विज्ञान प्रयोगशाला अर्थ उद्देश्य 11 उपयोग महत्व व संगठन

विज्ञान शिक्षण के लिए विज्ञान प्रयोगशाला की प्रयोगात्मक क्रियाओं का बहुत महत्त्व होता है। विज्ञान विषय को केवल पुस्तकों से पढ़कर नहीं सीखा जा सकता है। विज्ञान के कठिन तथ्यों तथा सिद्धान्तों को प्रयोगों द्वारा अच्छी तरह से समझा जा सकता है। प्रयोगशाला के अभाव में विज्ञान विषय को पूर्णरूपेण नहीं समझा जा सकता है। प्रयोग करके विद्यार्थी स्वयं अपने अनुभवों के आधार पर वस्तुओं का पूर्ण ज्ञान प्राप्त करता है।

प्रयोगात्मक कार्यों से ही विद्यार्थी की रचनात्मक कार्य करने की शक्ति का विकास होता है, जो विज्ञान की योग्यता का एक मुख्य अंग है। विद्यार्थी प्रयोगशाला में ‘करके सीखते हैं’ और सीखे हुए ज्ञान का उनके मन पर अच्छा प्रभाव पड़ता है। डॉ. डी. एस. कोठारी के अनुसार, “विज्ञान को विज्ञान की सीखने के लिए कोई उपयुक्त विधि नहीं है।”

विज्ञान को सीखना, विज्ञान को स्वयं करना है। इसके अलावा विज्ञान की सीखने के लिए कोई उपयुक्त विधि नहीं है।

डॉ. डी. एस. कोठारी के अनुसार

विज्ञान प्रयोगशाला कार्य से बालक को लाभ होता है तथा किसी सिद्धान्त की सत्यता की जाँच हो जाती है। उसमें प्रयोगात्मक कार्य से साधन सम्पन्नता तथा सहयोग की भावना जाग्रत होती है और उत्साह पैदा होता है। छात्र स्वयं क्रियाशील रहता है और लगन के साथ किसी सिद्धान्त के प्रयोगात्मक प्रभाव को मालूम करने के लिए उत्सुक रहता है।

प्रयोगशाला का अर्थ

प्रयोगशाला का शाब्दिक अर्थ है— प्रयोग करने का स्थान प्रयोगशाला एक विशाल कमरा है जिसमें विद्यार्थियों का समूह प्रयोग करता है। प्रयोगशाला में प्रकाश सरलता से आ सके और जिसमें इस प्रकार सीटों की व्यवस्था हो कि हर बालक अपनी-अपनी सीट के सामने विज्ञान सामग्री, उपकरणों की सहायता से प्रयोग करते हुए सही निष्कर्ष निकालने की दिशा में कार्य करे। प्रयोगशाला वैज्ञानिक अन्वेषण तथा प्रयोग करने के अवसर प्रदान करती है। साथ ही वैज्ञानिक विधि को कार्य रूप में देखने का अवसर प्रदान करती है।

विज्ञान प्रयोगशाला के उद्देश्य

विज्ञान प्रयोगशाला कार्य एक अनूठा अनुभव प्रदान करता है, जिसका स्थान दूसरा अनुभव ग्रहण नहीं कर सकता। प्रयोगशाला वैज्ञानिक अन्वेषण एवं प्रयोग करने का अवसर प्रदान करती है। इसके साथ ही वैज्ञानिक विधि को कार्यरूप में देखने का प्रत्यक्ष अवसर भी प्रदान करती है। प्रयोगशाला कार्य के उद्देश्य प्रयोगशाला कार्य की तरह ही विविध हैं।

शुलमन एवं तामीर के अनुसार विज्ञान प्रयोगशाला कार्य के उद्देश्य निम्नलिखित हैं-

  1. विज्ञान में रुचि, मनोवृत्ति उत्सुकता, खुला दिमाग आदि जागृत करना और बनाये रखना।
  2. सृजनात्मक सोच व समस्या हल करने की योग्यता का विकास करना।
  3. वैज्ञानिक विचारधारा और वैज्ञानिक विधि (जैसे परिकल्पना बनाना, कल्पना करना आदि) को बढ़ावादेना।
  4. धारणाओं की समझ और मानसिक योग्यताओं का विकास करना।
  5. प्रायोगिक योग्यताएँ जैसे— अनुसन्धान की रूपरेखा बनाना और उस पर अमल करना, आँकड़े लेना।

एण्डरसन के अनुसार, प्रयोगशाला कार्य के उद्देश्य निम्नलिखित हैं-

  1. मानव के वैज्ञानिक उद्यम का ज्ञान बढ़ाने के लिए जिससे कि छात्रों की बौद्धिक एवं कलात्मक समझ वढ़े।
  2. वैज्ञानिक अन्वेषण में कुशलता बढ़ाने के लिए जो भी समस्या समाधान के अन्य क्षेत्रों में स्थानान्तरित हो सके।
  3. छात्रों को वैज्ञानिक कार्य सराहने व कुछ अंश तक उसकी नकल में सहायता करने के लिए।
  4. छात्रों द्वारा वैज्ञानिक ज्ञान की क्रमबद्धता और वैज्ञानिक सिद्धान्तों व प्रतिदशों का अस्थायीपन समझने में सहायता देने के लिए।
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प्रयोगशाला कार्य के सामान्य उद्देश्य

  1. प्रयोगशाला कार्य के सामान्य उद्देश्य।
  2. विज्ञान शिक्षण में छात्रों की रुचि पैदा करना।
  3. विज्ञान प्रयोगशाला से वैज्ञानिक विधि को बढ़ावा मिलता है।
  4. वैज्ञानिक विचारधारा को बढ़ावा देना।
  5. प्रयोगात्मक उपकरणों, तकनीक एवं तौर-तरीकों की जानकारी देने एवं उनके उपयोग में कुशलता समालोचनात्मक मनोवृत्ति का विकास करना।
  6. निरीक्षण, विश्लेषण, अंकन और व्याख्या करने के अनुभव के माध्यम से पैदा करना।
  7. सृजनात्मक सोच एवं समस्या हल करने की योग्यता का विकास करना।
  8. छात्रों में अमूर्त धारणाओं के विषय में सोचने की क्षमता बढ़ाना।
  9. कक्षा में दी गयी जानकारी से सम्बन्धित धारणाओं और सिद्धान्तों में विद्यार्थियों की समझ को गहरा करने के लिए पूरक के रूप में सहायक होना।

विज्ञान प्रयोगशाला की उपयोगिता अथवा महत्त्व

विज्ञान शिक्षण के अध्ययन हेतु प्रयोगशाला के अत्यधिक महत्व को देखते हुए राष्ट्रीय शिक्षा नीति (10+2) के अन्तर्गत माध्यमिक एवं उच्च माध्यमिक विद्यालयों में प्रयोगशाला खोलने की व्यवस्था की गयी है। विज्ञान प्रयोगशाला की उपयोगिता एवं महत्व निम्नलिखित प्रकार हैं-

  1. विज्ञान प्रयोगशाला छात्रों में विज्ञान के प्रति रुचि उत्पन्न करती है।
  2. प्रयोगशाला छात्रों में विज्ञान शिक्षण का वातावरण उत्पन्न करती है।
  3. प्रयोगशाला के द्वारा छात्रों में आत्मविश्वास, आत्मानुशासन तथा स्वावलम्बन जैसी भावनाओं का विकास होता है।
  4. छात्रों में वैज्ञानिक दृष्टिकोण का विकास होता है।
  5. प्रयोगशाला द्वारा छात्रों को ‘करके सीखने’ के सिद्धान्त के आधार पर ज्ञान दिया जाता है, जो अधिक स्थायी होता है तथा उसे शिक्षण कार्य में रुचिपूर्ण एवं रचनात्मक अनुभव प्राप्त होते हैं।
  6. विज्ञान प्रयोगशाला में छात्रों द्वारा सामूहिक रूप से कार्य करने से उनमें सामाजिक गुणों का विकास होता है।
  7. प्रयोगशाला में ‘छात्र प्रयोग द्वारा प्रेक्षण करने’ विश्लेषण करने व निष्कर्ष निकालने से उसमें सोचने-विचारने, निरीक्षण करने, व्याख्या करने तथा निर्णय लेने की क्षमता का विकास होता है।
  8. प्रयोगशाला में प्रयोग सम्बन्धी सभी उपकरण, यन्त्र व सामग्री एक ही जगह पर उपलब्ध हो जाती , इसीलिए प्रयोग करने में आसानी रहती है तथा समय की बचत होती है।
  9. छात्रों को पुष्ट एवं प्रामाणिक ज्ञान कराया जा सकता है।
  10. विज्ञान प्रयोगशाला में कार्य करने से छात्रों में वैज्ञानिक विधि से कार्य करने की आदत पड़ जाती है।
  11. प्रयोगशाला में कार्य करते हुए विभिन्न उपकरणों की मरम्मत एवं निर्माण करने से छात्रों में आत्मनिर्भरता आती है।
  12. प्रयोगशाला के अभाव में उपकरणों को एक स्थान से दूसरे स्थान पर लाने ले जाने में टूट-फूट होने की सम्भावना रहती है।
  13. विज्ञान प्रयोगशाला में उपकरणों एवं यन्त्रों के रख-रखाव की छात्रों में व्यावहारिक समझ विकसित होती है।

विज्ञान प्रयोगशाला का संगठन

विद्यालयों में विज्ञान प्रयोगशाला अच्छे एवं सुनियोजित ढंग से बनायी जाती हैं। इनकी व्यवस्था अलग से पूछताछ करके की जाती है। हमारे देश में दो प्रकार के विद्यालय पाये जाते हैं। हाईस्कूल तथा माध्यमिक (10 + 2) तक रखे जाते हैं। इसके बाद विश्वविद्यालय की शिक्षा आरम्भ हो जाती है। भौतिक विज्ञान, रसायन विज्ञान तथा जीव विज्ञान की प्रयोगशालाएँ अलग-अलग होती हैं जिनमें विद्यार्थी अपने-अपने विषय के अनुसार प्रयोग करते हैं।

प्रयोगशाला ऐसी होनी चाहिए जहाँ छात्रों को प्रयोग करने की पूरी उपलब्ध होनी चाहिए। विज्ञान प्रयोगशाला में पाठ्यक्रम से सम्बन्धित प्रयोग के सभी उपकरण व आवश्यक होनी चाहिए। छात्र स्वयं करके सीखता है, वह उसका अपना अनुभव होता है। इसलिए, प्रयोगशाला विज्ञान के क्षेत्र में काफी महत्त्व है और इसके निर्माण पर विशेष बल देना चाहिए।

हाईस्कूल के लिए प्रयोगशाला

पहले विज्ञान विषय हाईस्कूल कक्षाओं में अनिवार्य नहीं था इसलिए बहुत कम बालक-बालिका इस विषय का चयन करते थे। इसी के साथ उनके लिए प्रयोगशाला की व्यवस्था भी नहीं थी। सर्वप्रथम सैण्ट्रल ट्रेनिंग कॉलेज, लाहौर के प्रधानाचार्य डॉ. वाईट हाउस ने बालकों के लिए प्रयोगशाला का निर्माण कराया। बाद में पंजाब शिक्षा विभाग ने इस योजना को स्वीकार कर लिया।

विज्ञान प्रयोगशाला का निर्माण इस प्रकार किया गया कि कक्षा का आकार 45 x 25′ रखने का सुझाव दिया जिसमें इस प्रकार व्यवस्था की गयी कि एक समय में 40 विद्यार्थी व्याख्यान भाग में और 20 प्रयोगशाला भाग में एक साथ काम करेंगे। इस प्रकार प्रयोगशाला दो भागों के रूप में प्रयोग की जायेगी। दीवारें 1-1½ मोटी रखी जाएँ। फर्श साफ हों तथा दरवाजे और खिड़कियाँ समुचित ढंग से बने हों जिससे प्रयोगशाला में रोशनी और हवा आती रहे। पानी की व्यवस्था ठीक हो।

व्याख्यान कक्ष में एक श्यामपट्ट हो। वालकों को बैठने के लिए 20 मेज तथा 40 कुर्सियाँ हों ताकि बालक सुविधापूर्वक बैठ सकें। पुस्तकों के रखने के लिए अलमारी होनी चाहिए। प्रयोगशाला कक्ष में एक बड़ा और लम्बा श्यापमट होना चाहिए। मेजें 6′ x 3½ के आकार की हों। प्रत्येक मेज पर चार विद्यार्थी काम कर सकें। मेजों पर सेल्फ की व्यवस्था होनी चाहिए। इन्हीं के साथ पानी का भी इन्तजाम होना चाहिए।

माध्यमिक स्कूलों के लिए प्रयोगशाला

अब विज्ञान एक महत्त्वपूर्ण विषय माना जाता है। इसको हाईस्कूल में भी पढ़ाया जाता है और प्रयोगशाला की व्यवस्था भी की जाती है लेकिन इण्टर (10 + 2) स्तर पर इसको प्रमुख रूप से अनिवार्य विषय के रूप में पढ़ाया जाता है और कोर्स भी अधिक विस्तृत होता है। इसलिए इस स्तर पर विज्ञान प्रयोगशाला का निर्माण बड़े अच्छे तथा व्यवस्थित ढंग से किया जाता है।

हर प्रकार की सुविधा का ध्यान रखते हुए प्रयोगशालायें बनायी जाती हैं और उन्हें आवश्यक साज-सामग्री से व्यवस्थित किया जाता है। हर विज्ञान या बायलोजी ग्रुप के लिए प्रयोग करना आवश्यक है क्योंकि प्रयोगात्मक परीक्षा में पास होना अनिवार्य है। अधिकतर यह देखा गया है कि विज्ञान कक्ष तथा प्रयोगशालाओं का निर्माण नये विज्ञान परिषद् के सुझावों के अनुसार किया जाता है और ये अधिकतर डिग्री कॉलेजों की तरह होते हैं. उन्हीं नियमों का पालन किया जाता है। विज्ञान प्रयोगशाला बनाने से पूर्व अग्रलिखित बातों का अवश्य ध्यान रखना चाहिए-

  1. विज्ञान प्रयोगशाला बनाने से पूर्व मुख्याध्यापक, भवन शिल्पी शिक्षा अधिकारी, विज्ञान कर्मचारी तथा विज्ञान अध्यापक से विचार-विमर्श बाद या आपस में मिल-बैठकर विचार करने के बाद या आपस में मिल-बैठकर विचार करने के बाद ही कार्य प्रारम्भ करना चाहिए।
  2. प्रयोगशाला का निर्माण ऐसे स्थान पर होना चाहिए जहाँ शिक्षण कक्षाएँ न हों क्योंकि बालकों के शोर से हर समय अशान्ति रहेगी। सुविधा के लिए प्रयोगशाला स्कूल के एक कोने पर ठीक रहती है जहाँ से संगीत कक्ष, व्यायाम कक्ष, क्रीड़ा स्थल, कार्यशाला और मुख्य द्वार ये सब दूर होते हैं।
  3. विज्ञान प्रयोगशाला के एक भाग में स्टोर, कक्ष, तैयारी कक्ष, तुला कक्ष, ग्रीन रूम आदि व्यवस्थित होना चाहिए।
  4. सामान्यतया प्रयोगशाला इस प्रकार की होनी चाहिए कि अध्यापक के बैठने की व्यवस्था ठीक हो। प्रत्येक विद्यार्थी सरलता से अध्यापक तक पहुँच सके। प्रत्येक विद्यार्थी के पास ही कप बोर्ड, बोतलें, सिंक, बर्नर आदि सब हों। सामने की सेल्फ में आवश्यक प्रयोग करने वाली सामग्री, साल्ट, द्रव्य आदि सजे होने चाहिए।
  5. प्रकाश व्यवस्था, खिड़की, रोशनदान, पानी, तरल पदार्थ, ठोस पदार्थ, प्रयोग सम्बन्धी मेजें और श्यामपट आदि सुव्यवस्थित ढंग के होने चाहिए ताकि प्रयोग करते समय बालकों को कोई परेशानी न हो।

भारत सरकार द्वारा सैकण्डरी स्कूलों में विज्ञान की शिक्षा के लिए एक कार्य-योजना कमेटी नियुक्त की गयी थी जिसने अपनी रिपोर्ट 1964 में प्रस्तुत की थी। कमेटी के अनुसार कुछ विशेष सुझाव विज्ञान प्रयोगशाला निर्माण के विषय में रखे गये, जो इस प्रकार हैं—

  1. छात्रों की संख्या पर विचार किया गया कि कार्य करते समय प्रयोगशाला में कितने कमरे होने चाहिए।
  2. प्रत्येक छात्र को कम-से-कम कितना स्थान प्रयोगशाला में काम करते समय चाहिए।
  3. स्कूल में कितने विज्ञान शिक्षक होने चाहिए।
  4. समीप के स्टोर कक्ष के लिए स्थान कितना होना चाहिए।
  5. माध्यमिक और उच्च कक्षाओं के लिए एक-सी प्रयोगशाला हो।
  6. विज्ञान सामग्री, उपकरण का किफायत से प्रयोग करना चाहिए।

माध्यमिक या हायर सैकण्डरी विद्यालयों के लिए भौतिक विज्ञान और रसायन विज्ञान के लिए करीब-करीब एक-सी ही प्रयोगशालायें होती हैं। किसी भी प्रयोगशाला के लिए 30 विद्यार्थियों का एक साथ प्रयोग करने का प्रावधान होता है। प्रयोगशाला का क्षेत्रफल 45 x 15′ का होना चाहिए जिसमें प्रकाश का प्रबन्ध हो। इसी के पास तैयारी कक्ष होना चाहिए। औजारों के लिए उचित व्यवस्था होनी चाहिए।

विज्ञान – कक्षा में बैठने की गैलरी, एक श्यामपट्ट, फिल्म दिखाने के लिए सफेद पर्दा तथा खिड़कियाँ तथा रोशनदान के लिए काले पर्दे होने चाहिए। एक प्रदर्शन मेज होनी चाहिए जिसका आकार 8′ x 4′ होना चाहिए तथा जिसमें कप बोर्ड, गैस और पानी की व्यवस्था होनी चाहिए। काम करने के लिए दाज, कोनों पर दो सिंक तथा गहरी आलमारियाँ होनी चाहिए।

रसायन विज्ञान प्रयोगशाला में यह समान अवश्य होना चाहिए-

  1. कार्य करने की मेजें, कप बोर्ड और सैल्फ पानी और गैस का समुचित प्रबन्ध हो।
  2. गहरी बड़ी अलमारियाँ, दीवार पर श्यामपट्ट, रासायनिक बोतलों के लिए दीवान में सैल्फ, सिंकों के पास ड्राइंग रैक तथा प्रयोगशाला के कोनों में दो बड़े सिंक भी होनी चाहिए। एक प्रदर्शन मेज 8′ x 4′ आकार की होनी चाहिए।

एक आधुनिक प्रयोगशाला का प्रारूप

भौतिक प्रयोगशाला में निम्नलिखित सामान होना चाहिए-

  1. प्रदर्शन मेज जिसमें दराज लगे हों तथा गैस और पानी की व्यवस्था भी हो।
  2. तुलाओं को रखने के लिए दीवार में व्यवस्था।
  3. गहरी आलमारियाँ, दीवार पर श्यामपट दोनों कोनों पर बड़े सिंक तथा दो बड़े स्टूल होने चाहिए।
  4. काम करने की मेजें जिनमें कपबोर्ड और सैल्फ लगे होने चाहिए।
  5. विज्ञान शिक्षण में फोटोग्राफी करने के लिए अँधेरा कमरा होना चाहिए। यह कमरा प्रयोगशाला के निकट हो, तो छोटा होना चाहिए। इसमें बिजली का प्रबन्ध होना चाहिए।
  6. विज्ञान प्रयोगशाला में प्रकाश, जल की व्यवस्था ठीक होनी चाहिए। दुर्गन्धयुक्त विषकारक गैसों को निकालने के लिए फ्यूमहुड की व्यवस्था होनी चाहिए। प्रयोगशाला का फर्श मजबूत होना चाहिए।
  7. कार्यशाला प्रयोगशाला के पास एक कमरे में होने चाहिए, जहाँ विद्यार्थी साधारण उपकरणों व निर्माण कर सकें।
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