वंचित बालक परिभाषा लक्षण व विशेषताएँ

कुछ बालक ऐसे होते हैं जो सुविधाओं के क्षेत्र में सामान्य बालक से कम होते हैं। वंचित बालक कहलाते हैं। ये विभिन्न प्रकार की सुविधाओं; जैसे—आर्थिक, सामाजिक, सांस्कृतिक से वंचित रह जाते हैं। यथा भाषा, धर्म, जाति, क्षेत्र, वर्ण, लिंग के कारण अपवंचित रह जाते हैं। इन सुविधाओं के अभाव में उनका विकास सामान्य बालकों के समान नहीं हो पाता और उनके विकास में गतिरोध आ जाता है।

जन्म के उपरान्त से ही बालक निरन्तर विकसित होता है। यह विकास वंशानुक्रम के प्रभाव के अन्तर्गत वातावरण के आधार पर होता है। वातावरण का गुणात्मक प्रभाव बालक के विकास में सहायक होता है। प्रत्येक बालक अधिकार है क वह अपना विकास प्राप्त अभिवृत्ति और योग्यताओं की सीमा तक करे और शिक्षा का उद्देश्य है कि बालक का विकास पूर्णतः हो।

वंचित बालक कौन है ?

जैसा कि इस शब्द से प्रतीत होता है कि सुविधा वंचित वह है जिसे वे सुविधाएँ न मिल रही हों जो उसे मिलनी चाहिए अथवा जो उसकी श्रेणी के अन्य साथियों को मिल रही हैं। सुविधा वंचित बड़ा व्यापक और परिस्थिति सापेक्ष शब्द है। व्यापक इसलिए कि सुविधाओं के क्षेत्र अनेक हैं और सापेक्ष इसलिए कि हर क्षेत्र में मिलने वाली सुविधाएँ अलग-अलग हैं तथा जिस बालक या व्यक्ति को जिस क्षेत्र में सुविधाएँ नहीं मिल रही होंगी, उसी के लिए यह सुविधा वंचित है, अन्य क्षेत्रों के लिए नहीं।

उदाहरणस्वरूप-जिस बालक को घर पर माँ-बाप का प्यार नहीं मिलता या उसे अन्य बच्चों की तुलना में पसन्द नहीं किया जाता तो हम उसे सामाजिक दृष्टि से सुविधा वंचित कहेंगे। जबकि उस विद्यार्थी को जिसे शिक्षा की न्यूनतम सुविधाएँ भी नहीं मिलतीं यह शैक्षिक दृष्टि से सुविधा वंचित कहलायेगा। किन्तु जो बालक सामाजिक दृष्टि से सुविधा वंचित भी है, ये शैक्षिक दृष्टि सेतो सुविधा वंचित होंगे ही। अतः हम कह सकते हैं कि जिस बालक को अपनी प्रगति हेतु अपने समाज में न्यूनतम सुविधाएँ भी प्राप्त नहीं हैं, वह सामाजिक दृष्टि से वंचन बालक कहलायेगा ।

वंचित बालक की परिभाषाएँ

अपवंचन निम्नस्तरीय जीवन दशा या अलगाव को घोषित करता है। जो कि कुछ व्यक्तियों को उनके समाज की सांस्कृतिक उपलब्धियों में भाग लेने से रोक देता है।

वोलमैन के अनुसार

अपवंचन बाल्य जीवन की उद्दीपक दशाओं की न्यूनता है।

गार्डन के अनुसार

अपवंचन सामाजिक, आर्थिक और सांस्कृतिक परिवेश से जुड़े आवश्यक एवं अपेक्षित अनुभवों का अभाव है जिसके फलस्वरूप बालक का वांछित विकास नहीं हो पाता।

वंचित बालक के प्रकार

वंचित बालक निम्नलिखित प्रकार के होते हैं-

  1. सामाजिक रूप से वंचित बालक।
  2. आर्थिक रूप से वंचित बालक।
  3. शैक्षिक रूप से वंचित बालक।
  4. सामाजिक रूप से वंचित बालक।

सामाजिक रूप से वंचित बालक वे होते हैं जो गरीबी, अशिक्षा, परिवार की खराब स्थिति के कारण वंचित रह जाते हैं—

  • सामाजिक रूप से निम्न (जाति, वर्ग या धर्म के आधार पर)।
  • सांस्कृतिक स्तर से निम्न।
  • घर का बिगड़ा माहौल व सुविधाओं का अभाव।
  • पड़ौस व सभी साथियों का दुष्प्रभाव।
  • संवेगात्मक रूप से अस्थिर।
  1. आर्थिक रूप से वंचित बालक
  • गरीबी व आर्थिक असमानता के कारण।
  • आर्थिक रूप से निम्न ।
  • परिवार में खाने व रहने का अभाव।
  • विद्यालय जाने में असमर्थ व विद्यालय की फीस न दे पाना।
  • धन के अभाव में उच्च आकांक्षा रखने वाले ।
  1. शैक्षिक स्तर से वंचित बालक
  • निम्न शैक्षिक उपलब्धि होती हैं।
  • अन्तर्मुखी व संवेगात्मक रूप से अस्थिर होते हैं।
  • आत्म-प्रेम व प्रदर्शन की भावना प्रबल होती है।
  • समस्या का समाधान नहीं कर पाते।
  • असुरक्षा की भावना से पीडित तथा विद्यालय में समायोजित नहीं होते।
  • विद्यालय सामग्री व पुस्तकों के अभाव में नहीं पढ़ पाते।
  • सुविधाओं के बाद भी खराब आदतों के कारण से पढ़ने से वंचित।
  • स्मृति व रुचि के प्रभाव के कारण न पढ़ पाना।

वंचित बालक के लक्षण

इन वंचित वर्गों के अध्ययन के पश्चात् इन परिवारों के बच्चों में निम्न लक्षण दृष्टिगत होते हैं—

  1. अनुपयुक्त आत्म सम्प्रत्यय
  2. निम्न शैक्षिक उपलब्धि
  3. सामाजिक कुशलता का अभाव
  4. निम्न व्यक्तित्व विशेषताएँ जैसे-अपने विचारों में अस्थिरता, अति उत्साही और समूह पालक न्यून बहिर्मुखी, न्यून आत्मावलोकन।
  5. भाषा विपन्नता
  6. निम्न महत्वाकांक्षा
  7. कक्षाओं को छोड़ना अथवा पढ़ाई के प्रति उदासीन होना
  8. बौद्धिक मन्दता वंचित बालकों की पहचान

इस प्रकार के बालकों की पहचान उनकी शिक्षा के लिए आवश्यक है। हमारे देश में जाति, धर्म, जनसंख्या आदि के आधार पर वर्ग विशेषों को पिछड़ा मान लिया जाता है और इन वर्गों से आने वाले बालकों को वंचित बालक भले ही उनके विकास के लिए सारी सुख सुविधाएँ उपलब्ध हों जो कि उचित नहीं है। बल्कि वंचित बालक की पहचान परिवार की सामाजिक, सांस्कृतिक, आर्थिक और शैक्षिक स्थिति एवं उसकी स्वयं की स्थिति के आधार पर पहचान की जानी चाहिए। इसके अतिरिक्त इनकी पहचान के लिए अनेक प्रश्नावलियाँ उपलब्ध हैं जिनमें से कुछ इस प्रकार हैं-

  • दीर्घ कालिक वंचन मापनी — मिश्र एवं त्रिपाठी
  • सांस्कृतिक वंचन मापनी — सामन्त और रथ
  • सांस्कृतिक निर्धारक मापनी — ए. डी. शर्मा

यदि विद्यालय में प्रवेश के समय बालक का इस प्रकार परीक्षण कर लिया जाए तो बालकों की शिक्षा की व्यवस्था आसानी से की जा सकती है।

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वंचित बालक की विशेषताएँ

वंचित बालकों की प्रमुख मनोसामाजिक एवं शैक्षिक विशेषताएँ निम्नलिखित हैं-

  1. मनोसामाजिक विशेषताएँ — इन बालकों की प्रमुख विशेषताएँ निम्नलिखित हैं-
    • इनमें असुरक्षा की भावना होती है।
    • ये संवेगात्मक रूप से अस्थिर होते हैं।
    • इन बालकों में समायोजन स्तर निम्न होता है।
    • इनमें भविष्य की ओर दृष्टि का अभाव होता है।
    • इनकी मित्रता प्रायः ऐसे बालकों से होती है जो असामाजिक कार्यों में लगे होते हैं।
    • ये बालक सामाजिक रूप से हीन भावना से ग्रसित रहते हैं।
  2. शैक्षिक विशेषताएँ- इन बालकों में निम्नलिखित शैक्षिक विशेषताएँ पाई जाती हैं-
    • ये बालक प्रायः अन्तर्मुखी, निराशावादी एवं रूढ़िवादी होते हैं।
    • शैक्षिक क्षेत्र में वचन के कारण ये प्रायः कुण्ठा ग्रस्त हो जाते हैं।
    • इनमें निम्न बौद्धिक स्तर पाया जाता है।
    • विभिन्न वचन से बालक के शैक्षिक विकास पर प्रतिकूल प्रभाव पड़ता है।
    • ये बालक हीन भावना के कारण शिक्षा में उचित प्रदर्शन नहीं कर पाते हैं।
    • इनमें चिन्ता व भय की मात्रा अधिक होती है।
    • विद्यालय क्रियाओं में भाग लेने से कतराते हैं।

झुग्गी-झोपड़ी में रहने वाले बच्चों की समस्याएँ

यह एक अत्यधिक आबादी वाला शहरी आवासीय क्षेत्र है, जिसमें लोगों को बुनियादी सुविधाएँ तक प्राप्त नहीं होती हैं। झुग्गी-झोपड़ियाँ आकार एवं अन्य विशेषताओं में अलग-अलग होती हैं। अधिकांश झुग्गी-झोपड़ियों में बिजली, स्वच्छ जल, स्वास्थ्य सेवाओं एवं स्वच्छता का अभाव रहता है जिससे यहाँ अनेक प्रकार की बीमारियाँ देखने को मिलती हैं।

में रहने वाले अधिकांश परिवार आर्थिक, सामाजिक एवं शैक्षिक रूप से पिछड़े हुए होते हैं। ऐसे में वे अपने बच्चों को भी अच्छी शिक्षा एवं अन्य सुविधाएँ प्रदान नहीं कर पाते हैं।

  • झुग्गी-झोपड़ी में रहने वाले बच्चों को खेलने की सुविधा नहीं मिलती है जिससे उनका शारीरिक विकास ठीक से नहीं हो पाता है।
  • झुग्गी-झोपड़ी में रहने वाले बच्चों को समाज में हेय दृष्टि से देखा जाता है।
  • झुग्गी-झोपड़ी में रहने वाले बच्चों को बुनियादी सुविधाएँ भी नहीं मिल पाती हैं जिससे उनकासम्पूर्ण व्यक्तित्व प्रभावित होता है।
  • झुग्गी-झोपड़ी में रहने वाले बच्चों में शिक्षा का स्तर बहुत निम्न होता है जिससे समाज उन्हें उनके अधिकार नहीं देता है।
  • झुग्गी-झोपड़ी में रहने वाले बच्चों को समाज में समानता का स्थान नहीं दिया जाता है।

झुग्गी-झोपड़ी में रहने वाले बच्चों की स्थिति सुधारने के उपाय

  • सरकार एवं समाज का यह दायित्व है कि वे समाज के गरीब एवं कमजोर की आर्थिक रूप से सहायता करें न कि उनके जीविकोपार्जन के साधनों पर अधिकार करें जिससे वे मलिन गंदी बस्तियों में रहने के लिए मजबूर हों ।
  • स्लम बस्तियों में रहने वाले लोगों को उनके अधिकार एवं सुरक्षा प्रदान करने के लिए सरकारी एजेंसियों को सक्रिय रूप से कार्य करने के लिए प्रेरित करना
  • सरकार को उन समस्याओं का समाधान करना चाहिए जिससे स्लम बस्तियों को बढ़ावा मिलता है।
  • सरकार एवं समाज को स्लम बस्तियों के बच्चों में शिक्षा के स्तर को ऊपर उठाने के लिए सक्रिय रूप से योगदान करना चाहिए।
  • ग्रामीण क्षेत्रों में रोजगार के अवसरों में वृद्धि के लिए निरन्तर प्रयास करना जिससे ग्रामीण लोगों का शहरी क्षेत्रों की ओर पलायन न हो।
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