सस्वर वाचन व मौन वाचन के उद्देश्य विशेषताएँ

वाचन वह क्रिया है जिसमें प्रतीक ध्वनि और अर्थ साथ-साथ चलते हैं। एक विदेशी लेखक कैथरीन ओकानर का कहना है कि “वाचन वह जटिल अधिगम प्रक्रिया है जिसमें दृश्य-श्रव्य एवं गतिवाही सर्किटों का मस्तिष्क के अधिगम केन्द्र से सम्बन्ध निहित है। जीवन में वाचन का महत्त्व अधिक है। इसी कारण विद्यालयों में इसकी शिक्षा को महत्त्व दिया जाता है।

वाचन के प्रकार – वाचन दो प्रकार होता है- 1. सस्वर वाचन और 2. मौन वाचन।

सस्वर वाचन

लिखित भाषा के ध्वनियुक्त वाचन को सस्वर वाचन कहते हैं। यह भी दो प्रकार का होता है- (i) वैयक्तिक सस्वर वाचन, (ii) सामूहिक सस्वर वाचन वैयक्तिक सस्वर वाचन भी दो प्रकार का होता है- आदर्श वाचन अध्यापक छात्रों के सामने करता है तथा उसे सुनकर छात्र बारी-बारी से उसका अनुकरण करके वाचन करते हैं। सामूहिक सस्वर वाचन छोटी कक्षा के बच्चे समवेत स्वर में करते हैं। लड़के प्रार्थना इसी समवेत स्वर में ही करते हैं। वैसे कक्षा एक या दो के बच्चों से सामूहिक समवेत स्वर में वाचन कराया जाय, इससे आगे की कक्षाओं में नहीं।

सस्वर वाचन के उद्देश्य

  1. शुद्ध और स्पष्ट उच्चारण के साथ पढ़ना कठिन शब्दों और कुछ महत्त्वपूर्ण अक्षरों की ध्वनियों का शुद्ध उच्चारण करना, जैसे-श. स. छ. क्ष छ, द्य, दु, स्थ, स्न तथा मात्रायुक्त प्रयुक्त ध्वनियों का शुद्ध पाठ करना।
  2. विराम चिह्नों का ध्यान रखकर वाचन करना।
  3. उचित आरोह अवरोह के साथ पढ़ना।
  4. भाव और विचार के अनुसार पढ़ना।
  5. श्रोताओं की संख्या और अवसर को ध्यान में रखकर वाणी पर नियन्त्रण रखना।
  6. उच्चारण और स्वर में स्थानीय बोलियों का प्रभाव न आने देना।

सस्वर वाचन का महत्व

सस्वर वाचन का हमारे जीवन में बड़ा महत्त्व है। जीवन में पग-पग पर ऐसे अवसर आते हैं जबकि हमें सस्वर वाचन की आवश्यकता पड़ती है। आज का बालक ही कल का सभ्य नागरिक बनेगा और एक जागरूक राष्ट्र के नागरिक के जो-जो उत्तरदायित्व हैं, उन्हें पूरा करना होगा। उसे सभा-सोसायटी आदि में जाना होगा, अभिभाषण देना होगा, अभिनन्दन पत्र पढ़ना होगा तथा घोषणाएँ आदि पढ़नी होंगी। इन सभी दृष्टियों से वह तभी सफल हो सकेगा जबकि उसे सस्वर वाचन का अच्छा अभ्यास होगा।

सस्वर वाचन की विशेषताएँ

  1. शब्दों की ध्वनियों का ज्ञान– यह वाचन का बड़ा महत्त्वपूर्ण अंग है। अभी तक केवल इसी आधार पर ही यह निर्णय किया जाता था कि बच्चा वाचन-क्रिया में कहाँ तक निपुण है परन्तु केवल इसी आधार पर हम वाचन सम्बन्धी पूरी-पूरी जानकारी प्राप्त नहीं कर सकते।
  2. शब्दों का अर्थ – जहाँ बालकों के लिए यह आवश्यक है कि वे शब्दों का ठीक-ठीक उच्चारण जानें, वहाँ यह भी आवश्यक है कि शब्दों को पढ़ाते समय, उन्हें अर्थ की प्रतीति भी होती जाये। जब तक बालक ठीक-ठीक रूप से अर्थ को ग्रहण नहीं करेंगे, तब तक वे पाठ में रुचि नहीं लेंगे।
  3. वाचन का ढंग – वाचन के सम्बन्ध में तीसरा प्रश्न यह किया जाता है कि “क्या बालकों ने मनोरंजक ढंग से पढ़ा है? “मनोरंजकता से हमारा तात्पर्य यह है कि बालक के वाचन में विविधता होनी चाहिए। वीरता से युक्त उक्तियाँ, करुण रस से ओत-प्रोत स्थल तथा साधारण वर्णनात्मक पाठ-इन सबके वाचन में कुछ-न-कुछ अन्तर अवश्य रहेगा।
  4. विराम चिह्न – किसी भाषा के वाचन में विराम-चिह्नों का बड़ा महत्व है। वे प्रकट करते हैं कि वाचन के समय बालकों को कहाँ-कहाँ तक विराम लेना है। विराम चिह्नों के द्वारा पाठ के समझने में बड़ी सहायता मिलती है। इसलिए बालकों को इस बात का प्रोत्साहन देना होगा कि वे वाचन करते समय स्थलों पर उचित विराम लेते चलें।
  5. स्पष्टता – ऊपर बताया गया है कि वाचन में विविधता होनी चाहिए परन्तु यदि वाचन में स्पष्टता नहीं होगी तो इस विविधता से कोई लाभ नहीं। इसलिए यह प्रयास करना चाहिए कि बालक जो कुछ भी पढ़े; स्पष्ट रीति से पढ़े। उनके उच्चारण में अस्पष्टता का अंश लेशमात्र भी नहीं होना चाहिए।
  6. रुचि – वाचन के सम्बन्ध में हमारा अन्तिम प्रश्न बालकों की रुचि से सम्बन्धित है। यदि बालकों की वाचन में रुचि नहीं होगी, यदि उन्हें पढ़ने में आनन्द नहीं आयेगा तो वे पढ़ने से दूर भागेंगे। इसलिए इस बात पर विशेष रूप से ध्यान देना होगा कि बालकों को वही कुछ पढ़ने के लिए दिया जाय जो कि उन्हें अच्छा लगे।

उत्तम सस्वर वाचन के गुण

  1. बालकों को ध्वनियों का ज्ञान होना चाहिए। वे ध्वनियों के भेद को ध्यान में रखकर वाचन करते हैं तो वह वाचन अच्छा कहा जायेगा।
  2. उच्चारण शुद्ध करके पढ़ना चाहिए। वाचन का सबसे बड़ा दोष है अशुद्ध वाचन।
  3. किसी अक्षर की ध्वनि को आधा नहीं करना चाहिए। अच्छा वाचन वही है जिसमें कि उपयुक्त बलाघात का ध्यान रखा जाय।
  4. स्वल्प विराम, अर्द्ध विराम और पूर्ण विराम का ध्यान रखकर वाचन करना चाहिए।
  5. वाचन स्पष्ट होना चाहिए। स्वर में नियन्त्रण रखना चाहिए। स्वर ऐसा हो जिसे सभी श्रोता सुन सकें। शब्दों के समूह को एक साँस में पढ़ते समय उसमें अर्थ की संगति को ध्यान में रखना चाहिए। हरे वर्ण का उच्चारण पृथक् हो।
  6. वाचन में प्रवाह का ध्यान रखा जाय। गति पर नियन्त्रण आवश्यक है। गति न अधिक हो और न रुक-रुक कर पढ़ा जाय।
  7. अच्छा वाचन वही है जिसमें पाठक पढी सामग्री का अर्थ ग्रहण करता चले। यदि गति, विराम, उच्चारण को ध्यान में रखकर पढ़ रहे हैं तो पठित सामग्री का अर्थ अवश्य ग्रहण होगा।
  8. पढ़ने में कर्कशता न हो, रूखापन भी न हो। उत्साह और रुचि के साथ जो वाचन किया जायेगा, वह निश्चित ही मधुर और सार्थक होगा।
  9. अच्छा वाचक वाचन के समय सिर नहीं हिलाता, हाथ नहीं पटकता, मेज नहीं पीटता, उँगलियाँ नहीं नचाता, पुस्तक गलत ढंग से नहीं पकड़ता, झुककर और अकड़कर नहीं पढ़ता।
  10. अच्छा वाचन वह है जिसमें पाठक आनन्द प्राप्त करता हो। वह वाचन में रुचि लेता है।

सस्वर वाचन के भेद

सस्वर वाचन दो प्रकार का होता है-

  1. आदर्श वाचन
  2. अनुवर्तन वाचन
वाचन

आदर्श वाचन

शिक्षक जब कक्षा के सामने खड़े होकर आदर्श ढंग से वाचन करता है तो उसे आदर्श वाचन कहते हैं। अच्छे वाचन की जो बातें ऊपर बतायी गयी हैं, शिक्षक के आदर्श वाचन में वह सभी गुण होने चाहिए। यदि अध्यापक के वाचन में कमी रह गयी तो वह आदर्श वाचन नहीं कहा जायेगा और शिक्षक कक्षा में हँसी का पात्र समझा जायेगा। इसी आदर्श वाचन का अनुकरण सभी विद्यार्थी करते हैं। अत: शिक्षक द्वारा किया गया वाचन अनुकरणीय होना चाहिए।

शिक्षक द्वारा किये जाने वाले आदर्श वाचन के उद्देश्य

आदर्श वाचन के निम्नलिखित उद्देश्य हैं-

  1. छात्रों के समक्ष आदर्श वाचन का एक मानदण्ड उपस्थित करना।
  2. छात्रों को समझाना कि उनको कहाँ तक पढ़ना है।
  3. अपरिचित सामग्री का प्रथम बार छात्रों को परिचय देना।
  4. छात्रों के मन की झिझक दूर करना।
  5. छात्रों को उचित गति, लय, विराम, उच्चारण, स्पष्टता आदि का ध्यान रखकर वाचन करने की प्रेरणा देना।

अनुकरण वाचन

शिक्षक के आदर्श वाचन को देख-सुनकर जब छात्र वैसा ही वाचन करते हैं, तब उसे अनुकरण वाचन कहते हैं।

अनुकरण वाचन के उद्देश्य

छात्रों द्वारा अनुकरण वाचन के निम्नांकित उद्देश्य हैं-

  1. शिक्षक द्वारा प्रस्तुत आदर्श वाचन का अनुकरण करना ।
  2. उच्चारण शुद्ध बनाना।
  3. पाठ के अनुसार वाचन करने की क्षमता प्राप्त करना।
  4. वाचन में गति और प्रवाह को ध्यान में रखना।
  5. वाचन करते समय अर्थ ग्रहण की योग्यता विकसित करना।

सस्वर वाचन करने से छात्रों में आत्मविश्वास की भावना बढ़ती है। संकोच समाप्त होता है। वाचन करने वाले को आनन्द मिलता है।

मौन वाचन

मौन वाचन का अर्थ है-लिखित सामग्री को बिना स्वर पढ़ना । मौन वाचन के समय दोनों होठ बन्द रहते हैं। एक विद्वान का कहना है कि जब बालक पैरों से चलना सीख जाता है तो घुटनों के बल खिसकना छोड़ देता है। इसी प्रकार भाषा के क्षेत्र में बालक जब मौन वाचन में कुशल हो जाता है तो वह सस्वर वाचन को छोड़ देता है। मौन वाचन की कुशलता विचारों की प्रौढ़ता है।

मौन वाचन के उद्देश्य

मौन वाचन की शिक्षा कुछ विशिष्ट उद्देश्यों को ध्यान में रख कर दी जाती है। ये उद्देश्य निम्नाकित हैं-

  1. भाषा के लिखित रूप को मौन रूप से पढ़कर उसकी गहराई में जाना।
  2. छात्रों में चिन्तनशीलता का विकास करना, कल्पना शक्ति को विकसित करना और छात्रों की बौद्धिक शक्ति को प्रखर बनाना।
  3. छात्रों को पत्र-पत्रिकाओं का अध्ययन कराकर उनकी ज्ञान वृद्धि के लिए अवसर और क्षेत्र देना।
  4. सस्वर वाचन की थकान को समाप्त करना।
  5. पठन में समय की बचत करना।
  6. स्वाध्याय को प्रेरित करके साहित्य का आनन्द लेने योग्य बनाना।
  7. छात्रों को भावों और विचारों की गहराई तक ले जाना।
  8. कम-से-कम समय में अधिक-से-अधिक अध्ययन करना।
  9. बालक की कल्पना शक्ति को विकसित करना।
  10. चिन्तन और तर्कशक्ति को प्रेरित करना।
  11. खाली समय का सदुपयोग करने का अवसर देना।
  12. आगे की कक्षाओं के अध्ययन के लिए तैयार करना ।

मौन वाचन का महत्व

जीवन के कुछ स्थलों, जैसे- अभिभाषण पढ़ना, अभिनन्दन पत्र पढ़ना, प्रतिवेदन पढ़ना आदि को छोड़कर हमारे जीवन में अधिकांश क्रियाकलाप का सम्बन्ध मौन वाचन से ही है। हम प्रत्येक अवस्था में सबके सामने सस्वर वाचन नहीं कर सकते। साथ ही साथ सस्वर वाचन द्वारा अर्थ के ग्रहण करने तथा पढ़ने की गति में व्यवधान पहुँचता है। मौन वाचन में अर्थ ग्रहण जल्दी होता है। हम किसी वाचनालय में जाते हैं। वहाँ पर दैनिक तथा साप्ताहिक पत्र और मासिक पत्रिकाएँ होती हैं।

हम चाहें तो भी उनका सस्वर वाचन वहाँ पर नहीं कर सकते क्योंकि यह बात शिष्टाचार के विरुद्ध होगी। अवकाश के समय का सबसे अच्छा उपयोग मौन वाचन के द्वारा ही हो सकता है। मौन वाचन के द्वारा ही हमारा मनोरंजन भी होता है। मानसिक विश्रान्ति के लिए भी मौन वाचन बड़ा उपयोगी साधन है क्योंकि सस्वर वाचन में नेत्रों को, मस्तिष्क को, उच्चारणोपयोगी अवयवों को तथा कानों को पर्याप्त श्रम करना पड़ता है, जबकि मौन वाचन में मात्र नेत्र और मस्तिष्क ही सक्रिय रहते हैं।

ब्रुक्सन तथा गेट्स ने वाचन सम्बन्धी जो प्रयोग किये हैं, उनसे प्रमाणित होता है कि वयस्क का मौन वाचन उसके सस्वर वाचन की अपेक्षा द्रुत गति से होता है। इसके अतिरिक्त, मौन रूप में पढ़ा हुआ अंश अधिक समय तक याद रहता है।

  1. भाषा के लिखित रूप को मौन रूप से पढ़कर छात्र उसकी गहराई में जाते हैं।
  2. छात्रों में चिन्तनशीलता का विकास होता है।
  3. कल्पना शक्ति विकसित होती है और बालक बुद्धिमान बनता है।
  4. एकान्त में ऊब से बचने और खाली समय का सदुपयोग करने का एक उत्तम साधन है। मौन रूप से पत्र-पत्रिकाओं को पढ़कर ज्ञान वृद्धि करना।
  5. छात्रों को यह थकान से बचाता है।
  6. छात्र स्वाध्याय की ओर प्रेरित होते हैं। साहित्य में रुचि बढ़ती है।
  7. उच्च कक्षाओं के अध्ययन के लिए अत्यन्त महत्त्वपूर्ण है।
  8. बालक की कल्पनाशक्ति विकसित होती है।
  9. बालक में तर्क कल्पना और चिन्तन शक्ति का विकास होता है।
  10. छात्र विषय को समझकर उसकी गहराई में जाते हैं।
  11. मौन वाचन में अर्थ ग्रहण शीघ्र होता है।
  12. मौन वाचन से हमारा मनोरंजन होता है।
  13. मानसिक शान्ति के लिए मौन वाचन एक अच्छा साधन है।
  14. मौन वाचन में नेत्र और मस्तिष्क सक्रिय रहते हैं। अशांति नहीं होती।
  15. वयस्क व्यक्तियों का मौन वाचन उनके सस्वर वाचन को अपेक्षा द्रुत गति से होता है।
  16. मौन रूप से पढ़ा हुआ अंश सदा याद रहता है।

सस्वर और मौन वाचन में अन्तर

सस्वर वाचनमौन वाचन
1.सस्वर वाचन दो प्रकार के होते हैं। जिसे एक तो अध्यापक करता है और दूसरा विद्यार्थी।मौन वाचन एक ही प्रकार का होता है जिसे केवल छात्र करते हैं।
2.अध्यापक द्वारा सस्वर वाचन को आदर्श वाचन और विद्यार्थी द्वारा किये जाने वाले सस्वर वाचन को अनुकरण वाचन कहते हैं।मौन वाचन शिक्षक नहीं करता।
3.सस्वर वाचन मुँह से स्वर बोलकर पढ़ा जाता है। स्वाभाविक है कि स्वर यन्त्र सक्रिय रहता है।मौन वाचन होठ बन्द करके मौन रूप से मन में बिना स्वर किये किया जाता है।
4.कक्षा में सस्वर वाचन अध्यापक आदर्श प्रस्तुत करने के लिए (आदर्श वाचन रूप में) कक्षा में खड़े होकर करता है। विद्यार्थी भी सस्वर वाचन अनुकरण वाचन के रूप में खड़े होकर करता है।मौन वाचन छात्रों द्वारा बैठकर किया जाता है।
5.कक्षा में सस्वर वाचन कक्षा के कतिपय छात्रों द्वारा बारी-बारी से किया जाता है।कक्षा में मौन वाचन सभी छात्रों को एक साथ करना होता है।
6.सस्वर वाचन में उच्चारण पर ध्यान होता है।मौन वाचन में अर्थग्रहण पर ध्यान होता है।
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