्न-भिन्न आयोजित कार्यक्रमों, शोध-संस्थाओं तथा अन्न स्थानों से प्राप्त करता है।
विषय का ज्ञान
आदर्श विज्ञान शिक्षक वही कहा जाता है जो अपने आचार-विचार से शुद्ध होता है और जिसको अपने विषय को पूर्ण ज्ञान होता है। उसको अपने विषय का इतना अधिक ज्ञान होना चाहिए कि व्यक्ति तथा विद्यार्थी उसकी प्रशंसा करें और उस विषय का उसे पूर्ण ज्ञाता मानें। शिक्षा विभाग द्वारा निर्धारित योग्यता तो सभी विज्ञान शिक्षक प्राप्त कर लेते हैं। पर अपने विष्ज्ञय में विद्वान कम वन पाते हैं इसलिए अध्यापक को चाहिए कि वह उस विषय के गूढ़ ज्ञान को समझे, उसमें आये हुए तथ्यों, सिद्धान्तों एवं नियमों की गहराई से पढ़े और उसका पूर्ण ज्ञान प्राप्त करें उसकी बुद्धि ज्ञान को समझने के लिए प्रखर होनी चाहिए।
प्रयोगशालीय तकनीकी का ज्ञान
विज्ञान शिक्षक के लिए यह आवश्यक है कि विद्यालय की प्रयोगशाला, कार्यशाला तथा प्रयोग सम्बन्धी उपकरणों, सामान, मशीनों आदि सबका ज्ञान रखता हो क्योंकि ये वस्तुएँ विज्ञान प्रयोगशाला के लिये आवश्यक होती है। अध्यापक में प्रयोगात्मक तथा अनुसंधानात्मक प्रवृत्ति होनी चाहिए। विभिन्न प्रकार के अभिकारकों को तैयार करना तथा नई कल मशीनों को देखना, उनकी तकनीक को समझना और बालकों को समय-समय पर दिखाना चाहिए।
विशिष्ट बालकों का शिक्षण
सामान्यतया कक्षा में तीन स्तर के बालक होते हैं। कुछ विद्यार्थी प्रतिभाशाली होते हैं। कुछ मन्द बुद्धि वाले बच्चे होते हैं। अधिकतर बच्चे सामान्य बुद्धि के होते हैं। अध्यापक में इस प्रकार की योग्यता होनी चाहिए कि वह इन दोनों प्रकार के बच्चों के लिए इस प्रकार के प्रोग्राम बनायें ताकि उनका शिक्षण भी सही ढंग से चल सके। प्रतिभावान बालकों के लिए सामान्य बच्चों से अधिक समृद्ध कार्यक्रम करने को देने चाहिए और मन्द बुद्धि बालकों को मानसिक कार्यक्रम और श्रम सम्बन्धी कार्य अधिक देने चाहिए। माँसपेशियाँ तथा हस्त कलाओं के कार्य कराने चाहिए। इन बच्चों का ऐसी ही विशेष प्रकार का पाठ्यक्रम होना चाहिए। इन सब कार्यों के लिए अध्यापक को स्वयं जानकारी होनी चाहिए।


उपकरण बनाने का ज्ञान
वर्तमान प्रयोगशालाओं में एक समस्या आये दिन आती रहती है कि उपकरणों की कमी के कारण बालक प्रयोग नहीं कर पाते हैं। ऐसी परिस्थिति में विज्ञान शिक्षक को चाहिए कि वह उपकरणों के निर्माण करने की विधि को जाने और समय-समय पर प्रयोगशाला की पूर्ति करता रहे। विज्ञान शिक्षक को चाहिए कि वह इस कार्य के लिए उपकरण तथा अन्य सामान बनाने की समितियों में प्रशिक्षण प्राप्त करे और आवश्यक साज-सज्जा व टूटे हुए उपकरणों को बनाना सीखे।
शिक्षा की नई-नई तकनीकियों का ज्ञान
विज्ञान में दिन-प्रतिदिन नई-नई खोजें होती रहती हैं और ज्ञान का विकास भी बढ़ता जा रहा है। इसलिए विज्ञान शिक्षक के लिए यह आवश्यक है कि वह इन नई-नई तकनीकों का ज्ञान प्राप्त करे। नई-नई वैज्ञानिक पढ़ाने की मशीनें, म्यूजियम, नये-नये उपकरण, प्रयोगशाला में काम आने वाली सामग्री, मशीनों को प्रयोग करने की तकनीक आदि से पूर्णतया परिचित होना चाहिए। उपकरणों को ठीक करना, नये बनाना तथा प्रयोगशाला में उन्हें कार्य के लिये सजाना आदि सभी बातें जानना जरूरी है।
नई शिक्षण पद्धतियों का ज्ञान
विज्ञान ने काफी उन्नति की है। जिसके कारण विद्यालयों में पढ़ने की नई-नई शिक्षण विधियाँ निकली हैं। विज्ञान शिक्षक को इन नई-नई विधियों से परिचित होना चाहिए। उसे शिक्षण विधियों का समुचित ज्ञान होना चाहिए ताकि वह उपयुक्त विषय के लिए समयानुसार विधि का समुचित प्रयोग कर पाठ को रुचिकर बना सके। शिक्षण विधि का बोध होने पर अध्यापक जटिल और कठिन प्रकरण को भी सरल बना सकता है और बालकों को सन्तुष्ट कर सकता है। इसलिए विज्ञान शिक्षक को नई-नई विधियों के बारे में अवश्य ज्ञान होना चाहिए।
शिक्षण सामग्री तैयार करने की क्षमता
विज्ञान विषय कठिन है। इसलिए इसको समझने के लिए यह आवश्यक है कि अध्यापक स्वयं शिक्षण सामग्री जैसे यदि चार्ट मॉडल, चित्र, स्लाइड, नमूने आदि के माध्यम से पाठ का विकास करे। बालकों को इन चीजों के बनाने के लिए प्रेरित करे। पाठ को अधिक सरल बनाने के लिए तथा उसके आन्तरिक तथ्यों तथा सिद्धान्तों को स्पष्ट करने के लिए विज्ञान शिक्षक को इनकी मदद लेनी चाहिए। रेडियो, फिल्म, तथा विभिन्न प्रकार की श्रव्य दृश्य सामग्री के प्रयोग पर बल देना चाहिए।
बाल मनोविज्ञान का ज्ञान
विज्ञान शिक्षक को मनोवैज्ञानिक की तरह बच्चों का पूर्ण ज्ञान होना चाहिए। बच्चे की आयु, बौद्धिक क्षमता और रुचि के अनुसार उनकी विषय के प्रति दिलचस्पी पहचानना चाहिए। यह भी जानना आवश्यक है कि बालकों को विज्ञान के प्रति किस प्रकार आकर्षित तथा प्रोत्साहित किया जा सकता है। तथा नये व्यवसाय के लिये किस प्रकार प्रेरित किया जा सकता है।
विज्ञान शिक्षक इस स्तर पर उनकी बौद्धिक क्षमता, वैज्ञानिक भावना का पता सरलता से चलता है। इसके अलावा वह बालकों की शैक्षिक, व्यवसायिक तथा व्यक्तिगत समस्याओं को समझकर उन्हें समझा जा सकता है। विज्ञान शिक्षक बालक के व्यक्तित्व को सही दिशा प्रदान कर सकता है। उनका शिक्षा का क्षेत्र में सार्थक मार्गदर्शन भी कर सकता है और उसी ओर उन्हें बढ़ा सकता है। इसलिए अध्यापक का व्यक्तित्व भी प्रभावशाली होना चाहिए जो बालकों को प्रभावित कर सके और सही निर्देश दे सके।
अवकाश के समय का उपयोग
विज्ञान शिक्षक के लिए यह आवश्यक है कि बालकों में अधिक रुचि पैदा करने के लिए कुछ इस प्रकार की क्रियाओं में सक्रिय भाग लेना चाहिए ताकि बालकों का वैज्ञानिक दृष्टिकोण व्यापक हो। इसके लिए अध्यापक को चाहिए कि विद्यालय में वर्ष में होने वाले कार्यक्रमों की सूची तैयार करें और बालकों के अवकाश के दिनों को अच्छे कार्यों में लगाये। बालकों के सैद्धान्तिक, प्रयोगात्मक तथा व्यावहारिक ज्ञान को विकसित करने के लिए छुट्टी के दिनों में भ्रमण के लिए ले जाना चाहिए या उनसे रचनात्मक एवं प्रयोगात्मक कार्य कराने चाहिए।
जैसे किसी विज्ञान के प्रोजेक्ट को देना। इन क्रियाओं से उनमें विज्ञान के प्रति रुचि, लगन और उत्सुकता का विकास होगा। उनका दृष्टिकोण और अधिक विशाल बनेगा। आदर्श अध्यापक का यह होता है और जो इस बात में विश्वास करता है कि “कुछ अवश्य करो” और “बालकों से कराओ” इसलिए वे सदैव बालकों के बौद्धिक विकास के लिए इस प्रकार की क्रियाओं को स्वयं तथा बालकों से कराते रहते हैं। अध्यापक स्वयं बालकों के साथ बड़े भाई की तरह कार्य करते हैं और बीच-बीच में उन्हें निर्देश भी दे हैं तथा उनकी कठिन समस्याओं को हल करने में उनकी सहायता भी करते रहते हैं। इस प्रकार वे अवकाश अच्छे ढंग से सदपयोग भी कर लेते हैं।