विज्ञान का इतिहास व भारतीय विज्ञान की 11 उपलब्धियाँ

विज्ञान का इतिहास भारत में विज्ञान का उद्भव ईसा से 3000 वर्ष पूर्व हुआ है। हड़प्पा तथा मोहनजोदड़ो की खुदाई से प्राप्त सिंधु घाटी के प्रमाणों से वहाँ के लोगों की वैज्ञानिक दृष्टि तथा वैज्ञानिक उपकरणों के प्रयोगों का पता चलता है। प्राचीन काल में चिकित्सा विज्ञान के क्षेत्र में चरक और सुश्रुत, खगोल विज्ञान व गणित के क्षेत्र में आर्यभट्ट ब्रह्मगुप्त और आर्यभट्ट द्वितीय और रसायन विज्ञान में नागार्जुन की खोजों का बहुत महत्वपूर्ण योगदान है।

विज्ञान का इतिहास

आज विज्ञान का स्वरूप काफी विकसित हो चुका है। पूरी दुनिया में तेजी से वैज्ञानिक खोज हो रही हैं। इन आधुनिक वैज्ञानिक खोजों की दौड़ में भारत के जगदीश चन्द्र बसु, प्रफुल्ल चन्द्र राय, सी भी रमण, सत्येन्द्रनाथ बोस, मेघनाद साहा, श्री निवास रामानुजन्, हरगोविन्द खुराना आदि का वनस्पति, भौतिकी गणित, रसायन, यांत्रिकी, चिकित्सा विज्ञान, खगोल विज्ञान आदि क्षेत्रों में महत्वपूर्ण योगदान है।

भारतीय विज्ञान विकास के विभिन्न चरण तथा उपलब्धियाँ —

  • भारतीय विज्ञान का विकास प्राचीन समय में ही हो गया था। जिस समय यूरोप में घुमक्कड़ जातियाँ अभी अपनी बस्तियाँ बसाना सीख रही थीं, उस समय भारत में सिंधु घाटी के लोग सुनियोजित ढंग से नगर बसा कर रहने लगे थे। उस समय तक भवन निर्माण, धातु विज्ञान, वस्त्र निर्माण, परिवहन व्यवस्था आदि उन्नत दशा में विकसित हो चुके थे। फिर आर्यों के साथ भारत में विज्ञान की परम्परा और भी विकसित हो गई। इस काल में गणित, ज्योतिष, रसायन, खगोल, चिकित्सा, धातु आदि क्षेत्रों में विज्ञान ने बहुत उन्नति की। विज्ञान की यह परम्परा ईसा के जन्म से लगभग 200 वर्ष पूर्व से शुरू होकर इंसा के जन्म के बाद लगभग 11वीं सदी तक काफी उन्नत अवस्था में थी। इस बीच आर्यभट्ट, वराहमिहिर, ब्रह्मगुप्त, बोधायन, चरक, सुश्रुत, नागार्जुन, कणाद से लेकर सवाई जयसिंह तक वैज्ञानिकों की लम्बी परम्परा विकसित हुई।
  • मध्यकाल में मुगलों के आने के बाद देश में लगातार लड़ाइयाँ चलती रहने के कारण भारतीय वैज्ञानिक परम्परा का विकास थोड़ा रुका अवश्य, किन्तु प्राचीन भारतीय विज्ञान पर आधारित ग्रंथों के अरबी-फारसी में खूब अनुवाद हुए। मुगल शासक के बाद जब अंग्रेजी शासन स्थापित हुआ तो भारत में एक बार फिर विज्ञान की परम्परा तेजी से विकास की ओर उन्मुख हुई अंग्रेजी शासन के दौरान ज्ञान-विज्ञान के विविध स्रोत और संसाधन विकसित हुए, जिस कारण यहाँ की वैज्ञानिक परम्परा को विकसित होने के लिए खूब उर्वर भूमि प्राप्त हुई और इसने विविध क्षेत्रों में उपलब्धियाँ हासिल की।

समग्र भारतीय वैज्ञानिक परम्परा को निम्नलिखित दो चरणों में बाँटकर विस्तार से अध्ययन किया जा सकता है-

  1. प्राचीन भारतीय विज्ञान
  2. मध्यकालीन तथा आधुनिक भारतीय विज्ञान

वैदिक काल के लोग खगोल विज्ञान का अच्छा ज्ञान रखते थे। वैदिक भारतीयों को 27 नक्षत्रों का ज्ञान था। वे वर्ष, महीनों और दिनों के रूप में समय के विभाजन से परिचित थे। ‘लगध’ नाम के ऋषि ने ‘ज्योतिष ‘वेदांग’ में तत्कालीन खगोलीय ज्ञान को व्यवस्थित कर दिया था। आप विज्ञान का इतिहास पर लेख hindibag पर पढ़ रहे है।

वैदिक युग की विशिष्ट उपलब्धि चिकित्सा के क्षेत्र में थी। मानव शरीर के सूक्ष्म अध्ययन के लिए वे शव विच्छेदन (पोस्ट मार्टम) प्रक्रिया का कुशलता से उपयोग करते थे। प्राकृतिक जड़ी-बूटियों और उनके औषधीय गुणों के बारे में लोगों को काफी ज्ञान था। आयुर्वेद चिकित्सा-पद्धति का बहुतायत उपयोग होता था। आवश्यकता पड़ने पर शल्य चिकित्सा भी दी जाती थी। कृषि क्षेत्र में मिट्टी की उर्वरता बढ़ाने के लिए फसल चक्र की पद्धति तब भी अपनायी जाती थी।

भारत में वैज्ञानिक प्रगति का स्वर्ण काल ईसा से पूर्व चौथी शताब्दी से लेकर ईसा के बाद छठी या सातवीं शताब्दी तक रहा। मौर्यकाल में युद्ध के लिए अस्त्रों और शस्त्रों का विकास किया गया था। इस काल में भू-सर्वेक्षण की तकनीक अत्यन्त विकसित थी। विशालकाय प्रस्तर स्तम्भों के निर्माण में अनेक प्रकार के वैज्ञानिक कौशलों का उपयोग इस युग की एक अन्य विशेषता है।

इसके बाद गुप्तकाल में विज्ञान की सभी शाखाओं में उल्लेखनीय प्रगति हुई। बीज गणित, ज्यामिति, रसायन शास्त्र, भौतिकी, धातु शिल्प, चिकित्सा, खगोल विज्ञान का विकास चरम सीमा पर था। इस युग में अनेक ख्याति प्राप्त वैज्ञानिक हुए जिनके अनुसंधानों और आविष्कारों का लोहा तत्कालीन सभ्य समाज के लोग मानते थे। आप विज्ञान का इतिहास पर लेख hindibag पर पढ़ रहे है।

प्राचीन भारतीय विज्ञान की उपलब्धियाँ

यह विज्ञान भारत में ही विकसित हुआ। प्रसिद्ध जर्मन खगोल विज्ञानी कॉपरनिकस से लगभग 1000 वर्ष पूर्व आर्यभट्ट ने पृथ्वी की गोल आकृति और अपनी धुरी पर घूमने की पुष्टि कर दी थी। आइजक न्यूटन से 1000 वर्ष पूर्व ही ब्रह्मगुप्त ने पृथ्वी के गुरुत्वाकर्षण सिद्धान्त की पुष्टि कर दी थी। लेकिन इसका श्रेय न्यूटन को ही जाता है।

खगोल विज्ञान के क्षेत्र की उपलब्धियाँ

भारतीय खगोल विज्ञान का उद्भव वेदों से माना जाता है। वैदिक कालीन भारतीय धर्मप्राण व्यक्ति थे। वे अपने यज्ञ तथा अन्य धार्मिक अनुष्ठान ग्रहों की स्थिति के अनुसार शुभ लग्न देखकर किया करते थे। शुभ लग्न जानने के लिए उन्होंने ज्योतिषशास्त्र का विकास किया था। वैदिक आर्य सूर्य की उत्तरायण और दक्षिणायन गति से परिचित थे। वैदिककालीन खगोल विज्ञान का ग्रंथ वेदांग ज्योतिष है। जिसकी रचना ‘लगध’ नामक ऋषि ने की थी।

पाँचवीं शताब्दी में आर्यभट्ट ने सर्वप्रथम बताया कि पृथ्वी गोल है यह अपनी धुरी पर चक्कर लगाती है। उन्होंने पृथ्वी के आकार, गति और परिधि का अनुमान भी लगाया था। आर्यभट्ट ने सूर्य और चंद्र ग्रहण के सही कारणों का पता लगाया। आर्यभट्ट ने राहु-केतु द्वारा सूर्य और चन्द्र को ग्रास लेने के सिद्धान्त का भी खण्डन किया और ग्रहण का सही वैज्ञानिक सिद्धान्त प्रतिपादित किया। आर्यभट्ट के बाद छठी शताब्दी में वराहमिहिर नाम के खगोल वैज्ञानिक हुए विज्ञान के इतिहास में वे प्रथम व्यक्ति थे, जिन्होंने कहा कि कोई ऐसी शक्ति है, जो वस्तुओं को धरातल से बांधे रखती है।

आज इसी शक्ति को गुरुत्वाकर्षण कहते हैं। ‘पंचसिद्धान्तिका’, ‘सूर्य सिद्धान्त’ ‘वृहत्संहिता’ और ‘वृहज्जावक’ नाम की पुस्तकें वराहमिहिर द्वारा लिखी है। इसके बाद भारतीय खगोल विज्ञान में ब्रह्मगुप्त का भी काफी महत्वपूर्ण योगदान है। इनका कार्यकाल सातवीं शताब्दी से माना जाता है। ये खगोल विज्ञान सम्बन्धी गणनाओं में सम्भवतः बीजगणित का प्रयोग करने वाले भारत के सबसे पहले महान गणितज्ञ थे। ब्रह्मगुप्त पृथ्वी की आकर्षण शक्ति के सिद्धान्त से सहमत थे। उनके अनुसार ‘वस्तुएँ पृथ्वी की ओर गिरती हैं क्योंकि पृथ्वी की प्रवृत्ति है कि वह उन्हें अपनी ओर आकर्षित करे।”

ब्रह्मगुप्त के बाद खगोल विज्ञान में भास्कराचार्य का विशिष्ट योगदान है। इसका समय बारहवीं शताब्दी था। वे गणित के प्रकाण्ड पण्डित थे। इन्होंने ‘सिद्धान्त शिरोमणि’ और ‘करण कुतूहल’ नामक ग्रन्थों की रचना की थी। खगोलविद् के रूप में भास्कराचार्य अपनी ‘तात्कालिक गति’ की अवधारणा के लिए प्रसिद्ध हैं। गैलीलियो को आधुनिक खगोल शास्त्र का पिता माना जाता है। आप विज्ञान का इतिहास पर लेख hindibag पर पढ़ रहे है।

गणित के क्षेत्र की उपलब्धियाँ

मध्य युगीन भारतीय गणितज्ञों जैसे ब्रह्मगुप्त (सातवीं शताब्दी ), महावीर (नवीं शताब्दी) और भास्कर (बारहवीं शताब्दी) ने ऐसी कई खोजें कीं, जिनसे पुनर्जागरणकाल या उसके बाद तक भी यूरोप अपरिचित था। इसमें कोई मतभेद नहीं कि भारत में गणित की उच्चकोटि की परम्परा थी। आर्किमिडीज को गणित का जनक माना जाता है।

  • अंकगणित — वैदिक कालीन भारतीय अंकों और संख्याओं का उपयोग करते थे। वैदिक युग के ऋषि मेघातिथि 1012 तक की बड़ी संख्याओं से परिचित थे। वे अपनी गणनाओं में दस और इसके गुणकों का उपयोग करते थे। ‘यजुर्वेद संहिता’ अध्याय 17 मंत्र 2 में 10,00,00,00,00,000 (एक पर बारह शून्य, दस खरब) तक की संख्या का उल्लेख है।
    • शून्य का उपयोग पिंगल ने अपने छन्द सूत्र में ईसा के 200 वर्ष पूर्व किया था। लेकिन ग्रहागुप्त पहले भारतीय गणितज्ञ थे जिन्होंने शून्य को प्रयोग में लाने के नियम बनाए। इनके अनुसार- “शून्य को किसी संख्या से घटाने या उसमें जोड़ने पर उस संख्या पर कोई प्रभाव नहीं पड़ता। शून्य से किसी संख्या का गुणनफल भी शून्य होता है।”
    • किसी संख्या को शून्य से विभाजित करने पर उसका परिणाम अनंत होता है।
  • ज्यामिति – ज्यामिति का ज्ञान हड़प्पाकालीन संस्कृति के लोगों को भी था। ईंटों की आकृति, भवनों की आकृति, सड़कों का समकोण पर काटना इस बात का द्योतक है कि उस काल के लोगों की ज्यामिति का ज्ञान था। ‘शुल्वसूत्र’ में वर्ग और आयत बनाने की विधि दी हुई है। किसी त्रिकोण के बराबर वर्ग खींच ऐसा वर्ग बनाना जो किसी वर्ग का दो गुणा तीन गुणा अथवा एक तिहाई हो, ऐसा वर्ग बनाना, जिसका क्षेत्रफल उपस्थिति वर्ग के क्षेत्र के बराबर हो, इत्यादि की रीतियाँ भी ‘शुल्ब सूत्र’ में दी गई हैं । ज्यामिति के जनक युक्लिड हैं।
  • त्रिकोणमिति – वराहमिहिर कृत ‘सूर्य सिद्धान्त’ (छठी शताब्दी) में त्रिकोणमिति का विवरण है, उसका ज्ञान यूरोप को ब्रिग्स के द्वारा सोलहवीं शताब्दी में मिला। ब्रह्मगुप्त (सातवीं शताब्दी) में भी त्रिकोणमिति पर लिखा है और एक ज्या सारणी भी दी है। त्रिकोणमिति के जनक हिप्परकुस हैं।
  • बीजगणित – भारतीयों ने बीजगणित में भी बड़ी दक्षता प्राप्त की थी। आर्यभट्ट, ब्रह्मगुप्त, भास्कराचार्य, श्रीधराचार्य आदि प्रसिद्ध गणितज्ञ थे। बीजगणित के क्षेत्र में सबसे बड़ी उपलब्धि है। अनिवार्य वर्ग समीकरण का हल प्रस्तुत करना। पाश्चात्य गणित के इतिहास में इस समीकरण के हल का श्रेय ‘जॉन पेल’ (1688 ई.) को दिया जाता है और इसे ‘पेल समीकरण’ के नाम से भी जाना जाता है।

चिकित्सा के क्षेत्र की उपलब्धियाँ

चिकित्सा भारत में चिकित्सा विज्ञान के विषय में सर्वप्रथम लिखित ज्ञान अथर्ववेद में मिलता है। अथर्ववेद में विविध रोगों के उपचार्थ प्रयोग किए जाने सम्बन्धी भैषज्य सूत्र संकलित है। अथर्ववेद के बाद ईसा से लगभग 600 वर्ष पूर्व काय चिकित्सा पर ‘चरक संहिता’ और शल्य चिकित्सा पर ‘सुश्रुत संहिता’ मिलती है।

  • चरक संहिता – महर्षि चरक को काय चिकित्सा का प्रथम ग्रंथ लिखने का श्रेय दिया जाता है। चरक संहिता में शरीर विज्ञान, निदान शास्त्र और भ्रूण विज्ञान के विषय में जानकारी मिलती है।
  • सुश्रुत संहिता – सुश्रुत के अनुसार शव विच्छेदन एक प्रक्रिया है। सुश्रुत ने शल्य चिकित्सा के लिए 101 उपकरणों की सूची भी दी है।

भौतिकी के क्षेत्र की उपलब्धियाँ

कणाद ऋषि ने छठी शताब्दी ईसा पूर्व इस बात को सिद्ध कर दिया था कि विश्व का हर पदार्थ परमाणुओं से मिलकर बना है। उन्होंने परमाणुओं की संरचना, प्रवृत्ति तथा प्रकार की चर्चा की है। भारतीय वैज्ञानिक सी. वी. रमण ने 20 फरवरी 1928 को भौतिक विज्ञान के क्षेत्र में एक खोज की थी। इस खोज को रमन प्रभाव के नाम से जाना जाता है। आप विज्ञान का इतिहास पर लेख hindibag पर पढ़ रहे है।

रसायन विज्ञान के क्षेत्र की उपलब्धियाँ

नागार्जुन (दसवीं शताब्दी) ने रसायन विज्ञान पर (रस रत्नाकर) नामक ग्रंथ लिखा है। इस ग्रंथ में पारे के यौगिक बनाने के प्रयोग दिए गए हैं। चाँदी, सोना, टिन और ताँबे के अयस्क भूगर्भ से निकालने और उन्हें शुद्ध करने की विधियों का विवरण भी दिया गया है। भारत के महान रसायनशास्त्र वृंद का नाम भी उल्लेखनीय है। इन्होंने औषधि रसायन पर ‘सिद्ध योग’ नामक ग्रंथ की रचना की है। इसमें विभिन्न रोगों के उपचार के लिए धातुओं के मिश्रण का विवरण दिया गया है। एंटोनी लेवोजियर को रसायन विज्ञान का जनक कहा जाता है।

जीव विज्ञान – जीव विज्ञान शब्द का सर्वप्रथम प्रयोग लैमार्क तथा ट्रेविनेरस ने 1802 में किया था। इसे दो भागों में बांट दिया गया जन्तु विज्ञान एवं वनस्पति विज्ञान थियोफ्रेस्टस ने 500 प्रकार के पौधों का वर्णन अपनी पुस्तक में किया है। इन्हें वनस्पति शास्त्र का जनक कहा जाता है। हिप्पोक्रेटस ने मानव रोगों पर प्रथम लेख लिखा। इन्हें चिकित्सा शास्त्र का जनक माना जाता है। अरस्तु ने अपनी पुस्तक जंतु इतिहास में 500 जन्तुओं का वर्णन किया है। इन्हें जंतु विज्ञान एवं जीव विज्ञान दोनों का जनक कहा जाता है।

गैलेन अपना सर्वप्रथम प्रयोगात्मक अध्ययन कुछ जन्तुओं की कार्यिकी पर किया। अतः इन्हें ‘प्रयोगात्मक कार्यिकी का पिता’ कहा जाता है। इसके बाद ऐल्बर्टस मैगनम ने 13वीं सदी में ‘जन्तुओं पर’ नाम से एक ग्रन्थ लिखकर जन्तु विज्ञान का पुनर्जागरण किया। 16वीं शताब्दी में सूक्ष्मदर्शी की खोज के साथ ही जीव वैज्ञानिकों ने विभिन्न प्रकार की जीवों का विशिष्ट अध्ययन करना प्रारम्भ कर दिया।

विज्ञान अर्थ परिभाषा प्रकृति क्षेत्र व 10 उपयोगशिक्षण प्रतिमान विकासात्मक वैज्ञानिक पूछताछ शिक्षण प्रतिमानआगमनात्मक विधि परिभाषा 5 गुण व 4 दोष
निगमनात्मक विधि परिभाषा 7 गुण व 5 दोषविज्ञान शिक्षण व विज्ञान शिक्षण की विधियांपरियोजना विधि अर्थ सिद्धांत विशेषताएं 7 गुण व 8 दोष
ह्यूरिस्टिक विधि के चरण 6 गुण व Top 5 दोषप्रयोगशाला विधि परिभाषा उपयोगिता गुण व दोषपाठ्यपुस्तक विधि परिभाषा गुण व Top 4 दोष
टोली शिक्षण अर्थ विशेषताएं उद्देश्य लाभअभिक्रमित शिक्षण की 5 विशेषताएं 6 लाभ 6 दोषइकाई योजना विशेषताएं महत्व – 7 Top Qualities of unit plan
मूल्यांकन तथा मापन में अंतरविज्ञान मेला Science Fair 6 Objectivesविज्ञान का इतिहास व भारतीय विज्ञान की 11 उपलब्धियाँ
विज्ञान शिक्षण के उद्देश्य Top 12 Objective7 प्रमुख भारतीय वैज्ञानिक और उनके योगदानविज्ञान शिक्षक की 13 विशेषताएँ
विज्ञान पाठ्य पुस्तक क्षेत्र आवश्यकता 10 विशेषताएँ व सीमाएँविज्ञान क्लब के 8 उद्देश्य क्रियाएँ व विज्ञान क्लब के संगठनविज्ञान क्लब के 8 उद्देश्य क्रियाएँ व विज्ञान क्लब के संगठन
निबन्धात्मक परीक्षा के 12 गुण दोष सीमाएँ व सुझावनिदानात्मक परीक्षण के 12 उद्देश्य 9 विशेषताएँउपलब्धि परीक्षण के 10 उपयोग 10 विशेषताएँ व 3 सीमाएँ
शैक्षिक निदान का अर्थ विशेषताएँ व शैक्षिक निदान की प्रक्रियापदार्थ की संरचना व पदार्थ की 3 अवस्थाएँ

प्रसिद्ध आधुनिक भारतीय वैज्ञानिक और उनकी उपलब्धियाँ

आधुनिक युग में भारत में विज्ञान के विभिन्न क्षेत्रों में नए-नए प्रयोग लगातार होते रहे, किन्तु कुछ भारतीय वैज्ञानिक उपलब्धियों के कारण पूरी दुनिया में भारत का नाम रोशन हुआ। प्रमुख वैज्ञानिकों में जगदीश चन्द्र बोस, सी. वी. रमण, होमी जहाँगीर भाभा, शान्तिस्वरूप भटनागर, एम. एन. साहा, प्रफुल्ल चन्द्र राय, हरगोविन्द खुराना आदि नाम उल्लेखनीय हैं। जगदीश चन्द्र बोस ने उचित साधनों और उपकरणों के अभाव में भी अपना कार्य जारी रखा। उन्होंने लघु रेडियो तरंगों का निर्माण किया । विद्युत चुम्बकीय तरंगों के प्रयोग उन्होंने मारकोनी से पहले ही पूरे कर लिए थे। पौधों में जीवन लक्षणों की खोज उनकी महत्वपूर्ण उपलब्धि है।

सी. वी. रमण ने प्रकाश किरणों की गुणधर्मिता तथा आकाश और समुद्र के रंगों की व्याख्या पर विशेष शोध किया। अपने शोध के लिए उन्हें 1930 में नोबेल पुरस्कार भी मिला। एस. रामानुजम असाधारण प्रतिभावान गणितज्ञ थे। बीरबल साहनी एक प्रसिद्ध वनस्पति और भूगर्भशास्त्री थे। बीसवीं शताब्दी के पूर्वार्द्ध का शिखर छूने वाले वैज्ञानिकों में एम. एन. साहा, एस. एन. बोस, डी. एन. वीजिया और प्रफुलचन्द्र राय के नाम उल्लेखनीय हैं।

स्वतंत्रता प्राप्ति के बाद भारतीय वैज्ञानिकों की उपलब्धियाँ

भारत ने विज्ञान के क्षेत्रों में अभूतपूर्व प्रगति की है। भारत के अंतरिक्ष वैज्ञानिक अपनी योग्यता के बलबूते के उपग्रह बनाकर और अपने ही शक्तिशाली रॉकेटों से उन्हें अंतरिक्ष में स्थापित करने में समर्थ है। स्वदेश में निर्मित ध्रुवीय प्रक्षेपण यान पी. एस. एल. वी. सी. 2 ने 26 मई 1999 को 11 बजकर 52 मिनट पर श्री हरिकोटा से एक उड़ान भरी और एक भारतीय उपग्रह तथा दो विदेशी उपग्रहों को अंतरिक्ष में निर्धारित कंक्षा में स्थापित कर दिया। इसके साथ ही भारत के दूर संवेदी नेटवर्क में 634 उपग्रह शामिल हो गए हैं।

भारत में परमाणु ऊर्जा के क्षेत्र में भी आश्चर्यजनक प्रगति की है। परमाणु ऊर्जा का मुख्यत: उपयोग कृषि और चिकित्सा जैसे शांतिपूर्ण कार्यों के लिए किया जा रहा है। भारत ने सूचना प्रौद्योगिकी के क्षेत्र में आश्चर्यजनक प्रगति की है। परम-10000 सुपर कम्प्यूटर बनाकर हम इस क्षेत्र में अग्रणी देशों की पंक्ति में आ गए हैं। हम अब सूचना प्रौद्योगिकी से सम्बन्धित उपकरणों का निर्यात विकसित देशों को भी कर हैं भारत के सूचना प्रौद्योगिकी में प्रशिक्षित इंजीनियरों की अमेरिका, ब्रिटेन जर्मनी और जापान जैसे विकसित देशों में भारी मांग है।

Subscribe
Notify of
guest

0 Comments
Inline Feedbacks
View all comments