विकासवादी सिद्धांत क्या है? इसके तत्व लिखिए।

विकासवादी सिद्धांत – राज्य एक जटिल संस्था है जिसकी उत्पत्ति इतने सरल तरीके से हो गयी होगी, इसे नहीं माना जा सकता है। राज्य की उत्पत्ति में बहुत से तत्वों ने योगदान दिया है। आधुनिक युग में विज्ञान, इतिहास, अर्थशास्त्र, समाजशास्त्र तथा अन्य शास्त्रों के अध्ययन ने यह सिद्ध कर दिया है कि राज्य की उत्पत्ति किसी एक कारण से किसी निश्चित समय पर व्यक्तियों द्वारा ही हुई है बल्कि राज्य एक निरन्तर विकास का परिणाम तथा इसकी उत्पत्ति में अनेक तत्वों ने योगदान दिया है।

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विकासवादी सिद्धांत

विकासवादी सिद्धांत

लीकॉक के अनुसार, “राज्य का उदय एक क्रमिक विकास के आधार पर हुआ है इसका इतिहास मानव के ज्ञात-अज्ञात काल तक फैला हुआ है। इस मान्यता को स्वीकार करने वाले सिद्धान्त को ऐतिहासिक या विकासवादी सिद्धान्त कहा जाता है। राज्य की उत्पत्ति से सम्बन्धित पाँचों सिद्धान्त (दैवी सिद्धान्त, शक्ति सिद्धान्त, सामाजिक समझौते का सिद्धान्त, पैतृक सिद्धान्त, मातृक सिद्धान्त) सत्यांशों पर आधारित है। कोई भी ऐसा सिद्धान्त नहीं है जो पूरी तरह राज्य के जन्म के लिए उत्तरदायी है। वास्तव में राज्य का निर्माण कोई एक निश्चित प्रक्रिया का परिणाम नहीं है।

यह तो सतत चलने वाले विकास का परिणाम है। राज्य के निर्माण के लिए कोई एक तत्व की उत्तरदायी हो, ऐसा नहीं है। राज्य की उत्पत्ति से सम्बन्धित दैवी सिद्धान्त ने राजा की आज्ञा का पालन करने का एक आधार प्रदान किया। शक्ति सिद्धान्त ने राज्य शक्ति पर आधारित है यह प्रतिपादित करते हुए स्पष्ट किया कि हम राज्य की आज्ञा का पालन उसकी शक्ति के कारण करते हैं। सामाजिक समझौते के सिद्धान्त ने राज्य का आधार जन इच्छा बताते हुए मानस मस्तिष्क में यह बात डालने का प्रयास किया कि किस प्रकार से राज्य का जन्म राज्य में रहने वाले लोगों की इच्छाओं एवं हितों को ध्यान में रखकर होता है।

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विकासवादी सिद्धांत

विकासवादी सिद्धांत के तत्व

विकासवादी सिद्धान्त के अनुसार राज्य की उत्पत्ति में निम्नलिखित तत्वों ने योगदान दिया है –

रक्त सम्बन्ध

रक्त सम्बन्ध सामाजिक संगठन का मौलिक आधार है। रक्त सम्बन्ध चाहे वास्तविक हो अथवा काल्पनिक, यह मनुष्यों में एकता उत्पन्न करने का एक महत्वपूर्ण बंधन है। यह संगठन का प्राकृतिक आधार है जिसने समाज की प्राथमिक इकाई-परिवार को जन्म दिया है।

धर्म

जैसे-जैसे परिवार का विस्तार जन में और जन का कबीले में होता गया, रक्त सम्बन्ध की मजबूती कम होती चली गई। अब धर्म ने मानवीय संगठन को एकताबद्ध रखने में योगदान देना प्रारम्भ कर दिया। प्राचीन समय में धर्म का यह प्रभाव था कि एक जाति के लोग एक ही देवता की अनिवार्य रूप से पूजा करते थे। इस प्रकार देवता भी जाति विशेष के द्योतक बन गये।

निष्कर्ष रूप में हम कह सकते हैं कि राज्य के विकास में धर्म का निश्चित योगदान है। प्रारम्भिक समाज में धर्म एवं राजनीति एक ही सिक्के के दो पहलू थे। धर्म ने लोगों को जोड़कर जहाँ एक ओर सामाजिकता का पाठ पढ़ाया वहीं दूसरी ओर आज्ञाकारिता की भी शिक्षा दी। इस प्रकार राज्य के विकास में विभिन्न तत्वों के योगदानों में धर्म के योगदान की महत्ता कम नहीं है।

राजनीति विज्ञान, विकासवादी सिद्धांत
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शक्ति

कुछ लेखकों, जैसे मैकाइवर (Mciver) के अनुसार राज्य की उत्पत्ति में शक्ति का योगदान नहीं है किन्तु शक्ति के तत्व ने राज्य के विस्तार में अत्यन्त महत्वपूर्ण भूमिका का निर्वाह किया है। जेम्स के अनुसार आधुनिक राज्यों को बनाने में विजेताओं ने महत्वपूर्ण योगदान दिया है। जेम्स के शब्दों में “युद्ध ने राजा को जन्म दिया।

राज्य को बनाये रखने के लिए, राज्य में रहने वाले लोगों में जब कोई स्वार्थी हो जाये और दूसरों के हितों पर कुठाराघात करने लगे या जब राज्य पर उसके शत्रुओं द्वारा उसके अस्तित्व को समाप्त करने का कुप्रयास किया जाये तो ऐसी स्थिति में शक्ति ही राज्य के एक प्रभावशाली साधन के रूप में कार्य करती है। इस प्रकार राज्य के लिए शक्ति एक नितांत आवश्यक संस्था है और इसके बिना राज्य की कल्पना नहीं की जा सकती। किन्तु शक्ति राज्य के निर्माण में आने वाले विभिन्न सोपानों में से एक सोपान है, एकमात्र नहीं।

आर्थिक गतिविधियाँ

आवश्यकताओं की पूर्ति के लिए भोजन, वस्त्र और आवास का उत्पादन करता है। इन आर्थिक गतिविधियों में भी राज्य की उत्पत्ति का आधार देखा जा सकता है। विकासवादी सिद्धांत

राजनीतिक चेतना

रक्त सम्बन्ध, धर्म, शक्ति और आर्थिक तत्वों के योगदान के कारण समाज का विकास हुआ। इसी क्रम में अन्तिम तत्व राजनीतिक चेतना का है। इसने राज्य के निर्माण को सम्भव बनाया। व्यक्ति की राजनीतिक चेतना ने उपरोक्त सभी तत्वों की मदद से विकास के क्रम को राज्य के रूप में स्थापित कर उसे शिखर में पहुँचाया। इस प्रकार राज्य का निर्माण हुआ।

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समूह में रहना व्यक्ति की स्वाभाविक प्रकृति है। सामाजिक, शान्ति, सम्पत्ति व्यवस्था आदि को सुरक्षित रखने के लिए जब मनुष्य ने इस दिशा में विचार किया और इसे बनाये रखने के लिए प्रयास किया तो इसे राजनीतिक चेतना की संज्ञा प्रदान की गयी। संक्षेप में राज्य की उत्पत्ति के विकासवादी सिद्धान्त के अनुसार राज्य के निर्माण में अनेक तत्वों का योगदान रहा है। आप विकासवादी सिद्धांत Hindibag पर पढ़ रहे हैं।

निर्माण की यह प्रक्रिया काफी समय तक चलती रही है, उसके बाद राज्य का जन्म हुआ। इस प्रकार राज्य के विकास में हजारों वर्ष लगे। विकासवादियों का मानना है कि प्रारम्भिक अवस्था में राज्य का स्वरूप सरल था। ज्यों-ज्यों जीवन के विभिन्न क्षेत्रों में विकास होता गया, जीवन दर्शन में भी परिवर्तन होता गया। इसका असर राज्य पर पूर्णरूप से पड़ा और अब राज्य एक जटिल संस्था के रूप में कार्य करने लगा। राज्य के विकासवादी सिद्धान्त को ही आज राज्य की उत्पत्ति से सम्बन्धित सिद्धान्त के रूप में स्वीकार किया जाता है।

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