वाद विवाद विधि – आधुनिक युग में ज्ञान के क्षेत्रों का तीव्र गति से विकास हो रहा है। नये-नये आविष्कारों ने मानव मस्तिष्क के चिन्तन के द्वार खोल दिये हैं। ऐसी परिस्थिति में उच्च स्तर पर केवल व्याख्यान विधि से शिक्षण करना ठीक नहीं बल्कि आवश्यकता है कि शिक्षक तथा छात्र परस्पर विचारों का आदान-प्रदान करें। एक ही शिक्षक से एक विषय के सभी प्रकरणों के विशिष्ट ज्ञान की आशा करना ठीक नहीं है।
अतः प्रकरण के अनुसार विशेषज्ञों को आमंत्रित कर परस्पर चर्चा करके नवीन तथ्यों को प्राप्त करना अत्यन्त आवश्यक है। इसके लिए सामूहिक वाद-विवाद बहुत उपयोगी है। ‘पैनल’ शब्द का हिन्दी अनुवाद है— ‘लघु – विशिष्ट समूह’ ।
वाद विवाद विधि
सन् 1929 में सर्वप्रथम हेरी ए ओबर स्ट्रीट ने पैनल चर्चा का प्रयोग कक्षा शिक्षण के रूप में किया, इसमें कक्षा में छोटे समूह में श्रोताओं के समक्ष वाद-विवाद हुआ। बाद में श्रोताओं ने भी इसमें भाग लिया और प्रश्नों को पूछा और प्रश्नों का समाधान किया गया किन्तु इसको पैनल चर्चा के नाम से नहीं पुकारा गया। मार्स. ए. कार्ट राइट, “अमेरिका में प्रौढ़ शिक्षा संघ के वार्षिक सम्मेलन में इस विधि का नाम पैनल चर्चा रखा गया।” इस सम्मेलन का आयोजन सन् 1932 में हुआ।”
“पैनल चर्चा में चार से आठ का एक समूह किसी समस्या पर आपसी विचार-विमर्श करता है। यह चर्चा जन-समूह या कक्षा के विद्यार्थियों के समक्ष की जाती है।” इस प्रकार पैनल चर्चा वह चर्चा है, जो विशिष्ट समूह के द्वारा बड़े समूह के समक्ष की जाती है। तथा समूह के सभी सदस्य इस चर्चा में भाग लेते हैं।



वाद विवाद के प्रकार
- सार्वजनिक वाद-विवाद – इस वाद-विवाद का आयोजन सार्वजनिक स्तर पर किया जाता है जिसमें ऐसे विषयों को रखा जाता है जो सामान्य तथा सार्वजनिक रुचि के होते हैं। जैसे महँगाई की समस्या, खाद्य समस्या, बेरोजगारी की समस्या, प्रदूषण समस्या आदि। आधुनिक समय में इस प्रकार की चर्चाएँ दूरदर्शन तथा आकाशवाणी के माध्यम से भी आयोजित की जाती हैं।
- शैक्षिक वाद-विवाद — शैक्षिक वाद-विवाद, महाविद्यालय तथा अन्तर्महाविद्यालय स्तर पर आयोजित की जाती है तथा इसका केन्द्र बिन्दु छात्र होता है। इसमें सूचनाओं तथा तथ्यों का ज्ञान प्रदान, सिद्धान्तों व प्रत्ययों का स्पष्टीकरण तथा समस्याओं के समाधान हेतु पैनल चर्चा की व्यवस्था की जाती है।
वाद विवाद विधि के उद्देश्य
वाद विवाद विधि के उद्देश्य निम्न है-
- समस्या का विश्लेषण कर अधिगम को प्रभावी बनाना।
- पैनल चर्चा मनोरंजन के साथ-साथ ज्ञानवर्धन करना।
- छात्रों में परस्पर सहयोग की भावना के साथ व्यापक दृष्टिकोण उत्पन्न करना।
- सामाजिक, सांस्कृतिक और नैतिक मूल्यों का विद्यार्थियों में विकास करना।
- छात्रों में तार्किक चिन्तन की योग्यता विकसित करना।
- छात्रों में आत्मविश्वास, आत्मनिर्णय, आत्मचिन्तन के साथ मौखिक अभिव्यक्ति की क्षमता जाग्रत करना।
- शिक्षण को मनोवैज्ञानिक आधार प्रदान करना, जैसे स्वयं क्रिया द्वारा सीखने पर बल देना।
वाद विवाद विधि के सिद्धान्त
- प्रत्येक सम्भागी को अपने विचार अभिव्यक्त करने के समान अवसर देना।
- व्यवस्था के आधुनिक सिद्धान्त पर आधारित।
- सक्रिय सहभागिता को प्रेरित करना।
- एक-दूसरे के विचारों को सम्मान देना।
वाद विवाद विधि के सोपान
वाद विवाद हेतु निम्नलिखित तीन चरणों का अनुकरण किया जाता है-
- पूर्ण तैयारी करना —
- लघु विशिष्ट समूह के सदस्यों का निर्धारण किया जाता है। इसमें एक संयोजक या अनुदेशक, एक अध्यक्ष, दो तीन विषय के विशेषज्ञ होते हैं।
- श्रोताओं का निर्धारण।
- समय व स्थान का निर्धारण।
- विषय का निर्धारण।
- विभिन्न उपकरणों व साधनों की व्यवस्था करना
- कार्यान्वयन– सर्वप्रथम चर्चा के संयोजक द्वारा समस्या का संक्षिप्त परिचय प्रस्तुत किया जाता है। समूह के अन्य सदस्य समस्या के विभिन्न पक्षों पर अपने विचार प्रकट करते हैं। संयोजक विषय का उपसंहार करता है। इसके बाद श्रोता अपनी शंकाओं के समाधान हेतु प्रश्न करते हैं। उपस्थित विशेषज्ञ छात्रों की समस्याओं का समाधान करते हैं।
- मूल्यांकन चर्चा के समाप्त होने पर चर्चा की सफलता ज्ञात करने हेतु छात्रों से विभिन्न प्रकार के विषयों से सम्बन्धित प्रश्न पूछे जाते हैं। विद्यार्थियों से चर्चा के सम्बन्ध में उनकी प्रतिक्रियाएँ एवं सुझाव आमंत्रित किये जाते हैं तथा छात्रों द्वारा बताये गये सुझावों का आगामी चर्चा में ध्यान रखा जाता है।



वाद विवाद विधि के गुण
वाद विवाद विधि के गुण निम्नलिखित हैं–
- यह सृजनात्मक चिन्तन के विकास की एक सर्वश्रेष्ठ विधि है।
- छात्रों में तर्कशकित, निरीक्षण शक्ति तथा नेतृत्व शक्ति आदि का विकास होता है।
- परस्पर विचार-विमर्श से सहयोग की भावना का विकास होता है।
- दूसरे छात्रों में समस्या समाधान की योग्यता विकसित होती है।
- समस्या को विभिन्न दृष्टिकोणों से समझने का अवसर मिलता है।
- इससे आत्मविश्वास के साथ अपने विचारों को अभिव्यक्त करने की योग्यता आती है।
- उच्च स्तर पर कम समय में अधिकाधिक ज्ञान प्रदान करने की यह उत्तम विधि है।
वाद विवाद विधि की सीमाएँ
वाद विवाद विधि की सीमाएँ निम्नलिखित हैं-
- इसके लिए विशेष अनुभवी अध्यापकों की आवश्यकता होती है।
- इसमें एक समूह विषय के पक्ष में तथा दूसरा विपक्ष में रहता है, ऐसी स्थिति में अधिगम परिस्थितियाँ अनुकूल नहीं रहती।
- यह केवल उच्च स्तर के लिए उपयोगी है तथा यह सभी विषयों में प्रयोग के नहीं लायी जा सकती।
- इसमें कुछ विशेषज्ञों का अधिक प्रभुत्व हो जाने से दूसरे सम्भागी अपने विचारों को अभिव्यक्त करने से वंचित रह जाते हैं।
- पैनल चर्चा हेतु विशेष रूप से अपेक्षित पूर्व तैयारियाँ न होने पर इसके असफल होने की सम्भावनाएँ बढ़ जाती हैं।
- मुख्य विषय से भटकने तथा समूह के दो भागों में बँटने की सम्भावना रहती है।