राज्यसभा संसद का द्वितीय और उच्च सदन है। राज्यसभा की रचना संघीय शासन व्यवस्था के सिद्धांत के अनुसार किया गया है। इस सदन को लोकसभा की तुलना में कम शक्तियां प्राप्त है, परंतु फिर भी इसे सदन का अपना महत्व है।
भारत का उपराष्ट्रपति राज्यसभा का पदेन सभापति होता है। जिसका कार्यकाल 5 वर्ष होता है। उपसभापति 6 वर्ष के लिए राज्यसभा द्वारा अपने सदस्यों में से ही निर्वाचित किया जाता है। सभापति की अनुपस्थिति में उप सभापति, सभापति के स्थान पर कार्य करता है। उपसभापति के विरुद्ध अविश्वास या अयोग्यता का प्रस्ताव पारित कर राज्य सभा उसे उसके पद से हटा सकती है। सभापति सदन की बैठकों का सभापति तो करता है तथा व्यवस्था बनाए रखने के लिए प्रश्नों पर निर्णय देता है। वाह वेतन तथा भत्ते तय करने के साथ-साथ मतदान कराने की घोषणा करता है।

राज्यसभा की रचना (संगठन)
राज्यसभा के संगठन से संबंधित विवरण निम्न वत है-
- सदस्य संख्या- संविधान के अनुच्छेद 80 द्वारा राज्य सभा के सदस्यों की अधिकतम संख्या 250 निश्चित की गई है जिनमें से 238 सदस्यों को भारतीय संघ के इकाई राज्यों एवं संघ शासित क्षेत्र से निर्वाचित होने और शेष 12 सदस्यों को राष्ट्रपति द्वारा मनोनीत किए जाने की व्यवस्था की है।
- सदस्यों की योग्यताएं- राज्यसभा की सदस्यता के उम्मीदवार के लिए संविधान के अनुच्छेद 102 के द्वारा वही योग्यताएं निर्धारित की गई है जो योग्यताएं लोकसभा की सदस्यता के उम्मीदवार के लिए निर्धारित हैं।अंतर केवल यह है कि लोकसभा की सदस्यता के उम्मीदवार की आयु कम से कम 25 वर्ष जबकि राज्यसभा की सदस्यता के उम्मीदवार की आयु कम से कम 30 वर्ष होना आवश्यक है।
- निर्वाचन- राष्ट्रपति द्वारा मनोनीत राज्यसभा के 12 सदस्यों को छोड़कर शेष 233 सदस्य भारतीय संघ की विभिन्न इकाइयों का प्रतिनिधित्व करते हैं और वे जनता द्वारा अप्रत्यक्ष रूप से निर्वाचित होते हैं।इन सदस्यों का निर्वाचन संघ की विभिन्न इकाइयों की विभिन्न विधानसभाओं के निर्वाचित सदस्यों द्वारा एकल संक्रमणीय मत तथा आनुपातिक प्रतिनिधित्व प्रणाली के आधार पर किया जाता है।
- कार्यकाल- संविधान के अनुच्छेद 83 क के अनुसार राज्यसभा एक स्थाई सदन है, यह कभी विघटित नहीं होता।प्रत्येक 2 वर्ष बाद इसका एक तिहाई ऐसे सदस्य जिनका 6 वर्ष का कार्यकाल पूरा हो चुका होता है अपनी सदस्यता से अवकाश ग्रहण करते रहते हैं और उनके स्थान पर पुनः एक तिहाई नए सदस्य निर्वाचित होकर आते रहते हैं। इस प्रकार प्रत्येक सदस्य 6 वर्ष तक राज्यसभा का सदस्य बना रहता है।
- पदाधिकारी- संविधान के अनुच्छेद 89 क व ख के अनुसार राज्यसभा के दो प्रमुख पदाधिकारी होते हैं-
- सभापति
- उपसभापति

राज्यसभा के प्रत्येक सदस्य को ₹50000 मासिक वेतन तथा ₹2000 सत्र चलने पर प्रतिदिन भत्ता मिलता है। राज्यसभा के पदेन सभापति को ₹125000 प्रति माह वेतन तथा अन्य सुविधाएं मिलती हैं। राज्य सभा के सदस्यों को निर्वाचन क्षेत्र भत्ता, कार्यकाल भत्त्ता, आवास, दूरभाष, चिकित्सा तथा पेंशन आदि की सुविधाएं भी प्राप्त होती हैं।
राज्यसभा के कार्य और शक्तियां
लोकसभा के सहायक और सहयोगी सदन के रूप में राज्यसभा के कार्य और शक्तियों का वर्णन निम्न वत है-
- व्यवस्था पालिका (कानून निर्माण) संबंधित कार्य व शक्तियां- संविधान द्वारा वित्तीय विधेयकों को छोड़कर अवित्तिययह साधारण विधायकों के संबंध में समान रूप से शक्तियां प्रदान की गई हैं। साधारण विधेयक संसद के दोनों सदनों लोकसभा और राज्यसभा में किसी भी सदन में प्रस्तावित किया जा सकता है। लोकसभा में प्रस्तावित विधेयक को राज्य सभा द्वारा पारित कराया जाना भी आवश्यक होता है। दोनों सदनों द्वारा पारित विधेयक में राष्ट्रपति के पास हस्ताक्षर हेतु भेजा जाता है।संविधान के अनुच्छेद 108 के अनुसार यदि किसी साधारण विधेयक के संबंध में लोकसभा और राज्य सभा में मतभेद उत्पन्न हो जाता है तो मतभेद को दूर करने के लिए राष्ट्रपति द्वारा दोनों सदनों का संयुक्त अधिवेशन बुलाया जाएगा जिसमें बहुमत के आधार पर विधेयक पर अंतिम निर्णय होता है।
- कार्यपालिका संबंधी कार्य और शक्तियां- संसदात्मक शासन व्यवस्था में मंत्री परिषद संसद के लोकप्रिय सदन लोकसभा के प्रति ही सामूहिक रूप से उत्तरदाई होती है, राज्यसभा के प्रति नहीं। राज्यसभा के सदस्य मंत्रिपरिषद के सदस्यों से प्रश्न तथा पूर्व प्रश्न पूछ सकते हैं, वाद-विवाद कर सकते हैं और उनकी आलोचना भी कर सकते हैं परंतु उन्हें मंत्रिपरिषद के विरुद्ध अविश्वास प्रस्ताव पारित करके उसे अपदस्थ करने का अधिकार प्राप्त नहीं है। राज्यसभा मंत्रिपरिषद को केवल परेशानी में ही डाल सकती है।
- वित्त संबंधी कार्य और शक्तियां है- संविधान के अनुच्छेद एक सौ नौ की व्यवस्था के अनुसार वित्त विधेयक पहले लोकसभा में ही प्रस्तुत किए जा सकते हैं। इस प्रकार संविधान द्वारा राज्य सभा को लोकसभा की तुलना में दुर्बल स्थित प्रदान की गई है परंतु फिर भी संवैधानिक व्यवस्था के अनुसार लोकसभा द्वारा पारित वित्त विधेयक को राज्य सभा में उसके सुझावों के लिए भेजा जाना आवश्यक होता है। जिसे वह 14 दिन तक रोके रख सकती है।
- संविधान-संशोधन संबंधी कार्य और शक्तियां- संविधान में संशोधन के संबंध में संविधान द्वारा राज्यसभा को लोकसभा के समान ही शक्ति प्रदान की गई है। प्रत्येक संविधान संशोधन प्रस्ताव का राज्य सभा के द्वारा पारित होना भी आवश्यक होता है। इस प्रकार संशोधन प्रस्ताव तभी स्वीकृत समझा जाता है। जब संसद के दोनों सदन अलग-अलग अपने कुल बहुमत तथा मतदान में भाग लेने वाले सदस्यों के दो तिहाई बहुमत से उसे पारित कर देते हैं।

- निर्वाचन संबंधी कार्य और शक्तियां- संविधान के अनुच्छेद 54 में राज्य सभा को निर्वाचित संबंधित शक्तियां प्रदान की गई है। राज्य सभा के निर्वाचित सदस्य लोकसभा और राज्य विधानसभाओं के साथ मिलकर राष्ट्रपति का निर्वाचन करते हैं तथा लोकसभा के सदस्यों के साथ उपराष्ट्रपति का निर्वाचन भी करते हैं।
- पदच्युत संबंधी शक्तियां- राज्यसभा लोकसभा के साथ मिलकर राष्ट्रपति और सर्वोच्च न्यायालय के न्यायाधीशों तथा कुछ अन्य उच्च पदाधिकारी पर महाभियोग लगाकर उन्हें उनके पद से हटा सकती है। महाभियोग प्रस्ताव का संसद के दोनों सदनों द्वारा अपने-अपने दो तिहाई बहुमत से पारित होना आवश्यक होता है। इसके अतिरिक्त उपराष्ट्रपति को उसके पद से हटाने का प्रस्ताव केवल राज्यसभा में ही प्रस्तावित किया जा सकता है।
- आपातकालीन शक्ति- 1 माह से अधिक अवधि तक आपातकाल को लागू रखने के लिए आपातकालीन घोषणा संबंधी प्रस्ताव को संसद के दोनों सदनों द्वारा अलग-अलग अपने विशेष बहुमत से अनुमोदन किया जाना आवश्यक है। लोकसभा भंग होने की स्थिति में आपातकालीन घोषणा संबंधी प्रस्ताव का राज्य सभा द्वारा अनुमोदन कराया जाना अनिवार्य है। इसके अतिरिक्त आपातकाल में मौलिक अधिकारों के निलंबन से संबंधित आदेशों को भी यथाशीघ्र संसद के दोनों सदनों के समक्ष प्रस्तुत किया जाना आवश्यक है।
- अन्य विशेष शक्तियां- राज्यों का एकमात्र प्रतिनिधि होने के नाते राज्यसभा को देश के संघीय ढांचे से संबंधित ऐसी दो शक्तियां प्राप्त हैं जो लोकसभा को प्राप्त नहीं है यह दो शक्तियां निम्नलिखित हैं-
- संविधान के अनुच्छेद 249 के अनुसार राज्य सभा अपनी उपस्थिति तथा मतदान में भाग लेने वाले सदस्यों के दो तिहाई बहुमत से प्रस्ताव पारित करके राज्य सूची के किसी भी विधेयक को राष्ट्रीय महत्व का विषय घोषित कर सकती है और राष्ट्रीय हित में उस पर कानून बनाने का अधिकार संसद को दे सकती है।
- संविधान के अनुच्छेद 312 के अनुसार राज्य सभा में उपस्थित तथा मतदान में भाग लेने वाले सदस्यों के दो तिहाई बहुमत से प्रस्ताव पारित करके नहीं अखिल भारतीय सेवाओं की स्थापना करने का अधिकार संघीय सरकार को दे सकती है राज्यसभा के इस प्रकार के प्रस्ताव के बिना संसद या संघीय सरकार द्वारा किसी नई अखिल भारतीय सेवा की स्थापना नहीं की जा सकती है।