पिछले कुछ वर्षों में प्रौढ़ शिक्षा तथा प्राथमिक शिक्षा को जन-जन तक पहुंचाने पर बल दिए जाने के बावजूद निरीक्षरो की संख्या में निरंतर वृद्धि होती जा रही है। इसमें कोई संदेह नहीं है कि साक्षरता के प्रसिद्ध में सुधार हुआ है, परंतु निरक्षरो की संख्या विगत 30 वर्षों में डेढ़ गुनी से अधिक हो गई है।
राष्ट्रीय साक्षरता मिशन
सन 1951 में भारत देश में 30 करोड़ व्यक्ति निरक्षर थे। जो सन 1981 में बढ़कर 44 करोड हो गए। ऐसी परिस्थिति में राष्ट्रीय साक्षरता मिशन की रचना की गई। राष्ट्रीय साक्षरता मिशन का शुभारंभ 5 मई 1988 को प्रधानमंत्री श्री राजीव गांधी के द्वारा नई दिल्ली में राष्ट्रीय स्तर पर किया गया था। इस मिशन का मुख्य उद्देश्य 15 वर्षों से 35 आयु के 3 करोड़ निरक्षरों को सन 1990 तक तथा अन्य 5 करोड़ को सन 1995 तक 8 करोड़ निरीक्षकों को साक्षर करने का संकल्प था।





मुख्य बल ग्रामीण क्षेत्रों विशेषकर महिलाओं तथा अनुसूचित जाति व जनजाति के निरक्षरों पर दिया जाना था। साक्षरता के प्रचार व प्रसार की राष्ट्र के 5 तकनीकी विषयों में से एक माना गया है, जिससे तकनीकी व विज्ञान की खोज का लाभ समाज के उपेक्षित वर्गों को भी मिल सके। राष्ट्रीय साक्षरता मिशन एक सामाजिक मिशन है इसका अर्थ है कि मिशन के लक्ष्यों को पाने के लिए सभी जगहों पर राजनैतिक संकल्प मौजूद है, सामाजिक शक्तियों को जुटाया जा सकता है तथा लोगों की छिपी शक्तियों को जगाकर उनसे साक्षरता अभियान में सहयोग लिया जा सकता है।
राष्ट्रीय साक्षरता मिशन की सफलता के लिए निम्न बातें अत्यंत महत्वपूर्ण हैं-
- राष्ट्र का पक्का इरादा
- पढ़ने पढ़ाने में सहायक वातावरण तैयार करना,
- निरीक्षकों के मन में साक्षरता के लिए प्रेरणा का होना,
- तकनीकी शिक्षा साधन जुटाना,
- जनशक्ति जुटाना वर्ष जन सहयोग प्राप्त करना,
- कुशल प्रबंधन व मानीटरिंग।