विज्ञान पाठ्य पुस्तक क्षेत्र आवश्यकता 10 विशेषताएँ व सीमाएँ

पाठ्य पुस्तक अध्यापक के लिए ऐसा महत्त्वपूर्ण साधन है जो उसके विज्ञान शिक्षण के लिए आवश्यक है। विज्ञान पाठ्य पुस्तक के द्वारा शिक्षक छात्रों के व्यवहार, ज्ञान कौशल आदि में परिवर्तन लाकर विज्ञान शिक्षण के उद्देश्यों को पूर्ण करने का प्रयास करता है। पाठ्य पुस्तक में पाठ्य वस्तु का ज्ञान एक विशेष क्रम में निश्चित स्थान पर संग्रहीत रहता है तथा ये कक्षा में स्पष्ट रूप से शिक्षण अधिगम परिस्थितियों पर स्पष्ट प्रभाव डालती हैं।

जैसी पाठ्य पुस्तक होती है, वैसा ही शिक्षण और अधिगम होता है। पाठ्य पुस्तक के बिना अधिगम और शिक्षण असम्भव है। शैक्षिक विकास के साथ ही पाठ्यक्रम का विकास होता है। पाठ्यक्रम सामाजिक और राष्ट्रीय ध्येयों की ओर बढ़ने के लिए औपचारिक मार्ग है इसके आधार पर विज्ञान आदि विषयों पर विभिन्न स्तरों के लिए पाठ्य-वस्तु निर्मित की जाती हैं। पाठ्यवस्तु को पाठ्य-पुस्तक में संग्रहीत और संगठित किया जाता है।

विज्ञान पाठ्य पुस्तक

विज्ञान पाठ्य पुस्तक में पाठ्यक्रम के लक्ष्यों की प्राप्ति, सामाजिक आवश्यकताओं की पूर्ति तथा विद्यार्थी की जिज्ञासा को तृप्त करने के लिए विशिष्ट विषय-वस्तु होती है। इसका संगठन शैक्षिक ध्येयों के परिवर्तन, मनोवैज्ञानिक अनुसंधानों के प्रभावों, शैज्ञिक तकनीक की प्रगति पर निर्भर करता है। सभी जगह पाठ्य पुस्तक अधिगम का मूल स्रोत है, यह शिक्षक का एक महत्त्वपूर्ण साधन है जिसके द्वारा वह ज्ञानार्जन करा सकता है।

विशाल बहुमत के अन्तिम विश्लेषण के अनुसार विज्ञान पाठ्य पुस्तक क्या और कैसे पढ़ाने की शक्तिशाली निर्धारक है।

हर्न आर डबलस के अनुसार

किसी कक्षा के लिए एक से अधिक पाठ्य-पुस्तकों को निर्धारित किया जाना चाहिए, लेकिन किसी भी दशा में पाठ्य पुस्तक को शिक्षक का स्थान ग्रहण करने नहीं देना चाहिए, क्योंकि अन्ततः शिक्षक एक सजीव व्यक्ति है, जबकि पाठ्य पुस्तक एक निर्जीव वस्तु।

बी. डी. घाटे के अनुसार

पाठ्य पुस्तक एक महत्त्वपूर्ण शिक्षक उपकरण है।

डॉ. जॉनसन के अनुसार

न तो केवल पाठ्य पुस्तक और न केवल शिक्षक शिक्षा का सर्वोत्तम साधन है। यदि तरुण व्यक्तियों को अपने उत्तदायित्व को वहन करने के लिए प्रशिक्षित किया जाता है तो भली-भाँति चुनी हुई पाठ्य-पुस्तकों और भली-भाँति प्रशिक्षित अध्यापक के सहयोग की आवश्यकता है।

क्रो व क्रो के अनुसार

विज्ञान पाठ्य पुस्तक वह साधन है जिसके माध्यम से अध्यापक किसी विषय कक्षा के सामने प्रस्तुत करने में समर्थ होता है।

मैक्स वेल के अनुसार

शिक्षण में विज्ञान पाठ्य पुस्तक की उपयोगिता

वैज्ञानिक चिन्तन के लिए पाठ्य पुस्तक मार्गदर्शन का कार्य करती है। इसकी उपयोगिता निम्नलिखित है-

  1. पाठ्य पुस्तक की सहायता से छात्र तथ्यों का ज्ञान स्वयं कर लेते हैं।
  2. पाठ्य पुस्तक के उपयोग से छात्र तथा शिक्षक दोनों का समय बचता है।
  3. पाठ्य पुस्तक द्वारा कम मूल्य पर छात्र महत्वपूर्ण तथ्य तथा सूचनाएँ प्राप्त कर लेते हैं।
  4. पाठ्य पुस्तक में वैज्ञानिक विषय संगठित रूप में प्रस्तुत किये जाते हैं।
  5. पाठ्य-पुस्तकें छात्रों के लिए प्रेरणा स्रोत हैं।
  6. पाठ्य-पुस्तकें छात्रों को स्वाध्याय की प्रेरणा देती हैं।
  7. पाठ्य-पुस्तकें पाठ की तैयारी में विशेष सहायक होती हैं।
  8. इससे शिक्षण उद्देश्यों की प्राप्ति में सहायता मिलती है।
  9. गृह कार्य में पाठ्य-पुस्तकों का उपयोग लाभदायक है।
  10. इनसे विषय वस्तु की सीमा ज्ञात हो जाती है।
  11. अगले पाठ के बारे में जानकारी मिलती है।

विज्ञान पाठ्य पुस्तक का क्षेत्र

शैक्षिक तकनीकी के विकास के साथ-साथ अनुदेशन सामग्रियों में संख्यात्मक और गुणात्मक विकास एवं विस्तार हो रहे हैं। इन्हें दो भागों में विभाजित किया जा सकता है—-

  1. मुद्रित सामग्री – इसमें पाठ्य पुस्तक, शिक्षक मार्गदर्शिका, प्रयोगशाला, नियम पुस्तिका, कार्य पुस्तिका, आँकड़ा पुस्तक, पत्रिकाएँ और अनुपूरक पठन आदि सम्मिलित हैं।
  2. अमुद्रित सामग्री – इसमें मुख्यत: चार्ट, मॉडल, फिल्म, ग्राफ, श्यामपट्ट, फ्लैनलपट, स्लाइड, टी. वी., प्रोजैक्टर, कम्प्यूटर आदि सम्मिलित हैं।

इन सभी में प्रमुख पाठ्य पुस्तक है। शिक्षक एवं विद्यार्थी की दृष्टि से इसका उपयोग सार्वभौमिक है। यह क्रियाओं के आयोजन, व्यक्तिगत प्रायोजनों, प्रयोगशालाओं के प्रयोगों एवं विद्यार्थायाँ की आवश्यकताओं की पूर्ति के लिए मार्गदर्शिका है। पाठ्य पुस्तक का निर्माण किसी पाठ्य वस्तु में निर्धारित अवधारणाओं के आधार पर होता है। विज्ञान पाठ्य पुस्तक में वैज्ञानिक तथ्य होते हैं। प्रयोगों एवं क्रियात्मक कार्यों के लिए इनमें आवश्यक निर्देश होते हैं। एक अच्छी पाठ्य पुस्तक अनुमान, प्रयोग एवं निष्कर्ष निकालने के लिए अवसर प्रदान करती है।

विज्ञान अर्थ परिभाषा प्रकृति क्षेत्र व 10 उपयोगशिक्षण प्रतिमान विकासात्मक वैज्ञानिक पूछताछ शिक्षण प्रतिमानआगमनात्मक विधि परिभाषा 5 गुण व 4 दोष
निगमनात्मक विधि परिभाषा 7 गुण व 5 दोषविज्ञान शिक्षण व विज्ञान शिक्षण की विधियांपरियोजना विधि अर्थ सिद्धांत विशेषताएं 7 गुण व 8 दोष
ह्यूरिस्टिक विधि के चरण 6 गुण व Top 5 दोषप्रयोगशाला विधि परिभाषा उपयोगिता गुण व दोषपाठ्यपुस्तक विधि परिभाषा गुण व Top 4 दोष
टोली शिक्षण अर्थ विशेषताएं उद्देश्य लाभअभिक्रमित शिक्षण की 5 विशेषताएं 6 लाभ 6 दोषइकाई योजना विशेषताएं महत्व – 7 Top Qualities of unit plan
मूल्यांकन तथा मापन में अंतरविज्ञान मेला Science Fair 6 Objectivesविज्ञान का इतिहास व भारतीय विज्ञान की 11 उपलब्धियाँ
विज्ञान शिक्षण के उद्देश्य Top 12 Objective7 प्रमुख भारतीय वैज्ञानिक और उनके योगदानविज्ञान शिक्षक की 13 विशेषताएँ
विज्ञान पाठ्य पुस्तक क्षेत्र आवश्यकता 10 विशेषताएँ व सीमाएँविज्ञान क्लब के 8 उद्देश्य क्रियाएँ व विज्ञान क्लब के संगठनविज्ञान क्लब के 8 उद्देश्य क्रियाएँ व विज्ञान क्लब के संगठन
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शैक्षिक निदान का अर्थ विशेषताएँ व शैक्षिक निदान की प्रक्रियापदार्थ की संरचना व पदार्थ की 3 अवस्थाएँ

विज्ञान पाठ्य पुस्तक की आवश्यकता

विज्ञान पाठ्य पुस्तकों की आवश्यकता के सम्बन्ध में निम्नलिखित बिन्दु प्रस्तुत हैं-

  1. विज्ञान को सरलता से समझने के लिए पाठय पुस्तक का पढ़ना बहुत आवश्यक है। पाठ्य-पुस्तक पाठ्यक्रम को एक क्रमबद्ध तरीके में रखकर निश्चित करती है ताकि बालक उसे क्रमानुसार सरलता ढकर ज्ञान प्राप्त करता है।
  2. विज्ञान पाठ्य पुस्तक द्वारा अच्छे मापदण्ड स्थापित किये जा सकते हैं, उनमें समानता स्थापित की जा सकती है। शिक्षक स्थापित मापदण्डों के आधार पर सुगमता से पढ़ा सकता है।
  3. अच्छी पाठ्य-पुस्तक में सभी सूचनाएँ क्रमबद्ध तरीके से मिल जाती है अतः शिक्षक को इधर-उधर नहीं भटकना पड़ता है तथा कक्षा के कार्य को आगे बढ़ाने की उसे सुविधा भी रहती है।
  4. बालकों की वैज्ञानिक सिद्धान्तों तथ्यों तथा नियमों को समझाने के लिए की सहायता करती है तथा बालकों को छूटे हुए ज्ञान की प्राप्ति में सहायक है।
  5. पाठ को पढ़ाने के बाद उसके बारे में विचार-विमर्श को प्रोत्साहन देने के लिए, उसका निष्कर्ष निकालने के लिए तथा पाठ्यक्रम की विधिवत् पुनरावृत्ति के लिए पाठ्य-पुस्तक सहायता करती है।
  6. गृहकार्य के लिए अधिन्यास की तैयारी के लिए पाठ्य पुस्तक सहायक है। पाठ्य पुस्तकों की सहायता से छात्र अपना गृह कार्य आसानी से कर सकते हैं।
  7. विज्ञान शिक्षक पाठ्य पुस्तक से सही ज्ञान प्राप्त कर बालकों को देता है। इस प्रकार शिक्षक पाठ्य पुस्तक का कार्य करता है और उन्हें नवीन ज्ञान से परिचित कराता है।
  8. बालकों में उदार मनोवृत्ति के विकास तथा वैज्ञानिक विधि के प्रशिक्षण और वैज्ञानिक दृष्टिकोण को अपनाने के लिए विज्ञान पाठ्य पुस्तक बड़ी सहायता करती है।
  9. पाठ्य-पुस्तक बालकों में मनन करने, चिन्तन करने पर बल देती है इसलिए उसमें पूरा पाठ्यक्रम होता है तथा शिक्षकों को उद्देश्यों को प्राप्त करने में भी सहायता करती है।
  10. पाठ्य पुस्तक की परीक्षण सीमा पाठ्य-पुस्तकों द्वारा ही निर्धारित होती है।

मुदालियर आयोग के अनुसार, “कुछ निर्धारित पाठ्य-पुस्तकों पर ही विद्यार्थियों की निर्भरता आवश्यक और सही नहीं है। विज्ञान जैसे विषयों के लिए विशेषज्ञों द्वारा पाठ्य-पुस्तकों की सूची निर्धारित करनी चाहिए, जिनमें छात्रों को अपनी वैयक्तिक भिन्नता के अनुसार अधिमान के अवसर उपलब्ध हो सकें।”

विज्ञान पाठ्य पुस्तक की भूमिका

विज्ञान पाठ्य पुस्तक की भूमिका निम्नलिखित है-

  1. शिक्षण अधिगम संचालन – पाठ्य-पुस्तक अध्यापकों के लिए शिक्षण और विद्यार्थियों के लिए अधिगम का सरल और सहज रूप में उपलब्ध होने वाला संसाधन है। विज्ञान एक विराट विषय है किसी भी स्तर पर इसकी शिक्षण वस्तु की छात्रों के मानसिक स्तर के अनुसार ढालना आसान कार्य नहीं है। कक्षा के अनुरूप छात्रों की रुचि, आवश्यकताओं और मानसिक स्तर के अनुसार विषय-वस्तु का संगठन पाठ्यवस्तु में ही व्यवस्थित होता है। पाठ्य वस्तु के अभाव में अनुपस्थित छात्रों का नुकसान अवश्य होता है। पाठ्य पुस्तक विद्यार्थियों के होने वाले इस नुकसान से बचा लेती है।
  2. प्रतिपुष्टि क्रिया — शिक्षण एक चतुष्पदीय प्रक्रिया है। सामाजिक ध्येयों को प्राप्त करने के लिए पाठ्यक्रम का निर्माण किया जाता है। ध्येयों की ओर अग्रसर होने के लिए विषयों एवं क्रियाओं को संगठित किया जाता है। प्रत्येक विषय के लिए उद्देश्य निर्धारित किये जाते हैं। उद्देश्यों की प्राप्ति हेतु प्रत्येक विषय के लिए पाठ्य वस्तु बनायी जाती है जिसे पाठ्य पुस्तक में मूर्त रूप दिया जाता है। इस प्रकार पाठ्य पुस्तक की रचना शिक्षण प्रक्रिया से पाठ्यचर्या निर्माण के चरण की सहचरी के रूप में उसकी प्रतिपुष्टि क्रिया है। पाठ्य-पुस्तक अपेक्षित लक्ष्यों और अनुदेशन प्रक्रिया के बीच सेतु का कार्य करती है।
  3. मार्गदर्शक – विज्ञान पाठ्य पुस्तक एक मार्गदर्शक का कार्य करती है। अध्यापकों को पाठ्य-पुस्तक से विभिन्न विधाओं, उपागमों और कौशलों के चयन में सहायता मिलती है। अधिगम एवं उसके अभ्यास के लिए विद्यार्थी का मार्गदर्शन पाठ्य पुस्तक द्वारा ही होता है।
  4. सूचनाओं का संग्रह – पाठ्य पुस्तक में पाठ्यक्रम में निर्धारित पाठ्य-वस्तु के सम्बन्ध में सभी प्रकार की आवश्यक सूचनायें मौजूद रहती हैं। ये सूचनाएँ नवीन ज्ञान प्राप्तकरने के लिए आधार निर्मित करती हैं। पाठ्य पुस्तक में शिक्षकों और विद्यार्थियों के सभी आवश्य सूचनाएं संग्रहीत रहती हैं।
  5. अभिप्रेरणा – विज्ञान में नये ज्ञान के अध्ययन अध्यापन के साथ-सा पाठ्य पुस्तक पर्याप्त स्थिति उपलब्ध कराती है। पाठ्य पुस्तक में विज्ञान के विभिन्न सिद्धान्तों तथ् विधियों, तकनीकों के लाभ इसमें उपलब्ध रहते हैं। पर्यावरण के सम्बन्ध में सहज उठने वाले प्रश्नों क्यों क्या ? कैसे ? आदि के सही उत्तर पाठ्य-पुस्तक से ही प्राप्त होते हैं। नवीन विषय से सम्बन्धित ज्ञान के प्राप्त करने के लिए पाठ्य पुस्तक में पर्याप्त अवसर होते हैं।
  6. सन्दर्भ सामग्री – कक्षा में कुछ छात्र प्रतिभाशाली भी होते हैं जो कक्ष में प्राप्त ज्ञान से सन्तुष्ट नहीं हो पाते, उनके असन्तुष्ट रहने से कक्षा में शिक्षक के सामने कई प्रकार क शैक्षिक समस्याएँ उत्पन्न हो सकती हैं। ऐसी स्थिति में उनको सन्तुष्ट करना आवश्यक है। उनकी सन्तुषि के लिए अतिरिक्त विषय-वस्तु पाठ्य पुस्तक में मौजूद सन्दर्भ सामग्री से प्राप्त हो सकती है।
  1. समन्वयक – विज्ञान एक व्यावहारिक विषय है। प्रयोग-प्रेक्षण के परिणाम ही इसके निष्कर्ष के आधार होते हैं। मूल पुस्तकों में विषय के अलग-अलग बिन्दुओं पर अलग-अलग दृष्टिकोणों से चर्चा की जाती है। पाठ्य पुस्तकों में अधिक-से-अधिक सन्दर्भ पुस्तकों एवं उपलब्ध स्रोत के आधार पर सभी अध्ययन बिन्दुओं की सन्तुलित विवेचना का समावेश होता है। इसके साथ-साथ ही इनमें विषय के सैद्धान्तिक और प्रयोगात्मक दोनों ही पक्षों का समन्वय होता है।
  2. अनुदेशक – पाठ्य-पुस्तक में लेखक का विचार एवं ज्ञान लिखित रूप में होते हैं। विद्यार्थी इसका अध्ययन करते समय लेखक के साथ अनुक्रिया करता है। बार-बार अध्ययन करने में विद्यार्थी नवीन ज्ञान प्राप्त करता है। इस प्रकार पाठ्य पुस्तक विद्यार्थी के साथ अन्तःक्रिया करते हुए अनुदेशक का कार्य करती है।
  3. अनुपूरक — विज्ञान शिक्षण के अन्तर्गत कक्षा में बहुत से शिक्षण बिन्दु छूट जाते हैं। छूटे हुए शिक्षण बिन्दुओं को छात्र पाठ्य पुस्तक की सहायता से आसानी से पढ़क सीख सकता है। किसी सूत्र अथवा सिद्धान्त के अनुप्रयोग के लिए कक्षा का समय ही पर्याप्त नहीं होता, इसके लिए छात्र पाठ्य पुस्तक की सहायता से ले सकता है।
  4. पुनरावृत्ति — अधिगम के पश्चात् अध्ययन की बार-बार पुनरावृत्ति आवश्यक है । पुनरावृत्ति के लिए सर्वोत्तम साधन पाठ्य पुस्तक है।
  5. मानक — शिक्षा के विभिन्न स्तरों पर भिन्न-भिन्न प्रकरण पढ़ाये जाते हैं। किसी प्रकरण को पढ़ाने के लिए किस मानक का उपयोग किया जाए यह केवल पाठ्य पुस्तक द्वारा ही ज्ञात किया जा सकता है। पाठ्य-पुस्तक प्रकरण के जिस मानक का निर्धारण करती है उसी का अनुसरण विज्ञान शिक्षक और शिक्षार्थी करते हैं। इसी मानक के आधार पर सार्वजनिक परीक्षाएँ ली जाती हैं।
  6. अभ्यास कार्यों का स्रोत – कक्षा में हर प्रकार के प्रश्नों का हल करना सम्भव नहीं हो पाता। इस प्रकार के प्रश्न पाठ्य पुस्तक में पाठ के अन्त में दिये जाते हैं। इसके साथ-साथ अधिगम को बल प्रदान करने के लिए पाठ्य पुस्तक में छात्रों के लिए सम्बन्धित क्रियाओं के सम्पादन के लिए सुझाव होते हैं तथा मूल्यांकन हेतु पाठ्य पुस्तक में अभ्यास प्रश्न दिये जाते हैं।

विज्ञान पाठ्य पुस्तक की विशेषताएँ

विज्ञान पाठ्य पुस्तक में कुछ ऐसे गुणों व विशेषताओं का समावेश आवश्यक है, जो विज्ञान पाठ्य पुस्तक की दृष्टि से अति महत्त्वपूर्ण है। एक अच्छी विज्ञान पाठ्य पुस्तक की अग्रलिखित विशेषताएँ होनी चाहिए-

  1. पाठ्यक्रम पर आधारित — विज्ञान पाठ्य पुस्तक शिक्षा विभाग द्वारा निर्धारित सम्पूर्ण पाठ्यक्रम पर आधारित होनी चाहिए। पाठ्यक्रम के सभी अंगों पर उसमें उचित ध्यान दिया जाना चाहिए।
  2. विषय वस्तु –
    • पाठ्य वस्तु विद्यार्थियों की आयु-स्तर तथा बुद्धि के अनुकूल होनी चाहिए। विषय का सम्बन्ध बालकों के जीवन से जुड़ा होना चाहिए तथा रोचक ढंग से प्रस्तुत किया गया हो।
    • विषय-वस्तु पाठ्यक्रम के अनुसार अपने में पूर्ण, प्रेरणादायक एवं आकर्षक होना चाहिए।
    • पाठ्य वस्तु सारगर्भित, स्पष्ट और सरल भाषा में होनी चाहिए।
    • अध्याय के अन्त में क्रियात्मक कार्यों के लिए सुझाव अवश्य होने चाहिए। .
  1. पाठ्य-पुस्तक का लेखक – पाठ्य पुस्तक का लेखक अनुभवी तथा विज्ञान में पूर्णतया निपुण होना चाहिए। लेखक को विज्ञान विषय के अनुसंधानों एवं अवधारणाओं की जानकारी होनी चाहिए। पाठ्य पुस्तक अनुदेशन की पूरक होती है। पाठ्य-पुस्तक में शिक्षा और अध्ययन दोनों की प्रोन्नति के लिए पर्याप्त सामग्री उपलब्ध की जानी चाहिए।
  2. छात्रों की आवश्यकताओं के अनुरूप — विज्ञान पाठ्य पुस्तक जिस स्तर के लिए लिखी गयी हो वह उस स्तर के लिए निर्धारित विज्ञान के शिक्षण के उद्देश्यों के अनुकूल होनी चाहिए। उसमें प्रत्येक अध्याय की भूमिका से आरम्भ हो तथा सारांश पर समाप्त होनी चाहिए। प्रत्येक अध्याय के अन्त में विद्यार्थियों के लिए अधिन्यास कार्य अवश्य होने चाहिए।
  3. प्रकरणों का उचितक्रम व सरल भाषा-शैली — विज्ञान पाठ्य पुस्तक में विषय सामग्री की व्यवस्था मनोवैज्ञानिक व तार्किक क्रम के अनुरूप होनी चाहिए। विभिन्न प्रकरणों की ‘सरल से कठिन की ओर’, ‘ज्ञात से अज्ञात की ओर’ के सिद्धान्तों का परिपालन करते हुए क्रमबद्ध होने चाहिए। विज्ञान पाठ्य पुस्तक में भाषा छात्रों की आयु एवं मानसिक स्तर के अनुकूल होनी चाहिए। निम्न कक्षाओं की पाठ्य-पुस्तकों में कठिन और क्लिष्ट भाषा का प्रयोग न किया जाए अन्यथा छात्रों को अध्ययन में रुचि नहीं होगी जिससे उपलब्धि प्रभावित होगी-
    • पाठ्य पुस्तक की भाषा-शैली सरलता से जटिलता की ओर बढ़नी चाहिए।
    • शैली में विभिन्नता होनी चाहिए, जिससे छात्रों के सभी मानसिक गुणों का विकास हो सके।
    • वाक्य रचना रुचिकर होनी चाहिए। अच्छे एवं उपयुक्त शब्दों का प्रयोग करना चाहिए।
    • पुस्तक में मुद्रण एवं वर्तनी सम्बन्धी त्रुटि नहीं होनी चाहिए।
    • वैज्ञानिक प्रतीकों, सूत्रों, समीकरणों, नामावलियों एवं पारिभाषिक शब्दों को सही-सही ढंग से मुद्रित किया जाना चाहिए।
  1. पाठ्य पुस्तक का आकार-प्रकार – पाठ्य पुस्तक का कागज, जिल्द, छपाई आदि सुन्दर होनी चाहिए। अक्षरों का टाइप एक-सा होना चाहिए। शीर्षकों को मोटे अक्षरों में छपवाना चाहिए। पुस्तक की छपाई आकर्षक एवं प्रभावशाली होनी चाहिए। पुस्तक का कागज अच्छा तथा जिल्द मजबूत होनी चाहिए। पाठ्य पुस्तक का मूल्य पाठ्य-पुस्तक के अनुकूल होना चाहिए। पुस्तक की बाह्य आकृति तथा अन्तर्गत सही और सुदृढ़ होनी चाहिए।
  2. उचित विधियों का समावेश – विज्ञान पाठ्य पुस्तक में छात्रों तथा शिक्षकों के मार्ग दर्शन हेतु विज्ञान शिक्षण की आधुनिक व व्यावहारिक विधियों; जैसे—खोज विधि, प्रयोगशाला विधि आदि पर बल दिया जाना चाहिए। विज्ञान पाठ्य पुस्तक आधारभूत ज्ञान की प्राप्ति, साधन है तथा चिन्तन हेतु मार्गदर्शिका का कार्य करती है।
  3. सहायक सामग्री – बिना सहायक सामग्री के कोई भी पाठ स्पष्ट नहीं हो पाता। शिक्षण में इसकी बड़ी आवश्यकता होती है क्योंकि इससे पाठ रोचक तथा प्रभावशाली बन जाता है। ठोस वस्तुओं को दिखाने से। सजीव नमूनों का वास्तविक चित्र कक्षा में प्रदर्शन करने से या उपकरणों के पाठ्य पुस्तक में चित्रों के माध्यम से दिखाने पर पाठ में सजीवता आ जाती है। विज्ञान पाठ्य पुस्तक में भिन्न-भिन्न उपकरणों, चित्रों, मॉडलों, रेखाचित्रों, ग्राफ तथा मानचित्रों को आवश्यकतानुसार अवश्य दिखाना चाहिए जिससे बालक इनके माध्यम से विषय-वस्तु को सही ढंग से जान सकें। पाठ में इन्हें उचित स्थान पर छपवाना चाहिए। सम्भव होने पर रंगीन चित्रों का प्रयोग भी करना चाहिए। इनसे विषय-वस्तु के स्पष्टीकरण में बड़ी सहायता मिलती है और बालक सरलता से समझ जाते हैं।
  4. विषय-वस्तु का संगठन
    • प्रत्येक पाठ्य पुस्तक का प्रारम्भ प्राक्कथन से होना चाहिए।
    • पाठ्य सामग्री का पाठवार आकर्षक ढंग से संक्षेप में सार दिया जाना चाहिए।
    • प्राक्कथन के बाद विषय-सूची दी जानी चाहिए।
    • विषय सामग्री को मनोवैज्ञानिक एवं तार्किक क्रम में संगठित किया जाना चाहिए।
    • विषय-वस्तु के प्रस्तुतीकरण द्वारा शिक्षण अधिगम के समुचित विधियों पर प्रकाश डाला जाना चाहिए।
    • पाठ्य पुस्तक में सामाजिक तथा भौतिक पर्यावरण के उदाहरणों की सहायता से अवधारणाओं को स्पष्ट किया जाना चाहिए।
    • विषय-वस्तु विद्यार्थियों तथा समाज की आवश्यकताओं एवं रुचियों के अनुकूल होनी चाहिए।
    • प्रत्येक इकाई के प्रारम्भ में विद्यार्थियों के आपेक्षित व्यवहार परिवर्तन का उल्लेख होना चाहिए।
    • प्रत्येक इकाई के अन्त में पुनरावृत्ति अभ्यास और मूल्यांकन हेतु समुचित पदों का उल्लेख होना चाहिए।
  1. परिशिष्ट – पाठ्य पुस्तक के अन्त में कई आवश्यक बातें होती हैं जिनको परिशिष्ट के माध्यम से दिखाया जाता है-
    • प्रथम परिशिष्ट में भिन्न-भिन्न विश्वविद्यालयों के अभ्यास प्रश्न दिए जायें।
    • दूसरे परिशिष्ट में विज्ञान सम्बन्धी उपकरणों के चित्र आदि।
    • तीसरे परिशिष्ट में विज्ञान की मुख्य पुस्तकों के नाम।
    • चौथे परिशिष्ट में विज्ञान की सन्दर्भ पुस्तकों के नाम।
    • पाँचवें परिशिष्ट में विज्ञान की मुख्य-मुख्य पत्रिकाओं के नाम ।

विज्ञान पाठ्य-पुस्तक की सीमाएँ

  1. विज्ञान पाठ्य-पुस्तक एक शिक्षक सामग्री है, जिसकी उपयोगिता एवं प्रभाव शिक्षक द्वारा उसके उपयोग पर निर्भर है।
  2. विज्ञान की पुस्तक मात्र अनुदेशन का अनुपूरक है।
  3. पाठ्य-पुस्तक छात्रों के लिए अधिगम संस्थितियों का सृजन नहीं करती यह केवल संस्थितियों का सृजन हेतु सामग्री उपलब्ध करती है। सृजन का कार्य शिक्षक करता है।
  4. प्राय: छात्र पाठ्य-पुस्तक पर आश्रित रहते हैं। वे कक्षा में क्रियाशील नहीं रहते हैं।
  5. छात्र पाठ्य-पुस्तक में उपलब्ध सामग्री को रटते हैं। वे वास्तविक ज्ञान प्राप्त करने का प्रयास नहीं करते।
  6. शिक्षक पाठ्य-पुस्तक तक ही सीमित हो जाते हैं। वे सन्दर्भ सामग्री का उपयोग नहीं करते।
  7. कभी-कभी विज्ञान की पाठ्य पुस्तक को कक्षा में बारी-बारी से छात्रों से पढ़वाकर शिक्षक विज्ञान शिक्षण का कार्य पूरा कर देते हैं। यह स्थिति सही नहीं है।
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