लेखन अर्थ – भाषा के माध्यम से कुछ भी लिखना लेखन कहलाता है। परन्तु भाषा शिक्षण के सन्दर्भ में लेखन का अर्थ है- अर्थपूर्ण लेखन, भाव एवं विचारों की लिखित रूप में अभिव्यक्ति भाव एवं विचार लेखन के मूल तत्त्व होते है। इस प्रकार अपने भाव एवं विचारों को लिखित भाषा के माध्यम से अभिव्यक्त करने की क्रिया को लेखन कहते हैं, यह बात दूसरी है कि लेखक अपने भाव एवं विचारों की अभिव्यक्ति किस सीमा तक कर पाता है।


लेखन का आधार
लिखित भाषा के माध्यम से भाव एवं विचार अभिव्यक्त करने के लिए जिन तत्त्वों की आवश्यकता होती है, उन्हें ही लेखन के आवश्यक तत्त्व एवं आधार कहते हैं। ये तत्त्व निम्नलिखित हैं-
- लेखक का लेखन तन्त्र-हाथ, आँख आदि एवं लेखन सामग्री, कापी आदि।
- लेखक का लिपि ज्ञान, उसको उसके सही रूप में लिखने का अभ्यास।
- लेखक का अपना सक्रिय शब्दकोश, शब्दों का शुद्ध उच्चारण, शुद्ध वर्तनी, अपने भाव एवं विचारों की स्पष्टता
- लेखक में लिखने की तत्परता, लेखन में उसकी रुचि एवं अवधान।
- लेखक का अपने भाव एवं विचारों को धैर्य के साथ, पूर्ण मनोयोग से तार्किक क्रम में अभिव्यक्त करने का अभ्यास।
- लेखक का प्रसंगानुकूल भाषा ज्ञान एवं उसके प्रयोग का अभ्यास
- लेखक का विराम चिह्नों के प्रयोग का ज्ञान एवं अभ्यास।




लेखन कौशल का विकास
बच्चों में लेखन कौशल के विकास का अर्थ है उन्हें अपने भाव एवं विचारों को लिखित भाषा के माध्यम से अभिव्यक्त करने की क्रिया में निपुण करना। और इसके लिए आवश्यक है कि उनमें लेखन के आवश्यक तत्त्वों का विकास किया जाए। यह कार्य एक-दो-दिन, माह अथवा वर्षों में पूरा नहीं किया जा सकता, इसके लिए तो सतत् प्रयास की आवश्यकता होती है।
किसी भी कौशल के विकास के लिए सबसे अधिक आवश्यकता अभ्यास की होती है। हम बच्चों को लिखने के जितने अधिक अवसर देंगे वे लेखन कौशल में उतने ही अधिक निपुण होंगे, दक्ष होंगे। लेखन कौशल का विकास एक सतत् क्रिया है। इसको हमें कई सोपानों में पूरा करना होता है, शिक्षा के विभिन्न स्तरों पर भिन्न-भिन्न कार्य करने होते हैं।

