विकलांग शिक्षा – विकलांग बच्चे विशिष्ट बच्चों की श्रेणी में आते हैं, जिनकी पहचान गुणों, लक्षणों, आदर्शों या किसी कमी के कारण अलग से प्रतीत होती है। विशिष्ट बालक वह है, जो सामान्य बालकों से शारीरिक, मानसिक, सांविधिक और सामाजिक विशेषताओं में इतने अधिक विषमता पूर्ण होते हैं कि अपनी उच्चतम योग्यताओं को विकसित करने के लिए उन्हें शैक्षिक सुविधाओं की आवश्यकता पड़ती है। इस दृष्टि से भी विकलांग बालक सामान्य बच्चों से अलग होते हैं। ऐसे बालकों के शरीर में कोई ना कोई कमी होने के कारण यह विकलांगता की श्रेणी में आते हैं।

विकलांगों के प्रकार
विकलांग मुख्य रूप से तीन प्रकार के होते हैं।
- शारीरिक रूप से विकलांग – इनमें किसी अंग की कमजोरी या कमी रहती है जैसे मूक बधिर, लंगड़े तथा हाथों से अपंग, तुतलाना आदि।
- मानसिक रूप से विकलांग – इनमें मंदबुद्धि बालक आते हैं ऐसे बच्चे शारीरिक रूप से और सत्य शायद औसत से कम दिखते हैं जैसे मंगोल बच्चे।
- दुर्घटनाग्रस्त होने से विकलांग – इसमें इस पौष्टिक बच्चों को रखा जा सकता है, इन्हें पूर्ण देखभाल की जरूरत पड़ती है।
विकलांगता के कारण
विकलांगता के मुख्य रूप से दो कारण हो सकते हैं-
- विकलांगता के जन्मजात कारण
- जन्म से पूर्व प्रभावी
- जन्म के समय प्रभावी
- जननिक व वंशानुगत
- मानवकृत कारण
- निर्धनता
- अशिक्षा
- दूषित वातावरण
- कुपोषण
- दुर्घटनाएं
- राजनीतिक कारण
- प्रदूषण के कारण

विकलांग शिक्षा के उद्देश्य
विकलांग में शिक्षा के उद्देश्य निम्न है-
- सामान्य शिक्षा प्रदान करना – विकलांग बालकों को प्रारंभ से ही सामान्य तौर पर ज्ञान प्रदान करना चाहिए जिससे वह प्रत्येक वस्तु के प्रति आत्मनिष्ठ बन सके।
- मांसपेशीकृत शिक्षा – विकलांग बालकों को खेलकूद की भी शिक्षा देनी चाहिए जिससे उनके अच्छे शारीरिक अंगों का विकास हो सके।
- व्यावसायिक ज्ञान पर बल – सरकार को ऐसे संस्थाओं की व्यवस्था करनी चाहिए जिसमें विकलांग लोगों को व्यावसायिक प्रशिक्षण दिए जाएं जिससे वह अपनी आजीविका चला सके
- खाली समय का सदुपयोग – विकलांग बालकों को विद्यालय में ऐसा प्रशिक्षण प्रदान किया जाए जिससे वे अपने खाली समय का पूर्णतया उपयोग करके अपना मानसिक विकास कर सके
- एक विशिष्ट स्तर तक का साधारण प्रशिक्षण प्रदान करना – विशिष्ट स्तर अर्थात उच्च माध्यमिक कक्षा तक का सामान्य शिक्षा प्रदान कर सकें जैसे नेत्रहीन बालक को संगीतज्ञ उपन्यासकार कहानीकार बना सकते हैं।

विकलांग शिक्षा हेतु शैक्षिक पाठ्यक्रम
- अंधे बालकों हेतु पाठ्यक्रम – अंधे बालकों के विद्यालयों में विशेष पाठ्यक्रम चलाया गया है जैसे गृह विज्ञान, संगीत, शारीरिक कलाएं, गतिशीलता आदि।
- अपंग बालकों हेतु पाठ्यक्रम – अपंग बालकों में विशेष तौर पर हाथ पैरों या कटाया भंग होना है। उन्हें कृत्रिम अंगों द्वारा पुनर्जीवन प्रदान किया जा सकता है, इसके लिए कुछ विशिष्ट विशेषताएं होनी चाहिए। जैसे
- घुमावदार कुर्सियों की व्यवस्था
- बिजली के टाइपराइटर
- ऊंचे नीचे होने से इन्हें चलने या कुर्सी चलाने में असुविधा होगी।
- मंदबुद्धि बालकों हेतु पाठ्यक्रम – इनके लिए विद्यालयों में रंगीन व आकर्षक पुस्तकों की व्यवस्था, चित्रों, मॉडलों की व्यवस्था, रंगीन कक्षाओं की व्यवस्था, आकर्षक कुर्सी मेजो की व्यवस्था होनी चाहिए तथा बच्चों को संगीत के माध्यम से एवं स्वयं करके सीखने पर विशेष बल देना चाहिए।
- जड़बुद्धि बालकों हेतु पाठ्यक्रम – इस तरह के बालक कोई भी सामान्य शिक्षा ग्रहण करने लायक नहीं होते हैं। इन्हें सिर्फ स्कूल ज्ञान ही दिया जा सकता है। जो प्रत्यक्ष रूप से कई बार दोहराया या समझाया जाता है। इसमें दो प्रकार के बालक होते हैं, अति निम्न बुद्धि और निम्न बुद्धि।
- मूक बधिरों हेतु पाठ्यक्रम – इनके लिए विद्यालयों में विशेष तौर पर Lip रीडिंग शिक्षण की व्यवस्था करनी पड़ती है और ऐसे शिक्षकों की भर्ती कराई जानी चाहिए।

भारत में विकलांग शिक्षा हेतु प्रयास
भारत में विकलांगो की शिक्षा हेतु अनेक प्रयास किए गए तथा किए जा रहे हैं-
राष्ट्रीय शिक्षा नीति 1986 के सुझाव
- विकलांगता से ग्रस्त व्यक्तियों को आत्मनिर्भर बनाने के लिए उन्हें व्यवसायिक शिक्षा प्रदान करना।
- विकलांगता के क्षेत्र में निस्वार्थ भाव से मदद करनी चाहिए।
- प्राथमिक स्तर पर विकलांग बालकों को शिक्षा ग्रहण करने में सभी सुविधाओं की व्यवस्था करनी चाहिए
भारतीय बाल कल्याण बोर्ड की स्थापना
इसकी स्थापना सन् 1952 में हुई थी। यह बोर्ड विकलांग लोगों को व्यावसायिक शिक्षा तथा प्रशिक्षण प्रदान करने का कार्य करता है।

मंदबुद्धि विकलांग बालकों की शिक्षा
भारत में मंदबुद्धि से ग्रसित बालकों के विद्यालय मुख्यता मुंबई में एक तथा दो बंगाल के झारखंड। इलाहाबाद में मनोवैज्ञानिक प्रयोगशाला में इस प्रकार से ग्रसित बच्चों का मानसिक परीक्षण व मापन किया जाता है।
नेत्रहीनों की शिक्षा व्यवस्था
देहरादून में अंधों के लिए प्रसिद्ध विद्यालय हैं, जिसे केंद्रीय विद्यालय का रूप दिया गया है। इसमें नेत्रहीनों के लिए समुचित पुस्तके हैं। नेत्रहीनों के लिए अध्यापकों को प्रशिक्षित करने के लिए तीन प्रशिक्षण विद्यालय दिल्ली, मुंबई, नरेंद्रपुर में स्थित है।

विभिन्न राज्य सरकारों के प्रयास
विकलांगता के अभिशाप से ग्रस्त लोगों को जीवन यापन हेतु व्यावसायिक शिक्षा के प्रबंधन हेतु राज्य व केंद्र सरकारें मिलकर प्रयास करें। मुंबई में अंध कल्याण नामक पत्रिका का प्रकाशन केंद्र सरकार द्वारा किया जाता है।
मूक बधिर बालकों की शिक्षा की व्यवस्था
मूक बधिर बालकों की विशिष्ट भाषा का ज्ञान कराया जाता है, जिससे वे लिप रीडिंग कर के सामने वाले व्यक्तियों की बात समझ सके। भारत में स्वतंत्रता प्राप्ति के बाद 33 विद्यालयों का निर्माण किया गया। हैदराबाद में इस तरह का एक प्रसिद्ध विद्यालय है।
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