किसी कथा विशेष पर आधारित प्रबंधात्मक पद्य वध काव्य को लोकगाथा कहा जाता है। इसमें गायक लोकजीवन में चली आ रही कथा को अपने ढंग से प्रस्तुत करता है। हिंदी लोक गाथा का रचयिता भी लोकगीतों की भांति अज्ञात होता है। नल दमयंती माधवानल, कामकन्दला, हरिश्चंद्र तारामती, लैला मजनू, हीर रांझा, शीरी फरहाद आदि से संबंधित अनेक तरह की लोक कथाएं सदियों से हिंदी साहित्य में प्रचलित है। परंतु इनका मूल प्रणेता अज्ञात है। लोक गायक लोक कथा के रूप को लिखित रूप में भी प्रस्तुत करते हैं। इन प्राध्यापकों के मौखिक रूप से प्रचलित होने के कारण समय-समय पर इन में कई नई घटनाएं जुड़ती रहती हैं।
लोकगाथा
लोकगाथा कथात्मक, छंदोबद्ध तथा लोककंठ पर अवस्थित वह प्रबंध काव्य है, जिसका रचयिता अज्ञात होता है। इसलिए यह संपूर्ण समाज की संपत्ति होती है। लोक गाथा को विद्वानों ने लोक महाकाव्य की संज्ञा प्रदान की है जिसमें सक्रियता चरित्रांकन, पृष्ठभूमि तथा कथा उपलब्ध होती है यद्यपि सर्वाधिक ध्यान सक्रियता पर रहता है। लोक गाथाओं में रोमांच, वीरता तथा प्रेम को प्रमुखता दी जाती है।

लोकगाथा का वर्गीकरण
डॉ• कृष्ण देव उपाध्याय ने लोक गाथाओं को निम्न तीन वर्गों में विभाजित किया है-
- प्रेम कथात्मक गाथाएं – इनमें वर्णित प्रेम वासना रहित एवं विशुद्ध होता है। इनमें नायक को अनेक कष्ट नायिका को प्राप्त करने के लिए झेलने पड़ते हैं।
- वीर कथात्मक गाथाएं – वीरों की अलौकिक वीरता को व्यक्त करने वाली गाथाएं वीर कथात्मक लोक गाथाएं कहलाती हैं। इस प्रकार की गाथाओं में नायक को किसी व्यक्ति या अबला की रक्षा करने हेतु अभूतपूर्ण शौर्य का प्रदर्शन करते हुए दिखाया जाता है। आल्हा ऊदल, लोरिकायन आदि ऐसी ही लोक कथाएं हैं।
- रोमांच कथात्मक गाथाएं – इनमें ऐसी लोक गाथाएं आती हैं जिनमें नायक का जीवन अनेक प्रकार के रोमांचकारी कृत्यों से भरा हुआ रहता है। ‘सोरठी’ इस प्रकार की रोमांचक लोक गाथा का उदाहरण है।
लोकगीतों के समान ही लोक गाथाओं का शिल्प सरल, शहज तथा प्रभावशाली होता है। लोक गाथाओं के प्रबंध आत्मक होने के कारण ही इनका संगीत पक्ष सरल होता है। लोक गाथाएं छंदबद्ध तथा लयप्रधान होती हैं। इनमें आशा, आकांक्षा तथा सुख-दुख की अभिव्यक्ति सरल होने के कारण ही इनका प्रभाव पड़ता है।
प्रेम, सौंदर्य, शौर्य तथा साहस इन लोक गाथाओं के विषय होते हैं। छोटी घटना ही उन कलेवर उसे जुड़ जाने के कारण बड़े कलेवर की लोकगाथा बन जाती हैं। आल्हा के विषय में प्रचलित लोक गाथाएं आज भी ग्रामीण अंचलों में बहुतायत से सुनी जा सकती हैं।

लोकगाथा की विशेषताएं
लोकगाथा की मुख्य विशेषताएं निम्न हैं-
- लोक गथा एक प्रबंध आत्मकथा का भी होता है जिन्हें लोक गायकों द्वारा गाकर प्रस्तुत किया जाता है।
- लोकगाथा का गायक किसी ना किसी लोक वाद्य का आश्रय लोक गाथा के गायन में अवश्य लेता है।
- लोकगाथा अज्ञात रचयिताओं की कृति है जिसमें लोक गायक अपनी ओर से भी बहुत कुछ जोड़ते घटाते रहते हैं।
- यह प्राय: समूह में श्रोताओं द्वारा सुनी जाती है जिसका अंत सुखांत होता है।
- प्रेम, सौंदर्य, शौर्य, साहस, बलिदान आदि लोक गाथाओं के विषय होते हैं।
- लोक गाथाएं प्रायः मौखिक रूप में ही होती हैं।
- लोक गाथाओं का शिल्प सरल, सहज तथा प्रभावी होता है।
- लोक गाथाओं के प्रबंध आत्मक होने के कारण इनका संगीत पक्ष भी सरल होता है।
- लोक गाथाओं के बीच में त्याग, बलिदान, ममत्व, स्नेह, वात्सल्य आदि अनेक भावों की अभिव्यक्ति भी देखने को मिलती है।
- लोकगीतों की भाषा छंद विधान तथा अभिव्यक्ति शैली सरल स्पष्ट तथा प्रवाहमय होती है।

लोकगाथा की उत्पत्ति
सहस्त्र वर्ष पूर्व लोक गायकों के मर्म को स्पर्श कर देने वाली कोई एक छोटी सी घटना हुई होगी तथा लोक गायक ने उसे गाना शुरू कर दिया होगा। इसमें कथा के साथ रोचक सरस अद्भुत घटनाओं को समय-समय पर जोड़ दिया जाता है। छोटी घटना ही उनका लेबरों से जुड़ जाने से बड़े कलेवर की लोक गाथा बन जाती है। लोकगाथा की उत्पत्ति और विकास के संदर्भ में विद्वानों के अनुमान निम्न प्रकार से हैं-
जब मनुष्य प्राचीन काल में शिकार के लिए जाता रहा होगा अथवा सभ्य समाज के लोग कबीले बनाकर व्यवसाय के लिए बाहर जाते रहे होंगे। तब गांव के बुजुर्ग लोग समाज में बच्चे स्त्री पुरुषों को मनोरंजन के लिए अपने जीवन के अनुभवों को मिर्च मसाले लगाकर रोचक ढंग से सुनाते होंगे। इन कहानियों में भूत-प्रेत, जादू-टोना, पशु-पक्षी आदि की कल्पनाओं को जोड़कर रोचक बनाया जाता है। लोक कथाओं का स्वरूप इसी प्रकार निर्मित हुआ होगा।
हिंदी लोककथा का रचयिता अज्ञात है। प्रेम, सौंदर्य, शौर्य, साहस सामान्यत: इन लोक गाथाओं के विषय होते हैं। अनेक लोक गाथाएं अन्य विषयों से भी संबंधित होती हैं। प्रेम और वीरता पर आधारित लोक गाथाओं के बीच बीच में त्याग बलिदान ममत्व, स्नेह, वात्सल्य आदि अनेक भावों की अभिव्यक्ति इनमें देखने को मिलती है।

ब्रज क्षेत्र में प्रचलित लोक गाथाएं
ब्रज क्षेत्र में प्रचलित लोक गाथाओं में मुख्य है नल दमयंती आख्यान, हरिश्चंद्र तारामती आख्यान, हरदौल, जाहरपीर, गोपीचंद, भरधरी, आल्हा-अदल, हीर-रांझा, सरवरनीर। हरिश्चंद्र तारामती के आख्यान में सत्य तथा नैतिकता पर बल दिया गया है जबकि हीर रांझा एक प्रेम कथा है। सरवर नीर श्रवण कुमार की गाथा है जिसका केंद्रीय विषय मात्र पित्र की सेवा है। महादेव को ब्याहुलो मैं शिव पार्वती के विवाह का वर्णन है। आल्हा उदल की गाथा में शौर्य तथा वीर रस की प्रधानता है।
ब्रज क्षेत्र में राधा-चरण कौ ढोला भी काफी प्रचलित है। यह अंग्रेजी हुकूमत की तानाशाही तथा बर्बरता के विरुद्ध विद्रोह करने वाले एक नवयूवक राधाचरण की गाथा है, जो गांधी जी के स्वराज आंदोलन से प्रभावित है। ब्रज क्षेत्र में प्रचलित लोक गाथाओं में प्रेम, सौंदर्य, शौर्य, करुणा तथा स्वाभिमान आदि का वर्णन रहता है।
डॉ• कृष्ण देव उपाध्याय ने लोक गाथाओं को निम्न तीन वर्गों में विभाजित किया है-
अपने ये किस किताब से लिया है?