लोक साहित्य परिभाषा व शिष्ट साहित्य से अंतर

लोक साहित्य दो शब्दों से मिलकर बना है – लोक तथा साहित्य। लोक शब्द का तात्पर्य जनसामान्य से है। इस प्रकार लोक साहित्य का तात्पर्य जन सामान्य समाज के साहित्य से है। लोक साहित्य का अर्थ हिंदी साहित्य की एक अन्य विधा के रूप में अशिक्षित और अर्धशिक्षित तथा असभ्य माने जाने वाले श्रमजीवी समाज की उन्मुक्त और स्वच्छंद अभिव्यक्ति से है। शब्द लोक साहित्य अंग्रेजी के ‘फोक लिटरेचर’ शब्द का पर्यायवाची है।

लोक साहित्य मौखिक होने के कारण समय-समय पर लिखा जाता है। यह लोकमानस की सहज और स्वच्छंद अभिव्यक्ति होती है। लोक साहित्य लेखक या नायक आदि के अभाव में समूह की वाणी होती है। भाव विचार आदि का लोकसाहित्य में आडंबर नहीं होता। ग्रामीण तथा ग्रामीण जनों के साहित्य को ही लोकसाहित्य समझा जाता है। लोक साहित्य का स्वरूप लोक जीवन की परंपराओं तथा संस्कारों पर निर्भर करता है।

आधुनिक ब्रजभाषा साहित्य

लोक साहित्य परिभाषा

लोक साहित्य के रचयिता का नाम प्रायः अज्ञात रहता है। यह लोक प्राणी समूह की वाणी बनकर और समूह से घुल मिलकर ही रहता है। अतः लोकसाहित्य लोकजीवन का वास्तविक प्रतिबिंब है अभिजात परिष्कृत या लिखित साहित्य के विपरीत लोकसाहित्य परिमार्जित भाषा शास्त्री रचना पद्धति तथा व्याकरण के नियमों से मुक्त रहता है। लोकभाषा के माध्यम से लोक चिंतन की अकृत्रिम अभिव्यक्ति ही इसकी सबसे बड़ी विशेषता है। अतः यह कहा जा सकता है कि ग्रामीण तथा ग्रामीण जनों के साहित्य को ही लोक साहित्य कहा जाता है।

लोक साहित्य लोकमानव की सहज और स्वाभाविक अभिव्यक्ति है। यह बहुधा लिखित रूप में अपनी मौखिक परंपरा से एक पीढ़ी से दूसरी पीढ़ी तक बढ़ता रहता है।

डॉ रवींद्र कुमार

हम अपनी दृष्टि से यह कह सकते हैं कि लोग मनुष्य समाज का वह वर्ग है जो अभिजात्य संस्कार, शास्त्रीयता और पांडित्य की चेतना के अहंकार में शून्य है जो एक परंपरा के निर्वाह में जीवित रहता है ऐसे लोग की अभिव्यक्ति में जो तत्व मिलते हैं वे लोक तत्व कहलाते हैं।

डॉ सत्येंद्र
कक्षा 10 लेखकों का जीवन परिचय, लोक साहित्य

ब्रज लोक साहित्य

भगवान श्री कृष्ण की लीला स्थली होने के कारण ब्रज भूमि का अति प्राचीन काल से ही धार्मिक, साहित्य एवं साहित्यिक महत्व रहा है। ब्रजभाषा के व्यापक प्रचार-प्रसार के कारण ब्रज क्षेत्र की सीमाएं भी अत्यधिक व्यापक होती चली गई और यह भाषा वर्तमान यूपी, राजस्थान, मध्य प्रदेश तथा हरियाणा के सुदूरवर्ती क्षेत्र तक व्याप्त हो गई। एक कथा के अनुसार यदि मथुरा को ब्रज क्षेत्र का केंद्र माने तो उसके चारों ओर चौरासी कोस तक ब्रज क्षेत्र है। इस संपूर्ण ब्रज क्षेत्र का साहित्य हमारे अध्ययन की परिधि में आता है। मोटे तौर पर ब्रज क्षेत्र के अंतर्गत आगरा, मथुरा, फिरोजाबाद, अलीगढ़, एटा, मैनपुरी, बदायूं, धौलपुर, ग्वालियर तथा गुड़गांव जिले आते हैं।

शिष्ट साहित्य की भांति ब्रज साहित्य को भी मौलिक रूप से हम दो भागों में विभाजित कर सकते हैं पहला गद्य तथा दूसरा पद्य। लोक साहित्य की अधिकांश विधाएं पद्य में है परंतु इसका तात्पर्य यह नहीं है कि गद्य के रूप में ब्रज साहित्य उपलब्ध नहीं है।

लेखकों का जीवन परिचय, ब्रजभाषा उत्पत्ति विकास क्षेत्र

लोक साहित्य के प्रकार

सुविधा की दृष्टि से ब्रज लोकसाहित्य को हम निम्न भागों में बांट सकते हैं-

  1. लोक गीत
  2. लोकगाथा
  3. लोक नाट्य
  4. लोककथा
  5. प्रकीर्ण ब्रज

ब्रज लोकगीत तथा लोकगाथा पूर्णत: पद्यमय होते हैं। लोक नाट्य के संवाद भी पद्यमय ही होते हैं यद्यपि कहीं-कहीं पर इसमें गद्यात्मक संवाद भी मिल जाते हैं। लोक कथाएं पूर्णता गद्य में होती है जबकि प्रकीर्ण साहित्य के अंतर्गत आने वाली लोकोक्तियां मुहावरे तथा पहेलियां गद्य तथा पद्य दोनों में हो सकती हैं।

आधुनिक ब्रजभाषा साहित्य

लोक साहित्य तथा शिष्ट साहित्य में अंतर

मानवीय भावनाओं की अभिव्यक्ति ही साहित्य का रूप धारण कर लेती है। इस दृष्टिकोण से चाहे वह शिष्ट साहित्य हो अथवा लोक साहित्य दोनों में भावों की अभिव्यक्ति ही की जाती है। लोकसाहित्य तथा शिष्ट साहित्य में निम्न अंतर पाया जाता है-

  1. लोकसाहित्य अज्ञात रचयिता की कृति होती है अर्थात् रचना करने वाला व्यक्ति अज्ञात होता है जबकि शिष्ट साहित्य का रचनाकार ज्ञात होता है।
  2. लोकसाहित्य प्रायः मौखिक होता है जबकि शिष्ट साहित्य लिखित होता है।
  3. मौखिक होने के कारण लोकसाहित्य में लोग अपने हिसाब से परिवर्तन करते रहते हैं जबकि लिखित होने के कारण शिष्ट साहित्य में ऐसा नहीं होता है।
  4. लोक साहित्य किसी एक व्यक्ति की कृति न होकर लोक की कृति मानी जाती है परंतु शिष्ट साहित्य व्यक्ति विशेष द्वारा रचित होता है।

ब्रजभाषा का विकास क्षेत्र रचनाकार व उनकी कृतियांआधुनिक ब्रजभाषा साहित्यभक्तिकालीन ब्रज साहित्य
रीतिकालीन ब्रज साहित्यलोक साहित्यलोकगाथा वर्गीकरण विशेषताएं उत्पत्ति
भ्रमरगीत परंपरा लक्षण विकास कवि व ग्रंथभ्रमरदूत की विशेषताएंप्रेम पचीसी की विशेषताएं

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